धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय
b.a. फाइनल ईयर सेमेस्टर 5
m.a. कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
अंधा युग की थी नाटक से लोकप्रिय धर्मवीर भारती स्वतंत्रता के बाद के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान रखते हैं।
धर्मवीर भारती
जन्म- 25 दिसंबर 1926
जन्म भूमि- इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -4 सितंबर, 1997
मृत्यु स्थान- मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक - चिरंजीवलाल वर्मा, चंदादेवी
पति/पत्नी- कांता कोहली, पुष्पलता शर्मा (पुष्पा भारती)
संतान- परमीता, प्रज्ञा भारती (पुत्री), किन्शुक भारती (पुत्र)
कर्म भूमि- इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
कर्म-क्षेत्र - लेखक, कवि, नाटककार
काल- आधुनिक काल (प्रयोगवाद काल)
नोट- भारती दुसरा-सप्तक में शामिल कवि थे|
#रचनाएं:-
#कविता:-
ठंडा लोहा (1952)
सात गीत वर्ष (1959)
कनुप्रिया (1959)
सपना अभी भी (1993)
आद्यन्त (1999)
#पद्यनाटक :-
अंधायुग (1954)
#कहानी संग्रह:-
मुर्दों का गाँव (1946)
स्वर्ग और पृथ्वी (1949)
चाँद और टूटे हुए लोग (1955)
बंद गली का आख़िरी मकान (1969)
साँस की क़लम से (पुष्पा भारती द्वारा संपादित सम्पूर्ण कहानियाँ ) (2000)
#रेखाचित्र:-
कुछ चेहरे कुछ चिंतन (1997)
#संस्मरण:-
शब्दिता (1997)
#उपन्यास:-
गुनाहों का देवता(1949)
सूरज का सातवाँ घोडा (1952)
ग्यारह सपनों का देश (प्रारंभ और समापन) 1960
#निबंध:-
ठेले पर हिमालय (1958)
कहनी अनकहनी (1970)
पश्यंती (1969)
साहित्य विचार और स्मृति (2003)
#रिपोर्ताज:-
मुक्त क्षेत्रे : युद्ध क्षेत्रे (1973)
युद्ध यात्रा (1972)
#आलोचना:-
प्रगतिवाद: एक समीक्षा (1949)
मानव मूल्य और साहित्य (1960)
#एकांकी नाटक :-
नदी प्यासी थी (1954)
#अनुवाद :-
ऑस्कर वाइल्ड की कहानियाँ (1946)
देशांतर (21 देशों की आधुनिक कवितायें ) 1960
#यात्रा विवरण :-
यात्रा चक्र (1994)
#मृत्यु के बाद प्रकाशित रचनाएं:-
धर्मवीर भारती की साहित्य साधना (संपादन पुष्पा भारती) 2001
धर्मवीर भारती से साक्षात्कार (संपादन पुष्पा भारती) (1998)
अक्षर अक्षर यज्ञ (पत्र : संपादन पुष्पा भारती 1998)
#पत्र/पत्रिकाओं का संपादन :-
अभ्युदय
संगम
हिन्दी साहित्य कोष (कुछ अंश)
आलोचना
निकष
#सम्मान एवं पुरस्कार:-
डॉ. धर्मवीर भारती को मिले सम्मान एवं पुरस्कार :-
1967 संगीत नाटक अकादमी सदस्यता - दिल्ली
1984 हल्दीघाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार - राजस्थान
1985 साहित्य अकादमी रत्न सदस्यता - दिल्ली
1986 संस्था सम्मान - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
1988 सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार - संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली
1988 सर्वश्रेष्ठ लेखक सम्मान - महाराणा मेवाड़ फ़ाउंडेशन - राजस्थान
1989 गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार - केंद्रीय हिन्दी संस्थान - आगरा
1989 राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान - बिहार सरकार
1990 भारत भारती सम्मान - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
1990 महाराष्ट्र गौरव - महाराष्ट्र सरकार
1991 साधना सम्मान - केडिया हिन्दी साहित्य न्यास - मध्यप्रदेश
1992 महाराष्ट्राच्या सुपुत्रांचे अभिनंदन - वसंतराव नाईक प्रतिष्ठान- महाराष्ट्र
1994 व्यास सम्मान - के. के. बिड़ला फ़ाउंडेशन - दिल्ली
1996 शासन सम्मान - उत्तर प्रदेश सरकार - लखनऊ
1997 उत्तर प्रदेश गौरव - अभियान संस्थान - बम्बई
#विशेष_तथ्य:-
- ये प्रारंभ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे|
- ये 1987 ईस्वी तक धर्मयुग पत्रिका के संपादक रहे|
- उनकी कविताओं के प्रमुख विषय रूपा शक्ति, उद्दाम कामवासना एवं सबच्छंद विलास है|
- कनुप्रिया रचना में राधा की परंपरागत चरित्र को नए रुप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है|
- साहित्यकारों की सहायतार्थ आप ने 1943 ईस्वी में 'परिमल' नामक संस्था की स्थापना की थी|
- आपने सिद्ध साहित्य पर शोध उपाधि प्राप्त की थी |
- आपके द्वारा रचित सूरज का सातवां घोड़ा रचना पर एक टीवी धारावाहिक सात कड़ियों में भी प्रसारित हुआ था|
धर्मवीर भारती चेतना के प्रतिनिधि कवि हैं यह जीवन की सच्ची अनुभूतियों के शहद शिल्पी हैं उनके काव्य में न तो किसी प्रकार का सैद्धांतिक दुराग्रह है नहीं शिल्पगत दुराव इनकी कविताओं में प्रयोगवाद तथा नई कविता के संदर्भ के बारे में महत्वपूर्ण उपलब्धि समझी जाती हैं। इनके काव्य की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं रूमानियत की भावना प्राकृतिक चित्रण अनाज था निराशा और पराजय की भावना आस्था और निर्माण का स्वर उनकी जो भाषा शैली है वह चित्रात्मक वर्णनात्मक तथा आत्मकथात्मक भी रही है प्रेम वासना निराशा नाश्ता के स्वरों के अतिरिक्त भारती के काव्य में आस्था विश्वास पर निर्माण की गूंज भी दिखाई दी है।
निष्कर्ष
डॉ भारती का साहित्य कई मोड़ो से गुजर कर आज का एक विशिष्ट मुकाम हासिल कर चुका है अपनी कावर यात्रा के प्रारंभिक मोड पर डॉ भारती छायावादी गीतकार के रूप में अवतरित हुए परंतु अगले ही मोड़ पर उनके साहित्य में मांस लता प्रेम रूप यौवन और आनंद के दर्शन होते हैं डॉ भारती ने अपने ग्रंथ साथ गीत वर्ष में अपनी वास्तविक राह पाकर पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं इनकी रचनाओं में सिद्धू का रिवाज वैष्णव का महा भाव अस्तित्व वादियों का संवाद छायावाद का रोमांच संभ्रांत वर्ग का परिष्कृत रुचि पहनी पर्यवेक्षण शक्ति और अभी रामसन संश्लिष्ट शैली के दर्शन होते हैं उनके काव्य में प्रेमा अनुभूति से लेकर विद्रोहात्मक आत्मक स्वर तक सबकुछ उपलब्ध है।