मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय भावनाराष्ट्रीय भावना होती क्या है?
राष्ट्रीय महिमा का गुणगान
राष्ट्र की स्वाधीनता
स्वतंत्रता के लिए आत्मोत्कर्ष हेतु प्रेरणा देना
राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को स्थिर रखने के लिए प्रोत्साहित करना
गौरवपूर्ण संस्कृति के प्रति तीव्र अनुराग व्यक्त करना,
राष्ट्र विरोधी शक्तियों कार्यों तथा शत्रुओं के प्रति तीव्र धारणा एवं क्षोभ जागृत करना
राष्ट्र की सामूहिक उन्नति प्रगति एवं समृद्धि के लिए जनमत तैयार करना
शासकीय दमन का डटकर विरोध करना ही राष्ट्रीय भावनाएं हैं। मैथिलीशरण गुप्त की राष्ट्रीय भावना
गुप्त जी के काव्य में उनकी देशभक्ति का स्वर सर्वदा मुखरित होता दृष्टिगोचर होता है वह देश भक्ति के कारण ब्रिटिश सरकार के कारावास में भी रहे। अंग्रेजों द्वारा भारत वर्ष को दिनदहाड़े लूटते हुए देख उन्हें विशेष दुख हुआ था इसलिए उन्होंने साहित्य के माध्यम से भारत वासियों में विदेशी शासकों के प्रति विद्रोह की भावना को जागृत किया और राष्ट्र के प्रति अनुराग का पाठ पढ़ाया।
मुस्लिम एकता
आदि भावनाओं को साहित्य की वीणा से गुंजित किया है।
उज्जवल अतीत से वर्तमान की तुलना करके वर्तमान समस्याओं को समझने की प्रेरणा देते हुए वे भारत भारती के प्रारंभ में ही लिखते हैं।
हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी।
आओ विचारे आज मिलकर यह समस्याएं सभी।।
सामूहिक रूप से यदि राष्ट्र जन राष्ट्र की समस्याओं पर विचार करेंगे तो अवश्य राष्ट्र का कल्याण होगा इनके अनंतर ही कभी अतीत कालीन समृद्धि का स्मरण दिला कर राष्ट्र को अद्भुत उद्बोधन करते हैं।
जिनकी आलौकिक कीर्ति से उज्जवल हुई है सारी मही।
था जो जगत का मुकुट है क्या हाय यह भारत वही।।
भारत भारती के वर्तमान खंड में कवि ने गरीबी ,भुखमरी अविद्या, ढोंग आदि समस्याओं का सजीव चित्रण कर देश में सामाजिक जागृति लाने का भरसक प्रयत्न किया है। उनका राष्ट्र प्रेमी राष्ट्र उन्नति के लिए तड़प उठा है देश की उन्नति का चित्रण करते हुए वे लिखते हैं।
दु: शीलता दासी हमारी ,मूर्खता महिषी सदा,
है स्वार्थ सिंहासन हमारा महामंत्री सर्वदा
जो पाप पुर राज्य पद हैं कौन पाना चाहता?
चढ़कर गधे पर कौन वैकुंठ जाना चाहता?
