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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

समकालीन हिंदी कविता का विकास

समकालीन हिंदी कविता का विकास
भूमिका
साहित्य में समाज कल्याण की भावना अंतर नहीं है साहित्य का सृजन अध्यात्मिक और कार्यात्मक रूपों में होता है स्वतंत्रता पूर्व हिंदी कविता का लेखन 
भारतेंदुवादी
 िद्ववेदी वादी
छायावादी और प्रगतिवादी धाराओं में हुआ सदन तक प्रयोगवादी और नई कविता की धाराएं विकसित हुई आजादी से पूर्व कविताओं का स्वर राष्ट्रीय स्वतंत्रता और सांस्कृतिक उत्थान था ।
स्वतंत्रता से पूर्व भारत की जनता के सुनहरी स्वप्न थे ।आजादी के बाद भारत का उज्जवल भविष्य होगा और रामराज्य जैसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होगा।
 सन 1947 में भारत आजाद हुआ लेकिन रामराज्य का स्वप्न साकार नहीं हुआ तथा उनकी स्थिति उत्पन्न हो गई ।

राजनीतिक उथल-पुथल 1965 के युद्ध में करारी हार सामाजिक ,आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समस्याएं खाद्यान्नों की कमी ,जनता और कवियों में विक्षोभ और असंतोष पनपने लगा।
 हिंदी कविता के चित्र में सहज कविता ,विचार कविता अकविता 
भूखी पीढ़ियों की कविता
 युयुत्सा वादी
 कविता
 नवगीत 
 आदि अनेक काव्य आंदोलन हुए सर्वाधिक प्रचलित समकालीन कविता सन 1960 के बाद की हिंदी कविता को साठोत्तरी कविता 
नई कविता 
समकालीन कविता
 सातवें ,आठवें दशक की कविता, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की कविता 
अनेक नाम दिए गए ।
 समकालीन कविता नाम सबसे ज्यादा उपयुक्त महसूस हुआ समकालीन साहित्यकारों को अपने युग की राजनीतिक सामाजिक ,धार्मिक ,आर्थिक ,सांस्कृतिक अनुभूतियों का प्रत्यक्ष बोध होता है ।क्योंकि वह उस समय में जीता है और वह अपने युग की अच्छी बुरी घटना परिस्थितियों से परिचित रहता है यही समकालीन ता का घोतक है ।
समकालीन हिंदी कविता में जीवन और जगत की विसंगतियां  बोलबाला था ।
कुरूपता अंतर यथार्थ चित्रण हुआ है ।
सन 1960 के बाद का समय जीवन मूल्यों की दृष्टि से पत्रों मुखी रहा है।
 अवमूल्यन के इस युग में कविताओं के स्वरों में भी बड़ा परिवर्तन हुआ है ।
जिसकी अभिव्यक्ति व्यंग्यात्मक और विद्रोह आत्मक रूप में हुई है ।
समकालीन हिंदी कविता में आदर्श की झलक यत्र तत्र दृष्टिगोचर होती है।
 इस कविता में घोर यथार्थ का चित्रण है
समकालीन हिंदी कविता भी सामाजिक यथार्थ की अभिव्यंजना है यह कविता सामाजिक चिंतन कृत रमता और प्रपंच को मुखरित करने के लिए मध्यवर्ग की तरह से जिंदगी तथा उसकी कुरूपता के यथार्थ का सूक्ष्मता से चित्रण करती है।
 सन 1960 के पश्चात सामाजिक संबंधों वाली कविता में व्यंग्य विक्षोभ विद्रोह का स्वर प्रबल रूप से दृष्टिगोचर होता है।
 समकालीन कविता में भारतीय संवेदना की ज्वलंत अनुभूति है ।
वास्तव में इस कविता ने व्यक्ति और समाज के शत्रु पर तनाव अंतर्विरोध और विरोध वासियों को संपूर्ण संवेदनशीलता के रूप में अभिव्यक्ति प्रदान की है समकालीन कविता अपने युग की निष्क्रियता निराशा उत्पीड़न के माध्यम से अपना मार्ग खोजने का प्रयत्न में तल्लीन है ।
आज के समाज के लोग मुखौटा धारी हो गई पाखंड धोखाधड़ी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई और अपनी पूर्ववर्ती सामाजिक सांस्कृतिक विरासत को भूलकर झूठी शान ओ शौकत में जीने लगी है समाज में लोग मिठाई और कपट जारी हो गए हैं ।
