5955758281021487 Hindi sahitya : सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय

गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय

यहां सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ने यज्ञ किए जीवन परिचय तथाकी प्रमुख कविताओं का सार यहां प्रस्तुत किया गया है जो सभी एम ए और बी ए तथा यूजीसी नेट सभी के लिए जरूरी हैं 
अज्ञेय जी आधुनिक भारत के साहित्यकार हैंअज्ञेय का उपनाम है।उनके पिता श्री हीरानंद शास्त्री भारत के पुरातत्व विभाग की सेवा में उच्च अधिकारी थे। वह संस्कृत के विद्वान थे।
वे कठोर अनुशासन के पक्ष के पक्ष में थे किंतु प्रतिभा के स्वतंत्र विस्तार में कभी बाधक नहीं थे।
आज्ञा जी का जन्म 7 मार्च 1911 में कसैया जिला देवरिया बिहार में हुआ ।
उनका बचपन लखनऊ श्रीनगर और जम्मू में बीता ।
सन 1929 में उन्होंने लाहौर के  फॉर मैन से बीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की ।सैनिक तथा विशाल भारत में पत्रिकाओं का संपादन किया।1961 में वे कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय साहित्य और संस्कृति के अध्यापक नियुक्त हुए वहां से लौटने पर उन्होंने नवभारत टाइम्स और दिनमान का संपादन किया।
 आंगन में के पार द्वार पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला ।
कितनी नावों में कितनी बार 1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ ।
4 अप्रैल 1987 को प्रातः ह्रदय गति रुक जाने के कारण अज्ञेय जी का देहांत हो गया।
प्रमुख रचनाएं
अजय जी एक बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे उन्होंने हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं पर सफलतापूर्वक अपनी कलम चलाई है उनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं
काव्य संग्रह
हरी घास पर क्षण भर
भग्नदूत,
 चिंता
 बावरा अहेरी 
धनुष रोते हुए यह 
अरे ओ करुणामई प्रभा
आंगन के पार द्वार 
पुरवा 
सुनहरे शैवाल
 कितनी नावों में कितनी बार
 सागर मुद्रा 
पहले मै सन्नाटा बुनता हूं 
महा वृक्ष के नीचे 
नदी के द्वीप
 छाया 
क्योंकि मैं उसे जानता हूं
 ऐसा कोई घर आपने देखा है 
ब्रिस्टल
 नाटक 
उत्तर प्रियदर्शी
 कहानी संग्रह 
विपथगा
 परंपरा
 यह तेरे प्रतिरूप 
लॉटरी की बात 
शरणार्थी 
अमर वलरी 
उपन्यास- शेखर एक जीवनी (प्रथम और द्वितीय खंड )

अपने अपने अजनबी 
नदी के द्वीप 
 छाया में कल और बिनु भगत (अपूर्ण उपन्यास )
यात्रा वृतांत 
अरे यायावर रहेगा याद तथा एक बूंद सहसा उछली 
संस्मरण 
स्मृति लेखा 
स्मृति के गलियारों से
 साक्षात्कार
 अपने अपने बारे में 
अपरोक्ष 
निबंध संग्रह 
त्रिशंकु 
,सबरंग
धार और किनारे
 जोग लिखी 
 ऑल वाल
काव्यगत विशेषताएं 
यह मूलतः प्रयोगवादी कवि थे ।
उनके काव्य का भाव पक्ष कला पक्ष समान रूप से समृद्ध जीवन की गहन अनुभूतियों का चित्रण करना उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है ।
आरंभिक काव्य में छायावाद और रहस्यवाद का समन्वित रूप देखने को मिलता है ।
उनके काव्य में पौराणिक और ओजस्विता की भावना के दर्शन होते हैं।
इनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना का भी स्वर दिखाई देता है ।
मानवतावादी भावना की अभिव्यक्ति आज्ञा जी की प्रमुख विशेषता कही जा सकती है ।
व्यक्ति निश्चित सहानुभूति जीवन को पूर्णता से जीने का ग्रह व्यक्ति और समष्टि का परिणाम भूति क्रांति की भावना भाषा शैली की अगर बात की जाए तो विविध प्रयोग के काव्य में दिखाई देते हैं।
 वे सदा पुरानी प्रति को और उनके स्थान पर नए प्रतीक और मानव का प्रयोग करने के पक्षधर रहे हैं।
 दीप उनका प्रिय प्रतीक है।
 निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि अज्ञेय जी आधुनिक युग के सजग कवि हैं।उनकी काव्य रचनाओं में भाव पक्ष एवं कला पक्ष का सुंदर समन्वय हुआ है उन्होंने नए भाव को नवीन काव्य शैलियों में अभिव्यक्त किया है तथा नए नए प्रयोग करके काव्य के शिल्प को नवीनता प्रदान करने की कोशिश की है हिंदी साहित्य सदा इनको स्मरण रखेगा।



