5955758281021487 Hindi sahitya : चिंता सर्ग
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सोमवार, 17 नवंबर 2025

जयशंकर प्रसाद की कामायनी महाकाव्य का चिंता सर्ग

जयशंकर प्रसाद एवं कामायनी : परिचय, सर्ग-संरचना, तथा चिंता-सर्ग की व्याख्या एवं दार्शनिक पक्ष
जयशंकर प्रसाद छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। वे उच्चकोटि के कवि, नाटककार, कहानीकार और विचारक थे। उनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ, भावपूर्ण और दार्शनिक गहराइयों से युक्त है। प्रसाद के काव्य में भारतीय संस्कृति, मानवतावाद, प्रकृति-दर्शन और मनोवैज्ञानिक सूक्ष्मता का अद्वितीय समन्वय मिलता है।

उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति “कामायनी” आधुनिक हिंदी साहित्य का अद्वितीय महाकाव्य है। इसमें उन्होंने मनु, श्रद्धा और इड़ा के माध्यम से मानव-जीवन की मानसिक–भावनात्मक यात्रा को दार्शनिक रूप में व्यक्त किया है। कामायनी कुल 15 सर्गों में विभाजित है। इनमें

पहला सर्ग — चिंता,
अंतिम सर्ग — आनंद,
और इनके मध्य श्रद्धा, काम, आशा, स्मृति, इड़ा आदि प्रमुख सर्ग अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
पूरी कृति मानव-मन के विकास—चिंता से आनंद—की यात्रा को प्रतीकात्मक रूप में दिखाती है।


 चिंता-सर्ग : सार, भाव और कथानक

चिंता-सर्ग में मनु का चित्रण अकेले, व्याकुल और अस्तित्व-संकट से जूझते हुए मानव के रूप में किया गया है। जलप्लावन के बाद मनु हिमालय की चोटी पर बैठे हुए हैं। नीचे की ओर फैले जलराशि में उनके परिवार और मित्र विनष्ट हो चुके हैं। प्रकृति का रौद्र रूप, समुद्री उछाल, पर्वतीय निस्तब्धता और आकाश की उदासी—सब मनु के आंतरिक भय और चिंता को और तीव्र करते हैं।

कवि ने मनु के शरीर, स्वास्थ्य और उनकी भीगी आँखों का वर्णन बहुत ही स्वाभाविक ढंग से किया है। जलप्लावन के दृश्य का वर्णन एक साथ काल्पनिक भी है और यथार्थवादी भी—कल्पना का ऐसा जीवन्त प्रयोग हिंदी साहित्य में दुर्लभ है।

कवि के अनुसार जलप्लावन का कारण देवताओं का अहंकार, भोग-विलास, प्रकृति-नियमों की अवहेलना और देव-सृष्टि की अकर्मण्यता थी। मनु को लगता है कि प्रकृति एक अपराजेय शक्ति है—वह अपनी मर्यादा का उल्लंघन सहन नहीं करती।


 चिंता के मनोवैज्ञानिक पक्ष

प्रसाद ने चिंता को मानव-मन का स्वाभाविक और अनिवार्य भाव बताया है।
चिंता के अनेक रूप—बुद्धिमती, मनीषा, प्रतिभा, आशा—इन सब नामों के माध्यम से कवि ने बताया कि चिंता मन की अलग-अलग अवस्थाओं का प्रतीक है।
मनु का व्याकुल मन बताता है कि—
चिंता विनाश का परिणाम नहीं है,
बल्कि मानव-उत्कर्ष की शुरुआत है।
चिंता मनुष्य को आत्मजागरण और आंतरिक खोज की दिशा में प्रेरित करती है।


चिंता-सर्ग का दार्शनिक पक्ष

1. आनंदवाद
प्रसाद का जीवन-दर्शन “आनंद” पर आधारित है।
चिंता उनके लिए नकारात्मक भाव नहीं, बल्कि आनंद तक पहुँचने का मार्ग है।
इसीलिए कृति का पहला सर्ग चिंता और अंतिम आनंद है।

2. समन्वयवादी दृष्टि
प्रसाद बुद्धि, भावना और कर्म—तीनों के समन्वय को पूर्ण मानव का आधार मानते हैं।
कामायनी के तीन मुख्य प्रतीक—
मनु (बुद्धि)
श्रद्धा (भावना)
इड़ा (कर्म-विवेक)
जीवन के तीन स्तंभ हैं।

3. प्रकृति-दर्शन

प्रकृति को उन्होंने सर्वोच्च और अपराजित शक्ति माना है।
जलप्लावन इस बात का संकेत है कि प्रकृति अपने नियमों का उल्लंघन सहन नहीं करती और अहंकारी देवताओं को दंड देती है।
4. मानवतावाद
मनु अकेला मानव है—वह पूरी मानवता का प्रतीक है।
उसका भय, अकेलापन, संघर्ष और आत्ममंथन मानव-जीवन की वास्तविक यात्रा है।
5. कर्मवाद
कर्महीनता और भोग-विलास विनाश का कारण बनते हैं।
मनु की चिंता आगे चलकर उन्हें पुनर्निर्माण और नए जीवन की ओर ले जाती है।
इस प्रकार प्रसाद कर्म, विवेक और निस्वार्थ परिश्रम को जीवन का आधार मानते हैं।

 समग्र निष्कर्ष

चिंता-सर्ग सम्पूर्ण कामायनी का आधार है। इसमें—

विनाश,
प्रकृति का रौद्र रूप,
मनु की मनःस्थिति,
चिंता की दार्शनिक व्याख्या,
और मानव-जीवन की पुनर्निर्माण यात्रा—
इन सबका अत्यंत सजीव और गहन वर्णन है।
कवि का संदेश स्पष्ट है—
“चिंता केवल परेशानी नहीं, मनुष्य को जागृत करने वाली शक्ति है। बुद्धि, भावना और कर्म का संतुलन ही आनंदमय जीवन का मार्ग है।”