5955758281021487 Hindi sahitya : Hazari Prasad Dwivedi
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गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध-देवदारू सार प्रमुख बिंदु

हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध देवदारू सार व प्रमुख बिंदु
भूमिका,-देवदारू आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी रचित एक भावात्मक निबंध है ।इस निबंध के माध्यम से देवदारु का अनुपम चित्र हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उपस्थित किया है।  






मुख्य बिंदु व सार स्वरूप
1.देवदारु का अर्थ देवप्लस तरु है ज्ञानी एक वृक्ष ही नहीं देवता भी है लेखक ने इसे वृक्ष में देवता दोनों ही माना है।
2.मानव को देवदारू की तरह अपने स्थान पर अचल अटल खड़ा रहना चाहिए ।कठिन से कठिन परिस्थिति में रुकना नहीं चाहिए अगर झुकना हो तो उसे सारा लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए।
,,3.मनुष्य को समाज के साथ आत्मसात करके चलना चाहिए ।अलग का अर्थ है- जो न लगे।
जो सबको लगे -अर्थ
एक को लगे बाकी को ना लगे -अनर्थ
4. लगाव तो बुद्धि का नाम है जिसमें मैं पन है अहंकार है।
5.काल्पनिक बातों से डरना नहीं चाहिए ।भूत से ना डरे ,यह केवल मानसिक वहम है ।मन में आत्मविश्वास जागृत करो ,देवदारू की तरह विवेकशील बनो । ओझाओ अलविदा करो परंपराओं और रूढ़िवादिता से ऊपर उठो।
6.मानव जाति में नहीं उसके व्यक्तित्व से पहचानो क्योंकि इंदिरा गांधी की पहचान नेहरू से नहीं उसके अपने राजनीतिक जीवन तथा कूट नीतियों से थी।
7.देवदारू की तरह मृत्यु लोक से जीवन शक्ति ग्रहण करो ,रस प्राप्त करो ।जियो और जीने दो।
8.देवदारू की भांति ऊंचे उठने का पर्याय का प्रयास करो और इसका उचित मार्ग है ध्यान ,धारणा ,समाधि। निष्कर्ष-
इस प्रकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मानवता से संबंधित देवदारु निबंध लिखा है जिसमें मानव को देवदारू की भांति अचल ,अटल परिस्थितियों को सामने  करने वाला ,काल्पनिक बातों से डरने वाला नहीं ,विवेकशील ध्यान धारणा समाधि को अपनाने वाला माना है।