मुंह में राम-राम और बगल में छुरी वारी लोकोक्ति आज के सामाजिक जीवन के यथार्थ को प्रकट करती से दिखाई देती है।
समकालीन कवि दोगले चेहरे का उद्घाटन करते हैं ।
भ्रष्टाचार की पोल खोलते हैं सामाजिक और नैतिक पतन पर तीव्र प्रहार करते हैं मुल्लों के विघटन पर खेद प्रकट करते हैं तथा आदर्शों के पतन पर करुण क्रंदन करते हैं।
 वे सत्य के पक्षधर हैं और धोखाधड़ी के घोर विरोधी हैं यह कविता जीवन और जगत के विशाल रूप में दिखती है जिसमें वह आतंक व धूटन के साथ साथ जीवन के सुंदर और आदर्शों का भी चित्रण मिलता है ।
समकालीन हिंदी कविता में अज्ञेय ,शमशेर बहादुर सिंह 
नागार्जुन 
केदारनाथ अग्रवाल 
भवानी प्रसाद मिश्र 
त्रिलोचन 
मुक्तिबोध 
गिरिजाकुमार माथुर
 भारत भूषण अग्रवाल 
नरेश मेहता 
रामदरश मिश्र 
धर्मवीर भारती 
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 
कुंवर नारायण 
रघुवीर सहाय 
कीर्ति चौधरी 
राजमल चौधरी ।
दुष्यंत कुमार
 केदारनाथ सिंह 
कुमार विकल 
धूमिल
 कैलाश वाजपेई 
चंद्रकांत देवताले 
विनोद कुमार 
शुक्ल 
रामचंद्र शाह
 सौमित्र मोहन
 गंगा प्रसाद 
विमल प्रयाग 
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
 वेणुगोपाल
 लीलाधर जगूड़ी
 बलदेव वंशी 
आलोक धन्वा
 मंगलेश डबराल 
ज्ञानेंद्रपति 
उदय प्रकाश
 असद जैदी
 अनामिका 
अर्चना वर्मा 
सविता सिंह 
निर्मला
  गगन गिल 
प्रेम रंजन 
अनिमेष
 नीलेश
 रघुवंशी आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है समकालीन हिंदी कविता में गीत, लोकगीत ,गजल ,लंबी कविताएं भी लिखी गई है।
 मक्षभारत युग युगांतर में ग्राम प्रधान रहा है ।
आधुनिक काल में नगरीकरण के परिपेक्ष्य में ग्रामीण समाज का विघटन हो रहा है गांव उजड़ रहे हैं।
 और नगर महानगर हो रहे हैं ।
समकालीन कविताओं का विचार है कि ग्रामीण जीवन की आंचलिकता ।
लोक संस्कृति और पर्यावरण का संरक्षण हो इसीलिए वह महानगरीय प्रदूषण और संवेदनहीनता के प्रति भी चिंतित हैं संयुक्त परिवार अभी भी केवल ग्रामीण अंचलों में सुरक्षित है नगरीकरण और पाश्चात्य चमक-दमक वाली संस्कृति के कारण संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है ।
पारस्परिक भाईचारा सामाजिक सौहार्द स्वार्थपरता के कारण कम होता जा रहा है समकालीन कवि समाज को सचेत कर रहे हैं समकालीन कवि नारी विमर्श दलित विमर्श वनवासी विमर्श और बाल विमर्श के प्रति भी सजग हैं।
स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय राजनीति आदर्श त्याग तपस्या और बलिदान पर आधारित थी स्वतंत्रता के पश्चात आदर्श यथार्थ में बदल गई त्याग तपस्या विलासिता में बदल गई बलिदान स्वार्थ में बदल गया समकालीन हिंदी कविता में कवियों ने राजनीति की कुरूपता पूरा प्राधिकरण का यथार्थ चित्रण किया है इस कविता में न्यायपालिका में सफलता कवियों ने सजीव चित्रण किया है न्याय में देरी का अर्थ नए का गला घोटना राजनीति में सत्ता और संपत्ति का गठबंधन हो गया है जो संपत्ति साली है वही शक्तिशाली हो जाते हैं जो बलवान हैं वे शक्तिशाली हो जाते हैं धन बल और भुजबल का खेल बढ़ रहा है यही राजनीति का उचित रूप है समकालीन कवियों ने अत्याचार अनाचार व्यभिचार अन्याय सांप्रदायिकता अनुशासनहीनता मूल्य हीनता राजनीति को अपनी कविता का वर्ण विषय मानकर अपने साहस और दायित्व बोध का परिचय दिया है ।

बुधवार, 30 सितंबर 2020

गोस्वामी तुलसीदास कृत कवितावली उत्तरकांड से

गोस्वामी तुलसीदास कवितावली उत्तर कांड से का सारांश


गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के भक्ति काल की सगुण धारा की राम शाखा के मुकुट शिरोमणि माने जाते हैं।

इन्होंने अपनी महान रचना रामचरितमानस के द्वारा केवल राम काव्य को ही समृद्ध नहीं किया बल्कि मानस के द्वारा तत्कालीन समाज का भी मार्गदर्शन किया।
 तुलसीदास जी एक भगत होने के साथ-साथ एक लोक नायक भी थे।
तुलसीदास जी ने कवितावली ब्रज भाषा में लिखी है।
 यह कविता में उन्होंने अपने समय का यथार्थ चिंतन कर चित्रण किया है ।
कवि का कथन है कि समाज में किसान, बनिए ,भिखारी नौकर ,चाकर ,चोर सभी की स्थिति अत्यंत दयनीय है ।उच्च वर्ग और निम्न वर्ग धर्म अधर्म का सहारा ले रहा है।
प्रत्येक कार्य करने को मजबूर है।
 लोग अपने पेट की खातिर अपने बेटा बेटी को बेच रही है पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है।
 समाज में व्याप्त भुखमरी सबसे सोचनीय दशा है।
 मनुष्य को लाचार बना देता है। 
समाज में किसान के पास करने के लिए खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी के पास व्यापार नहीं है नौकरों के पास करने के लिए कोई भी कार्य नहीं है ।
समाज में चारों और बेकारी, भुखमरी, गरीबी और अधर्म का बोलबाला है ।
अब तो ऐसी अवस्था में  दीन दुखियों की रक्षा करने वाले सिर्फ और सिर्फ श्री राम हैं।
 श्री राम की कृपा से ही यह सब दुख दर्द दूर हो सकते हैं ।अंत में कवि ने समाज में फैली जाती पाती और छुआछूत का भी खंडन किया है और श्री राम के द्वारा ही राम राज्य की स्थापना की जाने की कामना की।
काव्य सौंदर्य
समाज का यथार्थ अंकन हुआ है।
कवित्त छंद का प्रयोग हुआ है।
तत्सम प्रधान ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है
अभिधा शब्द शैली का प्रयोग है।
बीमा योजना सुंदर एवं सटीक है।
अनुप्रास पद मैत्री अलंकारों की छटा है।

सोमवार, 20 जुलाई 2020

Mirabai sambandhit prashnon ke Uttar/मीराबाई संबंधित प्रश्नों के उत्तर

1. 
1.मीरा का जन्म कब हुआ?
मीरा का जन्म 1498 में कुडकी मारवाड़ राजस्थान में हुआ।

2.मीरा की मृत्यु कब हुई
मीरा की मृत्यु 1540 में वृंदावन में हुई।

3.मीरा के इष्ट देव कौन थे?
मीरा के इष्ट देव श्री कृष्ण थे।

4.
मीराबाई को श्री कृष्ण का कौन सा रूप भाता था?
मीराबाई को श्री कृष्ण का पति रूप भाता था।

5.श्याम चाकरी क्यों करना चाहती थी वह श्री कृष्ण को पाने के लिए क्या-क्या करती थी?
श्याम को रिझाने के लिए वह शाम की चाकरी अर्थात नौकरी करना चाहती थी वह पूरा समय शाम चरणों में ही बिता देने के कारण उसकी नौकरी करने के लिए तैयार थी। श्री कृष्ण को रिझाने के लिए वह उन्हें जोगिया ,रमैया ,हरि ,अविनाशी गिरधर ,गोपाल ,दीनानाथ ,यम उदाहरण ,पतित पावन, नंद नंदन ,बलवीर ,गिरधारी गिरधारी, ठाकुर ,प्रतिपाला ,प्रेम प्रिया रानी, पूर्व जन्म रो साथी आदि शब्दों से उन्हें विभूषत करती थी।
।जैसे एक विवाहिता स्त्री अपने पति की सेवा के लिए पूरा दिन कार्य करती रहती है उसी प्रकार मीराबाई बिहार एक वह कार्य करती थी।

6.मीराबाई का बचपन किस प्रकार बीता था?
मीराबाई का बचपन राजसी ठाठ बाट से बीता था।

7.कई बार प्रश्न पूछा जाता है क्या मीराबाई राशि परिवार से थी।
उत्तर हां ,मीराबाई एक राजसी परिवार से थी उनके पिता राठौर सिंह महार महाराज थे राठौर रतन सिंह। कई रियास   तो के महाराज थे।
8.मीराबाई के अनुसार कृष्ण वृंदावन में क्या-क्या करती थी?
मीराबाई के अनुसार कृष्ण वृंदावन में गोपियों को रीझते थे , गो को चरते थे। गोवर्धन पर्वत की होली पर उठाकर ग्राम वासियों की रक्षा करते थे। अपनी बांसुरी बजा कर सभी को मंत्रमुग्ध कर देते थे।

9.पदों की कवियत्री का नाम बताइए
  पद की कवयित्री मीराबाई जी

10.मीराबाई अपना सर्वस्व किसे मानती थी
 मीराबाई श्री कृष्ण को अपना सर्वस्व मानती थी।

11.मीराबाई  किस काल की कवयित्री मानी जाती हैं?
   मीराबाई भक्ति कालीन कवयित्री मानी जाती हैं।    

12.मीराबाई कृष्ण से क्या प्रार्थना करती हैं?
  मीराबाई कृष्ण से अपने उद्धार करने की प्रार्थना करती हैं     ताकि उस से मुक्ति मिल सके तथा दर्शन की अभिलाषा        वह रखती है।

13.मीराबाई की से देखकर प्रसन्न होती हैं तथा किसे देख       कर रो पड़ती है?
मीरा बाई प्रभु भगत को देखकर प्रसन्न होती हैं और जगत को देख कर रो उठती हैं।

14.मीरा का हृदय सदैव दुख से भरा क्यों रहता है?
  मीरा का ह्रदय दुख से सदैव इसलिए भरा रहता है क्योंकि   वह मोहमाया में लिप्त प्राणियों की दशा को देखकर सोच   विचार में पड़ जाती हैं तथा अंदर ही अंदर घुलती रहती हैं।


