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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

गोरा उपन्यास की समीक्षा

गोरा उपन्यास की समीक्षा
"गोरा" उपन्यास की तात्वि क समीक्षा:-
"गोरा" रवि द्रं नाथ ठाकुर जी की कालजई रचना हैजो केवल बांग्ला
सस्ं कृति की नहीं अपि तुसमस्त भारतीय सस्ं कृति की वि चार एकता का समाहार है। इस कृति मेंरवि द्रं नाथ ने
भारत के प्राचीन और आधनिुनिक चि तं न परंपराओं का वि श्लेषण प्रस्ततु कि या है। धर्म और कर्म के द्वदं को
आधनिुनिक दृष्टि सेमानवता के सदं र्भ मेंस्पष्ट कि या है। रवींद्रनाथ नेगोरा उपन्यास के माध्यम सेहि दं त्ुव के
वि भि न्न व्यवहारि क स्वरूपों की आलोचनात्मक प्रोक्ति प्रस्ततु की है। ऐसा माना जाता हैकि "गोरा" की
परि कल्पना सि स्टर नि वेदि ता और रवि द्रं नाथ के मध्य प्र प्राकृत एवं प्रचलि त धर्म-र्मदर्शनर्श हम हि दं ूमतवाद के
वचै ारि क वि मर्श सेकी गई। सि स्टर नि वेदि ता नव हि दं ूवाद के प्रखर प्रवक्ता एवंपरुोधा स्वामी वि वेकानदं की
शि ष्या थीं। गोरा उपन्यास मेंधार्मि कर्मि - सामाजि क परि वेश के साथ-साथ के वि चि त्रताएँजड़ुी हुई थी जि न्हें यथा
प्रसगं कथाकार नेस्पष्ट कि या है। लेकि न लेखक का मानना हैकि कोई आवश्यक नहीं कि स्थि ति यां बदलने
पर सबं धिं धित पात्रों की मनः स्थि ति भी बदल जाए।यह उपन्यास रवि द्रं नाथ टैगोर का मौलि क उपन्यास है
वास्तवि कता यह हैकि टैगोर महोदय की सभी रचनाएंअग्रं ेजी अथवा बांग्ला भाषा मेंहि दं ी मेंउनकी कोई रचना
नहीं है
आलोचकों समीक्षकों अथवा वि द्वानों नेउपन्यास के नि म्नलि खि त तत्व स्वीकार कि ए हैं:- (१) कथानक (२)
पात्र योजना (३) सवं ाद-योजना (४) वातावरण (५) भाषा-शलै ी (६) उद्देश्य। इन्हीं के आधार पर गोरा उपन्यास
का मल्ूयांकन अथवा वि वेचन प्रस्ततु है–
कथानक – "गोरा" उपन्यास एक वि शालकाय रचना है। इस उपन्यास मेंवि नय भषू ण अथवा वि नय सबसे
पहलेउस का आगमन होता हैऔर जो एक भि खारी का गीत सनु कर घर सेबाहर आता हैऔर वह देखता हैकि
रईस आदमी की घोड़ा गाड़ी नेकि राए की घोड़ा गाड़ी को टक्कर मार दी और कि राए की गाड़ी के भीतर सेएक
यवुती और एक भद्र परुुष बाहर ऐसे।उसका नाम हैपरेश चद्रं भट्टाचार्य और लड़की का नाम हैसचु रि ता था।
और परेश जी घोड़ा गाड़ी सेगि रकर बेहोश हो गए थेउन्हेंदेखनेतो डॉक्टर आया था उसकी फीस भी वि नय ने
दी थी और उस फीस को लौटानेके लि ए एक लड़का सतीश चद्रं मखु ोपाध्याय उनके घर गया तो उसनेवि नय
की बठै क मेंचि त्र देखा जो कि वि नय नेअपनेदोस्त गोरा का बताया। वि नय और गोरा हि दं ूधर्म को मानतेथे।
और गोरा का परूा नाम गौर मोहन था। और गोरा के माता-पि ता उस को जन्म देतेही चल बसेथेऔर उसके
बाद उसका पालन पोषण आनदं मयी और कृष्ण दयाल नामक व्यक्ति नेकि या था। उपन्यास के अतं मेंगोरा
का वि वाह सचु ारि ता के साथ और वि नय का वि वाह ललि ता के साथ हो जाता है।
पात्र- योजना– गोरा उपन्यास मेंपात्रों की सख्ं या इतनी अधि क हैकि पात्रों का परि चय रखना स्वयंपाठ्य को
भी कष्ट साध्य जान पड़ता हैऔर इसके वि शषे या मख्ु य पात्र वि नय ,गोरा , परेश बाबू,हरान बाबूऔर ललि ता
है। और इसके प्रमखु पात्रों का चरि त्र चि त्रण इस प्रकार है:-
वि नय इनका परूा नाम वि नय भषू ण चट्टोपाध्याय है। और वि नय नेकॉलेज की सभी परीक्षाएंपास कर ली है
लेकि न फि र भी वह अपनेभवि ष्य के बारेमेंनहीं सोचता ।लेकि न उसके मन मेंबड़ा बननेकी प्रबल इच्छा है
और वह एकदि न कामयाब होता है।
गोरा इनका परूा नाम गोर मोहन है। और गौर मोहन एक अलग ही तरह का दि खनेवाला आदमी हैजि सका
डीलडोल कि सी सेभी मेल नहीं खाता। और गोरा की आवाज इतनी मोटी और गभं ीर हैकि यदि कोई एकदम से
