जीवन परिचय
साहित्यिक परिचय
b.a. द्वितीय वर्ष
थर्ड सेमेस्टर
जीवन परिचय
श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध द्विवेदी युग के प्रख्यात कवि होने के साथ-साथ उपन्यासकार ,आलोचक एवं इतिहासकार भी थे।
भारतीय प्राचीन संस्कृति का वर्णन करना ही इनके काव्य का प्रमुख लक्षण रहा है ।
हरिऔध जी जन्म सन 18 65 ईस्वी में जिला आजमगढ़ के निजामाबाद नामक स्थान पर उत्तर प्रदेश में हुआ था।
इनके पिता का नाम श्री भोला सिंह उपाध्याय तथा
माता जी का नाम रुकमणी देवी था।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा तहसील स्कूल और बनारस के क्वींस कॉलेज हुई किंतु उर्दू-फारसी एवं संस्कृत का गहन अध्ययन इन्होंने घर पर रहकर ही किया।
कार्यक्षेत्र-इन्होंने सर्वप्रथम निजामाबाद के मिडिल स्कूल में नौकरी आरंभ की तत्पश्चात यह कानूनगो के पद पर नियुक्त हुए तथा 1923 इसी पद पर बने रहे ।
सेवानिवृत्ति के बाद इन्होंने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में लगा दिया ।
कुछ समय तक हरिऔध जी काशी विश्वविद्यालय में
अवैतनिक प्राध्यापक पद पर कार्य करते रहे ।
उनका साहित्य सृजन निरंतर आजीवन बना रहा 6 मार्च 1947 को उनका देहान्त हुआ।
प्रमुख रचनाएं
हरिऔध जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों प्रकार की साहित्यिक विधाओं में समान रूप से अपनी कलम चलाई ।उनकी साहित्यिक रचनाओं का विवरण इस प्रकार से है।
काव्य संग्रह
प्रबंध काव्य-
प्रियप्रवास, पारिजात ,वैदेही वनवास
मुक्तक काव्य
रसिक रहस्य ,प्रेम प्रपंच ,प्रेम पुष्टाहार ,उद्बोधन ,कर्मवीर पदम प्रसून ,चौख चौपदे,चौबे
नाटक - विजय ,रुकमणी परिणय
उपन्यास -प्रेम कांता, ठेठ हिंदी का ठाठ, अधखिला फूल
इतिहास और आलोचना- हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास ,कबीर वचनावली की भूमिका
काव्यशास्त्र -रस कलश
अनूदित रचनाएं- कबीर कुंडल ,कृष्ण कांत का दानपात्र वेनिस ,काबा ,विनोद वाटिका
साहित्यिक और काव्यगत विशेषताएं
श्री अयोध्या सिंह ने प्रियप्रवास, पारिजात, वैदेही वनवास आदि महाकाव्य की रचना की। उन्होंने भारतीय काव्य परंपरा का महाकाव्य की रचना के रूप में माना जाता है ।प्रियप्रवास हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है इसका विषय राधा और कृष्ण का जीवन चरित्र है इनके इस महाकाव्य का लक्ष्य श्री हरि ओध जी ने रीतिकालीन कवियों की भांति राधा कृष्ण के भौतिक रूप काम में तल्लीन रहने की बजाय समाज सेवा ,मानव सेवा ,देश सेवा जैसे महान कार्यों एवं आदर्शों को प्रतिष्ठित करने की दिशा में समर्पित किया है। इसके नायक श्री कृष्ण रसिक शिरोमणि ,नटनागर और कुंज बिहारी ना होकर ब्रज के लोगों की विपत्तियों का उद्धार करने वाले लोक नायक और लोक रक्षक हैं ।
उनकी नायिका राधा विरह के आंसू बहाने वाले नायिका ने होकर वह जनहित के लिए सदा तत्पर रहने वाली एक लोक नेत्री हैं ।
पारिजात इनका दूसरा महाकाव्य है जिसमें उनके चिंतन की प्रोढता एवं परिपक्वता के दर्शन होते हैं ।इसमें कवि ने आध्यात्मिक एवं धार्मिक विषयों पर गंभीरता से विचार व्यक्त किए हैं ।
इसी प्रकार वैदेही वनवास में हरिऔध जी ने 18 सर्गो में रामकथा की नवीन संदर्भ एवं मौलिक उद भावनाओं के साथ प्रस्तुत किया है ।इसमें राम और सीता के आदर्श चरित्रों का वर्णन किया गया है।
राष्ट्रभाषा की भावना
