5955758281021487 Hindi sahitya : मेरे राम का मुकुट भीग रहा निबंध
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सोमवार, 18 मई 2020

विद्यानिवास मिश्र द्वारा रचित मेरे राम का मुकुट भीग रहा निबंध का सार

मेरे राम का मुकुट भीग रहा शीर्षक निबंध का सार


मेरे राम का मुकुट भीग रहा डॉक्टर विद्यानिवास मिश्र सुप्रसिद्ध ललित निबंध है।

 इस निबंध के माध्यम से लेखक की संवेदना द्वारा लोकतंत्र वेदना का सजीव चित्रण हुआ है ।

लेखक ने लोकजीवन की अंतर वेदना को राम के राजतिलक के समय की घटना के माध्यम से सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है।
***
*** राम का वनवास करुणा का प्रतीक है जिस व्यक्ति का राज अभिषेक हो रहा था विडंबना वर्ष उसे राज सिंहासन की अपेक्षा वनवास हो गया ।

***स्वतंत्र भारत की जनता को स्वतंत्रता के पश्चात राज सिंहासन पर होना चाहिए था किंतु राज सिंहासन पर कुछ ही जाने माने लोग बैठ गए और भारतीय जनता वनवास जैसा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हो गई ।

***भारत के विशेषकर अवध प्रदेश के आसपास के क्षेत्र के लोग लोक जीवन में राम की करुणामयी कहानी उनके मानस पटल पर आज भी अंकित है ।

***लेखक ने अपनी चिंता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए एक संगीत कार्यक्रम की घटना का उल्लेख किया है अपने घर आई एक मेहमान लड़की जो संगीत कार्यक्रम में उनके बेटे साथ जाती है और देर रात तक लौटकर नहीं आती तो उनके मन में चिंता का होना स्वाभाविक है ।

****लेखक पहले तो शहरों की आज कल की असुरक्षित स्थिति का ध्यान रखते हुए इन दोनों को जाने नहीं देना चाहता था किंतु लड़के का मन रखने के लिए कह दिया कि एक डेढ़ घंटे सुनकर लौट आना रात्रि के 12:00 बजे तक उनके लौटने पर लेखक की पत्नी बहुत बेचैन हो उसी समय वर्षा का आरंभ होना लेखक और उसकी पत्नी के लिए चिंता का विषय बन गया उनकी लौट आएंगे इसी तरह शांत हो गई ।
दरवाजे में दरवाजे पर ही लगी रही लेखक के सामने उसका बचपन उन्हें जीवित हो उठा।

**** उसे अपनी दादी नानी की कही बातें रह-रह कर याद आने लगी उसके बाहर जाने पर या विदेश जाने पर दादी नानी व्याकुल होकर गीत गाती और लॉटरी पर कहती मेरे लाल को कैसा बनवास मिला था दादी नानी का गीत तो अच्छा लगता था ।परंतु मन का दर्द नहीं सोता था किंतु आज परीक्षा के प्रतीक्षा के क्षणों में उनकी बात मुझे यथार्थ महसूस हो रही है और दादी नानी की पीड़ा का भी अनुभव मुझे आज हो रहा है भावी पीढ़ी समझ नहीं पाती अपनी संतान के संभावित संकट की कल्पना मात्र से बेचैन होती है

***बार-बार मन को समझाने पर भी लेखक का मन नहीं समझता अपनी गली के वातावरण का ख्याल आते ही मन में दुश्चिंता पुन: सिर उठाने लगती है।

***मन ख्याल ो में डूबा हुआ था ।उसी समय उनका मन कौशल्या की ओर भारत की एक ऐसी कोई भी कौशल्या नहीं है। उस समय जैसी लाखों-करोड़ों को जिनका मन राम के वनवास के कारण दुखी नहीं है बल्कि कौशल्या के पुत्र राम की तरह अनेक रूप बनकर मन में घूम रहे हैं ।जिनका अपना कोई ठिकाना नहीं है किंतु समझने वाली बात यह है कि आज भी राम के सिर पर मुकुट बंधा बांधा जाता है ।


**सभी को उसके भीगने की चिंता रहती है आज भी काशी रामलीला के आरंभ होने से पूर्व निश्चित समय का मुहूर्त निकालकर राम के मुकुट की पूजा की जाती है किंतु आज लाखों करोड़ों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता जो अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए विवश हैं। 