एक राष्ट्रीय कार्यकर्ता के लिए यह आवश्यक है कि वह सारे देश को राष्ट्रप्रेम के आधार पर एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न करें।
मैथिलीशरण गुप्त जी ने एक राष्ट्र की भावना अपनी रचनाओं में दी है साकेत में वे कहती हैं--
एक राष्ट्र में हो बहुत से हो जहां
राष्ट्र का बल बिखर जाता है वहां
गुप्त जी के ऐसे ही अनेक राजनीतिक विचार पंचवटी 1925
भारत भारती 1912
मंगल घाट
अगघ
साकेत
द्वापर
और सबसे अधिक संदेश संगीत में बिखरे पड़े हैं
गुप्त जी अनघ काव्य में नायक मघ है तो मानो महात्मा गांधी का ही प्रतीक है।
गांधीजी के धरना देना
मध निषेध
अहिंसा को अपनाना
और गांव की ओर लौटने पर जोर देना आदि सिद्धांतों का ही इस अभियान में समर्थन किया गया है।
साकेत में जब राम बन जाते हैं।तब प्रजा जन्म के रथ के सामने लेट जाती हैं और कहते हैं जाओगे दी जा सके रन 2 हमको यहां इस पर राम कहते हैं---
उठो प्रजा जन उठो तो यह मोह तुम
करते हो किस हेतु विनीत विद्रोह हो तुम
यह विनीत विद्रोही तो गांधीजी का अमोघ अस्त्र सत्याग्रह है।
प्रजातंत्र की भावना राष्ट्रीयता का विशेष अंग है गांधीजी की धारणा थी कि आज का राष्ट्र निर्माण जनतंत्र के सिद्धांतों पर ही होगा और आरके स्वराज्य में समता और नागरिक अधिकार सबके लिए सुलभ होंगे।
गुप्तजी इसी राजा आदर्श को स्वीकार करते हैं साकेत के राजाराम तानाशाह नहीं अपितु लोकप्रतिनिधी मात्र हैं गांधीजी के आदर्शों क अनुसार
गुप्तजी ने राम के प्रजातंत्र आत्मक शासन का चित्रण किया है राम सारे राज्य को प्रजा की छाती स्वीकार करते हैं तो प्रजा उनसे कहती है
राजा हमने राम पुनीत को चुना
करो ना यूं तुम हाय लोकमत अनसुना
कभी अपनी सांस्कृतिक रचनाओं में ऐसे सर ढूंढ निकालता है जहां वह राष्ट्रीयता का संदेश दे सके साकेत के अष्टम सर्ग वालों को राष्ट्रीय जागरण के लिए आमंत्रित करती है
वह बोली कौन किरात भील बालाओ
मैं आप हमारे यहां आ गई आओ
तुम अर्धनग्न क्यों रहो ऐसे समय में
आओ हम बातें बुने गान की लय
साकेत में तो गुप्तजी देश प्रेम के संकीर्ण धीरे से निकलकर विश्व प्रेम की ओर बढ़ते हुए दिखाई देते हैं यहां उन्होंने मानवतावाद का समर्थन किया है साकेत के राम विश्व प्रेम और लोक सेवा के प्रतीक है इसलिए वे कहते हैं
संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया
तिलपत गांव की यह पंक्तियां अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक जातियों को एक होने आदेश देकर राष्ट्रीय एकता के मूल को सुदृढ़ करती हुई प्रतीत होती हैं।
यहां तक है आपस की जांच
वहां तक वे सो, हम हैं पांच
करें यदि एक दूसरा जांच, गिने तो हमें 105।।
इससे स्पष्ट होता है कि गुप्त जी के काव्य में किस प्रकार की राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत सर सर्वदा विद्यमान रहे हैं भारत भारती और साकेत तो देश प्रेम का ही संदेश मुख्य पर प्रस्तुत करते हैं।
आचार्य गुलाब राय का मत है कि
गुप्त जी की कविता में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है।
आचार्य शुक्ल स्वीकारते हैं कि गुप्त जी की रचनाओं में सत्याग्रह अहिंसा किसानों को श्र जीवो के प्रति प्रेम और सम्मान सब की झलक हम पाते हैं
।
आचार्य नंददुलारे वाजपेई का कहना है कि राष्ट्र की और युग की नवीन स्पूर्थी नवीन जागृति के स्मृति चिह्न में सर्वप्रथम गुप्त जी के काव्य में ही मिलते हैं।
डॉक्टर सत्येंद्र जी कहते हैं कि राष्ट्रीयता गुप्त जी का उद्देश्य है पर संस्कृति शुन्य राष्ट्रीयता उन्हें ग्राहय नहीं है।
डॉक्टर कमला कांत पाठक का विचार है कि गुप्त जी ने स्वदेश प्रेम के लिए गीत गाए जिसमें देश आर्चन और स्वतंत्रता प्रेम की राष्ट्रवादी भावनाएं और अहिंसक क्रांति के विचार धारा प्रकट हुई है।
इन्हीं राष्ट्रवादी विचारों की अभिव्यक्ति के कारण सन 1936 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने गुप्त जी को राष्ट्रकवि की उपाधि से विभूषित किया।