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गुरुवार, 14 मई 2020

बालमुकुंद गुप्त आशा का अंत निबंध का सार


आशा का अंत निबंध
बालमुकुंद कृत आशा का अंत निबंध का सार

आशा का अंत निबंध का सारांश
***बाबू बालमुकुंद गुप्त द्विवेदी युगीन हिंदी निबंध उन्होंने भाषा ,व्याकरण, समाज ,राजनीति ,देश -दशा आदि विभिन्न विषयों को लेकर अपने निबंधों की रचना की निबंधों में भारतेंदु युगीन राष्ट्रीयता द्विवेदी युगीन भाषा शैली में बड़ी मस्ती भरी आत्मीयता ,निर्भीकता के साथ अभिव्यक्ति हुई है किंतु इनके श्रेष्ठ निबंध राजनीति सामाजिक जन जागरण एवं राष्ट्रीयता की भावना को लेकर लिखे गए हैं। 

****"आशा का अंत इनका एक राजनीति व्यंग्य प्रधान निबंध है ।इस निबंध में गुप्तजी ने देशवासियों को अंग्रेजी कुट नीति एवं भारत दुर्दशा से परिचित करवाने हेतु शिव शंभू जैसे पात्र की कल्पना की है जो भांग झोक में आकर कटु से कटु सत्य को व्यक्त करने और सर्वोच्च शासक को खरी-खरी सुनाने से नहीं कतराते।

*** शिव शंभू लार्ड कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि रोगी रोग को, कैदी कैद को, ऋणी रख ,कंगाल दर्द को क्लेश क्लेश को आशा से झेलता है क्योंकि उसे लगता है 1 दिन उसका जीवन इन सभी क्लेश और से मुक्त हो जाएगा किंतु यदि उसकी आशा का ही अंत हो जाए तो उसके कष्टों का ठिकाना नहीं रहता।

***भारतीय जनता लॉर्ड कर्जन की की नीतियों से दुखी थी।
लॉर्ड कर्जन निरंकुश प्रवृत्ति का वाला इंसान था वह नहीं चाहता था कि भारतीय जनता किसी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाए उसने भारत में दूसरी बार वायसराय बनकर आते ही यहां कि मनुष्य पहले टेक ऑपरेशन की सलाह दी इतना ही नहीं अकाल पीड़ितों के प्रति सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करने की अपेक्षा उसने कड़ी मजदूरी लगा दी वह जनता की भलाई के नाम पर अंग्रेजी शासन का भला करता था अवसरवादी था जब भी अवसर मिलता था भारतीयों का वादी कहकर गाली गलौज करता था। धूर्त कहता था। वह भारतीय जनता की भावनाओं को जरा भी तवज्जो नहीं देता था।
*** सदा भारतीयों को नीचा दिखाने का प्रयास करता था उनकी इन्हीं नीतियों के कारण भारतीय जनता उसे दुखी थी।
भारतीयों की दशा

***बालमुकुंद गुप्त जी ने भारतीय जनता की ऐसा हादसा का यथार्थ चित्रण अंकित इस निबंध के माध्यम से किया है भारतीय जनता से देवकरण वार्ड में विश्वास रखती है लेकिन वह अपनी दीनता के लिए सभी शासक को जिम्मेदार नहीं ठहरा थी।
 प्रस्तुत निबंध में लेखक ने इस तथ्य को उजागर किया है कि आपके स्वदेशी यहां बड़ी-बड़ी इमारतों में रहते हैं ।जैसे रुचि हो वैसे पदार्थ सकते हैं भारत अपने लिए योग्य भूमि है किंतु इस देश के लाखो आदमी इस देश में पैदा होकर आवारा कुत्तों की बकबक करते हैं ।
उनके दो हाथ भूमि बैठने को नहीं पेट भर कर खाना खाने को नहीं लेता देते हैं एक दिन चुपचाप कहीं पडकर प्राण दे देते हैं ।
व्यंग्यकार का व्यंग्य और विरोध
लार्ड कर्जन जब दूसरी बार भारत में वायसराय बनकर आया तो उसका घमंड और अहंकार सातवें आसमान पर था वह अंग्रेजी जाति के सामने किसी को कुछ नहीं समझता था लेखक को लॉर्ड कर्जन द्वारा भारतीयों को नीचा वादियों और धूर्त झूठा और मक्कार कहना बहुत खटका लेखक ने इस बात की प्रतिक्रिया स्वरुप की इस निबंध की रचना की तथा इसके विरोध में कहा कि हम भारत देश के निवासी हैं सृष्टि करते हैं सत्य प्रिय हैं देश का ईश्वर सत्य ज्ञान अनंतम ब्रह्मा भला ऐसा देश और उसके निवासी मितावादी कैसे हो सकते हैं।
बालमुकुंद गुप्त की देशभक्ति
देश हित में व्यक्त विचार की देशभक्ति की भावना कहलाती है ।
अपने देश के गौरव और स्वतंत्रता की रक्षा अपने देश के शोषण करता हूं के प्रति घृणा और विरोध और उनके देश की उन्नति हेतु व्यक्ति विचार भी देश प्रेम कहलाता है
 इस दृष्टि से बालमुकुंद गुप्त द्वारा रचित आशा का अंत निबंध है देश प्रेम की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए बंद कि जब रचना हुई तो भारत अंग्रेजों के आदमी लार कर्जन दूसरी बार वॉइस राय बन कर भारत लौटा था भारत वासियों को बहुत सारी उम्मीदें उनसे थी लेकिन उन्होंने अपने प्रथम भाषा में ही सभी भारतीयों की आशाओं का अंत कर दिया कोलकाता मुंसिपल कॉरपोरेशन के स्वाधीनता छीन ली अकाल पीड़ितों की उपेक्षा की महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेजों के लिए आरक्षित कर दिया और कहा कि रक्षा करने वाले भाषणों पर रोक लगा दी पत्र-पत्रिकाओं को रोक दिया गया उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई। अंग्रेजों का भारतीय ोो को बुरा भला कहना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था निबंध के माध्यम से गुप्तजी ने स्पष्ट किया है कि जो शासक अपनी गरीब प्रजा के प्रति ध्यान नहीं देता उसके दुख दर्द के विषय में विचार नहीं करता ऐसे शासक को प्रजा को गालियां देने का भी अधिकार नहीं है।अंग्रेजों के शासन होते हुए भी उनके विपरीत बातें लिखना एक साहस पूर्ण व हिम्मत भरा कार्य है इस प्रकार उनकी देशभक्ति झलकती है।
आशा के अंत निबंध का उद्देश्य
प्रस्तुति निबंध में बालमुकुंद गुप्त जी ने लॉर्ड कर्जन द्वारा भारत वासियों पर लगाए झूठे आरोपों प्रतिबंधों तथा उनकी गलत नीतियों का कड़े शब्दों में खंडन किया है यही इस निबंध का प्रमुख उद्देश्य है दूसरी ओर लेखक ने यह प्रमाणित किया है कि किसी को झूठा कह देने से उसकी सत्यवादी का सीधे नहीं होती है लॉर्ड कर्जन ने अनेक ऐसी नीतियां बनाए जिससे भारत वासियों की स्वाधीनता छिन जाए अनेक पदों पर भारतीयों की नियुक्तियों की रोक लगा दी गई लेकिन के सभी आरोपों का उत्तर देते हुए कहा है कि जिस देश में ईश्वर सत्य ज्ञान ब्रह्मा अनंत हो भला उसे झूठा मक्कार वनियावादी कैसे कहा जा सकता है अंत में लिखा है कि भारतीय जनता लॉर्ड कर्जन को अपना शिकार करती है तो भला फिर वह यहां शासक बन सकता है।