***लेखक पुन अपनी विचारधारा में लौट आता है कि आज केवल देश में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में ऐसी कुशल यही राम का मुकुट ही क्यों लक्ष्मण का दुपट्टा और जागरण भेज रहा है सीता का सिंदूर भीग रहा है उसका अखंड सौभाग्य दिख रहा है यह नीति का खेल है।
 कि ऐश्वर्या और निर्वासन दोनों साथ साथ चलते हैं।
 राम के राजपाट को संभालने वाले बरस अयोध्या के समीप रहते हुए भी उनसे अधिक निर्वासित जीवन व्यतीत करते हैं।
 विभिन्न आशंका और बर्मा से भ्रमित हो उठता है उसे एेसे मंगल आकांक्षा के पीछे से जाती हुई ध्वनि वाला आसन का कुल आंखों से अमंगल सा प्रतीत होने लगता है ।
उसका सारा उत्साह फीका पड़ जाता है। तुलसीदास की कहीं पंक्तियां से याद आने लगती हैं ।

लगती अवध अब आया वह भारी मां तू कालरात्रि अंधियारी गोरे जंतु संपूर्ण नारी डर पर ही एक ही एक निहारी
 घमासान परिजन जन्म होता सहित मीत मनु जमदूत 
वाघ हैवी पेलीकुला सरित सरोवर देखी ना जाए


कैसी मंगलमय सुबह की कल्पना की थी और कैसी अंधकार में कालरात्रि आ गई ।अपने ही लोग भूत-प्रेत से प्रतीत होने लगे ।
ऐश्वर्या से अभिषेक हो रहा था किंतु निर्वासन हो गया उत्कर्ष की ओर उन्मुख सिस्टम का चेतन ने अपने ही घर से बाहर कर दिया गया।
 उत्कर्ष की मनुष्य की उर्दू उन्मुख चेतना की यह कीमत सनातन काल तक अदा की जा रही है।
 अब यदि कीमत अदा कर ही दी गई है तो उत्कर्ष कम से कम सुरक्षित हो रहे ।
यह चिंता भी स्वाभाविक है राम का और राम के मुकुट का गौरव शेष के अवतार लक्ष्मण का गौरव से संभव है। और इन दोनों के गौरव की सुरक्षा जग जननी आदिशक्ति के अखंड सौभाग्य सिंदूर से रक्षित हो सकेगा ।

राम का निर्वासन सीता का दौरा निर्वासन बन जाता है।
 राम तो 1 से आकर राजा बन जाते हैं किंतु सीता रानी होते हुए भी राम के द्वारा वन में निर्वासित कर दी जाती है राम के साथ लक्ष्मण हैं किंतु 

वह जंगल की सूखी लकड़ी बनती है जलाकर अंजोर करती है जुड़वा बच्चों का मुंह मारती है।
 दूध की भांति अपमान की ज्वाला से चित्र खुद पढ़ने के लिए उठता है किंतु बच्चों की प्यारी सूरत देखकर उस पर पानी के छींटे पड़ जाते हैं और शाम तक जाता है निर्वाचन में भी तो इसका सौभाग्य है सीता का बनवास राम को निर्वासन से भी अधिक देता है।
 राम को वन में रहकर इतनी पीड़ा नहीं हुई जितनी सीता को वनवास अयोध्या में एक बार फिर साबित हो जाता है निशानी रहती है सीता के माथे का सिंदूर दमक होता है।


 सीता का वर्चस्व और प्रखर हो उठता है लेखक को सोचते सोचते प्रभात की 4:00 बजे तभी दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई चिरंजीव ऊपर की मंजिल पर नहीं चढ़ने मेहमान लड़की ने कहा दरवाजा खोलिए आंखों में इतनी का तड़क थी कि कुछ कहा नहीं जा सकता लेखक ने इतना ही कहा कि तुम्हें अंदाजा भी है कि तुम्हारे ना आने से दूसरों को कितनी चिंता हुई होगी?
 किसी ने भोजन व दूध को छुआ तक नहीं।
 लेखक को तसल्ली हुई कि लड़के लौट आए बारिश में भी कर नहीं संगीत में देखकर लेखक कुछ क्षणों में फिर अपनी अर्थ चेतना में लौट आया जहां खोया हुआ था उसे लगा कि राम लक्ष्मण सीता अभी भी वन में भीग रहे है
 वर्षा है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही वृक्ष जो छाया देते हैं।
 वर्षा में अधिक कष्ट जाए बन जाते हैं बादल मूसलाधार बरस रहे हैं और मेरे राम ना जाने कबसे भीग रही हैं कुछ जनों के पश्चात राम का भ्रम लेखक का भ्रम टूटता है अनुभव हुआ कि उसके मन और धीरे-धीरे आता है कि राम तुम्हारे कबसे हुए यहां कौन किसका होता है ?
लेखक भले ही विश्वास करें लेखक के मन का चोर की यह बात सच निकली ।मनचाही और अनचाही दोनों तरह की चीजों में कितना बटा हुआ है ।
दूसरे भले ही विश्वास करें किंतु उसके भीतर अतिथि नहीं होती कि मैं किसी का या कोई मेरा है।
 लेखक के मन में एक अन्य विचार भी उभरता है कि क्या बार-बार विचित्र से अनुमन कारण चिंता किसी के लिए होती है ?वह चिंता क्या पढ़ाई के लिए भी होती है ?वह क्या कुछ भी अपना नहीं है इस उम्र में ही क्या राम अपनाने के लिए हाथ नहीं बढ़ाते आए हैं ?क्या मैं कुछ होना और मैं कुछ बनना ही अपनाने की उनकी बड़ी हुई। होड नहीं है ।

