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मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

सफलता के लिए पते की बात

सफलता पाने के लिए पते की बातें
सफलता के आधुनिक संदर्भ में मूल्य मंत्र
सफलता मिलने की कुछ कसोटिया है-
मानसिक शांति
आंतरिक आनंद
आर्थिक आत्मनिर्भरता
पारिवारिक खुशी
सामाजिक स्वीकृति
भविष्य की निश्चितता
आपके लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स किस प्रकार से हैं


1. अपने मन में जमीन अपने प्रति नकारात्मक बातों को मिटाकर अपने गुजारना व्यक्ति का अपने जीवन के प्रति पहला कर्तव्य है जब तक आत्मविश्वास और आप इच्छा की कमी है तब तक वह अपने को नहीं जान सकता।
2. सफलता के लिए सकारात्मक सोच जरूरी है क्योंकि ऐसी सोच मनुष्य को स्वाभिमानी स्वपन दृष्टा प्रतिबद्ध व्यवहारिक और रचनात्मक बनाती है सकारात्मक सोच के लिए चाहिए अच्छी स्मृतियां जानकारी मानसिक शांति आसपास की स्वच्छता अहम क्रोध और लालच से छुटकारा फोर्स लक्ष्य
3.युग के परिवर्तन को देखते हुए जो अपने कार्य के लिए दूसरों से कुछ अलग और नया रास्ता चुनते हैं और नवाचार अपनाते हैं वही आदर्श बनते हैं दिमाग की खिड़कियां खुली रखें लचीले बने ,मतांधता से बचे। चेहरे के हाव-भाव बातचीत अर्थात दूसरों के दिल तक अपनी बात पहुंचाने की संप्रेक्षण दक्षता पहनावे चार धाम और सोच ले नवीनता रखने वाले और दिलचस्प ढंग से काम करने वाले ज्यादा आगे बढ़ते हैं सफलता के लिए अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक श्रेष्ठ और प्रभावशाली बनाने की जरूरत होती है।
4.मन में आनंद और चेहरे पर प्रसन्नता से बड़ा होना सफलता की तरफ बढ़ते कदमों की पहचान है कष्टों और बाधाओं के बीच प्रश्न रहने से अधिक बाधक तत्व खुद चित्त हो जाएंगे अतः पर संचित रहना चाहिए इसके लिए मन को साधना पड़ता है कुछ वजह हो भी तो सदा दुखी रहना और सिर्फ अतीत का गुणगान करना आत्मा विनाश है वर्तमान के हर क्षण को आनंद और सहजता से जीना चाहिए।
5.अपनी उर्जा और समय का प्रबंधन सफलता की कुंजी है आज के काम को कल पर ना डालें क्योंकि हर नया साल नया दायित्व लेकर आता है आदमी की विफलताओं का मूल है आज के काम को कल पर टालना। इसलिए सफलता की आकांक्षा रखने वाले क निर्णयशील ौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौ और कर्मठ होना चाहिए। उसने दूरदृष्टि होनी चाहिए।
6.अक्सर 2 आदमी मिलती है और कुछ ज्यादा देर तक साथ रहती है तो तीसरे की बुराई शुरू हो जाती है किसी की निंदा करके कोई अच्छा नहीं हो जाता निंदा सुनने वाला भी सावधान हो जाता है कि यह तो परोक्ष में उसकी भी निंदा करता होगा भले प्रत्यक्ष में चाटुकारिता कर रहा है तू कारिता और निंदा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं राग द्वेष से ऊपर उठकर ही व्यक्तित्व का विकास संभव है।
7.हर काम एक पूजा है कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता एक समय में एक ही काम मनोयोग से करना चाहिए क्योंकि मस्तिष्क एक ही जगह एक आग्रह रहकर अपनी क्षमता दिखा सकता है यह भी ध्यान रखें कि कोई काम शुरू करने से पहले कार्य योजना बना लेने से जोखिम नियंत्रित हो जाता है।
8. जो अनजान है और अपने को बड़ा जानकर समझता है उससे बचकर रहना चाहिए जो थोड़ा बहुत जानकार है पर आपकी जानकारियों के प्रति शंकालु है वह हमसफ़र हो सकता है जो जानकार है और निरंतर जिज्ञासा के साथ उसके मन में अब तक की अपनी जानकारी के प्रति आस्था हो उसमें ज्ञान पाने का प्रयत्न करना चाहिए सीखना कभी बंद ना करें चाहे जितना ऊपर पहुंच जाए कहा गया है कि ज्ञान ही अंततः शक्ति और सफलता में बदल जाता है जब कर्म में उतरता है।
9. हर बड़ी सफलता के पीछे कुछ विफलता ही होती हैं फलतान को ढकने के लिए खूबसूरत बहाने खोजने की जगह उनकी वजह खोजने चाहिए अपनी कमजोरियों को पहचाने बिना आगे बढ़ना संभव नहीं है ना यह सोचे कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं और ना ही अपना दुखड़ा गाते फिर भीतर के डर झिझक और तनाव से लड़े जरूरत है अपनी आंतरिक शक्तियों का उत्साह पूर्वक सदुपयोग और निरंतर संवर्धन करने की चिंता नहीं करने के विकल्प पलाश सेन और विकल्पों पर चिंतन करें मनुष्य को चिंताएं दूर करने के लिए चिंतनशील बने रहना पड़ेगा हर नई पीढ़ी को सफलता पाने के लिए पुरानी पीढ़ी से ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है।
10.कोई कदम उठाने से पहले सोच लें बुरे से बुरा क्या हो सकता है बच्चे की आशा करें और बुरे के लिए अपने मन को पहले से ही तैयार रखें हमेशा आशावादी बने रहना चाहिए मेरा सा अतीत में कैद रहती है जबकि आशा भविष्य में ले जाती है।
11.दूसरे की सफलताओं से ईर्ष्या नहीं करके उनसे सीखने की अपने फायदे हैं।
12.

