भूमिका :
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं था, बल्कि यह एक सांस्कृतिक, भाषायी और साहित्यिक जागरण का भी प्रतीक था। भारत की आत्मा उसकी भाषा और संस्कृति में बसती है, और इस दृष्टि से हिंदी भाषा ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय जनमानस को एक सूत्र में बाँधने का कार्य किया।
हिंदी साहित्य ने न केवल स्वतंत्रता की भावना जगाई, बल्कि भारत के जन-जन में राष्ट्रभक्ति, त्याग, बलिदान और स्वाभिमान के भाव को प्रबल किया।
1. स्वतंत्रता आंदोलन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि :
भारत में अंग्रेजी शासन के आरंभ के साथ ही विदेशी दमन, आर्थिक शोषण और सांस्कृतिक गुलामी बढ़ती गई।
फिर 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (जिसे मंगल पांडे, लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब जैसे वीरों ने आगे बढ़ाया) ने इस आंदोलन को दिशा दी।
इसके बाद अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों, आंदोलनों और सत्याग्रहों के माध्यम से भारत ने स्वतंत्रता की राह तय की।
2. स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख घटनाएँ (Point-wise):
(1) 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
इसे भारत का प्रथम राष्ट्रीय आंदोलन माना जाता है।
यह अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिकों के विद्रोह से आरंभ हुआ।
मंगल पांडे, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल, नाना साहेब जैसे वीरों ने इसे जनांदोलन बनाया।
हिंदी कवियों ने इसे “स्वाधीनता का प्रथम प्रयास” कहा।
(2) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885)
कांग्रेस के माध्यम से भारत की जनता को एक साझा राजनीतिक मंच मिला।
हिंदी लेखकों ने कांग्रेस के उद्देश्यों को जनता तक पहुँचाने में योगदान दिया।
(3) बंग-भंग आंदोलन (1905)
बंगाल के विभाजन के विरोध में “वंदे मातरम्” का नारा गूँजा।
हिंदी कवि और लेखक इस आंदोलन से प्रेरित हुए।
इसने राष्ट्रवाद की चेतना को पूरे उत्तर भारत तक पहुँचाया।
(4) लोकमान्य तिलक और स्वदेशी आंदोलन
तिलक के नारे “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” ने जनजागरण किया।
हिंदी साहित्य में स्वदेशी भाव का विकास हुआ।
(5) गांधी युग का आरंभ (1915–1947)
गांधीजी के सत्याग्रह, असहयोग, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन ने पूरे देश को आंदोलित किया।
गांधीजी स्वयं हिंदी के समर्थक थे — उन्होंने कहा, “हिंदी हिंदुस्तान की आत्मा है।”
(6) असहयोग आंदोलन (1920)
साहित्यकारों ने विदेशी शासन से असहयोग की भावना को शब्द दिए।
प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’, जयशंकर प्रसाद आदि ने लेखन के माध्यम से जनता को जगाया।
(7) साइमन कमीशन और लाला लाजपत राय का बलिदान (1928)
इस घटना ने देश में उग्र राष्ट्रवाद को जन्म दिया।
कवियों ने इसे क्रांतिकारी चेतना के रूप में चित्रित किया।
(8) नमक सत्याग्रह (1930)
गांधीजी की “दांडी यात्रा” ने अंग्रेजों की नींव हिला दी।
हिंदी कविताओं में “नमक” स्वाधीनता का प्रतीक बन गया।
(9) भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
“अंग्रेज़ो भारत छोड़ो” का नारा साहित्य में क्रांति का स्वर बना।
कवियों ने स्वतंत्रता की अंतिम पुकार को अपनी रचनाओं में अमर कर दिया।
(10) भारत की स्वतंत्रता (15 अगस्त 1947)
यह संघर्ष केवल तलवार से नहीं, बल्कि शब्दों और विचारों की शक्ति से भी जीता गया।
हिंदी ने इस विजय को जन-भाषा की तरह मनाया।
3. स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी का योगदान :
हिंदी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रभाषा और जनभाषा दोनों का कार्य किया।
यह वह भाषा थी जो देश के विभिन्न वर्गों, प्रांतों और संस्कृतियों को एक सूत्र में बाँध दिया है।
(1) हिंदी एकता की भाषा बनी
हिंदी ने भारत के उत्तर से दक्षिण तक एक समान भाषा का भाव जगाया।
प्रेमचंद ने कहा — “हिंदी वह भाषा है जिसमें पूरे भारत की आत्मा बोलती है।”
समाचार पत्र, पर्चे, गीत, नारे – सब हिंदी में लिखे गए, जिससे जनजागृति हुई।
(2) हिंदी साहित्य में राष्ट्रभक्ति का स्वर
हिंदी कविता, उपन्यास और नाटक स्वतंत्रता के वाहक बने।
