5955758281021487 Hindi sahitya : कविता
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सोमवार, 25 मई 2020

बेरोजगारी पर कविता

बेरोजगारी पर कविता

करोड़ों की संख्या में 
लाखों लोग बेकार है
 भूख से तड़पते हुए वे 
नहीं मिलता उन्हें रोजगार हैं
पढ़े-लिखे युवक अकसर
 रो-रोकर यह कहते हैं
 इतना पढ़ने के बाद भी
 क्यों हम बेरोजगार रहते हैं।
कहते हैं पढ़ाई पर
 लगाया था हमने काफी दम
 आकर उची उची डिग्री
 क्यों फिर से बेरोजगार हम
क्या फायदा इन डिग्रियों का
 जो दिला  नहीं सकती काम हमें
 है लज्जा की बात यही भारी
 हम इन्हें लिए बेरोजगार फिरे
काम की खातिर हमने
 अनेकों हैं जतन किए 
चमचागिरी की अफसरों की 
उनके जूते तक भी पॉलिश किए
इतना करने पर भी
 उन्हें नहीं रोजगार मिलते हैं 
आकर तंग हालात से
 यह गलत रास्ता चुनते हैं
जगह-जगह असंख्य युवक
 बैठ बेकार में बहस करें
 खाकर धक्के इधर उधर
 लाखों में शैतान बनी
 जब देखें वे  दुनिया अपनी 
तब गुस्से से भर जाते हैं
 लाखों सुन लेते गलत राह
सैकडों पीकर विष मर जाते हैं
 रिश्वत और सिफारिश ने
 गरीब जनता को बेकार किया 
भ्रष्टाचार की इस जोंक ने 
गरीब जनता का लहू पिया
 नेता अफसर लोग सभी 
भरे घड़े को भरते हैं 
इनकी स्वार्थ लिप्सा के कारण
 गरीब  बेरोजगार बने फिरते हैं
 यही हालात रहे अगर देश में 
जो जलती क्रांति की चिंगारी 
एक दिन शोला बन जाएगी 
जलाकर इस देश को फिर
कंकालों का ढेर लगाए।


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बेरोजगारी फैली चहु दिसि
चारों तरफ हाहाकार करें
मजदूर भागे इधर-उधर
कौन इनकी दशा में सुधार करें?
लॉक डाउनलोड डाउन शब्द पुकारे
सारे धंधे चौपट हुए
बेरोजगारी की दहशत झले
हाय मजदूर बेचारे
मजदूरों के लिए ट्रेन बस चलाई सरकार
पहुंचाए उनके घरों में
पानी रोटी शेल्टर होम की व्यवस्था करें
पर क्या रोजगार फिर से आबाद कर पाएगी सरकार
कब तक सभी रुकेंगे घरों में
क्या काम ऐसे चल जाएगा
कोरोना महामारी ने
सबसे ज्यादा कमर तोड़ दी मजदूरों की
बेरोजगारी फैली चहु दिसि
चारों तरफ हाहाकार हुआ
कब गम के बादल छूट जाएंगे
कब पहले सा दुनिया आबाद होगी
मजदूर सोचता ही रहता है
उसकी हालत पहले भी वैसी थी
अब थोड़ी और बदतर
रोज उद्योगों मैं मजदूरोंकी संख्या घटकर जीरो हुई
कब तांडव समाप्त होगा कोरोनावायरस
कब मजदूर खुशहाल बनी
इसी आशा में जीवन चलाएं
मजदूर कैसा बेहाल हुए