15.लोक लाज होने से क्या अभिप्राय है?
विवाहिता होने के बावजूद श्री कृष्ण को अपना पति मान कर उसके सामने नाचना परिवार की मर्यादा के विरुद्ध है संसार से दूर से एक स्त्री द्वारा संतो के पास बैठकर सत्संग करना भी उस समय के समाज में मान्य नहीं था इसी कारण उनके संबंधी और समाज के लोगों का मानना था कि मीरा ने लोक लाज को खो दिया है।

16.मीरा ने सहज मिले अविनाशी क्यों कहा है?
मीरा का मानना है कि जो समाज से भी ना डरे समाज के द्वारा दी गई यात्राओं का निडरता से सामना करते हुए भगवान के प्रति अनन्य प्रेम करते हैं वह अविनाशी प्रभु उन्हें अपने भक्तों को बड़ी सरलता से ही प्राप्त हो जाते हैं कृष्ण के प्रेम से प्रसन्न होकर सहजता व आसानी से प्राप्त हो गए हैं।

17.लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
लोग मीरा को बावरी इसलिए कहते हैं कि मीरा कृष्ण के प्रेम में रम कर पूरी तरह से कृष्णमयी हो गई है।विवाहिता होते हुए भी वह पांव में घुंघरू बांधकर कृष्ण के समक्ष नाचती है मीरा कृष्ण को पति रूप में स्वीकार करती है मीरा को अपने कुल की मर्यादा और लोगों की कोई परवाह नहीं है वह लोक लाज की चिंता छोड़कर संतो के पास बैठी रहती है इसी कारण लोग मीरा को बावरी कहती हैं।

18.विष का प्याला राणा भेजा, पीवत मीरा हंासी  इसमें क्या व्यंग्य छिपा हुआ है?
मीरा के कृष्ण के प्रति प्रेम को देखकर मीरा के पति राजा भोज द्वारा भी अनेक यातनाएं की गई राजा भोज के मरने के बाद भी उनके देवर ने विष का प्याला भेजा मीरा तो कृष्ण के प्रेम में लीन होकर निर्भय हो गई उसने हंसते-हंसते राणा द्वारा भेजा गया विष का प्याला पी लिया मेरा कि इसी में निहित व्यंग्य यह है कि संसार की मोह माया से ग्रसित स्वार्थी लोग कृष्ण प्रेम को नहीं जानते हैं वे मानते हैं कि शरीर की मृत्यु से अमर प्रेम समाप्त हो जाएगा जबकि वह अविनाशी कृष्ण तो निडर रहकर प्रेम करने वालों की रक्षा करते हैं तथा उन्हें सहज ही प्राप्त हो जाते हैं उनकी कृपा से अमृत में बदल जाता है।


हिंदी साहित्य में मीरा पर लिखी गई पुस्तकें

मीराबाई का जीवन परिचय/मीराबाई की संपूर्ण जानकारी

मीराबाई का जीवन परिचय
कृष्ण भक्त कवि सूरदास के पश्चात मीराबाई का उच्च स्थान प्राप्त है मीराबाई के जन्म तथा मृत्यु के संबंध में बहुत सारे मतभेद पाए जाते हैं।
जन्म -
उनका जन्म सन 1498 कुड़की मारवाड़ राजस्थान में हुआ।
मृत्यु-उनकी मृत्यु 1540 ईस्वी में वृंदावन में ही हुई।
मीराबाई का बाल्यकाल
मीराबाई राठौर रतन सिंह की इकलौती पुत्री थी उनका बालाघाल बड़े ही राजसी ठाठ बाट में बीता ।
उनकी माता जी श्री कृष्ण की भक्ति में लीन रहने वाली एक धार्मिक स्त्री थी। इनकी माताजी का असर ही श्री मीराबाई जी पर पड़ा। बचपन से ही श्रीकृष्ण को उन्होंने अपना पति मान लिया था।
विवाह
मेरा भाई जी का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र कुंवर भोजराज से हुआ था।बाल्यकाल से श्री कृष्ण को अपने पति रूप में देखती थी इसलिए राजा भोज राज से उनकी ज्यादा नहीं बन पाई थी।
दुर्भाग्यवश आठ 10 वर्षों के उपरांत ही उनके पति की मृत्यु हो गई थी।
विधवा मीरा पर किए गए अत्याचार
पति की मृत्यु के बाद मीराबाई का मन अपने ससुराल में बिल्कुल नहीं लगता था उसका देवर उस उसको श्री रूप में पाना चाहता था लेकिन मीरा का मन राजसी ठाठ ,राजसी चहल-पहल में नहीं रमता था।
उसने मंदिरों में जाना शुरू कर दिया और साधु-संतों संतो की संगति में रहने लगी।मीरा ने कृष्ण को अपना पति मान लिया था और उनके विरह के ही पद वह गाती थी इस तारा बजात थी
देवर ने उन्हें जहर का प्याला तो कभी सर्प की टोकरी भेजी लेकिन श्रीकृष्ण की इतनी कृपा उनके ऊपर थी कि जहर का प्याला अमृत में बदल गया सब की टोकरी फूलों की माला से भर गई।
देवर के अनेक कष्ट दिए जाने पर भी मीरा अपनी भक्ति मार्ग से टस से मस नहीं हुई और कृष्ण का कीर्तन करते-करते कृष्णमयी हो गई।
रचनाएं
मीराबाई अधिक शिक्षित नहीं थी परंतु साधु संतों की संगति में रहने के कारण उनका अनुभव और ज्ञान बहुत व्यापक बन गया था।
उन्होंने अपने प्रियतम श्री कृष्ण के प्रेम की मस्ती में झूमते और नाचते हुए जो कुछ मुख से निकाला वही एक मधुर गीत बन गया।
इन की प्रसिद्ध रचनाएं
नरसी का मायरा
राग गोविंद
राग सोरठ
इनकी रचनाओं की मुख्य विशेषताएं
मीरा की भक्ति कांता भाव की माधुर्य पूर्ण भक्ति थी।
इनके गीतों में भगवान के आत्म समर्पण की भावना विद्यमान है।
वेदना की तीव्र अनुभूति के कारण उनका प्रत्येक गीत हृदय पर सीधा प्रभाव डालता है।
सामाजिक रूढ़ियों का विरोध होते हुए भी इनकी कविता में भारतीय इतिहास और संस्कृति की सुंदर झलक दिखाई देती है।
मीराबाई भारतीय संस्कृति के अनुसार पहली क्रांतिकारी महिला थी।
जिन्होंने समाज की रूढ़ियों को छोड़कर अपने मन के अनुसार स्वतंत्र जीवन जीने का मन बनाया।
मीरा की भाषा
मीरा जी की भाषा राजस्थानी मिश्रित लोक भाषा थी।
जो लोकप्रिय होते होते साहित्यिक भाषा बन गई।
मीरा के बिरह गीत गीत की शैली में है।
मीरा की कृष्ण के प्रति अनन्य तथा समर्पण भावना का वर्णन इसमें दिखाई देता है।
रूपक अनुप्रास पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार ओं का सुंदर चित्रण है।
इनके पदों में संगीतात्मकता का गुण है।
तुकांत छंद की छटा दिखाई देती है।
वियोग श्रृंगार रस की प्रधानता है।
भाषा में राजस्थानी लोक शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है।
करुण रस का प्रयोग है।
प्रसाद गुण विद्यमान है।

भाषा के कुछ उदाहरण

मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई


असुवन जल सीजी सीजी प्रेम बेलि बोई
अब तो बेली चली गई आनंद फल होयी


पग घुंघरू बांध मीरा नाची
मैं तो मेरे नारायण हूं आप ही हो गई साची

विष का प्याला राणा भेजा पी वत मीरा हंसी
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनाशी