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बुधवार, 22 अप्रैल 2020

सूरदास के पद के प्रश्न उत्तर, भाषा शैली व भ्रमरगीत

सूरदास के पद, भाषा शैली ,भ्रमरगीत
सूरदास हिंदी साहित्य के अनुपम प्रदीप नक्षत्र थे श्री कृष्ण के बाल्यकाल का सजीव वर्णन करने वाले वाले सम्राट के नाम से प्रसिद्ध सूरदास का जन्म 1478 में रेणुका क्षेत्र में हुआ।
जीवन भर श्री कृष्ण संबंधी पदों का गायन करने वाले सूरदास ने 105 वर्ष का लंबा जीवन जिया।

काव्यगत विशेषताएं---
** सूर के काव्य में भक्ति की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।
 ***सूरदास जी कृष्ण के प्रति सत् भाव रखते हैं फिर भी इनके काव्य में वात्सल्य सुख की अनुभूति है।
** काव्य में श्रृंगार और वियोग की पीड़ा है।
*** श्रृंगार के वर्णन में सूरदास ने अन्य सभी कवियों को  पीछे छोड़ दिया है।
सूरदास की भाषा शैली की विशेषताएं***
***सूर के काव्य की भाषा ब्रिज है ।
****उसमें सहजता सरलता इतनी है कि गायक इसे अपनी ही रचना मानकर इसकी मिठास में खो जाता है ***काव्य में कहीं उलाहना है तो कहीं अपनत्व भाव ।
**उपमा अलंकार की छटा ऐसी है कि उसमें स्वयं उपमान बन जाता है ऊपर में सर्वोपरि दिखाई देता है ।***रूपक, उत्प्रेक्षा ,अनुप्रास ,वक्रोक्ति का सौंदर्य दर्शनीय है।
सूरदास के पद पद कहां से लिया गया है यह प्रश्न बार-बार पूछा जाता है---
सूरदास के पौधे सूरदास के काव्य सूरसागर में संकलित है।यह सूरसागर के नवम सर्ग से लिया गया है सूरसागर सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है इसमें श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है।
सूर के पदों को ध्यान में रखते हुए भ्रमरगीत की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
1.सूर के काव्य सूरसागर में संकलित है भ्रमरगीत में गोपियों की विरह पीड़ा को चित्रित किया गया है ।
2.प्रेम संदेश के बदले श्री कृष्ण के योग संदेश लाने वाले पौधों पर गोपियों ने व्यंग्य बाण छोड़े हैं व्यंग्य बाणों में गोपियों का हृदयस्पर्शी बुलाना है साथ ही श्री कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम भी प्रकट होता है।
3.सूरदास जी के भ्रमरगीत में निर्गुण ब्रह्मा का विरोध तथा सगुण ब्रह्मा की सराहना की गई है ।
4.वियोग श्रृंगार का मार्मिक चित्रण है।
5. गोपियों की स्पष्टता वाकपटुता से हरा देता है।6.व्यंग्यात्मक ता सर्वथा सराहनीय है।
7. एक निष्ठ प्रेम का दर्शन है।
8. गोपियों का वार्क चातुर्य उद्धव को मौन कर देता है ।9.आदर्श प्रेम की पराकाष्ठा और योग का पालन है ।
10. गोपियों का स्नेह अनूठा है।
कदो कारण भंवरेेेे का रंग हैजाताा
सूरदास के पदों में अपनी रचना का नाम पर मर गई थी क्यों रखा इसके निम्नलिखित कारण है
नंबर 1 कृष्ण भी काला है भ्रमर भी काला है उधर भी काला है इसीलिए उन्होंने अपनी रचना का नाम भ्रमरगीत रखा है।
******गोपियों ने योग मार्ग के बारे में कहा है---
1.गोपियों ने योग शिक्षा के बारे में परामर्श देते हुए कहा    है कि ऐसी शिक्षा लोगों को देना उचित है जिनका मन    चकरी के समान है ।
2.अस्थिर हो ।
3.चित में चंचलता हो।
 4.जिनका कृष्ण के प्रति स्नेह है अटूट नहीं है।
5. गोपियों के का दृष्टिकोण स्पष्ट है प्रेमाश्रय  स और स्नेह बंधन में बंधी हुई गोपियां किसी अन्य से प्रेम नहीं 6.कर सकती ।
7.किसी के उपदेश का उनके ऊपर कोई असर नहीं         पड़  रहा है चाहे वह उपदेश अपने ही प्रिय के द्वारा       क्यों ना दिया गया हो
8. यही कारण है कि अपने ही प्रिय श्री कृष्ण के द्वारा भेजा गया दूत का योग संदेश का सुनने में उनकी कोई रुचि ना रही।
मन चकरी पंक्ति में छिपा व्यंग्य
गोपिया कहती हैं कि उनका मन चकरी के समान अस्थिर नहीं है ।
यह योग का संदेश उनको सुनाना जिनका चित्त चंचल हो ।
जिन्हें श्री कृष्ण से प्रेम ना हो गोपियों का प्रेम तो स्नेह बंदी गुड से चिपकी हुई चिटियों के समान है।

** श्री कृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान है **हम गोपियां मन कर्म वचन सभी प्रकार से कृष्ण के प्रति समर्पित है।
** हम सोते जागते दिन रात उन्हीं का स्मरण करते हैं ।**हमें योग संदेश तो कड़वी ककड़ी की तरह प्रतीत होता है।
** हम योग संदेश नहीं बल्कि श्री कृष्ण का प्रेम चाहती     हैं इसीलिए गोपियां सुशांत से नाराज थी।