5955758281021487 Hindi sahitya : क्या निराश हुआ जाए हजारी प्रसाद द्विवेदी

गुरुवार, 21 मई 2020

क्या निराश हुआ जाए हजारी प्रसाद द्विवेदी

क्या निराश हुआ जाए हजारी प्रसाद द्विवेदी
निबंध सार
क्या निराश हुआ जाए निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित एक श्रेष्ठ निबंध है ।
इस निबंध में लेखक ने देश की सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर किया जाना चाहिए।

 आजकल समाचार पत्र डाका, हत्या ,चोरी ,तस्करी अधिक समाचारों से भरे रहते हैं।
 लगता है कि कोई ईमानदार देश में रहा ही नहीं प्रत्येक व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।
 एक मित्र ने लेखक को कहा कि इस समय सुखी वह है जो कुछ नहीं करता हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है 

सच्चाई में भी भीरूता समझी जाती है ।
जीवन में महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

लेखकका मत है कि इस स्थिति में हताश होना ठीक नहीं लोभ,मोह ,काम विकारों को प्रधान शक्तिमान लेना उचित नहीं ।

मन एवं बुद्धि को इनके इशारों पर छोड़ देना उचित नहीं ।
भारतीय परंपरा के मृत रिश्ता चरण में कभी विश्वास नहीं किया ।
कुछ लोगों की मन की है पवित्रता के कारण नियमों का पालन नहीं हो रहा।
 भारत हमेशा से कानून को धर्म के रूप में देखता रहा है परंतु आज इन दोनों में अंतर कर दिया गया है ।
धर्म भीरु कानूनों की त्रुटियों से लाभ उठाते हैं धर्म को कानून से बड़ा माना जाता है ।
भ्रष्टाचार के प्रति जो आक्रोश है वह सिद्ध करता है कि इन लोगों को पापा चार बुरा लगता है ।
आज बुरी बातों को उद्घाटित करने करके लोग रस लेते हैं यह बुरी बात है हमें अच्छाई को भी प्रकट करना चाहिए लेखक के अंगों के अनुसार आज भी दुनिया में सच्चाई और ईमानदारी खत्म नहीं हुई है ।
मनुष्यता समाप्त नहीं हुई है मनुष्य की बनाई विधियां आज गलत नतीजे तक पहुंच रही हैं उन्हें बदलना होगा आशा की ज्योति अभी बिजी नहीं है।

मैं सबको लगता है कि आज का भारत अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को भूल रहा है।

लेखक तिलक गांधी टैगोर मदन मोहन मालवीय जैसे मनीषियों द्वारा देखे गए भारत के सपनों जैसा भारत चाहता है।
लेखक का विश्वास है कि उसके मनीषियों के सपनों जैसा भारत आज भी है और सदा वैसा ही रहेगा।
आज के भ्रष्टाचारी वातावरण में साधारण लोगों की जीवन के आदर्शों से आस्था टूट रही है।
वर्तमान समय में ईमानदार मेहनती और सामान्य लोगों का शोषण हो रहा है।
ईमानदारी को मूर्खता समझा जाता है सच्चाई डरपोक तथा मजबूर लोगों के लिए रह गई है।
लोगों का उच्च मानवीय मूल्यों तथा आदर्शों के प्रति विश्वास समाप्त हो गया है ।
मनुष्य बुद्धि सदा नवीन परिस्थितियों के अनुरूप सामाजिक नियम बनाती रहती है ।
समय अनुसार उनमें परिवर्तन भी होता रहता है ।
सामाजिक नियम सबके लिए शक्कर नहीं होते इनमें भी टकराव होता है।
 और फिर बदला भी जाता है सामाजिक नियमों एवं आदर्शों में टकराव को देखकर हताश नहीं होना चाहिए ।
भारतीय भौतिक वस्तुओं के संग्रहण को अधिक महत्व नहीं देते हैं ।
भारतीयों के लिए आत्म तत्व का अधिक महत्व है ।
काम क्रोध लोभ मोह को मन और बुद्धि पर हावी होने देना कृष्ण वनी आचरण है किसी के दोषों को उजागर करना बुरी बात नहीं है ।
किसी की बुराई को उजागर कर उसमें रस लेना बुरा है अच्छाई मेरा से लेकर उसे उजागर करना चाहिए।

 अच्छाई को उजागर ना करना और भी बुरा है इस निबंध के माध्यम से लेखक बताना चाह रहा है ।
कि लेखक भयभीत इसलिए चाची डेढ़ 2 घंटे से बस सुनसान जगह पर हुई थी उसके बच्चे तथा पत्नी भूखे प्यासे बेहाल थे कहीं से कोई सहायता नहीं मिल रही थी ।
लोग ड्राइवर को पीटना चाहते थे ।
परंतु लेखक ने समझाने पर उन्होंने ड्राइवर को बस से नीचे उतार लिया और उसे घेर कर खड़े हो गए।
 एक खाली बस लेकर आ गया और सभी की समस्या का समाधान हो गया।

समाचार पत्र समाचार चैनलों के द्वारा दोषों का पर्दाफाश करने का मुख्य कारण समाज को जागृत करना है।
 जब व्यक्ति विशेष जागृत हो जाएगा तो वह गुण दोष की परिभाषा कोश रमजान और समझ सकेगा ।
सभी समाचार पत्र लोगों को एकजुट करने का कार्य भी करते हैं वह भाईचारे और बंधुत्व की भावना का विकास भी करते हैं ।

नए-नए दोषी एवं अप्रिय घटनाओं को छात्र इसी प्रकार सीडी प्रकरण भी रिश्वतखोरी और दोषियों को सबके सामने उजागर कर लोगों को चेतावनी रहते हैं ।
बुरा काम नहीं करना चाहिए इससे समाज गतिमान नहीं हो पाएगा ।
अपने कार्यों द्वारा वह समाज को नवीन पत्र देना चाहते हैं मैं लोगों को अपने गुणों की पहचान कर जीवन में आगे बढ़ने की सलाह देते हैं और निराशा से ऊपर उठने की कह रहे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें