गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल की सगुण धारा की राम शाखा के मुकुट शिरोमणि माने जाते हैं।
इन्होंने अपनी महान रचना रामचरितमानस के द्वारा केवल राम काव्य को ही समृद्ध नहीं किया बल्कि मानस के द्वारा तत्कालीन समाज का भी मार्गदर्शन किया।
तुलसीदास जी एक भगत होने के साथ-साथ एक लोक नायक भी थे।
तुलसीदास जी ने कवितावली ब्रज भाषा में लिखी है।
यह कविता में उन्होंने अपने समय का यथार्थ चिंतन कर चित्रण किया है ।
कवि का कथन है कि समाज में किसान, बनिए ,भिखारी नौकर ,चाकर ,चोर सभी की स्थिति अत्यंत दयनीय है ।उच्च वर्ग और निम्न वर्ग धर्म अधर्म का सहारा ले रहा है।
प्रत्येक कार्य करने को मजबूर है।
लोग अपने पेट की खातिर अपने बेटा बेटी को बेच रही है पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है।
समाज में व्याप्त भुखमरी सबसे सोचनीय दशा है।
मनुष्य को लाचार बना देता है।
समाज में किसान के पास करने के लिए खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी के पास व्यापार नहीं है नौकरों के पास करने के लिए कोई भी कार्य नहीं है ।
समाज में चारों और बेकारी, भुखमरी, गरीबी और अधर्म का बोलबाला है ।
अब तो ऐसी अवस्था में दीन दुखियों की रक्षा करने वाले सिर्फ और सिर्फ श्री राम हैं।
श्री राम की कृपा से ही यह सब दुख दर्द दूर हो सकते हैं ।अंत में कवि ने समाज में फैली जाती पाती और छुआछूत का भी खंडन किया है और श्री राम के द्वारा ही राम राज्य की स्थापना की जाने की कामना की।
काव्य सौंदर्य
समाज का यथार्थ अंकन हुआ है।
कवित्त छंद का प्रयोग हुआ है।
तत्सम प्रधान ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है
अभिधा शब्द शैली का प्रयोग है।
बीमा योजना सुंदर एवं सटीक है।
अनुप्रास पद मैत्री अलंकारों की छटा है।
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