5955758281021487 Hindi sahitya : अपना अपना भाग्य कहानी -जैनेंद्र कुमार
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शनिवार, 16 मई 2020

अपना अपना भाग्य कहानी सार ( जैनेंद्र कुमार)

अपना अपना भाग्य कहानी
 लेखक जैनेंद्र कुमार

जैनेंद्र मनोवैज्ञानिक कहानी पर है। मनोवैज्ञानिक इस अर्थ में उनकी कहानी बाहय प्रवेश को अपना अपना भाग्य कहानी बाहर सड़क पर होने वाली सामान्य घटना को मनुष्य की आंतरिक मनुष्यता की कसौटी पर पर रखती है।
 कहानी विविध स्तरीय है।
 उनके कथानक को तीन हिस्सों में बांटा गया है ।
प्रथम दृश्य नैनीताल को सड़क पर सैलानियों के व्यवहार और उनकी प्रकृति के विश्लेषण पर केंद्रित है ।
दूसरा हिस्सा उस 10 वर्षीय बच्चे से जुड़ा है जिसने 10 वर्ष की कमाई आयु में जिंदगी की भयावह यथार्थ को करीब से देखा और पहचाना है ।
तीसरे अंश में एक तरह से लेखक ने हमारे मानवीय सरोकारों के सदम को अनावृत करने की चेष्टा की है ।

कहानी में नैनीताल के सुर में पर्वतीय प्रदेश का वर्णन परिवार की तरह आया है।
 लेकिन वह केवल वातावरण ही नहीं लेखक प्रकृति के उस पार सुंदर के बीच घूमते फिरते लोगों के मन की सुंदरता को व्यक्त करता है ।
वे दृश्य भारत की पराधीनता के यथार्थ को भी बेखुदी व्यक्त करते हैं ।
वहां चलने वाले 3 तरह के लोग हैं ।
कुछ लोग जो शासकीय दम से भरे अधिकार गर्व से चल रहे हैं।
 दूसरा वर्ग घोड़ों की भाषा में उन हिंदुस्तानियों का है जिन्होंने अपने सम्मान से समझौता कर लिया है ।

और अंग्रेज स्वामियों के सामने दुम हिला कर चल रही है इनके साथ साथ भारतीयों का एक ऐसा वर्ग भी है।
 जो अपनी चमड़ी के बावजूद को अंग्रेजों से ज्यादा अंग्रेज समझते हैं ।
अंग्रेजों को देखकर उनके अनुभव होते हैं ।
और अपने देशवासियों को नेटिव कहकर उन्हें वितृष्णा भरी निगाहों से देखते हैं ।
लेखक का ध्यान परिवेश के बीच उभरता ि दो संस्कृतियों के बीच की टकराहट पर भी गया है।
 अंग्रेज स्त्रियों के खुले पन और भारतीय स्त्रियों की सत्ता का भी सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं ।
सुंदरता की पहचान पहाड़ों और रोशनी से ज्यादा मनुष्य की मनुष्यता पर केंद्रित है ।
कहानी के अगले हिस्से में लेखक उसी की परीक्षा पड़ता है कड़कड़ाती सर्दी और टप टप टप चूहे के बीच लेखक के मित्र उनका ध्यान एक 10 वर्षीय बच्चे की तरफ खींचते हैं ।

बच्चे का उदास मलीन चेहरा और उनकी देह पर वैसी ठंड में गंदी से कमीज नंगे सीन नंगे पैर आगे बढ़ते लड़खड़ाते कदम उनके जीवन की विडंबना को साफ अभिव्यक्त कर रहे हैं ।
लेखक और उनके मित्र जिज्ञासा वश उससे उनके जीवन की कहानी सुनना चाहते हैं।
 जिस कहानी में और भाव और अपमान के सिवा कुछ भी नहीं था ।
वह इस कम उम्र में भूख और पिता की मार से लाचार होकर एक दूसरे लड़के के साथ घर से भाग आया था।
 वहां उसने साहब की मार खाकर अपने साथी को मारते देखा था स्वयं बहुत सा काम करते हुए भी ₹1 और जूते भोजन के बदले किसी तरह खुद को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा था ।
की नौकरी से निकाल दिया गया और अब इस कोहरे और भ्रम में सड़क पर पड़े रहने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा है ।
उसकी कहानी सुनकर दोनों मित्र द्रवीभूत होते हैं।

