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सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

लीलाधर जगूड़ी: जीवनी

लीलाधर जगूड़ी
लीलाधर जगूड़ी का जन्म 1 जून 1944 को टिहरी गढ़वाल में हुआ ।
उन्होंने हिंदी साहित्य में में किया।
उन्होंने सैनिक के रूप में देश की सेवा की।
वह सरकारी जूनियर हाई स्कूल में शिक्षक भी रहे।
उत्तरांचल सरकार के सलाहकार भी रहे।
साहित्य अकादमी सम्मान से विभूषित हुए।
सन 1960 के बाद की हिंदी कविता को एक नई पहचान देने वाले जमकुड़ी जी ने एक से एक उत्कृष्ट काव्य संग्रह की रचना की जिनक परिचय इस प्रकार से है
शंख मुखी शिखर पर
नाटक जारी है
इस यात्रा में
रात अब भी मौजूद है
बची हुई पृथ्वी
घबराए हुए शब्द
भय शक्ति देता है
हम भूखे आकाश में चांद
महाकाव्य के बिना
ईश्वर की अध्यक्षता में
खबर का मूंह विज्ञापन से ढका है।
लीलाधर जगूड़ी नई कविता और है कविता के दौर में उभरे समकालीन कवियों में चर्चित कवि हैं जगूड़ी जी की कविताएं नए विपक्ष की कविताएं हैं जो इस अवस्था में आज के भारतीय मनुष्य की करुणा का पुनर आविष्कार या उसकी तलाश में विचार के स्तर पर निर्भरता की हद से गुजरती हुई शिल्प की अद्विक को सजीव नाटक किया था सेव मरने वाले कवि हैं
 सन 1960 के बाद पूरे भारत का सामाजिक एवं राजनीतिक ढांचा बदल रहा था।
 नक्सलवादी विद्रोह ने हिंदी कविता पर पर्याप्त प्रभाव डाला था ।
युवा जनवादी कभी इस घटनाक्रम से प्रभावित होते हैं।
 और वह दिशाहीन युवा वर्ग की यथार्थ अभिव्यक्ति देते हैं ।
लीलाधर जगूड़ी उन कवियों में आते हैं जिन्होंने अनुभव और भाषा के बीच कविता को जीवित रखा है।

 जगूड़ी की कविता मौजूदा अंधकार में लड़ी जा रही लड़ाई की कविता है ।
वे अंधकार को पहचानते हैं जिसने हमारे काल को छिपा दिया है।
 जगूड़ी की कविता में भाषा अलग से चमकती है।

 जगूड़ी की कविताओं में अनुभवों का और भाषा के बदलते रूप का नया दरवाजा खोला है।
 उन्होंने यह महसूस किया है कि प्रेम कविता से भी राजनीति की अभिव्यक्ति की जा सकती है।
 पेड़ हो चाहे, पहाड़ हो
 परिवार हूं चाहे समुंद्र
 हर कोई मुझे इस तरह से आता था की जिंदगी को एक ही हफ्ते में हल्की की तरह मचा दो ।
राजनीति और मानवीय प्रेम को चेक 19 हो गए थे ।

जब अपने समय का युवा पर याद आता है तो अक्सर इस यात्रा में शामिल हो जाता हूं ।
बीती हुई पीढ़ियों का युवा पर आती हुई  के युवाओं की दुनिया मुझे दोनों में यात्रा करना उत्साहवर्धक और आनंददायक लगता है ।
इस दृष्टि से देखता हूं तो इस यात्रा में की कविताएं अभी तक निरस्त हो पाई है ।
इनमें तरह तरह से जिंदगी में शामिल होने के बीच मौजूद हैं।जगूडी की कविताओं में पीढ़ियों के दो बंदों से उपजा परिवार का विखंडन कई बिंदुओं पर दिखाई देता है।

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