5955758281021487 Hindi sahitya : मार्च 2021

गुरुवार, 18 मार्च 2021

पल्लवन शब्द का अर्थ बताते हुए उसकी परिभाषा एवं प्रक्रिया के नियमों का उल्लेख कीजिए।

पल्लवन का अर्थ व परिभाषा
प्रक्रिया व नियम
पल्लवन शब्द का शाब्दिक अर्थ विस्तार होता है यह शब्द अंग्रेजी के Expansion शब्द का हिंदी अनुवाद है पल्लवन संक्षेपण का विपरीतार्थक है
पल्लवन एक प्रकार की गद्य रचना है जिसमें किसी विचार या विषय का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है।
किसी विद्वान मनीषी संत या महात्माओं द्वारा कही गई बात या विचार सूत्र का रूप धारण कर लेते हैं लेकिन आम आदमी उस सूत्र आत्मक वाक्य को समझ नहीं सकते हैं उन्हें समझाने के लिए विस्तृत व्याख्यात्मक प्रस्तुति की आवश्यकता होती है इस प्रकार की नीतियां सूत्र वाक्य कहावत और लोकोक्तियां में गंभीर विचार शामिल होते हैं उसी को विस्तृत रूप प्रदान करना ही पल्लवन कहलाता है।
पल्लवन संक्षेपण की भांति एक कला है।
पल्लवन में निपुणता प्राप्त करने के लिए प्रतिभा और निरंतर अभ्यास की नितांत आवश्यकता होती है।
परिभाषा
पल्लवन की कोई सर्वसामान्य परिभाषा उपलब्ध नहीं है इसका प्रमुख कारण यह है कि सर्जनात्मक गद्य रूप विषय में किसी शास्त्रीय या परंपरागत रूढ़ियों का कोई आग्रह नहीं मिलता है फिर भी अनेक विद्वानों ने अपनी-अपनी मत के अनुसार पल्लवन को परिभाषित करने की कोशिश की है।
डॉ रामप्रकाश" एक निश्चित विषय अथवा विवेचन बिंदु या काव्य से संबंध विचार एवं भाव को अपने ज्ञान सहानुभूति और कल्पना के के सहारे विस्तृत कर सू ललित प्रवाह मई उन्मुक्त शैली के माध्यम से गद्दे में अभिव्यक्त करना पल्लवन कहलाता है।"

डॉ नरेश मिश्र के अनुसार किसी भाव गुप्त सूत्र आत्मक वाक्य को साधारण व्यक्ति के लिए बोद्ध गम में बनाने हेतु किए जाने वाले विस्तार को ही पल्लवन कहते हैं।

इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि पल्लवन वह कला है जिसमें किसी सूत्र ,वाक्य खती कथन तथा मुहावरे आदि में निर्गुण विचारों को सरल सहज स्वाभाविक

बुधवार, 10 मार्च 2021

पृथ्वीराज रासो का संक्षिप्त परिचय व उसकी प्रमाणिकता वह प्रमाणिकता पर महत्वपूर्ण तथ्य

पृथ्वीराज रासो का संक्षिप्त परिचय
प्रमाणिकता व प्रमाणिकता पर महत्वपूर्ण तथ्य
पृथ्वीराज रासो आदिकालीन हिंदी साहित्य का एक गौरव ग्रंथ है इसे हिंदी साहित्य का प्रथम काव्य महाकाव्य भी कहा जाता है इसके चार रूपांतर भी प्राप्त हुए हैं
वृहत
मध्यम
लघु
अति लघु
#वृहत रूपांतर में 69 समय तथा 16360 छंद है यह राजस्थान के उदयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।
#मध्यम रूपांतर
मध्यम संस्करण में 1700 ईसवी के बाद पाया जाता है इसमें 7000 छंद है यह जैन ज्ञान भंडार बीकानेर में सुरक्षित है।
लघु संस्करण इसमें 33 00- 3500 छंद है यह पी शर्मा संपादित अनूप संस्कृत महाविद्यालय  के पुस्तकालय में
सुरक्षित है।
अति लघु संस्करण मैं तेरा स्वच्छंद है खोजकर्ता अगर चंद नाहटा तथा डॉ दशरथ शर्मा इसे प्रमाणिक भी मानते हैं।  


