5955758281021487 Hindi sahitya : b.a. तृतीय वर्ष/सेमेस्टर 5
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शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय का परिचय
जीवन परिचय/साहित्यिक परिचय
b.a. तृतीय वर्ष /पांचवा सेमेस्टर
सीबीएलयू यूनिवर्सिटी भिवानी हरियाणा
जीवन व साहित्यिक परिचयअज्ञेयजी आधुनिक हिंदी के प्रमुख साहित्यकार थे उनका पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन था। अज्ञेय उनका उपनाम है।
अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 में गया जिला देवरिया बिहार में हुआ।
उनका बाकी बचपन लखनऊ ,श्रीनगर, जम्मू में बिता।
उन्होंने सन् 1929 में लाहौर के फॉर्म इन कॉलेज से बीएससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।

सन 1930 में उन्होंने m.a. अंग्रेजी का अध्ययन प्रारंभ किया परंतु क्रांतिकारी दल में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण अभी बंदी बना लिए गए 4 वर्ष तक जेल में रहे।

सेना सेवा
सन 1943 में आज्ञा जी सेना में कैप्टन के पद पर नियुक्त होकर कोहिमा फ्रंट पर चली गई वहां 3 वर्ष पश्चात लोटे।
1955 से 60के मध्य उन्होंने विभिन्न देशों की यात्रा की।  

संपादन कार्य

उन्होंने सैनिक और विशाल भारत पत्रिका में संपादन किया सन 1947 में उन्होंने प्रयोगवादी पत्रिका प्रतीक का संपादन किया जो कुछ समय के पश्चात बंद हो गई। नवभारत टाइम्स और दिनमान का भी संपादक है उन्होंने किया।
आकाशवाणी में कार्य
सन 1950 से 55 के मध्य उन्होंने आकाशवाणी में कार्य किया।
विदेश में कार्य
सन 1961 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय साहित्य और संस्कृति के अध्यापक नियुक्त हुए।
सम्मान
अज्ञ े जी को आंगन के पार द्वार रचना पर साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।
कितनी नावों में कितनी बार 1969 पुस्तक पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
मृत्यु
4 अप्रैल 1987 को प्रात हृदय गति रुक जाने के कारण अजय जी का देहांत हो गया।
प्रमुख रचनाएं
अजय जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे उन्होंने लगभग सभी विधाओं पर अपनी कलम चलाई उनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं।

काव्य संग्रह
हरी घास पर क्षण भर 
भग्नदूत
चिंता 
बावरा अहेरी 
धनुष रोदे हुए 
अरे ओ करुणा प्रभामय
आंगन के पार द्वार 
पूर्वा 
सुनहरे शैवाल 
कितनी नावों में कितनी बार
 सागर मुद्रा
 पहले मैं सन्नाटा बुनता हूं 
महा वृक्ष के नीचे 
नदी की बात पर छाया 
क्योंकि मैं उसे जानता हूं।
 ऐसा कोई घर अपने देखा है 

नाटक-उत्तर प्रियदर्शी

कहानी संग्रह-विपथगा
परंपरा
 यह तेरे प्रतिरूप 
जयदोल
 कोटरी की बात 
शरणार्थी
 अमर वल्लरी

उपन्यास
शेखर एक जीवनी प्रथम एवं द्वितीय खंड
अपने अपने अजनबी
नदी के द्वीप
छाया में खनन
बीनू भगत अपूर्ण उपन्यास

यात्रा वृतांत

अरे यायावर रहेगा याद
एक बूंद सहसा उछली

निबंध
त्रिशंकु
सब रस
धार और किनारे
जोग लिखी
अद्यतन
ऑल वॉल

संस्मरण
स्मृति लेखा
स्मृति के गलियारों से

साक्षात्कार
अज्ञेय:अपने बारे में
अपरोक्ष

काव्यगत विशेषताएं
अज्ञेय जी मूर्ति प्रयोगवादी कवि थे।

उनका काव्य का भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समान रूप से समृद्ध है।
आरंभिक काव्य में छायावाद और रहस्यवाद का समन्वित रूप देखने को मिलता है।
उनके काव्य में पुरुषता था और ओजस्विता की भावना के दर्शन भी होते हैं।
उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना भी प्रकट हुई है
मानवतावादी भावना की अभिव्यक्ति वह व्यक्ति निश्चित उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है।
अनेक स्थलों पर उन्होंने तीखे व्यंग्य भी किए हैं।
इनकी कविता में अनुभूति की गहनता का सागर दिखाई पड़ता है।
कुछ विशेषताएं इस प्रकार से हैं।
व्यक्तिनिष्ठता
क्षणानुभूति
जीवन को पूर्णता से जानने का आग्रह
व्यक्ति और सृष्टि का समन्वय
क्रांति की भावना
विभिन्न उपमानो का प्रयोग
जैसे मछली ,द्वीप ,नदी ,दीप इत्यादि


1.हम नदी के द्वीप हैं
हम धारा नहीं हैं
तेरे समर्पण है हमारा

2.यह दीप ,अकेला ,स्नेह भरा
है गर्व मदमता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।

3.सांप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूछूं-(उत्तर दोगे)
तब कैसे सीखा डसना
विष कहां से पाया?

निष्कर्ष-
अज्ञेयजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका व्यक्तित्व एक ऐसे विश्वास से परिपूर्ण है जो अपनी लघुता में भी नहीं खाता उनमें एक ऐसी पीड़ा है जिसकी गहराई को उन्होंने नाप रखा है वह गिरना अपमान तिरस्कार आदि के धुंधले अंधकार में हमेशा दया करने वाला चिर जागरूक दूसरों की सहायता करने वाला जिज्ञासु ज्ञानी श्रद्धा से परिपूर्ण है। उनके उपन्यास ,निबंध, संस्मरण हमेशा हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय रहेंगे।