मेरा देश कविता का सार
मेरा देश कविता अज्ञेय जी की सुप्रसिद्ध लघु कविता है उसमें उन्होंने ग्रामीण जीवन का अत्यंत सजीव चित्र अंकित किया है ।भारत की वास्तविक संस्कृति ग्रामीण जीवन में ही देखी जा सकती है किंतु आज उसे भी नगरीय संस्कृति का ग्रहण लगता जा रहा है ।कवि ने भारत देश का वर्णन करते हुए कहा है कि घास फूस के झोंपड़ों से ढके हुए ,टूटे-फूटे गंवारू आम जनता में ही हमारा देश बसता है ।देशवासियों के पास रहने के लिए अच्छे मकानों का अभाव है इन्हीं लोगों के ढोल मांदल बांसुरी के उठते सुर में ही हमारी साधना का रस बरसता है ।
इन्हीं भोले भाले लोगों के मर्म को  नगरों की डकैती, और लोभयुक्त जहरीली वासना का सांप डस लेता है।
 अनेक भोले-भाले ग्रामीण शहरों में आकर वही के होकर रह जाते हैं ।
उनकी भोली और अनजान संस्कृति पर नगरीय सभ्यता का भूत आता है ।ग्रामीण संस्कृति भी आज नगरीय भौतिकता वादी संस्कृति से प्रभावित होती जा रही है।
नदी के द्वीप कविता का सार/ प्रतिपाद्य

नदी के द्वीप आज्ञा जी की सुप्रसिद्ध प्रतीकात्मक कविता है इसमें कवि ने नदी की धार द्वीप भूखंडों के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्ति समाज और जीवन प्रभा प्रवाह के पारंपरिक संबंधों को उजागर किया है ।

द्वीप व्यक्ति का प्रतीक है ।
नदी परंपरा और प्रवाह का
भूखंड
 समाज का प्रतीक है 
परंपरा
 समाज और व्यक्ति को जोड़ने वाली कड़ी है।
 जैसे द्वीप भूखंड का अभिनय भाग है किंतु उसका अपना अस्तित्व भी है।
 वैसे ही व्यक्ति समाज का ही एक अंग है किंतु उसका अपना भी अस्तित्व हो सकता है ।
उसके अपने गुण और विशेषताएं ,उसकी अलग पहचान करवाते हैं ।
व्यक्ति परंपरा तथा काल प्रवाह के कारण समाज का अंग होते हुए भी स्वतंत्र व्यक्तित्व को बनाए रख पाता है ।
यद्यपि द्वीप नदी से कुछ न कुछ ग्रहण करता रहता है फिर भी वह नदी नहीं बन पाता नदी द्वीप में मिलता नहीं है।
 नदी में मिलने से द्वीप का अस्तित्व मिट जाएगा इसी प्रकार व्यक्ति भी समाज और परंपरा से संस्कार संस्कार प्राप्त करके अपने अस्तित्व को बनाता है ।परंतु उसने मिलता नहीं है समाज का सदस्य होते हुए भी वह अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखता है ।
अतः यहां कवि स्पष्ट कर देना चाहता है कि व्यक्ति समाज एवं परंपराओं के आपस में संबंध हैं लेकिन व्यक्ति को अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व कभी खत्म नहीं करना चाहिए और इसी से उसकी समाज में पहचान बनती है।
कितनी नावों में कितनी बार कविता का सार/ प्रतिपाद्य /उद्देश्य
यह कविता  अज्ञेय जी की एक श्रेष्ठ कविता मान मानी जाती है ।
इस कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि विदेशी चकाचौंध की अपेक्षा हमारे अपने देश की संस्कृति और जीवन मूल्य संसार में सर्वश्रेष्ठ है।
 कवि अनेक बार विदेशों की यात्रा पर गया है उसकी इच्छा थी कि वह विदेशों में जाकर सत्य की ज्योति की खोज करें ।
परंतु से निराश होकर ही वापस लौटना पड़ा। विदेशों की रुपहेली झिलमिलाती संस्कृति में कवि खुद को असहाय महसूस करता रहा ।
 वह बार-बार विदेशों में जाता रहा लेकिन वहां उसे सत्य की प्राप्ति नहीं हुई आखिर में निराश होकर वापस लौट आया ।
विदेशों की चकाचौंध के वातावरण को देखकर उसे अनुभव हुआ कि वहां पर सत्य की खोज करना व्यर्थ है कारण यह है कि पराए देशों की बेदर्द हवाओं में ,वहां के निर्मम प्रकाश में व्यक्ति की आंखें चुंधिया  जाती हैं वहां का निर्मम प्रकाश मानव की आत्मा को रोशनी प्रदान नहीं कर सकता है ।फल स्वरुप विदेश जाने वाला व्यक्ति सफलता के बोझ के साथ वापस लौट आता है ।उसका मन विकल, दुखी ,संत्रास रहता है ।
विदेशों में जाना है वहां तक तो सही है परंतु सत्य को वहां प्राप्त  नहीं  किया जा सकता है। पाठक वर्ग को कवि यही समझाने की कोशिश कर रहा है कि अपना जो भारत है वह सर्वश्रेष्ठ है , इस के जैसा पूरे विश्व में कहीं  ओर नहीं है।


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