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध-देवदारू सार प्रमुख बिंदु

हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध देवदारू सार व प्रमुख बिंदु
भूमिका,-देवदारू आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी रचित एक भावात्मक निबंध है ।इस निबंध के माध्यम से देवदारु का अनुपम चित्र हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उपस्थित किया है।  






मुख्य बिंदु व सार स्वरूप
1.देवदारु का अर्थ देवप्लस तरु है ज्ञानी एक वृक्ष ही नहीं देवता भी है लेखक ने इसे वृक्ष में देवता दोनों ही माना है।
2.मानव को देवदारू की तरह अपने स्थान पर अचल अटल खड़ा रहना चाहिए ।कठिन से कठिन परिस्थिति में रुकना नहीं चाहिए अगर झुकना हो तो उसे सारा लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए।
,,3.मनुष्य को समाज के साथ आत्मसात करके चलना चाहिए ।अलग का अर्थ है- जो न लगे।
जो सबको लगे -अर्थ
एक को लगे बाकी को ना लगे -अनर्थ
4. लगाव तो बुद्धि का नाम है जिसमें मैं पन है अहंकार है।
5.काल्पनिक बातों से डरना नहीं चाहिए ।भूत से ना डरे ,यह केवल मानसिक वहम है ।मन में आत्मविश्वास जागृत करो ,देवदारू की तरह विवेकशील बनो । ओझाओ अलविदा करो परंपराओं और रूढ़िवादिता से ऊपर उठो।
6.मानव जाति में नहीं उसके व्यक्तित्व से पहचानो क्योंकि इंदिरा गांधी की पहचान नेहरू से नहीं उसके अपने राजनीतिक जीवन तथा कूट नीतियों से थी।
7.देवदारू की तरह मृत्यु लोक से जीवन शक्ति ग्रहण करो ,रस प्राप्त करो ।जियो और जीने दो।
8.देवदारू की भांति ऊंचे उठने का पर्याय का प्रयास करो और इसका उचित मार्ग है ध्यान ,धारणा ,समाधि। निष्कर्ष-
इस प्रकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मानवता से संबंधित देवदारु निबंध लिखा है जिसमें मानव को देवदारू की भांति अचल ,अटल परिस्थितियों को सामने  करने वाला ,काल्पनिक बातों से डरने वाला नहीं ,विवेकशील ध्यान धारणा समाधि को अपनाने वाला माना है।