कवियों ने जनता के मन में क्रांति की ज्वाला जगाई।
प्रमुख कवि और उनके योगदान:
कवि कृति / योगदान विशेषता
मैथिलीशरण गुप्त-- भारत-भारती --राष्ट्रीय जागरण की सबसे प्रभावी कृति
जयशंकर प्रसाद --कामायनी, झरना, आंसू --मानवता और आत्मबल का संदेश
सुभद्रा कुमारी चौहान --झाँसी की रानी--- वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई के साहस का चित्रण
रामधारी सिंह दिनकर --हुंकार, रश्मिरथी--- स्वतंत्रता, न्याय और क्रांति का स्वर
बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ -उद्गार-- देशभक्ति के प्रेरणादायक गीत
महादेवी वर्मा --दीपशिखा, निहार ---करुणा और जागरण की भावना
(3) गद्य साहित्य का योगदान
प्रेमचंद के उपन्यासों (सेवासदन, रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान) ने सामाजिक अन्याय और दमन का विरोध किया।
गांधीवादी यथार्थवाद को साहित्य में लाने का श्रेय भी प्रेमचंद को है।
निबंधकारों (जैसे हजारीप्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा) ने हिंदी को राष्ट्रीय विमर्श की भाषा बनाया।
(4) हिंदी पत्रकारिता की भूमिका
स्वतंत्रता संग्राम के प्रचार-प्रसार में हिंदी अखबारों ने अद्भुत योगदान दिया।
पत्र / पत्रिका, संपादक विशेषता
केसरी --लोकमान्य तिलक ---स्वदेशी और स्वराज का प्रचार
प्रताप --गणेश शंकर विद्यार्थी --शहीदों की आवाज़ बना
अभ्युदय --प्रेमचंद---- समाज-सुधार और राष्ट्रीय चेतना
सरस्वती --महावीर प्रसाद द्विवेदी ---आधुनिक हिंदी साहित्य की आधारशीला है।
(5) हिंदी और गांधीजी
गांधीजी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया।
उन्होंने कहा — “हिंदी वह भाषा है जो भारत को एक सूत्र में बाँध सकती है।”
उनके भाषण, लेख और पत्राचार में हिंदी का व्यापक प्रयोग हुआ।
(6) जनगीत और नारे
स्वतंत्रता आंदोलन के नारे हिंदी में ही गूँजे:
“वंदे मातरम्”
“जय हिन्द”
“भारत माता की जय”
“सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है”
“इंकलाब ज़िंदाबाद”
(7) लोकसाहित्य और जनजागरण
लोकगीतों, लोककथाओं और चौपाइयों में स्वतंत्रता का स्वर फैला।
ग्रामीण जनता तक आंदोलन की चेतना हिंदी लोकभाषाओं के माध्यम से पहुँची।
4. साहित्यिक धाराओं में स्वतंत्रता चेतना का प्रतिबिंब
(1) द्विवेदी युग (1900–1920)
इस काल में राष्ट्रीयता और सामाजिक सुधार का स्वर प्रमुख रहा।
भारत-भारती (मैथिलीशरण गुप्त) ने स्वतंत्रता को धर्म के रूप में प्रस्तुत किया।
(2) छायावाद युग (1920–1938)
आत्मबल, स्वाभिमान और मानवतावाद की भावना ने स्वतंत्रता आंदोलन को बौद्धिक बल दिया।
जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत की कविताएँ इस चेतना से भरी हैं।
(3) प्रगतिवाद और प्रयोगवाद (1936–1947)
इन धाराओं ने जनता की पीड़ा, गरीबी और शोषण को केंद्र में रखा।
दिनकर, अज्ञेय, नागार्जुन आदि ने स्वतंत्रता को सामाजिक न्याय से जोड़ा।
5. स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी की सांस्कृतिक भूमिका
हिंदी ने भारत की सांस्कृतिक एकता को पुनर्स्थापित किया।
भारत की विविध भाषाओं और लोक परंपराओं को जोड़ने का माध्यम बनी।
स्वतंत्रता के बाद हिंदी को संविधान में राजभाषा का स्थान इसी ऐतिहासिक योगदान के कारण मिला।
6. निष्कर्ष :
स्वतंत्रता आंदोलन केवल तलवारों और बंदूकों से नहीं जीता गया,
बल्कि हिंदी भाषा और साहित्य की कलम से जीता गया।
हिंदी ने न केवल भारत के जनमानस को जगाया, बल्कि उसे यह भी सिखाया कि स्वाधीनता आत्मा का धर्म है।
> प्रेमचंद ने कहा था —
“साहित्य समाज का दर्पण है।”
और स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हिंदी साहित्य ने इस दर्पण में राष्ट्र की आत्मा को प्रतिबिंबित किया।
संक्षिप्त सारांश (मुख्य बिंदु):
1. 1857 से 1947 तक स्वतंत्रता आंदोलन का क्रमिक विकास।
2. हिंदी ने जन-भाषा के रूप में आंदोलन को दिशा दी।
3. हिंदी कवियों और लेखकों ने राष्ट्रभक्ति के भाव जगाए।
4. हिंदी पत्रकारिता ने क्रांति की आवाज़ बनकर कार्य किया।
5. गांधीजी और अन्य नेताओं ने हिंदी को एकता का माध्यम माना।
6. साहित्य की विभिन्न धाराओं में स्वतंत्रता का स्वर गूँजा।
7. हिंदी ने स्वतंत्र भारत की सांस्कृतिक आत्मा को स्वर दिया।