5955758281021487 Hindi sahitya : b.a. फाइनल ईयर सेमेस्टर 5
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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय
रघुवीर सहाय 
रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता का नागर चेहरा है।यह पेशे से पत्रकार होते हुए भी समकालीन हिंदी कविता के एक सशक्त कवि हैं इन्होंने लघु की महत्ता को स्वीकार करते हुए घर मोहल्ले के चारित्रिक विशेषताओं पर कविता अधिक आम जनता की चेतना में स्थाई स्थान बनाया है।
 परिचय
जन्म -9 दिसंबर, 1929
जन्म भूमि- लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -30 दिसंबर, 1990
मृत्यु स्थान -दिल्ली
पत्नी- विमलेश्वरी सहाय
कर्म-क्षेत्र -लेखक, कवि, पत्रकार, सम्पादक, अनुवादक
भाषा- हिन्दी, अंग्रेज़ी
विद्यालय- लखनऊ विश्वविद्यालय
शिक्षा -एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)
#काल- आधुनिक काल
#युग- प्रयोगवाद युग (दुसरा सप्तक-1951 के कवि)
#पुरस्कार-उपाधि -साहित्य अकादमी पुरस्कार,1984 (लोग भूल गए हैं)
#रचनाएं:-
#कविता संग्रह:-
दूसरा सप्तक
सीढ़ियों पर धूप में (प्रथम)
आत्महत्या के विरुद्ध,1967
लोग भूल गये हैं,1982
मेरा प्रतिनिधि
हँसो हँसो जल्दी हँसो (आपातकाल सें संबंधित कविताओं का संग्रह)
कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, 1989
एक समय था
#कहानी संग्रह:-
रास्ता इधर से है,
जो आदमी हम बना रहे है 
#नाटक:-
बरनन वन (शेक्सपियर द्वारा रचित'मैकबेथ' नाटक का अनुवाद)
#निबंध संग्रह:-
दिल्ली मेरा परदेस
लिखने का कारण
ऊबे हुए सुखी
वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे
भँवर लहरें और तरंग
#पत्र_पत्रिका-
रघुवीर सहाय 'नवभारत टाइम्स', दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। 'दिनमान' पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे। उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।
#प्रसिद्ध_पंक्तियां:-
-" तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्‍थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती का हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्‍यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने"
-" राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है."
-" पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हुई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास"
-" निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे"
-" मनुष्य के कल्याण के लिए
पहले उसे इतना भूखा रखो कि वह औऱ कुछ
सोच न पाए
फिर उसे कहो कि तुम्हारी पहली ज़रूरत रोटी है
जिसके लिए वह गुलाम होना भी मंज़ूर करेगा"
-" बच्चा गोद में लिए
चलती बस में
चढ़ती स्त्री
और मुझमें कुछ दूर घिसटता जाता हुआ।"
निष्कर्ष

हत्या ,लूटपाट ,आगजनी ,राष्ट्रीय भ्रष्टाचार  इनकी कविताओं में उतरकर खोजी पत्रकारिता की सनसनीखेज रिपोर्ट नहीं रह जाती बल्कि आत्मान्वेषण का माध्यम बन जाती हैं।
 इनके पास जातीय है या व्यक्तिगत स्मृतिया नहीं के बराबर हैं। इसलिए इनके दोनों पांव वर्तमान पर ही खड़े हैं।
 उनकी कविता मार्मिक उल्लास और व्यंग्य बुझी खुरदरी मुस्कान से फटी पड़ी है। कविता को इन्होंने एक कहानीपन तथा नाटकीय वैभव प्रदान किया है ।इनकी प्रमुख साहित्यिक विशेषताएं रही हैं। समय की अवधारणा, वैचारिक आयाम, विरोध का स्वर, मोह भंग की अनुभूति ,यथार्थ चित्रण ,जनपक्ष धरता, नारी के प्रति उदार दृष्टिकोण अकेलेपन का संात्र, राष्ट्र की ।
भाषा शैली में आम बोलचाल की के सरल सहज और धाराप्रवाह खड़ी बोली का प्रयोग है ।सड़क, चौराहा ,दफ्तर अखबार ,संसद ,बस ,रेल और बाजार जैसी बेलौस भाषा में लिखा है ।यथासंभव अलंकारों का प्रयोग ।इनकी भाषा को भावात्मक, प्रतीकात्मक, आत्मकथात्मक ,वर्णनात्मक चित्रात्मक शैलियों का भी प्रयोग इसमें मिलता है।  भाषा का सहज गुण है ।दृश्य बिंब प्रिय  है ।इस प्रकार हिंदी साहित्य के महान कवियों में इनका नाम गिना जाता है।