5955758281021487 Hindi sahitya : विप्रलब्धा कविता का सार

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

विप्रलब्धा कविता का सार

विप्रलब्धा कविता
कवि धर्मवीर भारती
सार/उद्देश्य
b.a. तृतीय वर्ष
पांचवा सेमेस्टर
कविता का सार
डॉ धर्मवीर भारती द्वारा रचित इस कविता में राधा कृष्ण के पौराणिक प्रेमाख्यान को एक नवीन दृष्टि प्रदान की गई है ।
इस कविता में राधा का प्रेम एकदम सहजऔर तन्मय है ।
उनकी सहजता में ही उनका विकास होता है ।
प्रस्तुत कविता में कवि ने कनुप्रिया अर्थात राधा की विरह व्यथा का बड़ा ही सजीव और मार्मिक चित्रण किया है ।
प्रिया यानी राधा वियोग की ज्वाला में जल रही है ।

कनु यानी कान्हा अब चले गए हैं।
 राधा अब करे तो क्या करें ।
उसे याद आता है बीता हुआ हर एक क्षण जिस क्षण में वह असीमानंद को अनुभव कर रही थी।
 अब वह आनंद व्यर्थ इतिहास बन गया है ।
अब केवल राधा है ,उसका तन है ,उसका एकाकीपन है और उसकी रीत जाने का भाव है।

 राधा स्वीकार करती है कि उसका यह शरीर एक टूटे हुए खंड के समान बन गया है ।
उसका जो शरीर है वह एक खंडहर के समान है।
 राधा अपने आप को असहज महसूस कर रही है ।
उसका शरीर उसके शरीर का जादू ,
सूर्य के समान तेज ,उस की दिव्य चमक ,उसकी मंत्रमुग्ध करने वाली वाणी सब श्री कृष्ण के साथ ही चले गए हैं ।
राधा स्वीकार करती है कि अब उसका शरीर मात्र शरीर रह गया है ।
राधा स्वयं को एक कटी हुई धनुष की डोरी के समान बताती है जिसका श्री कृष्ण मंत्र पढ़े बाण के समान छूट गया है ।

संपूर्ण कविता में विभिन्न रूपों के माध्यम से राधा की विरह व्यथा का बड़ा मार्मिक और संवेदनशील चित्र अंकित किया गया है ।
भाषा की बात अगर की जाए तो धर्मवीर भारती जी ने काव्य कला की दृष्टि से यह एक सफल प्रयोग कहा जा सकता है इसमें नव प्रतीक ,विधान बिंब योजना ,नवीन उपमान का विधान किया है ।उनकी भाषा में अर्थ की अभिव्यक्ति की अद्भुत क्षमता है ।कहीं-कहीं तत्सम शब्दों का देशज और विदेशी शब्दों के साथ-साथ भाषा का व्यवहारिक रूप दिखाई देता है ।
उनकी कविता में कहीं कहीं दूर जाकर तुक कभी मिलते हैं ।उनकी भाषा सहज सरल और विषय अनुसार है।

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