हरिऔध के कर्तव्य में राष्ट्रप्रेम की भावना ,सशक्त रूप से कवि ने परमानंद कविता में कहा है कि हम सब भारतीय भारत वासियों को देश को स्वदेश कहना चाहिए।
उन्होंने देश प्रेम ,राष्ट्रप्रेम की भावना की मार्मिक अभिव्यक्ति में नए प्रयोग करते हुए कालिदास के मेघदूत के आधार पर पवन को दूत बनाकर पवनदूती नाम की कविता से राधा को श्री कृष्ण के नाम संदेश भेजकर विरह वेदना भुलाकर समाज सेवा और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हो समाज कल्याण और लोक कल्याण की भावना में लगी हुई ।राधा नायिका दिखाई है समाज सुधार की भावना जी के काव्य में समाज सुधार की भावना का उच्च स्तर पर उद्घोष हुआ है।
उन्होंने रस क्लस में नायिका भेद पर विचार करते हुए नवीन नाव नायिकाओं का योगा अनुरूप समावेश किया है समाजसेवी नायिका इन्होंने तत्कालीन सामाजिक राजनीतिक धार्मिक विकृतियों का विनाश करने की कामना की है और समाज कल्याण का उद्बोधन किया है मानवतावादी भावना-हरि ओम जी के काव्य में उनके मानवतावादी विचारों का सुंदर चित्रण हुआ है वे संपूर्ण विश्व को एक परिवार और एक घर के रूप में मानते हैं ।मानव मात्र के प्रति स्नेह अभाव को प्रोत्साहित करते हैं ।
उनकी कुछ पंक्तियों से स्पष्ट होता है जैसे
जिससे है सब देशों से प्यार
सगे हैं जिनके मानव मातृ
सदन है जिसका सब संसार
प्रकृति चित्रण
अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध के काव्य में प्रकृति के मनोरम दृश्यों का भी सजीव चित्रण हुआ है ।
उन्होंने प्रकृति के मनोरम दृश्यों के साथ साथ भयंकर दृश्यों का भी वर्णन किया है।
उनके काव्य में प्रकृति के आलंबन उद्दीपन और उपदेशी का आदि रूपों का वर्णन हुआ है। संध्याकालीन प्राकृतिक दृश्य का एक उदाहरण इस प्रकार से है
दिवस का अवसान समीप था ।
गगन था कुछ लोहित हो चला ।।
तरु शिखा पर भी अब राज थी
कमलिनी कुल वल्लभं की प्रभा
काव्य कला पक्ष
श्री हरिऔध जी के काव्य का भाव पक्ष जितना विस्तृत और गौरवमई है कला पक्ष भी उतना ही सक्षम है।
उन्होंने आरंभ में ब्रजभाषा में लिखना आरंभ किया था बाद में खड़ी बोली हिंदी के शुद्ध साहित्यिक रूप का प्रयोग इन्होंने किया है हरि ओध जी की वास्तव में भाषा के महान मर्मज्ञ और कुशल शिल्पी हैं।
उन्होंने संस्कृत शब्दों का भी अच्छे से प्रयोग किया है छंद और अलंकार हरि ओध जी के काव्य में तत्कालीन सुप्रसिद्ध सभी छंदों एवं अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है उन्होंने संस्कृत के द्रुत विलंबित , करणी ,मालिनी के साथ-साथ दोहा ,रोला ,चौपाई तक आदि शब्दों का प्रयोग किया है उर्दू में शेर और रूबाइयों का भी नए रूप में प्रयोग दिखाई देता है ।ये उपमा् रूपक ्उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सफल प्रयोग किया है ।
मुहावरे और लोकोक्तियां के प्रयोग में भी किया ।हरिऔध जी ने अपने काव्य की भाषा को अत्यंत सार्थक और प्रांजल रूप प्रदान किया है ।
उन्होंने वात्सल्य रस का वर्णन किया है रस का वर्णन करते समय भी उन्होंने कहीं भी अश्लीलता का समावेश अपने काव्य में नहीं होने दिया है इस के रूप में कहा जा सकता है कि हरि ओम जी के काव्य में भाव पक्ष अत्यंत और समृद्ध आधुनिक हिंदी कविता के विकास के दोनों ही स्तरों पर उन्नत बनाने में हरि ओध जी का अहम स्थान है हिंदी साहित्य में वे सदा आदर भाव स्मरण किए जाएंगे।
धन्यवाद