5955758281021487 Hindi sahitya : बालमुकुंद गुप्त का जीवन परिचय# SEMESTER 6
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सोमवार, 11 मई 2020

बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय

बालमुकुंद गुप्त का जीवन परिचय
बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय
बालमुकुंद गुप्त के निबंध साहित्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
जीवन परिचय- बालमुकुंद गुप्त द्विवेदी युगीन साहित्यकारों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।
वे भारतेंदु युग और दिवेदी युग को जोड़ने वाली कड़ी थे।
 वे अच्छे कवि, अनुवादक ,निबंधकार और कुशल संपादक थे ।
उनका जन्म 14 नवंबर 1865 में हरियाणा राज्य के रेवाड़ी जिले के गुड़ियानी गांव में लाला पूर्णमल के यहां हुआ ‌।
शिक्षा- गुप्त जी की आरंभिक शिक्षा गांव से आरंभ हुुई।

**छात्रावास में वे बड़े ही अध्ययन शील एवं सहनशीलता रहे। परंतु दादाजी तथा पिताजी के देहांत के बाद उनको अपनी शिक्षा अधूरी छोड़नी पड़ी ।
बाद में जब अध्ययन आरंभ किया तो 21 वर्ष की आयु में मिडिल परीक्षा पास कर सकें ।

गुप्तजी ने उर्दू भाषा और पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया।

कार्यक्षेत्र -गुप्तजी ने अखबार चुनार उर्दू अखबार के संपादक नियुक्त हो गए ।
साथ-साथ वे कोहिनूर तथा जमाना जैसे अखबारों के संपादकीय विभाग से जुड़े रहे ।
इसके बाद उनका रुझान हिंदी भाषा की ओर हुआ भारत प्रताप पत्र के साथ जुड़ने के बाद उनके हिंदी लेखन में काफी सुधार हुआ कालांतर में वे हिंदुस्तान ,हिंद बंगवासी व भारत मित्र के संपादक भी रहे।

मृत्यु -गुप्त जी की मृत्यु 18 सितंबर 1907
में 42 वर्ष की अल्पायु में ही हो गई लेकिन उनका नाम हिंदी साहित्य में हमेशा बना रहेगा।

प्रमुख रचनाएं -श्री बालमुकुंद गुप्त के जैस सिंधु -संधि बिंदु पर खड़े थे ।वहां इन्हें भारत का अतीत और वर्तमान परिदृश्य के समान साफ साफ दिखाई देता था और भारत का भविष्य अपने निर्णय की प्रतीक्षा में था इसलिए उनके विपुल साहित्य में भारत के स्वर्णिम भविष्य और संभावनाओं का ध्वनि -संकेत, शब्द शब्द में मुखरित हुआ हैै

*** शिव शंभू के चिट्ठे तथा चित्र सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंग्यात्मक ,सामाजिक और राजनीतिक निबंधों के संग्रह हैं ।
सन उन्नीस सौ पांच में बालमुकुंद गुप्त निबंधावली शीर्षक से उनके निबंधों का संग्रह भी प्रकाशित हुआ इसमें 50 निबंध संकलित है निबंधों के साथ उनके कुछ काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं।
साहित्यिक विशेषताएं -श्री बालमुकुंद गुप्त मूल्य संपादक से धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
 विदेश की पराधीनता के प्रति सदैव चिंतित रहते थे।
 उन्होंने अपने साहित्यिक निबंध ,संपादकीय लेखों और काव्या के विरुद्ध आवाज उठाई।

उनके निबंधों में कुछ विशेषताएं महत्वपूर्ण थी जो विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
राष्ट्रीय भावना -श्री बालमुकुंद गुप्त ने अल्प मात्रा में ही काव्य की रचना की है लेकिन उनका समूचा काव्य राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत है गुप्तजी भारत की पराधीनता को लेकर बहुत ही व्याकुल रहते थे ।
डॉ नगेंद्र ने उनके साहित्य के बारे में स्पष्ट लिखा है राष्ट्रीयता और हिंदी प्रेम उनके साहित्य का मुख्य विषय है ।
यदि गहराई से उनके साहित्य का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि राष्ट्रीयता उनके साहित्य का मुख्य स्वर है।
गांधीवादी विचारधारा -गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है ।
यद्यपि सिद्धांतों में विश्वास रखते हैं। फिर भी कहीं कहींींींींींींींीं उनके तेवर बड़े तेज तर्रार प्रतीत बड़े़ आशीर्वाद उन्होंने कहा है कि हमें विदेशी माल को नकार कर चरखा कातना चाहिए और लघु तथा कुटीर उद्योगोंं को प्रधानता देनी चाहिए ।
**लोक जागरण -द्विवेदी युगीन कभी होने के कारण  गुप्त जी के साहित्य मैं लोक जागरण का स्वर सुनाई देता है। उन्होंने देश की प्रथम तथा सामाजिक कुरीतियों था 
धर्मिक आडंबर ओं ‌‌का भी चित्रण किया है ।
गुप्तजी ने विदेशी वस्तुओं के त्याग और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर भी बल दिया है भले ही वे धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत थे लेकिन समाज सुधार की भावना भी उनमें प्रबल थी ।
उन्होंने अपने विभिन्न लेखों तथा कविताओं द्वारा इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं ।
व्यंग्य का प्रबल प्रयोग -गुप्तकालीन परिस्थितियां भारतेंदु युग इन परिस्थितियों से भी नहीं थी ।
वह लगभग भारतेंदु के समकालीन थे। वैसे तो उनको शिव शंभू के चिट्ठे से साहित्य ख्याति प्राप्त हुई ।लेकिन उनके व्यंग्य -लेख काफी तीखा और तेल मिला देने वाला है ।उन्होंने के गवर्नर भजन के माध्यम से अंग्रेजी साम्राज्य पर करारा व्यंग्य किए हैं।
 उस समय के हालात को देखते हुए यह कार्य सहज नहीं था।

