हिंदी भाषा के आधुनिक काल का जब भी जिक्र होगा तो कुछ महा पंडितो के नाम जरूर लिए जाएंगे।
हिंदी साहित्य को परिभाषित करने के लिए जरूर लिए जाएंगे जिनके बिना हिंदी साहित्य अधूरा सा प्रतीत होता है।
हिंदी साहित्य के महान उच्च कोटि के साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी में वैज्ञानिक दृष्टि के,समालोचना का प्रारंभ करने वाले ,अद्भुत सम आलोचक ,उच्च कोटी के निबंध कार, भावुक कवि का जो स्थान हिंदी गद्य साहित्य में उन्हें प्राप्त है शायद किसी को प्राप्त हुआ होगा।आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के कार्य क्षेत्र
शुक्ल जी हिंदी साहित्य के इतिहास के बाद यद्यपि कई विद्वानों हिंदीका इतिहास लिखा किंतु उन्हें कोई भी चुनती में दे सका ।
एक और शुक्ल जी महान आलोचक के दूसरी ओर अत्यंत भावुक व संवेदनशील कवि ।
इन दोनों प्रतिभाओं का सामंजस्य से उनके व्यक्तित्व को परिपूर्ण बनाता है।
यही कारण है कि गंभीर विश्व पर भी लिखे गए निबंध में समरता कई स्थानों पर आनंद के दर्शन करा देती है।
वे बीच-बीच में रोचक प्रसंग ,मुहावरे अथवा लोकोक्तियों प्रयोग करके गंभीर विषय को भी सरल और रोचक बना देते थे ।
शुक्ल जी की निबंध में कहीं न कहीं रसगुल्ले का जिक्र जरुर आता था ऐसा लगता है जैसे शुक्ला जी को सफेद रसगुल्ले बहुत पसंद थे।
शुक्ला जी की भाषा हर प्रकार के भाव के प्रतिपादन में सक्षम दिखाई देती है ।ऐसा ही वे कितनी सूक्ष्म एंव जटिल हो।
उनका शब्द प्रभाव अनुकूल एवं वाक्य विन्यास अत्यंत व्यवस्थित है ।
शुक्ल जी की विशेषता है कि उन्होंने भाषा का आडंबर अपनी रचनाओं में कहीं नहीं किया है ।
इसलिए उनकी भाषाएं सरस ,सुंदर और कहीं भाव स्पष्ट तान विफलता दिखाई नहीं देती है।
शुक्ल जी की रचनाओं में उनके विचार पूर्णता श्रंखलाबद्ध होने की वजह उतार-चढ़ाव के साथ भाषा भीदिखाई दी है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का कृतित्व
निष्कर्ष
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की उपलब्धियां अत्यंत सुंदर उनके विचार अनुकरणीय हिंदी साहित्य के लिए वरदान साबित होगा।
हिंदी साहित्य का यह मूल सितारा 1941 उनमें संसार से विदा हो गया ।अपनी कमाई उन्होंने साहित्य को जो प्रदान की है ।उसे हिंदी साहित्य जगत उन्हें कभी नहीं भूलेगा ,नाही कभी अनदेखी कर पाएगा ।यदि निबंध और आलोचना लिखे जाएंगे रामचंद्र शुक्ल की विद्वता को ही निश्चय ही आधार माना जाएगा। आधुनिक हिंदी साहित्य के जन्मदाता ,दिवेदी युग के संस्थापक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उनको साहित्य संस्कार दिया था। उन्होंने साहित्य की जिस विधान में भी कुछ भी लिखा है अत्यंत सुंदर हे ै।हिंदी साहित्य जगत उन्हीं सदैव याद रखेगा ।उनका हिंदी साहित्य में योगदान अमूल्अविस्मरणीय व सराहनीय है।
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