लेखक की विचारधारा टूट जाता है। और वह सोचता है कि वह हृदय कहां से लाऊं जिसमें राम को अपना कह सकूं उसमें सीता का ख्याल भी आता है उसके दर्द को अनुभव कर सकूं 1 दिन की मेहमान लड़की के देर से घर पहुंचने का कारण इतनी चिंता हो जाती है उसमें सीता का ख्याल आ जाता है ।
वह राम के मुकुट ,सीता के सिंदूर गिरने की आशंका से जोड़ने जोड़ने आज का दरिद्र हर दिन उदासी को भी ऐसा अर्थ नहीं दे देता जिसे जिंदगी से कुछ उबर सके ।

तभी पूर्व दिशा से उजाला हो जाता है नगर के इस बियाबान में चक्की के साथ कुछ चढ़ती उतरती, गति से हल्की सी सिरहन पैदा कर जाती है।

 मोरे राम के विजय मुकुटवा 

यह पंक्ति लेखक के जीवन में कुछ तरलता वश्य उत्पन्न कर जाती हैं। महीनों से उसने को आती है बस ना पाए यह दूसरी बात है किंतु बरसने के लिए भी प्रभाव का होना भी अति आवश्यक है ।
संख्या कोशिकाओं के कंठ में बसी हुई जो ₹1 है अपनी सृष्टि के संकट में उसके सतत उत्कर्ष के लिए आकुल उस कौशल्या की ओर उस मानवीय संवेदना की ओर ही कहीं रहा है।
 घास के नीचे दबी हुई किंतु आज उस घास को वन्य पशुओं के लिए राजकीय संरक्षित क्षेत्र बनाया जा रहा है ।
बहुत ही आकर्षक स्थली बनाई जा रही है।
 उस मार्ग पर तुलसी और उसके मानस के नाम पर दिखावा किया जाएगा किंतु बारिश में रामकिशोर मुड़े मुड़े होंगे यह पता लगाना बहुत कठिन है।

 प्रमुख बिंदु

1. लेखक ने उन्हें संख्या बेघर एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों का वर्णन किया है जिनको समाज भूल गया है।

2.लेखक की मन स्थिति का वर्णन हुआ है जो राम के बारे में सोचते सोचते सभी लोगों के बारे में सोचने लगता है।

3.सीता की मनोदशा का भी सुख संता पूर्ण चित्रण किया गया है ।सीता के कष्टों का वर्णन करके लेखनी सीता के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।

4.लेखक के मन की उदासी का परिचय दिया है ।

5.लेखक की संवेदना के माध्यम से लोग के अंतर व्यंजन में अंतर वेदना को व्यक्त किया है ।

6.राम के मुकुट के भीगने की जनता को छोड़कर अपने परिजनों की चिंता करने लगता है जो रात के समय संगीत कार्यक्रम को देखने के लिए बाहर गए हुए ।


7.सीता दो बार जंगल की के जीवन की पीड़ा को भूल चुकी है दूसरी बार का निर्वासन अत्यंत दयनीय है।

8. वहां सीता जंगली पशुओं के बीच जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो गई है ।


9. लेखक ने दो पीढियो विचारों में अंतर 
उनकी सोच में अंतर की समस्या को भी उजागर किया है ।

10.अप्रत्यक्ष रूप से आज के बेरोजगार युवकों की पीड़ा की कोई सीमा नजर नहीं आती।

11. अब भी व वर्षा में उनकी आशाएं निरंतर भीग रहा है चिंता करने वाले को शक्ति हैं उनके लिए कोई गीत नहीं गाया जाता ।

12.अप्रत्यक्ष रूप से आज के लाखों करोड़ों बेरोजगार राम इस लोक में दर-दर भटक रहे लेखकों के प्रति चिंता व्यक्त की।