 उसकी नौकरी लगाने के लिए रात 1:00 बजे भी अपने एक साथी के पास जाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता अभाव में पैदा हुए गरीब और कुंभलाए चेहरों वाले  बच्चे अपने चरित्र पर भी शैतान होने का दाग लिए आते हैं ।
मुझे होटलों में रहने वाले किसी भी सड़क चलते बच्चे की मासूमियत पर विश्वास नहीं कर सकते ।
लेखक और उनके मित्र ने आश्वासन दिया कि वह अच्छा निकलेगा किसी काम किसी काम नहीं आती।
 कहानी का यह बिंदु चरमोत्कर्ष का है दोनों संवेदनशील मित्रों की दरिद्रता की सच्ची पर किसी शान होती है दोनों की जेब से जेब में दस दस के नोट है ।
और मन में उस लड़के के लिए कुछ करने का भावजी मैं उसे खाने के लिए कुछ पैसा देना चाहते हैं पर ₹10 उसके लिए ज्यादा है स्वार्थ की फिलॉस्फी परमार्थ की भावना से कहीं शक्तिशाली है ।
सब जानते समझते हुए भी वे उसे केवल आश्वासन के सहारे उस कड़कड़ाती सर्दी में मृत्यु का ग्रास बनने के लिए सड़क पर ही छोड़ कर आगे चल देते हैं ।
उन्होंने अगले दिन उस लड़के को अपने होटल बुलाया था पर सुबह मोटर पर बैठते हुए उस लड़के की मृत्यु की खबर जिससे अपना अपना भाग्य कर लेते हैं भाग्य समाज के अंतर्विरोध यह एक तरह की का नैतिक ढोंग है है कहानी का पूरा ढांचा इस नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है ।
कहानी में यह गिने-चुने पात्रों का कोई चारित्रिक विकास नहीं है लेकिन ऐसी द्वंद पूर्ण सिटी के माध्यम से उन चरित्रों के अंतर और भाइयों के बीच जो अंतर है उसे पूरी गहराई और क्षमता के साथ अभिव्यक्त किया गया है ।
जैनेंद्र की इस कहानी में अनुभव की प्रकृति कहानी के शास्त्रीय ढांचे को चुनौती देती है ।
इस कहानी की भाषा गद्य में कविता का सुंदर उदाहरण है नैनीताल की संध्या धीरे धीरे उतर रही थी ।
यस सब सन्नाटा था। 
तल्लीताल की बिजली की रोशनी ।
दीप मलिका सी जगमग आ रही थी ।

प्राकृतिक दृश्यों के काव्यात्मक संयोजन के साथ नाटकीय संवादों की सृष्टि भी हुई है ।
लड़के के साथ पूरी बातचीत अत्यंत संस्कृत संवाद सूत्र में विकसित होती है ।
लाक्षणिक मुहावरे दारी से युक्त भाषा जैसे 
नैनीताल स्वर्ग के किसी काले गुलाम पशु के दुलार का वह बेटा ''अमूर्त को मूर्त करने का करने में सक्षम है ।
जैनेंद्र की कहानियों में गहरी विचारक विचारात्मकता से उत्पन्न आत्म विश्लेषण उनकी कथा शैली को एक भी नेता प्रदान करता है।
 इस प्रकार अपना अपना भाग्य जैनेंद्र की एक मनोविश्लेषणात्मक कहानी है ।
उम्मीद करती हूं कहानी का सार आपको अवश्य पसंद आएगा ।
धन्यवाद