सनु लेतो आदमी हैरान हो जाए। और गोरा हजारों व्यक्ति यों के बीच मेंभी एक अलग ही पहचान लि ए है।
आनदं मयी यह गोरा की मां है। जि सनेगोरा का पालन पोषण कि या था और गोरा की मांबहुत ही सदंुर महि ला
थी और जि सके बाल बहुत लबं ेथे। गोरा की मां नए सभ्य समाज मेंअपनेपहनावेके कारण कुछ अलग ही
दि खती थी।
वरदासदंुरी परेश बाबूकी पत्नी का नाम है। जो रेशम की साड़ी पहनती हैंऔर बहुत अधि क सजावट करके
रहती है।
सवं ाद योजना:- वि भि न्न पात्रों के मध्य होनेवाली बातचीत सवं ाद कहलाती हैऔर कि सी भी रचना मेंसवं ादों
का बहुत अधि क महत्व होता हैऔर सभी रचनाकार अपनेउपन्यास कहानि यों मेंसवं ादों की योजना के कारण
ही प्रसि द्धि प्राप्त करतेहैं। सवं ादों के कारण ही कोई भी उपन्यास कहानी या कोई भी रचना रोचक बनती हैं।मेंभी रवि द्रं नाथ टैगोर नेअनेक स्थानों पर सवं ादों की योजना बनाई हैजो उपन्यास को बेहद
रोचक ,सरल और पात्रों को गति प्रदान करतेहैं। सवं ाद जि तनेरोचक जि तनेसक्षिं क्षिप्त होंगेउस नाटक को
प्रसि द्धि उतनी ही अधि क प्राप्त होगी।
वातावरण:- उपन्यासकार अपनेवर्णनर्ण द्वारा इस प्रकार की स्थि ति उत्पन्न कर देता हैकि उपन्यास पढ़ने
वाला उसको पढ़कर ही अपनेचारों तरफ ऐसा माहौल ऐसेवातावरण को महससू करनेलग जाता हैअर्था त
वातावरण को इतना सजीवता सेप्रस्ततु करता है। कि जसै ा वह सब कुछ उसी के सामनेघटि त हो रहा हो। और
यह एक उपन्यास को एक कहानी को एक नया मोड़ प्रदान करतेहैं।
भाषा शलै ी:- गोरा उपन्यास की भाषा सरल हैउसमेंसस्ं कृत के शब्दों का की बहुत अधि क प्रयोग कि या गया है
और इस उपन्यास मेंअग्रं ेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग कि या गया है। और कहींकहींपर वाक्य पर अग्रं ेजी
की वाक्य रचना का प्रभाव पड़ा । इसमेंवाक्य बड़ेभी हैंऔर छोटे भी हैं। उपन्यास की शलै ी वर्णनर्ण ात्मक,
प्रभावात्मक है। लेखक अपनी इच्छा सेवर्णनर्ण करता हैकहींसवं ाद शलै ी का ,कभी नाटक शलै ी, कभी मात्रात्मक
शलै ी, कभी सवं ाद शलै ी का इसमेंसभी शलिैलियों का मि लाजलु ा स्वरूप हमेंदेखनेको मि लता है।
उद्देश्य :- इस उपन्यास का उद्देश्य उस समय बगं ाल मेंचलनेवालेभ्रम सप्रं दाय और हि दं ूधर्म का जो भेद है
उसको सामनेलाना है। और उस समय मेंदोनों सप्रं दाय अपनेआप को एक दसू रे सेबड़ा समझतेहैं। और
ब्रह्मसमाज की स्थापना बगं ाल मेंजान में राजा राममोहन राय नेकी थी। और उस समय ब्रह्म समाज में
सम्मि लि त होनेके लि ए प्रार्थनर्थ ा पत्र देना पड़ता था। कि सी भी जाति का व्यक्ति भ्रम सप्रं दाय मेंसम्मि लि त
होकर ऊं ची जाति वालों सेवि वाह कर सकता था। बरम सप्रं दाय के लोग हि दं ओु ंको अछूत मानतेथेवह ना तो
हि दं ओु ं के या खाना खातेथेऔर ना ही हम सेकोई सबं धं रखतेथे।वि नय और ललि ता का वि वाह सबं धं इसी
समाज के छूत अछूत के भेदभाव को दर्शा ता है। गोरा जि सेबाद मेंअपनेपदै ा होनेकी सच्चाई का पता चलता है
एक बार के लि ए तो वह अपनेआप को बि ल्कुल ही तूसमझ नहीं रखता हैऔर समझता हैकि उसके लि ए
समाज मेंकोई स्थान नहीं है। श्री ही क्षण वेसचु रि ता का हाथ थाम कर समाज का सामना करनेके लि ए खड़ा
हो जाता है।
नि ष्कर्ष:र्ष- गोरा उपन्यास मेंसभी तत्वों का उचि त प्रकार सेनि र्वा ह हुआ है। गोरा उपन्यास 19वीं और 20वीं
सदी की शरुुआत की सामाजि क चि तं ाओंमेंअतीत सर्वो परि था ।लेकि न इस दौरान अपनेरचनाकार को रूप देने
वालेरवि द्रं नाथ ठाकुर की लि स्ट अतीत के बजाय भवि ष्य की ओर थी। चेतना पनु रुत्थान की हो या समाज
सधु ार के दौरान अतीत की आलोचना और पनु ाराम लोकन ही वि मर्श पर काबि ज थेऔर रवि द्रं नाथ का जो