इसके रचियता कवि चंदबरदाई थे जो कथा नायक पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि उनके मित्र व प्रत्यक्षदर्शी रहे हैं।

इस महाकाव्य में कवि ने पृथ्वीराज चौहान तथा संयोगिता की प्रेमकथा का वर्णन किया है साथ ही पृथ्वीराज पर मोहम्मद गौरी के आक्रमणों का भी वर्णन किया गया है।


भाव एवं भाषा दोनों दृष्टिकोण से यह एक उल्लेखनीय महाकाव्य है लेकिन इसकी प्रमाणिकता के बारे में अनेक विद्वानों ने संदेह व्यक्त किया है इस विषय पर बहुत सारे शोध नित्य प्रतिदिन हो रहे।
पृथ्वीराज रासो को अप्रमाणिक मानने वाले विद्वान तथा उनके विभिन्न तर्क
डॉ रामचंद्र शुक्ल
कविराज श्यामलदान
गौरी शंकर
हीराचंद ओझा
डॉक्टर बूलर
मुंशी देवी प्रसाद
विभिन्न तर्क
1.घटनाएं और नाम इतिहास सम्मत नहीं है परमार चालू कश्यप और चौहानों को अग्निवंशी कहा गया है जबकि वे सूर्यवंशी हैं।
2. पृथ्वीराज का तिल्ली गोद जाना और संयोगिता स्वयंवर ऐतिहासिक नहीं।
3. अंनगपाल पृथ्वीराज तथा बीसलदेव के राज्यों के संदर्भ अशुद्ध है।
4.पृथ्वीराज रासो में पृथ्वीराज की मां का नाम कपूरी था जबकि रासो में उसे कमला बताया गया है 
5.पृथ्वीराज की बहन पृथा का विवाह मेवाड़ के राजा समर सिंह के साथ बताया जाना भी अशुद्ध है ।
6.पृथ्वीराज द्वारा गुजरात के राजा भीम सिंह का वध भी इतिहास सम्मत नहीं है ।
7.पृथ्वीराज के 14 विवाह भी इतिहास सम्मत नहीं लगते हैं ।
8.पृथ्वीराज के हाथों मोहम्मद गौरी और सोमेश्वर का वध भी इतिहास के विरुद्ध है ।
9.रासो की तिथियों में इतिहास की तिथियों से 90 या 100 वर्षों का अंतर दिखाई पड़ता है।
पृथ्वीराज रासो को प्रमाणिक मानने वाले विद्वान तथा प्रमाणिकता के पक्ष में विभिन्न तर्क
विद्वान 
डॉक्टर श्यामसुंदर दास 
मोहनलाल 
विष्णु लाल पांडा 
मिश्र बंधु 
कर्नल टॉड
प्रमाणिकता के पक्ष में विभिन्न तर्क
1. प्रक्षेपों का जुड़ा होना
2.समय का अंतर संवत भिन्नता के कारण मोहनलाल विष्णु लाल पंड्या ने आनंद संवत की कल्पना की है जिसके अनुसार तिथि या सभी शुद्ध हैं ।
3.डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार पृथ्वीराज रासो में 12 वीं शताब्दी की संयुक्त  भाषा के लक्षण मौजूद हैं ।

4.इतिहास ग्रंथ ना होकर काव्य ग्रंथ है ।
5.हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार रासो की मूल रचना शुक-शुकी संवाद के रूप में हुई है प्रक्षेपित अंशों में ऐसा नहीं है।
6. चंदबरदाई लाहौर निवासी था जहां अरबी ,फारसी का प्रभाव भी उस समय आ चुका था ।
7.मुनि जी ने विजय ने पुरातन प्रबंध संग्रह 1441 ईस्वी में दिए गए पृथ्वीराज प्रबंध की और विद्वानों का ध्यान खींचा जिससे पृथ्वीराज रासो के चार चंद उद्धृत हुए तथा तीन राशियों के वर्तमान संस्करण हमें भी मिल जाते हैं मुनि जी के अनुसार रासो 1290 विक्रम संवत की रचना है।
उम्मीद करती हूं आपको यह विषय अच्छे से समझ आ गया होगा।
धन्यवाद।