 अनुवाद कार्य गुप्तजी ने अपने समय मेंेंेंें दूसरी भाषाओं के उत्तम कोटि के साहित्य को हिंदी में अनुवाद करने का कार्य किया ताकि हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सके।

** श्री बालमुकुंद गुप्त एक अच्छे अनुवादक थे।
 उन्होंने संस्कृत के रत्नावली नाटक और बांग्ला की बड़ेल भगिनी का सुंदर अनुवाद किया ।
इस प्रकार उन्हें उच्च स्तरीय रचनाओं का अनुवाद करके हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया है।


 समाज सुधार की भावना श्री बालमुकुंद गुप्त के साहित्य में समाज सुधार की भावना भी यथोचित स्थान मिला हैै
। उन्होंने अपने युग के समाज को जीवन को अत्यंत समीप देखा था। उसमें जो कमजोरियां ,अवगुण ,कुरीतियां स्वार्थी पन आदि व्याप्त्त्त्त था ।
उनको सावधान रहने की प्रेरणा दी ।
उन्होंने नारी सुधार पर भी खूब कार्य किया।
 उन्होंनेेे सामाजिक कुरीतियोंोंोंोंंो।
करारा व्यंग्य कसे ।
भाषा शैली
श्री बालमुकुंद गुप्त ने अपने साहित्य में सहज, सरल सामान्य बोलचाल की खड़ी बोली का प्रयोग किया।
 उनकी भाषा पर कुछ-कुछ ब्रज भाषा का भी प्रयोग है।
 इसका कारण है यह है कि भारतेंदु युग और दिवेदी युग को मिलाने वाली कड़ी के रूप में देखा जाता है।
फिर भी खड़ी बोली का सरल और सहज प्रयोग दिखाई पड़ता है ।
उनकी भाषा में उर्दू अंग्रेजी तद्भव शब्दों का अधिकाधिक मिश्रण भी दिखाई देता है।
 उनको अलंकारों से अधिक नहीं था ।
सफल निबंधकार और संपादक थे व्यंग्यात्मक शैली के लिए वे अपने समय में प्रख्यात साहित्यकार थे 
फिर भी उनका शब्द चयन सर्वथा उचित और भाव अभिव्यक्ति में समर्थ है एवं दो के समान कविता भी उनकी भाषा शैली की एक और विशेषता है।
शिव शंभू के चिट्ठे
शिव शंभू के चिट्ठे गुप्त जी का सुप्रसिद्ध निबंध संग्रह है इसमें कुल 11 निबंध संकलित है ।
इन सब में लार्ड कर्जन का जीवन तथा उनकी भारत के प्रति नकारात्मक सोच का उल्लेख है निबंध ओं का वर्णन इस प्रकार से है।
1. बनाम लार्ड कर्जन
2. श्रीमान का स्वागत
3. वेश राय का कर्तव्य
4. पीछे मत फैंकिए
5. आशा का अंत
6. एक दुर्दशा
7. विदाई संभाषण
8. बंग विच्छेद
9. आशीर्वाद 
10.लार्ड मिंटो का स्वागत
 11.माली साहब के नाम
निष्कर्ष
गुप्त जी के निबंधों में निबंधकार की संवेदनशीलता मनुष्य मात्र के प्रति उसकी आत्मीयता सहानुभूति और राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना का कहीं लोग नहीं होता ।
उनके द्वारा की गई निबंध कला को आगे चला कर खूब विकास हुआ ।
गुप्तजी के निबंध निबंध साहित्य की नमक का काम किया है। इसलिए निबंध साहित्य के विकास में बालमुकुंद गुप्त का श्रेष्ठ स्थान है ।निबंध कला के विकास के योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।