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सोमवार, 25 अगस्त 2025

विनोद कुमार शुक्ल स्नेही

 *विनोद कुमार शुक्ल को इस साल का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा* 

 हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और लेखक छत्तीसगढ़ के विनोद कुमार शुक्ल को इस साल का सबसे बड़ा साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा।
 इसकी घोषणा नई दिल्ली में की गई। 
श्री शुक्ल राजधानी रायपुर में रहते हैं और उनका जन्म एक जनवरी 1947 को राजनांदगांव में हुआ।

वे पिछले पचास सालों से साहित्य लेखन में जुटे हुए हैं।
 उनका पहला कविता संग्रह ‘‘लगभग *जयहिन्द  1971 में प्रकाशित हुआ था। 
उनके उपन्यास ‘‘नौकर की कमीज‘‘, ‘‘खिलेगा तो देखेंगे‘‘ और ‘‘दीवार में एक खिड़की‘‘ हिन्दी के सबसे बेहतरीन उपन्यासों में माने जाते हैं। 
 उनकी कहानियों का संग्रह *‘‘पेड़ पर कमरा‘‘ और ‘‘महाविद्यालय‘‘ भी चर्चा में* रहा है। उनकी कविताओं में ‘‘वह आदमी चला गया, नया गरम कोर्ट पहनकर‘‘, ‘‘आकाश धरती को खटखटाता है‘‘ और ‘‘कविता से लंबी कविता‘‘ बेहद लोकप्रिय हुई है।

बुधवार, 20 अगस्त 2025

हिंदी नवजागरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र का योगदान

✨ प्रश्न 2 : हिंदी नवजागरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
भूमिका

हिंदी नवजागरण का सबसे बड़ा और प्रभावशाली नाम भारतेंदु हरिश्चंद्र (1850–1885) है। उन्हें ‘आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक’ और ‘हिंदी नवजागरण का जनक’ कहा जाता है। उन्होंने मात्र 35 वर्ष के जीवन में हिंदी को राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सुधार का सशक्त माध्यम बना दिया। उनके साहित्य और पत्रकारिता ने हिंदी समाज को नई दिशा दी और नवजागरण की चेतना को स्थायी रूप दिया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की भूमिका (मुख्य बिंदु)

1. भाषा और साहित्य का परिष्कार

भारतेंदु ने खड़ी बोली हिंदी को साहित्यिक रूप देकर उसे आधुनिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया।

संस्कृत और उर्दू शब्दों का संतुलन रखते हुए सरल, सहज और जनप्रिय हिंदी को प्रतिष्ठित किया।

2. पत्रकारिता का योगदान

कवि वचन सुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका और भारत मित्र जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से जनचेतना का प्रसार।

पत्रकारिता को सामाजिक सुधार और राष्ट्रवादी विचारधारा से जोड़ा।
3. सामाजिक सुधारक के रूप में

जातिगत भेदभाव, अशिक्षा और स्त्रियों की दयनीय स्थिति पर प्रहार।

भारत दुर्दशा नाटक में तत्कालीन भारत की दुर्दशा का मार्मिक चित्रण।

उन्होंने लिखा –
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय के शूल॥”


4. राष्ट्रवाद का उद्घोष

भारतेंदु ने स्वदेश प्रेम और राष्ट्रीयता को अपनी रचनाओं में केंद्रीय स्थान दिया।

विदेशी वस्त्र और संस्कृति की अंधी नकल के विरुद्ध स्वर उठाया।

उनके साहित्य ने स्वतंत्रता आंदोलन की भावनाओं को बल प्रदान किया।


5. साहित्यिक विधाओं का विकास

नाटक, कविता, निबंध, यात्रा-वृत्तांत, अनुवाद, आलोचना – सभी विधाओं में लेखन।

अंधेर नगरी नाटक आज भी समाज में राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार का तीखा व्यंग्य है।


6. हिंदी समाज का नेतृत्व

भारतेंदु ने हिंदी साहित्य को केवल काव्य-रस का साधन न मानकर समाज का दर्पण बनाया।

वे साहित्यकार के साथ-साथ मार्गदर्शक, विचारक और संगठनकर्ता भी थे।


भारतेंदु की विशेषताओं का मूल्यांकन

1. हिंदी साहित्य को आधुनिकता प्रदान करने वाले प्रथम साहित्यकार।

2. साहित्य और समाज के बीच सेतु का निर्माण।

3. साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीयता और लोकतांत्रिक चेतना का प्रसार।

4. साहित्यिक पत्रकारिता की सशक्त नींव रखी।

5. जीवन अल्पकालिक होते हुए भी असाधारण योगदान।




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निष्कर्ष

भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी नवजागरण के वास्तविक सूत्रधार थे। उन्होंने साहित्य, पत्रकारिता और सामाजिक नेतृत्व के माध्यम से हिंदी समाज को नई दिशा दी। उनकी रचनाओं ने न केवल हिंदी साहित्य को आधुनिक स्वरूप प्रदान किया, बल्कि समाज में सुधार और राष्ट्रीय चेतना का भी संचार किया। इसीलिए उन्हें सही अर्थों में “हिंदी नवजागरण का जनक” कहा जाता है।

नवजागरण और हिंदी साहित्य

हिंदी नवजागरण और हिंदी साहित्य

भूमिका

भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक इतिहास में उन्नीसवीं शताब्दी एक महत्वपूर्ण काल माना जाता है। इसी कालखंड में हिंदी साहित्य ने नवजागरण का अनुभव किया। यह नवजागरण केवल भाषा और साहित्य तक सीमित नहीं रहा, बल्कि समाज के हर क्षेत्र—शिक्षा, राजनीति, धर्म, सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय चेतना—पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। हिंदी साहित्य इस नवजागरण का सशक्त माध्यम बना और इसके द्वारा भारतीय समाज को नई दिशा मिली।

मुख्य बिंदु (प्वाइंट्स)

1. नवजागरण की परिभाषा

'नवजागरण' का अर्थ है – नवीन चेतना का उदय।

यूरोपीय पुनर्जागरण की तर्ज पर भारत में भी सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक चेतना का प्रसार हुआ।

हिंदी नवजागरण ने आधुनिकता, सुधार और जागरूकता की नींव रखी।

2. हिंदी नवजागरण की पृष्ठभूमि

18वीं–19वीं शताब्दी में अंग्रेजी शिक्षा, प्रिंटिंग प्रेस और सामाजिक सुधार आंदोलनों ने चेतना जगाई।

बंगाल नवजागरण का प्रभाव हिंदी क्षेत्र में दिखाई दिया।

राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर जैसे समाज सुधारकों के विचारों ने भी हिंदी समाज को प्रभावित किया।

3. हिंदी साहित्य में नवजागरण का प्रारंभ

हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत (पं. जुगल किशोर शुक्ल का उदन्त मार्तण्ड, 1826)।

भारतेंदु हरिश्चंद्र को 'हिंदी नवजागरण का जनक' कहा जाता है।

भारतेंदु युग (1870–1900) में साहित्य और समाज सुधार एक साथ जुड़े।

4. भारतेंदु हरिश्चंद्र और नवजागरण

"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल" का उद्घोष।

नाटकों, निबंधों और कविताओं के माध्यम से सामाजिक सुधार का संदेश।

साहित्य को जनजागरण का उपकरण बनाया।

5. द्विवेदी युग और राष्ट्रीय चेतना

महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती पत्रिका द्वारा साहित्य को नई दिशा दी।

राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार और स्त्री-शिक्षा के मुद्दे उठाए।

प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त जैसे साहित्यकारों का उदय।


6. हिंदी साहित्य और स्वतंत्रता आंदोलन

हिंदी साहित्य राष्ट्रीय आंदोलन की धड़कन बना।

कवियों ने जनमानस में स्वतंत्रता के प्रति भावनाएँ जगाईं।

गुप्त जी की "भारत-भारती" और प्रेमचंद की रचनाएँ इसका उदाहरण हैं।


7. सामाजिक मूल्यों का पुनरुद्धार

जातिगत भेदभाव, अशिक्षा और स्त्री-दमन के विरुद्ध आवाज उठाई गई।

साहित्य ने समाज में समानता, सहिष्णुता और स्वतंत्रता की चेतना जगाई।


8. साहित्यिक विधाओं का विकास

नाटक, कविता, निबंध, उपन्यास और कहानी का आधुनिक स्वरूप इसी दौर में विकसित हुआ।

प्रेमचंद ने यथार्थवादी कहानियों के माध्यम से समाज का सजीव चित्र प्रस्तुत किया।


9. हिंदी नवजागरण के प्रभाव

भाषा का आधुनिकीकरण।

समाज सुधार आंदोलनों को गति।

राष्ट्रवाद की भावना को बल।

आधुनिक साहित्य की समृद्ध परंपरा की स्थापना

निष्कर्ष

हिंदी नवजागरण केवल साहित्यिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक चेतना का व्यापक प्रस्फुटन था। हिंदी साहित्य ने इस नवजागरण में केंद्रीय भूमिका निभाई। भारतेंदु हरिश्चंद्र, द्विवेदी युगीन साहित्यकारों और प्रेमचंद जैसे लेखकों ने हिंदी को आधुनिक स्वरूप दिया और समाज में नई चेतना जागृत की। इस प्रकार हिंदी नवजागरण ने आधुनिक भारत के निर्माण में अमिट योगदान दिया।
संभावित प्रश्न

1. हिंदी नवजागरण से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

2. हिंदी नवजागरण में भारतेंदु हरिश्चंद्र की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।

3. द्विवेदी युग को हिंदी नवजागरण का संवाहक क्यों कहा जाता है?

4. हिंदी नवजागरण और स्वतंत्रता आंदोलन में क्या संबंध था? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

5. हिंदी नवजागरण का समाज और साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा?

सोमवार, 7 नवंबर 2022

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्यिक परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय
साहित्यिक परिचय
स्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण प्रश्न
16 नंबर के प्रश्न में किस प्रकार से आप क्वेश्चन को तैयार कर सकते हैं।
देखें
भूमिका
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी छायावाद के चार आधार स्तंभों में से एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। आधुनिक हिंदी कविता में उनका अतुलनीय योगदान है। निराला जी एक सजग साहित्यकार थे उन्होंने अपने युग की परिस्थितियों को अत्यंत निकट से देखा समझा और उनमें सुधार करने का प्रयास किया वह एक सच्चे क्रांतिकारी कवि के रूप में प्रसिद्ध हुए।
जीवन परिचय
उनका जन्म 18 96 ईस्वी में बंगाल के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले में बसंत पंचमी के दिन हुआ।
 उनके पिताजी रामसहाय त्रिपाठी उन्नाव के रहने वाले थे लेकिन आजीविका कमाने के लिए वह महिषादल नामक रियासत में आकर बस गए।
 निराला जी जब 3 साल के थे ,उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। उनके पिता सख्त अनुशासन रखने वाले थे। स्वभाव के कारण उन्हें अनेक बार अपने पिता की मार खानी पड़ी।


 सन 1911 में निराला जी का मनोरमा देवी से विवाह हुआ उनसे उन्हें एक पुत्र और पुत्री मिले लेकिन जन्म देते ही वह भी स्वर्ग सिधार गई । उनका व्यक्ति व्यक्तिगत जीवन बहुत ही दुख में रहा है कहा जाता है कि अपनी पीढ़ी के वे अकेले जीवित इंसान थे बंगाल में अनेक पड़े अकाल ओक में उनके परिवार को भी अपने साथ निगल लिया था।
निराला जी को साहित्य जगत में आरंभ में अनेक विरोध का सामना करना पड़ा।

 उनकी अनेक रचनाएं व लेख अप्रकाशित ही लौटा दिए जाते थे ।महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उनकी जूही की कविता अनेक बार लौटाई लेकिन बार-बार जाने के बाद भी द्विवेदी जी ने उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उनकी रचना को सरस्वती पत्रिका में1916 में जूही की कली नाम से छापा। महावीर प्रसाद द्विवेदी को ही आजीवन उन्होंने अपना गुरु माना। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के प्रयासों से समन्वय के संपादक का कार्यभार संभाला इसके पश्चात 1933 में निराला जी ने मतवाला पत्रिका का संपादन किया ।
1935 में सरोज की आकस्मिक मृत्यु होने के कारण उन्होंने सरोज स्मृति नाम का एक महाकाव्य की रचना की।
 सरोज स्मृति को हिंदी का प्रथम शोक गीत भी कहा जाता है और आजीवनहिंदी की साहित्यिक सेवा करते रहे सन् 1961 में उनका निधन हुआ।
  निराला जी का व्यक्तित्व

निराला जी की विलक्षणता उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी।इसलिए विद्वानों ने उनको महाप्राण निराला कहा करते थे।निरालाआधुनिक युग के कबीर कहे जाते हैं ।
उनका कद 6 फुट से अधिक लंबा उनके व्यक्तित्व में परस्पर विरोधी तत्व भी थे ।
वे स्वाभिमानी, त्यागी, उद्दंड और मृदुल सब कुछ उनमें एक साथ विद्यमान था ।
उनकी दान शीलता  तो दंत कथाओं का विषय बन गई थी।
 अनेक बार उन्होंने सर्दी में ठिठुरते हुए लोगों को कंबल और रजाइया दी थी और स्वयं वह ठंड में कांपते रहते थे। 
सहायता और सम्मान उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी 
फक्कड़ पन के कारण हिंदी में गौरव और काव्य की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए गांधी और नेहरू जी से भी वह उलझ पड़े थे ।
उन्हें अमृत पुत्र ,महाप्राण, क्रांति दृष्टा ,दारागंज का संत और दिनों का मसीहा कहा जाता था।
 वह खाने-पीने के शौकीन और खिलाने के भी शौकीन थे।
 वे संगीत प्रेमी और उदार हृदय के व्यक्ति थे।
 गंगा प्रसाद पांडे जी कहते हैं कि आंखों में आंतरिक प्रसन्नता का प्रकाश , चरित्र में चैतन्य की आभा, सारे शरीर में पुलक सपूर्ण तथा मस्ती से भरा मन मिलकर निराला आगे बढ़ते रहते थे उनकी बेफिक्री में बोझिल साल से किसी के अनुशासन का कंपन नहीं था उनके विचारों में आत्मविश्वास झलकता था।ऊपर दिए गए पेजों के आधार पर आप अपने प्रश्न को अच्छे से लिखकर अधिक से अधिक अंक ले सकते हो। इसमें मैंने आपको एक तरीका बताया है अगर आप इसकी पीडीएफ चाहते हैं तो सेम इन्हीं पेजो की पीडीएफ का लिंक में नीचे दे दूंगी आप उस लिंक पर जाकर डाउनलोड कर सकते हैं। इसी का यूट्यूब वीडियो भी चाहिए तो उसका लिंक भी मैं आपको नीचे दे दूंगी इस ब्लॉग के लिखने का उद्देश्य मेरा इतना सा है कि जो विद्यार्थी थोड़े समय में अच्छी तैयारी करके अच्छे अंक प्राप्त करना चाहती हैं ।उनकी मदद हो सके ।

 https://youtu.be/x5riQmrV7Lo
https://drive.google.com/file/d/1sJeGGXd484Mf3AbZa8hw3-eLN6mRd-Np/view?usp=drivesdk
धन्यवाद
सुमन शर्मा 
असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी 
राजकीय महाविद्यालय सिवानी ,भिवानी (हरियाणा)

