प्रेम और मज़दूरी : सरदार पूर्ण सिंह
प्रस्तावना
हिन्दी साहित्य में ऐसे अनेक निबंधकार हुए हैं, जिन्होंने समाज और जीवन की जटिलताओं को सरल और मानवीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया। सरदार पूर्ण सिंह का नाम इनमें विशिष्ट है। उनका निबंध “प्रेम और मज़दूरी” उनके चिंतन, करुणा, सहानुभूति और जीवन-दर्शन का दर्पण है। इसमें उन्होंने प्रेम, करुणा और श्रम के अंतर्संबंध को स्पष्ट करते हुए जीवन की गहराई को छूने का प्रयास किया है।
उनका मानना था कि मनुष्य केवल बुद्धि और शक्ति से महान नहीं बनता, बल्कि प्रेम और सेवा से ही उसका जीवन सार्थक होता है। यह निबंध मानवता की पुकार है, जो आधुनिक जीवन की आपाधापी और स्वार्थपूर्ण प्रवृत्तियों के बीच भी करुणा और सच्चे श्रम का संदेश देता है।
लेखक-परिचय
सरदार पूर्ण सिंह का जन्म 17 फरवरी 1881 ई. को रावलपिंडी जिले (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा अमेरिका और जापान में प्राप्त की। वे उच्च कोटि के वैज्ञानिक, लेखक, अध्यापक और समाजसेवी थे। उनकी लेखनी में भारतीय संस्कृति की आत्मा, वेदांत का दर्शन और मानवता का मर्म गहराई से प्रकट होता है।
सरदार पूर्ण सिंह ने विज्ञान और तकनीक की शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद जीवन का असली आनंद करुणा और प्रेम में खोजा। यही कारण है कि उनके निबंध केवल बौद्धिक न होकर हृदयस्पर्शी भी होते हैं।
प्रेम का स्वरूप
सरदार पूर्ण सिंह के अनुसार प्रेम जीवन का मूल तत्व है। प्रेम ही वह शक्ति है जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़ती है। जब जीवन में प्रेम नहीं होता, तब वह शुष्क, यांत्रिक और नीरस हो जाता है।
उनके मतानुसार—
प्रेम केवल भावुकता या आकर्षण नहीं है, बल्कि त्याग और सेवा का नाम है।
प्रेम मनुष्य की आत्मा को प्रकाशित करता है और जीवन को सार्थक बनाता है।
जब प्रेम श्रम के साथ जुड़ता है, तब वह साधारण मजदूरी को भी पवित्र कर्म बना देता है।
मज़दूरी का महत्व
सरदार पूर्ण सिंह ने मजदूरी (श्रम) को ईश्वर-पूजा की संज्ञा दी है। उनके विचार में मजदूरी केवल जीविका अर्जन का साधन नहीं है, बल्कि आत्मा की साधना है। श्रम करते समय यदि मनुष्य में प्रेम और सेवा का भाव हो तो वह ईश्वर की उपासना के समान है।
उन्होंने कहा कि—
मज़दूरी ही जीवन की सच्ची पूँजी है।
श्रमहीन जीवन आलस्य और पतन का जीवन है।
श्रम करने वाला व्यक्ति आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी होता है।
मजदूरी में प्रेम का समावेश हो जाए तो वही समाज का उत्थान करती है।
प्रेम और मजदूरी का अंतर्संबंध
निबंध का मूल उद्देश्य प्रेम और मजदूरी के बीच के रिश्ते को स्पष्ट करना है। पूर्ण सिंह बताते हैं कि श्रम तभी महान है जब उसमें प्रेम का संचार हो।
यदि मजदूरी केवल धन कमाने के लिए की जाए, तो उसका स्वरूप संकीर्ण हो जाता है।
यदि उसमें प्रेम और सेवा का भाव हो, तो वह श्रम मनुष्य को ऊँचा उठाता है।
प्रेम और श्रम मिलकर मनुष्य के जीवन को पूर्ण बनाते हैं।
उनके अनुसार जो मजदूरी प्रेम के साथ होती है, वही दूसरों के जीवन में सुख और शांति लाती है।
समाज और मानवता के लिए संदेश
इस निबंध में पूर्ण सिंह ने समाज के लिए गहरा संदेश दिया है।
1. मानवता की प्रतिष्ठा – समाज में ऊँच-नीच, जाति-पाति, धन-दौलत का भेद मिटाकर श्रम और प्रेम के आधार पर समानता स्थापित की जा सकती है।
2. स्वार्थमुक्त सेवा – मजदूरी का उद्देश्य केवल व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि दूसरों की सेवा भी होना चाहिए।
3. आत्मनिर्भरता – श्रम का महत्व समझकर हर व्यक्ति को अपने जीवन में श्रम करना चाहिए। यह आत्मनिर्भरता की ओर ले जाता है।
4. सामाजिक समरसता – प्रेम और मजदूरी मिलकर समाज में भाईचारे और सहयोग की भावना जगाते हैं
आध्यात्मिक दृष्टिकोण
पूर्ण सिंह केवल सामाजिक निबंधकार ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टा भी थे। उनके अनुसार—
मजदूरी ईश्वर की आराधना है।
प्रेम आत्मा की शुद्धि का साधन है।
जब मनुष्य प्रेमपूर्वक श्रम करता है तो उसके भीतर दैवीय आनंद का संचार होता है।
इस दृष्टिकोण से श्रम केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना भी है।
भाषा और शैली
इस निबंध की भाषा अत्यंत मार्मिक, सरल और हृदयस्पर्शी है। इसमें कहीं-कहीं भावुकता की तीव्रता है, तो कहीं तर्क और विवेक की गंभीरता। उनके वाक्य छोटे, प्रवाहमय और आत्मा को छूने वाले हैं।
शैली की विशेषताएँ:
भावप्रधानता
सरलता और सहजता
हृदयस्पर्शी करुणा
तर्क और विवेक का संतुलन
साहित्यिक सौंदर्य
निबंध का प्रभाव
“प्रेम और मज़दूरी” पाठकों के हृदय को गहराई से छूता है। इसे पढ़कर मनुष्य आत्ममंथन करने लगता है कि क्या उसका श्रम केवल धन कमाने के लिए है या उसमें सेवा और प्रेम का भाव भी है। यह निबंध श्रम और प्रेम के महत्व को जीवन का आदर्श बनाता है।
उपसंहार
सरदार पूर्ण सिंह का “प्रेम और मज़दूरी” निबंध केवल साहित्यिक रचना नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन है। इसमें प्रेम को जीवन का सार और मजदूरी को पूजा कहा गया है। जब दोनों का समन्वय होता है, तभी जीवन सार्थक और समाज समृद्ध होता है।
यह निबंध हमें सिखाता है कि –
प्रेम के बिना श्रम केवल जीविका है।
श्रम के बिना प्रेम केवल भावुकता है।
जब दोनों मिल जाते हैं, तब जीवन पूर्ण हो जाता है।
इस प्रकार यह निबंध भारतीय संस्कृति, मानवीय मूल्यों और श्रम-प्रधान जीवन का अमूल्य संदेश देता है।