शनिवार, 16 जुलाई 2022

असाध्य वीणा की समीक्षा

अज्ञेय की कविता  असाध्य वीणा  का सारांश

भारत भूषण अग्रवाल का जीवन परिचय

भारत भूषण अग्रवाल का जीवन परिचय
उनकी साहित्यिक विशेषताएं
गीत फरोश
 सतपुड़ा के जंगल और गांव कविता का सारांश
क इस विषय से संबंधित ज्यादा जानकारी चाहते हो तो नीचे दिए गए लिंक पर जाकर यू टूब वीडियो देख सकते हैं।
https://youtu.be/huEYUJlNmjs

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

गोरा उपन्यास की समीक्षा

गोरा उपन्यास की समीक्षा
"गोरा" उपन्यास की तात्वि क समीक्षा:-
"गोरा" रवि द्रं नाथ ठाकुर जी की कालजई रचना हैजो केवल बांग्ला
सस्ं कृति की नहीं अपि तुसमस्त भारतीय सस्ं कृति की वि चार एकता का समाहार है। इस कृति मेंरवि द्रं नाथ ने
भारत के प्राचीन और आधनिुनिक चि तं न परंपराओं का वि श्लेषण प्रस्ततु कि या है। धर्म और कर्म के द्वदं को
आधनिुनिक दृष्टि सेमानवता के सदं र्भ मेंस्पष्ट कि या है। रवींद्रनाथ नेगोरा उपन्यास के माध्यम सेहि दं त्ुव के
वि भि न्न व्यवहारि क स्वरूपों की आलोचनात्मक प्रोक्ति प्रस्ततु की है। ऐसा माना जाता हैकि "गोरा" की
परि कल्पना सि स्टर नि वेदि ता और रवि द्रं नाथ के मध्य प्र प्राकृत एवं प्रचलि त धर्म-र्मदर्शनर्श हम हि दं ूमतवाद के
वचै ारि क वि मर्श सेकी गई। सि स्टर नि वेदि ता नव हि दं ूवाद के प्रखर प्रवक्ता एवंपरुोधा स्वामी वि वेकानदं की
शि ष्या थीं। गोरा उपन्यास मेंधार्मि कर्मि - सामाजि क परि वेश के साथ-साथ के वि चि त्रताएँजड़ुी हुई थी जि न्हें यथा
प्रसगं कथाकार नेस्पष्ट कि या है। लेकि न लेखक का मानना हैकि कोई आवश्यक नहीं कि स्थि ति यां बदलने
पर सबं धिं धित पात्रों की मनः स्थि ति भी बदल जाए।यह उपन्यास रवि द्रं नाथ टैगोर का मौलि क उपन्यास है
वास्तवि कता यह हैकि टैगोर महोदय की सभी रचनाएंअग्रं ेजी अथवा बांग्ला भाषा मेंहि दं ी मेंउनकी कोई रचना
नहीं है
आलोचकों समीक्षकों अथवा वि द्वानों नेउपन्यास के नि म्नलि खि त तत्व स्वीकार कि ए हैं:- (१) कथानक (२)
पात्र योजना (३) सवं ाद-योजना (४) वातावरण (५) भाषा-शलै ी (६) उद्देश्य। इन्हीं के आधार पर गोरा उपन्यास
का मल्ूयांकन अथवा वि वेचन प्रस्ततु है–
कथानक – "गोरा" उपन्यास एक वि शालकाय रचना है। इस उपन्यास मेंवि नय भषू ण अथवा वि नय सबसे
पहलेउस का आगमन होता हैऔर जो एक भि खारी का गीत सनु कर घर सेबाहर आता हैऔर वह देखता हैकि
रईस आदमी की घोड़ा गाड़ी नेकि राए की घोड़ा गाड़ी को टक्कर मार दी और कि राए की गाड़ी के भीतर सेएक
यवुती और एक भद्र परुुष बाहर ऐसे।उसका नाम हैपरेश चद्रं भट्टाचार्य और लड़की का नाम हैसचु रि ता था।
और परेश जी घोड़ा गाड़ी सेगि रकर बेहोश हो गए थेउन्हेंदेखनेतो डॉक्टर आया था उसकी फीस भी वि नय ने
दी थी और उस फीस को लौटानेके लि ए एक लड़का सतीश चद्रं मखु ोपाध्याय उनके घर गया तो उसनेवि नय
की बठै क मेंचि त्र देखा जो कि वि नय नेअपनेदोस्त गोरा का बताया। वि नय और गोरा हि दं ूधर्म को मानतेथे।
और गोरा का परूा नाम गौर मोहन था। और गोरा के माता-पि ता उस को जन्म देतेही चल बसेथेऔर उसके
बाद उसका पालन पोषण आनदं मयी और कृष्ण दयाल नामक व्यक्ति नेकि या था। उपन्यास के अतं मेंगोरा
का वि वाह सचु ारि ता के साथ और वि नय का वि वाह ललि ता के साथ हो जाता है।
पात्र- योजना– गोरा उपन्यास मेंपात्रों की सख्ं या इतनी अधि क हैकि पात्रों का परि चय रखना स्वयंपाठ्य को
भी कष्ट साध्य जान पड़ता हैऔर इसके वि शषे या मख्ु य पात्र वि नय ,गोरा , परेश बाबू,हरान बाबूऔर ललि ता
है। और इसके प्रमखु पात्रों का चरि त्र चि त्रण इस प्रकार है:-
वि नय इनका परूा नाम वि नय भषू ण चट्टोपाध्याय है। और वि नय नेकॉलेज की सभी परीक्षाएंपास कर ली है
लेकि न फि र भी वह अपनेभवि ष्य के बारेमेंनहीं सोचता ।लेकि न उसके मन मेंबड़ा बननेकी प्रबल इच्छा है
और वह एकदि न कामयाब होता है।
गोरा इनका परूा नाम गोर मोहन है। और गौर मोहन एक अलग ही तरह का दि खनेवाला आदमी हैजि सका
डीलडोल कि सी सेभी मेल नहीं खाता। और गोरा की आवाज इतनी मोटी और गभं ीर हैकि यदि कोई एकदम से
सनु लेतो आदमी हैरान हो जाए। और गोरा हजारों व्यक्ति यों के बीच मेंभी एक अलग ही पहचान लि ए है।
आनदं मयी यह गोरा की मां है। जि सनेगोरा का पालन पोषण कि या था और गोरा की मांबहुत ही सदंुर महि ला
थी और जि सके बाल बहुत लबं ेथे। गोरा की मां नए सभ्य समाज मेंअपनेपहनावेके कारण कुछ अलग ही
दि खती थी।
वरदासदंुरी परेश बाबूकी पत्नी का नाम है। जो रेशम की साड़ी पहनती हैंऔर बहुत अधि क सजावट करके
रहती है।
सवं ाद योजना:- वि भि न्न पात्रों के मध्य होनेवाली बातचीत सवं ाद कहलाती हैऔर कि सी भी रचना मेंसवं ादों
का बहुत अधि क महत्व होता हैऔर सभी रचनाकार अपनेउपन्यास कहानि यों मेंसवं ादों की योजना के कारण
ही प्रसि द्धि प्राप्त करतेहैं। सवं ादों के कारण ही कोई भी उपन्यास कहानी या कोई भी रचना रोचक बनती हैं।मेंभी रवि द्रं नाथ टैगोर नेअनेक स्थानों पर सवं ादों की योजना बनाई हैजो उपन्यास को बेहद
रोचक ,सरल और पात्रों को गति प्रदान करतेहैं। सवं ाद जि तनेरोचक जि तनेसक्षिं क्षिप्त होंगेउस नाटक को
प्रसि द्धि उतनी ही अधि क प्राप्त होगी।
वातावरण:- उपन्यासकार अपनेवर्णनर्ण द्वारा इस प्रकार की स्थि ति उत्पन्न कर देता हैकि उपन्यास पढ़ने
वाला उसको पढ़कर ही अपनेचारों तरफ ऐसा माहौल ऐसेवातावरण को महससू करनेलग जाता हैअर्था त
वातावरण को इतना सजीवता सेप्रस्ततु करता है। कि जसै ा वह सब कुछ उसी के सामनेघटि त हो रहा हो। और
यह एक उपन्यास को एक कहानी को एक नया मोड़ प्रदान करतेहैं।
भाषा शलै ी:- गोरा उपन्यास की भाषा सरल हैउसमेंसस्ं कृत के शब्दों का की बहुत अधि क प्रयोग कि या गया है
और इस उपन्यास मेंअग्रं ेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग कि या गया है। और कहींकहींपर वाक्य पर अग्रं ेजी
की वाक्य रचना का प्रभाव पड़ा । इसमेंवाक्य बड़ेभी हैंऔर छोटे भी हैं। उपन्यास की शलै ी वर्णनर्ण ात्मक,
प्रभावात्मक है। लेखक अपनी इच्छा सेवर्णनर्ण करता हैकहींसवं ाद शलै ी का ,कभी नाटक शलै ी, कभी मात्रात्मक
शलै ी, कभी सवं ाद शलै ी का इसमेंसभी शलिैलियों का मि लाजलु ा स्वरूप हमेंदेखनेको मि लता है।
उद्देश्य :- इस उपन्यास का उद्देश्य उस समय बगं ाल मेंचलनेवालेभ्रम सप्रं दाय और हि दं ूधर्म का जो भेद है
उसको सामनेलाना है। और उस समय मेंदोनों सप्रं दाय अपनेआप को एक दसू रे सेबड़ा समझतेहैं। और
ब्रह्मसमाज की स्थापना बगं ाल मेंजान में राजा राममोहन राय नेकी थी। और उस समय ब्रह्म समाज में
सम्मि लि त होनेके लि ए प्रार्थनर्थ ा पत्र देना पड़ता था। कि सी भी जाति का व्यक्ति भ्रम सप्रं दाय मेंसम्मि लि त
होकर ऊं ची जाति वालों सेवि वाह कर सकता था। बरम सप्रं दाय के लोग हि दं ओु ंको अछूत मानतेथेवह ना तो
हि दं ओु ं के या खाना खातेथेऔर ना ही हम सेकोई सबं धं रखतेथे।वि नय और ललि ता का वि वाह सबं धं इसी
समाज के छूत अछूत के भेदभाव को दर्शा ता है। गोरा जि सेबाद मेंअपनेपदै ा होनेकी सच्चाई का पता चलता है
एक बार के लि ए तो वह अपनेआप को बि ल्कुल ही तूसमझ नहीं रखता हैऔर समझता हैकि उसके लि ए
समाज मेंकोई स्थान नहीं है। श्री ही क्षण वेसचु रि ता का हाथ थाम कर समाज का सामना करनेके लि ए खड़ा
हो जाता है।
नि ष्कर्ष:र्ष- गोरा उपन्यास मेंसभी तत्वों का उचि त प्रकार सेनि र्वा ह हुआ है। गोरा उपन्यास 19वीं और 20वीं
सदी की शरुुआत की सामाजि क चि तं ाओंमेंअतीत सर्वो परि था ।लेकि न इस दौरान अपनेरचनाकार को रूप देने
वालेरवि द्रं नाथ ठाकुर की लि स्ट अतीत के बजाय भवि ष्य की ओर थी। चेतना पनु रुत्थान की हो या समाज
सधु ार के दौरान अतीत की आलोचना और पनु ाराम लोकन ही वि मर्श पर काबि ज थेऔर रवि द्रं नाथ का जो