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सोमवार, 4 मई 2020

गैंग्रीन कहानी

गैंग्रीन कहानी अज्ञेय द्वारा रचित
गैंग्रीन कहानी एक बहु चर्चित कहानी है इसमें कहानीकार ने मालती के माध्यम से मध्यमवर्गीय नारी की व्यथा का मार्मिक चित्रण किया है ।
कहानी का सार इस प्रकार से है।
कहानी के पहले भाग में मालती के द्वारा अपने रिश्ते के भाई के औपचारिक स्वागत का उल्लेख है जिसमें कोई उत्साह नहीं बल्कि कर्तव्य पालन की औपचारिकता अधिक है अतिथि कुशलक्षेम तक नहीं पूछती ।
उसके प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देती है ।लगता है शादी के 2 वर्षों में ही बचपन की चंचल बातूनी लड़की का व्यक्तित्व बुझ सा गया है।
 कहानी के दूसरे भाग में मालती की अंतर्द्वंद ग्रस्त स्थिति के बचपन की स्मृतियों में खोने से एक ऐसी स्थिति , शारीरिक जड़ताऔर है थकान का कुशल अंकन हुआ है ।
साथ ही उसके पति के यांत्रिक जीवन, सब्जी पानी ,नौकर आदि के अभाव का भी उल्लेख हुआ है ।
कहानी के तीसरे भाग में महेश्वर की यांत्रिक दिनचर्या अस्पताल के एक जैसे ढर् े पता चलता है ।
कहानी का अंत 11:00 बजे की घंटा ध्वनि से होता है ।कहानी में घंटा ध्वनि का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है।
 इस प्रकार इस कहानी का कथा नायक वस्तुतः एक घर के 1 दिन कर्म का ब्योरा है एक विशाल कहानी को अपने अंदर छिपाए हुए हैं कहानी कथानक पर निर्भर होती है।
 गैंग्रीन कहानी का कथानक है बल्कि कहना चाहिए कि यह मालती की 1 दिन की दिनचर्याआधारित है कथानक पूरी तरह कल्पित है एवं आधुनिक जीवन की आपाधापी और यांत्रिक का पर प्रकाश डालता है कहानी में कुल 4 पात्र हैं मालती उसका पति महेश्वर उसका बेटा टीटी तथा लेखक इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गैंग्रीन कहानी एक उत्कृष्ट कहानी है जो आज की निराशा भरी जिंदगी एक ग्रहणी की मनोज बंद की कहानी है।https://youtu.be/m4RLXBfj1Ko

रविवार, 3 मई 2020

हिंदी साहित्य में उपयोगी पुस्तकें

हिंदी साहित्य में उपयोगी पुस्तकों की एक विषय सूची
हिंदी साहित्य में उपयोगी पुस्तकें
नेट जेआरएफ निकालने के लिए हिंदी साहित्य में उपयोगी पुस्तकें
पीजीटी टीजीटी हिंदी के लिए उपयोगी पुस्तकें
वस्तुनिष्ठ हिंदी साहित्य
प्रतियोगी परीक्षाओं में उपयोगी हिंदी साहित्य की पुस्तक
हिंदी से संबंधित पुस्तकें
हिंदी साहित्य से संबंधित पुस्तकें
हिंदी साहित्य से संबंधित क्लास नोट्स
हिंदी साहित्य से संबंधित क्लास नोट्स और पीडीएफ
आज प्रतियोगी परीक्षाओं का दौर है आज के समय में उचित पुस्तकों का चयन भी एक अनिवार्य विषय है इस चयन में मैं आपकी सहायता करना चाहती हूं। कुछ पुस्तकों की सूची निम्नलिखित है जो आप सबके लिए एक रामबाण दवा का काम करेगी।
1.हिंदी साहित्य का इतिहास -आचार्य रामचंद्र शुक्ल
2. हिंदी साहित्य का आदिकाल -आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
3. हिंदी साहित्य का सरल इतिहास -विश्वनाथ त्रिपाठी
4. हिंदी साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास- डॉक्टर पूर्णचंद्र चंदन
5. हिंदी साहित्य का वस्तुनिष्ठ इतिहास- डॉ कुसुम
6. हिंदी साहित्य का इतिहास- डॉ नगेंद्र
7. हिंदी साहित्य का गद्य इतिहास -डॉ रामचंद्र तिवारी
8. हिंदी साहित्य का पाश्चात्य चिंतन -डॉ निर्मला
9. पाश्चात्य साहित्य शास्त्र -डॉक्टर मदनकुछ अन्य पुस्तकें
हिंदी शब्द अर्थ प्रयोग- हरदेव बिहारी

अरिहंत पब्लिकेशन -लेखक करनैल सिंह
प्रतियोगिता साहित्य सीरीज -अशोक तिवारी
किरण प्रकाशन की बुक्स
इग्नू के हिंदी साहित्य के नोट्स
हिंदी साहित्य से संबंधित युटुब चैनल्स
ab kese
Blog
Sumansharmablogspot.blogger .com
डॉक्टर विवेक शंकर जीीी की प्रसिद्ध
गद्य साहित्य
हिंदी साहित्य
हिंदी काव्य
भारतीय एवं पाश्चात्य काव्यशास्त्र
हिंदीीीीी की
हिंदी की कालजयी कहानियां
जो नेट के सिलेबस के अनुसार 21 कहानियां दी गई है उन सभी कहानियों का वर्णन इस पुस्तक के अंदर है।
हिंदीी साहित्य समग्र दृष्टि
2020 नेट परीक्षा के अनुसार डॉ विवेक शंकर की पुस्तकें बहुत ही उपयोगी हैं इनकी सीरीज है जो नेट के पूरे सिलेबस को कवर करती हैं बहुत सारे विद्यार्थी इन पुस्तकों से लाभान्वित हो चुके हैं।
उम्मीद करती हूं कि यह सभी पुस्तकें आपको नहीं उपलब्धियां दिलाने में कामयाब सिद्ध होंगी।
धन्यवाद।

पत्रकारिता अर्थ, परिभाषा ,स्वरूप प्रकार

पत्रकारिता क्या है?
 पत्रकारिता का अर्थ स्पष्ट करें।
पत्रकारिता के स्वरूप व क्षेत्र का विस्तृत वर्णन करें।
पत्रकारिता के विभिन्न प्रकारों पर विचार करें।
पत्रकारिता क्या है इस को परिभाषित करें।
इन सभी प्रश्नों के उत्तर आ जाए एक ही जगह प्राप्त होंगे।

पत्रकारिता – अर्थ एवं परिभाषा

पत्रकारिता समाज में चलने वाली गतिविधियों एवं हलचलों का दर्पण होता है । वह हमारे परिवेश में घट रही प्रत्येक सूचना को हम तक पहुंचाती है । देश-दुनिया में हो रहे नए प्रयोगों, कार्यों को हमें बताती है । इसी कारण विद्वानों ने पत्रकारिता को शीघ्रता में लिखा गया इतिहास भी कहा है । वस्तुतः आज की पत्रकारिता सूचनाओं और समाचारों का संकलन मात्र न होकर मानव जीवन के व्यापक परिदृश्य को अपने आप में समाहित किए हुए है । यह शाश्वत नैतिक मूल्यों, सांस्कृतिक मूल्यों को समसामयिक घटनाचक्र की कसौटी पर कसने का साधन बन गई है । वास्तव में पत्रकारिता जन-भावना की अभिव्यक्ति, सद्भावों की अनुभूति और नैतिकता की पीठिका है ।
शायद इसी के चलते इन्द्रविद्यावचस्पति पत्रकारिता को ‘पांचवां वेद’ मानते हैं । वे कहते हैं – “पत्रकारिता पांचवां वेद है, जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना बंद मस्तिष्क खोलते हैं ।”

 आज पत्रकारिता जन-जन तक पहुंच रही है । यह आज हमारे समाज-जीवन में आज एक अनिवार्य अंग के रूपमें स्वीकार्य है । उसकी प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता किसी अन्य व्यवसाय से ज्यादा है । शायद इसीलिए इस कार्य को कठिनतम कार्य माना गया । इस कार्य की चुनौती का अहसास प्रख्यात शायर अकबर इलाहाबादी को था, 
तभी वे लिखते हैं –
“खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो”
पारिभाषिक शब्दावलीी का पत्रकारिताा में अहम रोल होताा है क्योंकि पत्रकारिताा की अनेक क्षेत्र्र्र होते इन क्षेत्रों में पारिभाषिक शब्दों्दों बहुत अधिक प्रयोग होताा है का हैंैंैंैंैंैंैंै


पत्रकारिता का अर्थ –
पत्रकारिता शब्द अंग्रेजी के ‘जर्नलिज्म’ का हिन्दी रूपांतर है। शब्दार्थ की दृष्टि से ‘जर्नलिज्म’ शब्द ‘जर्नल’ से निर्मित है और इसका अर्थ है ‘दैनिकी’, ‘रोजनामचा’ अर्थात जिसमें दैनिक कार्यों का विवरण हो। पत्रकारिता आधुनिक सभ्यता का एक प्रमुख व्यवसाय है जिसमें समाचारों का एकत्रीकरण, लिखना, जानकारी एकत्रित करके पहुँचाना, उनको सम्पादित करना और सम्यक प्रस्तुतीकरण करना आदि सम्मिलित हैं। आज के युग में पत्रकारिता के भी अनेक माध्यम हो गये हैं; जैसे - अखबार, पत्रिकायें, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता, सोशल मीडिया, इंटरनेट आदि ।

पत्रकारिता की परिभाषाएं –

डॉ. अर्जुन तिवारी कहते हैं – “गीता में जगह-जगह पर शुभ-दृष्टि का प्रयोग है। यह शुभ-दृष्टि ही पत्रकारिता है । जिसमें गुणों को परखना तथा मंगलकारी तत्वों को प्रकाश में लाना सम्मिलित है । गांधीजी तो इसमें समदृष्टि को महत्व देते रहे । समाजहित में सम्यक प्रकाशन को पत्रकारिता कहा जा सकता है । असत्य, अशिव एवं असुंदर के खिलाफ ‘सत्यं शिवं सुन्दरम’ की शंखध्वनि ही पत्रकारिता है ।” इन सन्दर्भों के आलोक में विद्वानों की राय में पत्रकारिता की परिभाषाएं निम्न हैं –

1. सामयिक ज्ञान के व्यवसाय को पत्रकारिता कहते हैं। इस व्यवसाय में आवश्यक तथ्यों की प्राप्ति, सजगतापूर्वक उनका मूल्यांकन तथा सम्यक्‌ प्रस्तुति होती है। 
- सी.जी.मूलर
2. कला, वृति और जन-सेवा ही पत्रकारिता है।
- डब्ल्यू.टी. स्टीड
3. प्रकाशन, सम्पादन, लेखन अथवा प्रसारण सहितसमाचार माध्यम के संचालन के व्यवसाय को पत्रकारिता कहते हैं। 
- न्यू वेवस्टर शब्दकोश

4. “पत्रकार का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।”10
– हिन्दी शब्द सागर

“पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, सम्पादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है ।”
– डॉ.बद्रीनाथ कपूर

“पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारों को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए । पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परम्पराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है ।”



पत्रकारिता के प्रकार


संसार में पत्रकारिता का इतिहास बहुत पुराना नहीं है लेकिन इक्किसवीं शताब्दी में यह एक ऐसा सशक्त विषय के रूप में उभरा है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। आज इसका क्षेत्र बहुत व्यापक हो चुका है और विविधता भी लिए हुए है। शायद ही कोर्इ क्षेत्र बचा हो जिसमें पत्रकारिता की उपादेयता को सिद्ध न किया जा सके। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आधुनिक युग में जितने भी क्षेत्र हैं सबके सब पत्रकारिता के भी क्षेत्र हैं, चाहे वह राजनीति हो या न्यायालय या कार्यालय, विज्ञान हो या प्रौद्योगिकी हो या शिक्षा, साहित्य हो या संस्‟ति या खेल हो या अपराध, विकास हो या कृषि या गांव, महिला हो या बाल या समाज, पर्यावरण हो या अंतरिक्ष या खोज। इन सभी क्षेत्रों में पत्रकारिता की महत्ता एवं उपादेयता को सहज ही महसूस किया जा सकता है। दूसरी बात यह कि लोकतंत्र में इसे चौथा स्तंभ कहा जाता है। ऐसे में इसकी पहुंच हर क्षेत्र में हो जाता है। इस बहु आयामी पत्रकारिता के कितने प्रकार हैं उस पर विस्तृत रूप से चर्चा की जा रही है।

राजनैतिक पत्रकारिता

समाचार पत्रों में सबसे अधिक पढ़े जानेवाले आरै चैनलों पर सर्वाधिक देखे सुने जानेवाले समाचार राजनीति से जुड़े होते हैं। राजनीति की उठा पटक, लटके झटके, आरोप प्रत्यारोप, रोचक रोमांचक, झूठ-सच, आना जाना आदि से जुड़े समाचार सुर्खियों में होते हैं। राजनीति से जुड़े समाचारों का परूा का पूरा बाजार विकसित हो चुका है। राजनीतिक समाचारों के बाजार में समाचार पत्र और समाचार चौनल अपने उपभेक्ताओं को रिझाने के लिए नित नये प्रयोग करते नजर आ रहे हैं। चुनाव के मौसम में तो प्रयोगों की झडी लग जाती है और हर कोर्इ एक दूसरे को पछाड़कर आगे निकल जाने की होड़ में शामिल हो जाता है। राजनीतिक समाचारों की प्रस्तुति में पहले से अधिक बेबाकी आयी है। लोकतंत्र की दुहार्इ के साथ जीवन के लगभग हर क्षेत्र में राजनीति की दखल बढ़ा है और इस कारण राजनीतिक समाचारों की भी संख्या बढ़ी है। एसेे में इन समाचारों को नजरअंदाज कर जाना संभव नहीं है। राजनीतिक समाचारों की आकर्षक प्रस्तुति लोकप्रिया हासिल करने का बहुत बड़ा साधन बन चुकी है।

अपराध पत्रकारिता

राजनीतिक समाचार के बाद अपराध समाचार ही महत्वपूर्ण होते हैं। बहुत से पाठकों व दशर्कों को अपराध समाचार जानने की भूख होती है। इसी भूख को शांत करने के लिए ही समाचारपत्रों व चौनलों में अपराध डायरी, सनसनी, वारदात, क्राइम फाइल जैसे समाचार कार्यक्रम प्रकाशित एवं प्रसारित किए जा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार किसी समाचार पत्र में लगभग पैंतीस प्रतिशत समाचार अपराध से जुड़े हातेे हैं। इसी से अपराध पत्रकारिता को बल मिला है। दूसरी बात यह कि अपराधिक घटनाओं का सीधा संबंध व्यक्ति, समाज, संप्रदाय, धर्म और देश से हातेा है। अपराधिक घटनाओं का प्रभाव व्यापक हातेा है। यही कारण है कि समाचार संगठन बड़े पाठक दर्शक वर्ग का ख्याल रखते हुए इस पर विशेष फोकस करते हैं।

खोजी पत्रकारिता

खोजी पत्रकारिता वह है जिसमें आमतौर पर सार्वजनिक महत्व के मामले जैसे भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियांे की गहरार्इ से छानबीन कर सामने लाने की कोशिश की जाती है। स्टिंग ऑपरेशन खोजी पत्रकारिता का ही एक नया रूप है। खोजपरक पत्रकारिता भारत में अभी भी अपने शैशवकाल में है। इस तरह की पत्रकारिता में ऐसे तथ्य जुटाकर सामने लाए जाते हैं, जिन्हें आमतौर पर सार्वजनिक नहीं किया जाता। लेकिन एक वर्ग यह मानता है कि खोजपरक पत्रकारिता कुछ है ही नहीं क्योंिक कोर्इ भी समाचार खोजी „ष्टि के बिना लिखा ही नहीं जा सकता है। लोकतंत्र में जब जरूरत से ज्यादा गोपनीयता बरती जाने लगे और भ्रष्टाचार चरम पर हो तो खोजी पत्रकारिता ही उसे सामने लाने का एकमात्र विकल्प होती है। खोजी पत्रकारिता से जुड़ी पुरानी घटनाओं पर नजर ड़ालें तो मार्इ लार्ड कांड, वाटरगेट कांड़, एंडर्सन का पेंटागन पेपर्स जैसे अंतराष्ट्रीय कांड तथा सीमेटं घोटाला कांड़, बोफर्स कांड, ताबूत घोटाला कांड जैसे राष्ट्रीय घोटाले खोजी पत्रकारिता के चर्चित उदाहरण हैं। संचार क्रांति, इंटरनेट या सूचना अधिकार जैसे प्रभावशाली अस्त्र अस्तित्व में आने के बाद तो घोटाले उजागर होने का जैसे दौर शुरू हो गया। इसका नतीजा है कि पिछले दिनांे 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, क मनवेल्थ गेम्स घोटाला, आदर्श घोटाला आदि उल्लेखनीय हैं। समाज की भलार्इ के लिए खोजी पत्रकारिता अवश्य एक अंग है लेकिन इसे भी अपनी मर्यादा के घेरे में रहना चाहिए।

वाचडाग पत्रकारिता

लोकतंत्र में पत्रकारिता को चौथा स्तंभ माना गया है। इस लिहाज से इसका मुख्य कार्य सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोर्इ गड़बड़ी हो तो उसका पर्दाफाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वाचडाग पत्रकारिता कहा जा सकता है। दूसरी आरे सरकारी सूत्रों पर आधारित पत्रकारिता है। इसके तहत मीडिया केवल वही समाचार देता है जो सरकार चाहती है और अपने आलोचनापरक पक्ष का परित्याग कर देता है। इन दाे बिंदुओ के बीच तालमेल के जरिए ही मीडिया और इसके तहत काम करनेवाले विभिन्न समाचार संगठनों की पत्रकारिता का निर्धारण होता है।

एडवोकेसी पत्रकारिता

एडवोकेसी यानि पैरवी करना। किसी खास मुद्दे या विचारधारा के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार अभियान चलानेवाली पत्रकारिता को एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है। मीडिया व्यवस्था का ही एक अंग है। और व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाकर चलनेवाले मीडिया को मुख्यधारा मीडिया कहा जाता है। दूसरी ओर कुछ ऐसे वैकल्पिक सोच रखनेवाला मीडिया होते हैं जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य की पूर्ति के लिए निकाले जाते हैं। इस तरह की पत्रकारिता को एडवोकेसी (पैरवी) पत्रकारिता कहा जाता है। जैसे राष्ट्रीय विचारधारा, धार्मिक विचारधारा से जुड़े पत्र पत्रिकाएँ।

पीत पत्रकारिता

पाठकों को लुभाने के लिए झूठी अफवाहों, आरोपों प्रत्यारोपों प्रमे संबंधों आदि से संबंधित सनसनीखेज समाचारों से संबंधित पत्रकारिता को पीत पत्रकारिता कहा जाता है। इसमें सही समाचारों की उपेक्षा करके सनीसनी फैलानेवाले समाचार या ध्यान खींचनेवाला शीर्षकों का बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। इसे समाचार पत्रों की बिक्री बढ़ाने, इलेक्ट्रि निक मीडिया की टीआरपी बढ़ाने का घटिया तरीका माना जाता है। इसमें किसी समाचार खासकर एसेे सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति द्वारा किया गया कुछ आपत्तिजनक कार्य, घोटाले आदि को बढ़ाचढ़ाकर सनसनी बनाया जाता है। इसके अलावा पत्रकार द्वारा अव्यवसायिक तरीके अपनाए जाते हैं।

पेज थ्री पत्रकारिता

पजे थ्री पत्रकारिता उसे कहते हैं जिसमें फैशन, अमीरों की पार्टियों महिलाओं और जानेमाने लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है।

खेल पत्रकारिता

खेल से जुड़ी पत्रकारिता को खेल पत्रकारिता कहा जाता है। खेल आधुनिक हों या प्राचीन खेलों में हानेेवाले अद्भूत कारनामों को जग जाहिर करने तथा उसका व्यापक प्रचार-प्रसार करने में खेल पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज परूी दुनिया में खेल यदि लोकप्रियता के शिखर पर है तो उसका काफी कुछ श्रेय खेल पत्रकारिता को भी जाता है। खेल केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि अच्छे स्वास्थ्य, शारीरिक दमखम और बौद्धिक क्षमता का भी प्रतीक है। यही कारण है कि पूरी दुनिया में अति प्राचीनकाल से खलेों का प्रचलन रहा है। आज आधुनिक काल में पुराने खेलों के अलावा इनसे मिलते जुलते खेलों तथा अन्य आधुनिक स्पर्धात्मक खलेों ने परूी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम कर रखा है। आज स्थिति यह है कि समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं के अलावा किसी भी इलेक्ट्रनिक मीडिया का स्वरूप भी तब तक परिपूर्ण नहीं माना जाता जब तक उसमें खेल का भरपूर कवरेज नहीं हो। दूसरी बात यह है कि आज भारत ही नहीं पूरी दुनिया में आबादी का एक बड़ा हिस्सा युवा वर्ग का है जिसकी पहली पसंद विभिन्न खले स्पर्धाएं हैं। शायद यही कारण है कि पत्र-पत्रिकाओं में अगर सबसे अधिक कोर्इ पन्न पढ़े जाते हैं तो वह खेल से संबेधित होते हैं। प्रिंट मीडिया के अलावा टीवी चानै लों का भी एक बड़ा हिस्सा खले प्रसारण से जुड़ा हातेा है। दूसरी आरे कुछ खेल चैनल हैं जो चौबीसों घंटे कोर्इ न कोर्इ खले लेकर हाजिर ही रहते हैं। पाठकों और दर्शकों की खले के प्रति दीवानगी का ही नतीजा है कि आज खेल की दुनिया में अकूत धन बरस रहा है। आज धन चाहे विज्ञापन के रूप में हो चाहे पुरस्कार राशि के रूप में न लुटानेवालो ं की कमी है आरै पानेवालों की। खलेों में धन वर्षा का प्रारंभ कर्पोरेट जगत के इसमें प्रवश्े ा से हुआ। खलेों में धन की बरसात में कोर्इ बुराइर् नहीं है लेकिन उसका बदसूरत पहलू भी है। खलेों में गलाकाट स्पर्धा के कारण इसमें फिक्सिंग और डोपिगं जैसी बुराइयों का प्रचलन भी बढ़ने लगा है। फिक्सिंग और डोपिगं जैसी बरुाइयां न खिलाड़ियांे के हित में है और न खलेों के। खले पत्रकारिता की यह जिम्मदेारी है कि वह खलेों में पनप रही उन बुराइयों के खिलाफ लगातार आवाज उठाती रहे। खेल पत्रकारिता से यह अपेक्षा की जाती है कि खेल में खेल भावना की रक्षा हर कीमत पर होनी चाहिए। खेल पत्रकारिता से यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि आम लोगों से जुड़े खलेों को भी उतना ही महत्व और प्रोत्साहन मिले जितना अन्य लोकप्रिय खलेों को मिल रहा है।

महिला पत्रकारिता

महिला परुु“ा समानता के इस दौर में महिलाएं अब घर की दहलीज लांघ कर बाहर आ चुकी है। प्राय: हर क्षेत्र में महिलाओं की उपस्थिति और भागिदारी नजर आ रही है। ऐसे में पत्रकारिता के क्षेत्र में महिलाओं की भागिदारी भी देखी जाने लगी है। दूसरी बात यह है कि शिक्षा ने महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाया है। अब महिलाएं भी अपने करियर के प्रति सचेत हैं। महिला जागरण के साथ साथ महिलाओं के प्रति अत्याचार और अपराध के मामले भी बढ़े हैं। महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे कानून बने हैं। महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा दिलाने में महिला पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। आज महिला पत्रकारिता की अलग से जरूरत ही इसलिए है कि उसमें महिलाओं से जुड़े हर पहलू पर गौर किया जाए और महिलाओं के सवार्ंगीण विकास में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके।
वर्तमान दौर में राजनीति, प्रशासन, सेना, शिक्षण, चिकित्सा, विज्ञान, तकनीकी, उद्योग, व्यापार, समाजसेवा आदि सभी क्षेत्रों में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा और दक्षता के बलबतू अपनी राह खुद बनार्इ है। कर्इ क्षेत्रों में तो कड़ी स्पर्धा और चुनौती के बावजूद महिलाओं ने अपना शीर्ष मुकाम बनाया है। विकास के निरंतर तेज गति से बदलते दारै ने महिलाओं को प्रगति का समान अवसर प्रदान किया लेकिन पुरुषों की तुलना में अपनी प्रतिभा आरै लगन के बलबतू पर समाज के हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोडऩे का जो सिलसिला शुरू किया है वह लगातार जारी है। इसका उदाहरण भारत की इंदिरा नूर्इ, नैना किदवार्इ, चंदा कोचर, नंदिनी भट्टाचार्य, साक्षी मलिक, पीवी सिंधु आदि के रूप में देखा जा सकता है। आज के दौर में कोर्इ भी ऐसा क्षेत्र नहीं जहां महिलाओं की उपस्थिति महसूस नहीं की जा रही हो। ऐसे में पत्रकारिता भी कहां पिछे रहेगी। मृणाल पांडे, विमला पाटील, बरखा दत्त, सीमा मुस्तफा, तवलीन सिंह, मीनल बहोल, सत्य शरण, दीना वकील, सुनीता ऐरन, कुमुद संघवी चावरे, स्वेता सिंह, पूर्णिमा मिश्रा, मीमांसा मल्लिक, अंजना ओम कश्यप, नेहा बाथम, मिनाक्षी कंडवाल आदि महिला पत्रकारों के आने से देश के हर लड़की को अपने जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिल रही है।
महिला पत्रकारिता की सार्थकता महिला सशक्तिकरण से जुड़ी है, क्योंकि नारी स्वातंत्र्य और समानता के इस युग में भी आधी दुनिया से जुड़ ऐसे अनेक पहलू हैं जिनके महत्व को देखते हुए महिला पत्रकारिता की अलग विधा की जरूरत महसूस की जा रही है।

बाल पत्रकारिता

एक समय था जब बच्चों को परीकथाओं, लोककथाओं पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक कथाओं के माध्यम से बहलाने फुसलाने के साथ साथ उनका ज्ञानवर्धन किया जाता था। इन कथाओं का बच्चों के चारित्रिक विकास पर भी गहरा प्रभाव होता था। लेकिन आज संचार क्रांति के इस युग में बच्चों के लिए सूचनातंत्र काफी विस्तृत और अनंत हो गया है। कंप्यूटर और इंटरनेट तक पहुंच ने उनके बाल मन स्वभाव के अनुसार जिज्ञासा को असीमित बना दिया है। ऐसे में इस बात की आशंका और गुंजाइश बनी रहती है कि बच्चों तक वे सूचनाएं भी पहुंच सकती है जिससे उनके बालमन के भटकाव या वि‟ ती भी संभव है। एसे ी स्थिति में बाल पत्रकारिता की सार्थक सोच बच्चों को सही दिशा की आरे अग्रसर कर सकती है। क्योंिक बाल मन स्वभावतरू जिज्ञासु आरै सरल हाते ा है। जीवन की यह वह अवस्था है जिसमें बच्चा अपने माता पिता, शिक्षक और चारों तरफ के परिवेश से ही सीखता है। बच्चे पर किसी भी घटना या सूचना की अमिट छाप पड़ती है। बच्चे के आसपास का परिवेश उसके व्यक्तित्व निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एसेे में उसे सही दिशा दिखाना का काम पत्रकारिता ही कर सकता है। इसलिए बाल पत्रकारिता की महसूस की जाती है।

आर्थिक पत्रकारिता

आर्थिक पत्रकारिता में व्यक्तियों संस्थानांे राज्यों या देशों के बीच हानेेवाले आर्थिक या व्यापारिक संबंध के गुण-दोषों की समीक्षा और विवेचन की जाती है। जिस प्रकार आमतौर पर पत्रकारिता का उद्देश्य किसी भी व्यवस्था के गुण दोषों को व्यापक आधार पर प्रचारित प्रसारित करना है ठीक उसी तरह आर्थिक पत्रकारिता अर्थ व्यवस्था के हर पहलू पर सूक्ष्म नजर रखते हुए उसका विश्लष्ेाण कर समाज पर पड़नेवाले उसके प्रभावों का प्रचार प्रसार करना होना चाहिए। दूसरी बात यह भी है कि आर्थिक पत्रकारिता को आर्थिक व्यवस्था और उपभेक्ता के बीच सेतू की भूमिका निभानी पड़ती है।
आर्थिक उदारीकरण आरै विभिन्न देशों के बीच आपसी व्यापारिक संबंधों ने पूरी दुनिया के आर्थिक परि„श्य को बहुत ही व्यापक बना दिया है। आज किसी भी देश की अर्थ व्यवस्था बहुत कुछ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर निर्भर हो गर्इ है। दुनिया के किसी कोने में मची आर्थिक हलचल या उथल पुथल अन्य देशों की अर्थ व्यवस्था को प्रभावित करने लगी है। सोने और चादंी जैसी बहुमूल्य धातुओं कच्चे तेल, यूरो, ड लर, पांड, येन जैसी मुद्राओं की कीमतों में उतार चढ़ाव का प्रभाव पूरी दुनिया पड़ने लगी है। कहने का मतलब यह है कि हर देश अपनी अर्थ व्यवस्थाओं के स्वयं नियामक एवं नियंत्रक हों लेकिन विश्व के आर्थिक हलचलों से अछूते नहीं हैं। पूरा विश्व एक बड़ा बाजार बन गया है। इसलिए उसकी गतिविधियों से देश की अर्थ व्यवस्था निर्धारित होने लगी है। ऐसे में पत्रकारिता एक प्रमुख भूमिका निर्वाह कर रही है। उस पर एक बड़ी जिम्मेदारी है कि विश्व की अर्थ व्यवस्था को प्रभावित करनेवाले विभिन्न कारकों का निरंतर विश्लष्ेाण करने के साथ साथ उसके गुण दोषों के आधार पर एहतियाती उपायों की चर्चा करे। इसमें लेकिन विश्व का आर्थिक परिवेश को जानने समझने की एक बड़ी चुनौती होती है। इयके अलावा कर चोरी, कालाधन और जाली नोट की समस्या को उजागर करना भी एक चुनौती होती है। विकसित और विकासशील देशों में कालाधन सबसे बड़ी चुनौती है। कालाधन भ्रष्टाचार से उपजता है और भ्रष्टाचार को ही बढ़ावा देता है। भ्रष्टाचार देश के विकास में बाधक बनती है। इसलिए आर्थिक पत्रकारिता की जिम्मेदारी है कि कालाधन आरै आर्थिक अपराधों को उजागर करनेवाली खबरों का व्यापक प्रचार प्रसार करे। दूसरी आरे व्यापार के परंपरागत क्षेत्रों के अलावा रिटेल, बीमा, संचार, विज्ञान एवं तकनीकी व्यापार जैसे आधुनिक क्षेत्रों ने आर्थिक पत्रकारिता को नया आयाम दिया है।

ग्रामीण एवं कृषि पत्रकारिता

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में हमारी अथर् व्यवस्था काफी कुछ कृषि और कृषि उत्पादों पर निर्भर है। भारत में आज भी लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांवों में बसती है। देश के बजट प्रावधानांे का बड़ा हिस्सा कृषि एवं ग्रामीण विकास पर खर्च होता है। ग्रामीण विकास के बिना देश का विकास अधूरा है। ऐसे में आर्थिक पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वह कृषि एवं कृषि आधारित योजनाओं तथा ग्रामीण भारत में चल रहे विकास कार्यक्रम का सटीक आकलन कर तस्वीर पेश करे।

विशेषज्ञ पत्रकारिता

पत्रकारिता केवल घटनाओं की सूचना देना नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा की जाती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्व है। इसलिए पत्रकार को भी विशेषज्ञ बनने की जरूरत पड़ती है। पत्रकारिता में विषय के आधार पर सात प्रमुख क्षेत्र हैं। इसमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, अर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फेशन आरै फिल्म पत्रकारिता शामिल हैं। इन क्षेत्रों के समाचार उन विषयों में विशष्ेाज्ञता हासिल किए बिना देना कठिन हातेा है। एसेे में इन विषयों के जानकार ही विषय की समस्या, विषय के गुण दाष्ेा आदि पर सटिक जानकारी हासिल कर सकता है।

रेडियो पत्रकारिता

मुद्रण के आविष्कार के बाद संदशेा और विचारों को शक्तिशाली आरै प्रभावी ढंग से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना मनुष्य का लक्ष्य बन गया। इसी से रेडियो का जन्म हुआ। रेडियो के आविष्यकार के जरिए आवाज एक ही समय में असख्ं य लोगों तक उनके घरों को पहुंचने लगा। इस प्रकार श्रव्य माध्यम के रूप में जनसंचार को रेडियो ने नये आयाम दिए। आगे चलकर रेडियो को सिनेमा और टेलीविजन और इंटरनेट से कडी चुनौतियां मिली लेकिन रेडियो अपनी विशिष्टता के कारण आगे बढ़ता गया और आज इसका स्थान सुरक्षित है। रेडियो की विशेषता यह है कि यह सार्वजनिक भी है और व्यक्तिगत भी। रेडियो में लचीलापन है क्योंकि इसे किसी भी स्थान पर किसी भी अवस्था में सुना जा सकता है। दूसरा रोडियो समाचार और सूचना तत्परता से प्रसारित करता है। मौसम संबंधी चेतावनी और प्रा‟तिक विपत्तियों के समय रेडियो का यह गुण शक्तिशाली बन पाता है। आज भारत के कोने-कोने में देश की 97 प्रतिशत जनसंख्या रेडियो सुन पा रही है। रेडियो समाचार ने जहां दिन प्रतिदिन घटित घटनाओं की तुरंत जानकारी का कार्यभार संभाल रखा है वहीं श्रोताओं के विभिन्न वर्गों के लिए विविध कार्यक्रमों की मदद से सूचना और शिक्षा दी जाती है। जैसे युवाओं, महिलाओं, बच्चों किसान, गृहिणी, विद्यार्थियों के लिए अलग अलग समय में कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। इस तरह हर वर्ग जोड़े रखने में यह एक सशक्त माध्यम के रूप में उभरकर सामने आया है।

व्याख्यात्मक पत्रकारिता

पत्रकारिता केवल घटनाओं की सूचना देना नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा की जाती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्व है। पत्रकार इस महत्व को बताने के लिए विभिन्न प्रकार से उसकी व्याख्या करता है। इसके पीछे क्या कारण है। इसके पीछे कौन था और किसका हाथ है। इसका परिणाम क्या होगा। इसके प्रभाव से क्या होगा आदि की व्याख्या की जाती है। साप्ताहिक पत्रिकाओं संपादकीय लेखों में इस तरह किसी घटना की जांच पड़ताल कर व्याख्यात्मक समाचार पेश किए जाते हैं। टीवी चैनलों में तो आजकल यह ट्रेडं बन गया है कि किसी भी छोटी सी छोटी घटनाओं के लिए भी विशेषज्ञ पेनल बिठाकर उसकी सकारात्मक एवं नकारात्मक व्याख्या की जाने लगी है।

विकास पत्रकारिता

लोकतंत्र का मूल उद्देश्य है लोगों के लिए शासन लोगों के द्वारा शासन। इस लोकतंत्र में तीन मुख्य स्तंभ है। इसमें संसदीय व्यवस्था, शासन व्यवस्था एवं कानून व्यववस्था। इन तीनों की निगरानी रखता है चौथा स्तंभ – पत्रकारिता। लोकतंत्र का मूल उद्देश्य है लोगों के लिए। शासन द्वारा लोगों का जीवन स्तर सुधारने के लिए सही ढंग से काम किया जा रहा है या नहीं इसका लेखा जोखा पेश करने की जिम्मेदारी मीडिया पर है। इसका खासकर भारत जैसे विकासशील देशों के लिए आरै भी अहम भूमिका है। देश में शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी, कृषि एवं किसान, सिंचार्इ, परिवहन, भूखमरी, जनसंख्या बढ़ने प्रा‟तिक आपदा जैसी समस्याएं हैं। इन समस्याओं से निपटने सरकार द्वारा क्या क्या कदम उठाए जा रहे हैं। कोर्इ योजना बनी तो उसका फायदा लोगों तक पहुंच पा रहा या नहीं या उसे सही ढंग से लागू किया जा रहा है या नहीं उस बारे में पत्रकार विश्लेषण कर समाचार पेश करने से शासक की आख्ंों खुल सकती है। कहने का तात्पर्य यह कि क्या इन सरकारी योजनओं से देश का विकास हो रहा है या नहीं उसका आकलन करना ही विकास पत्रकारिता का कार्य है। विकास पत्रकारिता के जरिए ही इसमें यथा संभव सुधार लाने का मार्ग प्रशस्त होगा।

संसदीय पत्रकारिता

लोकतंत्र में संसदीय व्यवस्था की प्रमुख भूमिका है। संसदीय व्यवस्था के तहत संसद में जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि पहुंचते हैं। बहुमत हासिल करनेवाला शासन करता है ताे दूसरा विपक्ष में बैठता है। दानेों की अपनी अपनी अहम भूमिका होती है। इनके द्वारा किए जा रहे कार्य पर नजर रखना पत्रकारिता की अहम जिम्मेदारी है क्योंकि लोकतंत्र में यही एक कड़ी है जो जनता एवं नेता के बीच काम करता है। जनता किसी का चुनाव इसलिए करते हैं तो वह लोगों की सुख सुविधा तथा जीवनस्तर सुधारने में कार्य करे। लेकिन चुना हुआ प्रतिनिधि या सरकार अगर अपने मार्ग पर नहीं चलते हैं तो उसको चेताने का कार्य पत्रकारिता करती है। इनकी गतिविधि, इनके कार्य की निगरानी करने का कार्य पत्रकारिता करती है।

टेलीविजन पत्रकारिता

समाचार पत्र एवं पत्रिका के बाद श्रव्य माध्यम का विकास हुआ। और इसके बाद श्रव्य „श्य माध्यम का विकास हुआ। दूर संचार क्रांति में सेटेलार्इट, इंटरनेट के विकास के साथ ही इस माध्यम का इतनी तेजी से विकास हुआ कि आज इसके बिना चलना मुश्किल सा हाे गया है। इसे मुख्यत: तीन वर्गों में रखा जा सकता है जिसमें सूचना, मनोरंजन और शिक्षा। सूचना में समाचार, सामयिक विषय आरै जनसचार उद्घोषणाएं आते हैं। मनोरजंन के क्षेत्र में फिल्मों से संबंधित कार्यक्रम, नाटक, धारावाहिक, नृत्य, संगीत तथा मनोरजं न के विविध कार्यक्रम शामिल हैं। इन कार्यक्रमों का प्रमखु उद्देश्य लोगों का मनोरंजन करना है। शिक्षा क्षेत्र में टेलीविजन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। पाठय सामग्री पर आधारित और सामान्य ज्ञान पर आधारित दा े वर्गों में शैक्षिक कार्यक्रमों को बांटा जा सकता है।
आज उपगह्र के विकास के साथ ही समाचार चैनलों के बीच गलाकाट प्रतिस्पर्धा चल पड़ी है। इसके चलते छोटी सी छोटी घटनाओं का भी लाइव कवरेज होने लगा है।

विधि पत्रकारिता

लोकतंत्र के चार स्तंभ में विधि व्यवस्था की भूमिका महत्वपूर्ण है। नए कानून, उनके अनुपालन और उसके प्रभाव से लोगों को परिचित कराना बहुत ही जरूरी है। कानून व्यवस्था बनाए रखना, अपराधी को सजा देना से लेकर शासन व्यवस्था में अपराध राके ने, लोगों को न्याय प्रदान करना इसका मुख्य कार्य है। इसके लिए निचली अदालत से लेकर उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय तक व्यवस्था है। इसमें रोजाना कुछ न कुछ महत्वपूर्ण फैसले सुनाए जाते हैं। कर्इ बड़ी बड़ी घटनाओं के निर्णय, उसकी सुनवार्इ की प्रक्रिया चलती रहती है। इसबारे में लोग जानेन की इच्छुक रहते हैं, क्योंकि कुछ मुकदमें ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव समाज, संप्रदाय, प्रदेश एवं देश पर पड़ता है। दूसरी बात यह है कि दबाव के चलते कानून व्यवस्था अपराधी को छोड़कर निर्दोष को सजा तो नहीं दे रही है इसकी निगरानी भी विधि पत्रकारिता करती है।

फोटो पत्रकारिता

फोटो पत्रकारिता ने छपार्इ तकनीक के विकास के साथ ही समाचार पत्रों में अहम स्थान बना लिया है। कहा जाता है कि जो बात हजार शब्दांे में लिखकर नहीं की जा सकती है वह एक तस्वीर कह देती है। फोओ टिप्पणियों का असर व्यापक और सीधा होता है। दूसरी बात ऐसी घटना जिसमें सबूत की जरूरत हातेी है वसैे समाचारों के साथ फाटेो के साथ समाचार पशेा करने से उसका विश्वसनीयता बढ़ जाती है।

विज्ञान पत्रकारिता

इक्कीसवीं शताब्दी को विज्ञान का युग कहा गया है। वर्तमान में विज्ञान ने काफी तरक्की कर ली है। इसकी हर जगह पहुचं हो चली है। विज्ञान में हमारी जीवन शैली को बदलकर रख दिया है। वैज्ञानिकों द्वारा रोजाना नर्इ नर्इ खोज की जा रही है। इसमें कुछ तो जनकल्याणकारी हैं तो कुछ विध्वंसकारी भी है। जैसे परमाणु की खोज से कर्इ बदलाव ला दिया है लेकिन इसका विध्वंसकारी पक्ष भी है। इसे परमाणु बम बनाकर उपयोग करने से विध्वंस हागेा। इस तरह विज्ञान पत्रकारिता दोनों पक्षों का विश्लेषण कर उसे पेश करने का कार्य करता है। जहां विज्ञान के उपयोग से कैसे जीवन शैली में सुधार आ सकता है तो उसका गलत उपयोग से संसार ध्वंस हो सकता है।
विज्ञान पत्रकारों को विस्तृत तकनीकी आरै कभी कभी शब्दजाल को दिलचस्प रिपोर्ट में बदलकर समाचार पाठक दर्शक की समझ के आधार पर प्रस्तुत करना होता है। वैज्ञानिक पत्रकारों को यह निश्चिय करना होगा कि किस वैज्ञानिक घटनाक्रम में विस्तृत सूचना की योग्यता है। साथ ही वैज्ञानिक समुदाय के भीतर होनवेाले विवादांे को बिना पक्षपात के आरै तथ्यों के साथ पेश करना चाहिए।

शैक्षिक पत्रकारिता

शिक्षा के बिना कुछ भी कल्पना करना संभव नहीं है। पत्रकारिता सभी नर्इ सूचना को लोगों तक पहुंचाकर ज्ञान में वृद्धि करती है। जब से शिक्षा को औपचारिक बनाया गया है तब से पत्रकारिता का महत्व और बढ़ गया है। जब तक हमें नर्इ सूचना नहीं मिलगेी हमें तब तक अज्ञानता घेर कर रखी रहेगी। उस अज्ञानता को दूर करने का सबसे बड़ा माध्यम है पत्रकारिता। चाहे वह रेडियो हाे या टेलीविजन या समाचार पत्र या पत्रिकाएं सभी में नर्इ सूचना हमें प्राप्त हातेी है जिससे हमें नर्इ शिक्षा मिलती है। एक बात आरै कि शिक्षित व्यक्ति एक माध्यम में संतुष्ट नहीं होता है। वह अन्य माध्यम को भी देखना चाहता है। यह जिज्ञासा ही पत्रकारिता को बढ़ावा देता है तो पत्रकारिता उसकी जिज्ञासा के अनुरूप शिक्षा एवं ज्ञान प्रदान कर उसकी जिज्ञासा को शांत करने का प्रयास करता है। इसे पहुंचाना ही शैक्षिक पत्रकारिता का कार्य है।

सांस्कृतिक-साहित्यिक पत्रकारिता

मनुष्य में कला, संस्‟ति एवं साहित्य की भूमिका निर्विवादित है। मनुष्य में छिपी प्रतिभा, कला चाहे वह किसी भी रूप में हो उसे देखने से मन को तृप्ति मिलती है। इसलिए मनुष्य हमेशा नर्इ नर्इ कला, प्रतिभा की खोज में लगा रहता है। इस कला प्रतिभा को उजागर करने का एक सशक्त माध्यम है पत्रकारिता। कला प्रतिभाओं के बारे में जानकारी रखना, उसके बारे में लोगों को पहुंचाने का काम पत्रकारिता करता है। इस सांस्कृतिक साहित्यिक पत्रकारिता के कारण आज कर्इ विलुप्त प्राचीन कला जैसे लोकनृत्य, लोक संगीत, स्थापत्य कला को खोज निकाला गया है और फिर से जीवित हो उठे हैं। दूसरी ओर भारत जैसे विशाल और बहु सांस्कृति वाले देश में सांस्कृतिक साहित्यिक पत्रकारिता के कारण देश की एक अलग पहचान बन गर्इ है। कुछ आंचलिक लोक नृत्य, लोक संगीत एक अंचल से निकलकर देश, दुनिया तक पहचान बना लिया है। समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं प्रारंभ से ही नियमित रूप से सांस्कृतिक साहित्यिक कलम को जगह दी है। इसी तरह चौनलों पर भी सांस्कृतिक, साहित्यिक समाचारों का चलन बढ़ा है। एक अध्ययन के अनुसार दर्शकों के एक वर्ग ने अपराध व राजनीति के समाचार कार्यक्रमों से कहीं अधिक अपनी सांस्कृति स े जुड़े समाचारों व समाचार कार्यक्रमों से जुड़ना पसंद किया है। साहित्य व सांस्कृति पर उपभेक्तावादी सांस्कृति व बाजार का प्रहार देखकर केद्रं व प्रदेश की सरकारें बहुत बड़ा बजट इन्हें संरक्षित करने व प्रचारित प्रसारित करने में खर्च कर रही है। साहित्य एव सांस्कृति के नाम पर चलनेवाली बड़ी बड़ी साहित्यिक व सांस्कृति संस्थाओं के बीच वाद प्रतिवाद, आरोप-प्रत्यारोप और गुटबाजी ने साहित्य सांस्कृति में मसाला समाचारों की संभावनाओं को बहुत बढ़ाया है।

शनिवार, 2 मई 2020

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

हजारीप्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

हजारी प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जीवन-परिचय-

आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म 19 अगस्त, 1907(श्रावण, शुक्ल पक्ष, एकादशी, संवत 1964) में बलिया ज़िले के 'आरत दुबे का छपरा' गाँव के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में हुआ था। उनके पिता 'पण्डित अनमोल द्विवेदी' संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे। द्विवेदी जी के प्रपितामह ने काशी में कई वर्षों तक रहकर ज्योतिष का गम्भीर अध्ययन किया था। द्विवेदी जी की माता ज्योतिकली भी प्रसिद्ध पण्डित कुल की कन्या थीं। इस तरह बालक द्विवेदी को संस्कृत के अध्ययन का संस्कार विरासत में ही मिल गया था।

शिक्षा-
 इनकी शिक्षा का प्रारम्‍भ संस्‍कृत से हुआ।
द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में बसरिकापुर के मिडिल स्कूल से प्रथम श्रेणी में मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने गाँव के निकट ही पराशर ब्रह्मचर्य आश्रम में संस्कृत का अध्ययन प्रारंभ किया। सन् 1923 में वे विद्याध्ययन के लिए काशी चले गए, वहाँ रणवीर संस्कृत पाठशाला, कमच्छा से प्रवेशिका परीक्षा प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की।1927 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी वर्ष भगवती देवी से उनका विवाह सम्पन्न हुआ। 1929 में उन्होंने इंटरमीडिएट और संस्कृत साहित्य में शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1930 में ज्योतिष विषय में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। शास्त्री तथा आचार्य दोनों ही परीक्षाओं में उन्हें प्रथम श्रेणी प्राप्त हुई।  इन्‍होंने काशी हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय (जो आज हम बनारस हिन्‍दू विश्‍वाविद्यालय के नाम से जानते है।) से ज्‍योतिष तथा साहित्‍य में आचार्य की उपधि प्राप्‍त की। सन् 1940 ई. में हिन्‍दी एवं संस्‍कृत के आध्‍यापक के रूप में शान्ति-निकेतन चले गये। यहीं इन्‍हें विश्‍वकवि रवीन्‍द्रनााथ टेैगोर का सान्निध्‍य मिला और साहित्‍य-सृजन की ओर अभिमुख हो गये । सन् 1956 ई. में काशी हिन्‍दू विश्‍वविद्यालय के हिनदी विभाग में अध्‍यक्ष नियुक्‍त हुए। कुछ समय तक पंजाब विश्‍वविद्यालय, चण्‍डीगढ़ में हिन्‍दी विभागाध्‍यक्ष के रूप में भी कार्य किया। 19 मई 1979 ई. को इनका देहावसान हो गया। 

सम्मान- 
सन् 1949 ई. में लखनऊ विश्‍वविद्यालय ने इन्‍हें 'डी.लिट्.' तथा सन् 1957 ई. में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित किया। 

व्यवसाय-
इन्होंने शान्ति निकेतन में एक हिन्दी प्राध्यापक के रुप में 18 नम्वबर 1930 को अपने कैरियर की शुरुआत की। इन्होंने 1940 में विश्वभारती भवन के कार्यालय में निदेशक के रुप में पदोन्नति प्रदान की। अपने इसी कार्यकारी जीवन में इनकी मुलाकात रबिन्द्रनाथ टैगोर से शान्ति निकेतन में हुई। इन्होंने 1950 में शान्ति निकेतन को छोड़ दिया और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के प्रमुख और अध्यापक के रुप में जुड़ गए। इसी दौरान, ये 1955 में भारत सरकार के द्वारा गठित किए गए प्रथम राजभाषा आयोग के सदस्य के रुप में भी चुने गए। कुछ समय बाद, 1960 में वह पंजाब विश्व विद्यालय, चंडीगढ़ से जुड़ गए। इन्हें पंजाब विश्व विद्यालय में हिन्दी विभाग का प्रमुख और प्रोफेसर चुना गया।

साहित्यिक परिचय- 

द्विवेदी जी ने बाल्‍यकाल से ही श्री व्‍योमकेश शास्‍त्री से कविता लिखने की कला सीखनी आरम्‍भ कर दी थी। शान्ति-निकेतन पहँचकर इनकी प्रतिभा और अधिक निखरने लगी। कवीन्‍द्र रवीन्‍द्र का इन पर विशेष प्रभाव पड़ा। बँगला साहित्‍य से भी ये बहुत प्रभावित थे। ये उच्‍चकोटि के शोधकर्त्‍ता, निबन्‍धकार, उपन्‍यासकार एवं आलोचक थे। सिद्ध साहित्‍य, जैन साहित्‍य एवं अपभ्रंश साहित्‍य को प्रकाश में लाकर तथा भक्ति-साहित्‍य पर उच्‍चस्‍तरीय समीक्षात्‍मक ग्रन्‍थें की रचना करनके इन्‍होंने हिन्‍दी साहित्‍य की महान् सेवा की। बैसे तो द्विवेदी जी ने अनेक विषयों पर उत्‍कृष्‍ट कोटि के निबन्‍धों एवं नवीन शैली पर आधरित उपन्‍यासों की रचना की है1 पर विशेष रूप से वैयक्तिक एवं भावात्‍मक निबन्‍धें की रचना करने में ये अद्वितीय रहे। द्विवेदी जी 'उत्‍तर प्रदेश ग्रन्‍थ अकादमी' के अध्‍यक्ष और 'हिन्‍दी संस्‍थान' के उपाध्‍यक्ष भी रहे। कबीर पर उत्‍कृष्‍ट आलोचनात्‍मक कार्य करने के कारण इन्‍हें 'मंगलाप्रसाद' पारितोषिक प्राप्‍त हुआ। इसके साथ ही 'सूर-साहित्‍य' पर 'इन्‍दौर साहित्‍य समिति' ने 'स्‍वर्ण पदक' प्रदान किया।

कृतियॉं-

 आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली और उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। द्विवेदी जी हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं के विद्वान थे। उनका हिंदी निबंध और आलोचनात्मक क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान है। वे उच्च कोटि के निबंधकार और सफल आलोचक थे। उन्होंने सूर, कबीर, तुलसी आदि पर जो विद्वत्तापूर्ण आलोचनाएं लिखी हैं, वे हिंदी में पहले नहीं लिखी गईं। उनका निबंध-साहित्य हिंदी की स्थाई निधि है।
द्विवेदी जी की प्रमुख कृतियॉं है-
निबन्‍ध-
 विचार और वितर्क,
 कल्‍पना, 
अशोक के फूल
कुटज
साहित्य के साथी
 कल्‍पलता
 विचार-प्रवाह 
आलोक-पर्व

उपन्यास

पुनर्पवा
बाणभट्ट की आत्‍मकथा, 
चारु चन्‍द्रलेख , 
अनामदास का पोथा
 
आलोचना साहित्‍य- 
सूर-साहित्‍य,
 कबीर
, सूरदास और उनका काव्‍य,
 हमारी साहित्यिक समस्‍याऍं, 
हिन्‍दी साहित्‍य की भुमिका, 
साहित्‍य का साथी
, साहित्‍य का धर्म, हिन्‍दी-साहित्‍य,
 समीक्षा-साहित्‍य नख-दपर्ण में हिन्‍दी-कविता,
 साहित्‍य का मर्म, 
भारतीय वाड्मय, 
कालिदास की लालित्‍य-योजना  

शोध-साहित्‍य- 
प्राचीन भारत का कला विकास, नाथ सम्‍प्रदास, मध्‍यकालीन धर्म साधना, हिन्‍ीद-साहित्‍य का अदिकाल आदि। 

अनूदित साहित्‍य - 
प्रबन्‍ध्‍ाा चिन्‍तामधि, पुरातन-प्रबन्‍ध-संग्रह प्रबन्‍धकोश, विश्‍व परिचय, मेरा बचपन, लाल कनेर आदि। 

सम्‍पादित साहित्‍य- 
नाथ-सिद्धों की बानियॉं, संक्षिप्‍त पृथ्‍वीराज रासो, सन्‍देश-रासक अ‍ादि।

भाषा-शैली- 
द्विवेदी जी भाषा के प्रकाण्‍ड पण्डित थे। उन्होंने शुद्ध संस्‍कृतनिष्‍ठ साहित्यिक खड़ी-बोली का प्रयोग किया है । इसके साथ-साथ आपने निबन्‍धों में उर्दू फारसी, अंग्रेजी एवं देशज शब्‍दों का भी प्रयोग किया है। इनकी भाषा प्रौढ़ होते हुए भी सरल, संयत तथा बोधगम्‍य है। मुहावरेदार भाषा का प्रयोग भी इन्‍होंने किया है। विशेष रूप से इनकी भाषा शुद्ध संस्‍कृतनिष्‍ठ साहित्यिक खड़ीबोली है। इन्होंने अनेक शैलियों का प्रयोग विषयानुसार किया है, जिनमें प्रमुख हैं- 
गवेषणात्‍मक शैली
आलोचनात्‍मक शैली 
भावात्‍मक शैली 
हास्‍य-व्‍यंग्‍यत्‍मक शैली
उद्धरण शैली
निष्कर्ष
शोध के गंभीर विषयों के प्रतिपादन में द्विवेदीजी की भाषा संस्कृतनिष्ठ हैं । 
आलोचना में उनकी भाषा साहित्यिक हैं । उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता हैं। ऐसे शब्दोंं के साथ उर्र्दू-फारसी तथा देशज शब्दों के बहुतेरे बोलचाल के शब्द और मुहावरे भी मिलते हैं । उनकी भाषा व्याकरण परक, सजीव, सुगठित और प्रवाह युक्त होती हैं। 
शब्द चित्रों के अंकन में भी वे कुशल हैं । द्विवेदीजी हिन्दी के प्रौढ़ शैलीकार हैं । 
विषय प्रतिपादन की दृष्टि से उन्होंने कहीं आगमन शैली का और कही पर निगमन शैली का भी प्रयोग किया हैं । 
उनके शोध संबंधी निबंध और लेख आगमन शैली में मिलते हैं। ऐसे निबंधों की शैली गवेषणात्मक हैं। भावना के उत्कर्ष से संबंधित निबंधों की शैली भावनात्मक हैं।

शुक्रवार, 1 मई 2020

1 मई 2020 मजदूर दिवस बहुत-बहुत शुभकामनाएं

मजदूर दिवस
1 मई,2020
बहुत-बहुत शुभकामनाएं
खूबसूरत दुनिया को बनाने वाले मजदूरों के संघर्ष को सलाम श्रम व श्रमिक ही मानव और मानवता की बुनियाद है।
शर्म और श्रमिक के हालात ही इसको तोलने की कसौटी है। नियति, नीति और नैतिकता
विश्व मजदूर दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
मजदूर दिवस से संबंधित कुछ श्लोक
मजदूर दिवस से संबंधित कुछ कोटेशन
हाथों में लाठी है
मजबूत उसकी कद काठी है।
हर बाधा को कर देता है दूर
दुनिया उसे कहती है मजदूर
आने वाले जाने वालों के लिए
आदमी मजदूर है राहे बनाने के लिए
भूख से गरीबी से मजबूर है
वह और कोई नहीं केवल मजदूर है।
आज 1मई मजदूर दिवस पर केदारनाथ अग्रवाल की कविता

एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
हाथी सा बलवान,
जहाजी हाथों वाला और हुआ !
सूरज-सा इन्सान,
तरेरी आँखोंवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ!
माता रही विचार,
अँधेरा हरनेवाला और हुआ !
दादा रहे निहार,
सबेरा करनेवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !
जनता रही पुकार,
सलामत लानेवाला और हुआ !
सुन ले री सरकार!
कयामत ढानेवाला और हुआ !!
एक हथौड़ेवाला घर में और हुआ !मजदूर देश और दुनिया  का निर्माता
हालातों से लड़ता हुआ
सोच को से शोषित होता हुआ
खुश और मस्त
रोटी के लिए तड़पता हुआ
शोषण का शिकार
फिर भी हर हाल में खुश होना
ऐसा है यह मजदूर
हम सब मजदूर है मजदूर
कोई कलम का सिपाही तुम कोई मैदान का
कोई सरहदओ है कोई अस्पतालों का
कोई सड़कों पर मजदूरी करता है तो कोई कारखानों में
कोई कलम कलम के द्वारा मजदूरी करता है
मजबूत है मजबूत
फिर भी क्यों मजबूर है मजबूर

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

महादेवी वर्मा कृत गिल्लू संस्मरण का सार

महादेवी वर्मा कृत्य गिल्लू संस्मरण का सार
गिल्लू महादेवी वर्मा विरचित एक करूणासिक्त संस्मरण है ।

इस संस्मरण में उन्होंने अपने जीव जगत परिवार के एक सदस्य गिल्लू गिलहरी के अपने परिवार में आगमन तथा उसकी समाधि की  संस्मरणात्मक कहानी है।
 संस्मरण का सार इस प्रकार से है ।

लेखिका को अपने बगीचे में लगी सोनजुही में नई पीले कली खिलने पर अनायास ही गिल्लू गिलहरी की यादें आ जाती है 1 दिन सुबह लेखिका ने देखा था कि उसके घर के बरामदे में रखे गमलों पर दो काव्य चोट मार रहे हैं गमलों के बीच एक नन्ही गिलहरी फंसी हुई है जिससे उनको उन्ह अपनी चोट मारकर घायल कर दिया है और अब वह जीव मरणासन्न हालत में गमले से चिपका हुआ है लेखिका को हालांकि बताया गया है कि कबो की चोट से घायल है इस गिलहरी को बचाना मुश्किल है फिर भी लेखिका ने अपनी प्राणी प्रेम के चलते उसे बचाने का उपक्रम किया उसके घाव को साफ करके उसने पेनिसिलिन का मरहम लगाया लेखिका की मेहनत रंग लाई तीसरे दिन वह इतना अच्छा हो गया कि लेखिका की उंगली अपने पंजों से पकड़ने लगा तीन चार मार्च के बाद उसके शरीर के रोए जब बेदार पूछे और चंचल चमकीली आंखें सबको आश्चर्य में डालने लगी लेखिका ने उसका नाम गिल्लू रख दिया फूल रखिए को उसका घर बना दिया गया घर में वह 2 वर्ष तक रहा वह उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए उसके पैर तक आकर फिर से पर्दे पर जाया करता था कभी-कभी ले उसे पकड़कर इसके अलावा भूख लगने पर वह देता था वसंत आया बाहर की गिलहरी आगे खिड़की की जाली के पास आकर जब करने लगी तो लेखिका ने उसे कुछ समय के लिए मुक्त करना आवश्यक समझा उसने जाली की झीलें लगाकर जाली का एक कोना खोल दिया इस रास्ते से गिल्लू बाहर जा सकता था गिल्लू लेखिका के पैर के पास बैठ जाया करता था तथा कभी-कभी पैर से सिर तक और सिर से पैर तक दौड़ने लगा था दिन भर फूलों में छिपकर तो कभी पर्दे की चरणों में या सोनजुही के पत्तों में चिपका देता था। उसकी इच्छा रहती ठीक कि वह लेखिका के खाने की थाली में बैठ जाए लेखिका ने उसे बड़ी मुश्किल से अपनी थाली के पास बैठना सिखाया।
वह लेखिका की थाली से एक-एक चावल सुनकर बड़ी सावधानी से खाता था काजू उसे बहुत प्रिय थे एक बार जब लेखिका को मोटर दुर्घटना मैं हाथ होने के कारण अस्पताल में रहना पड़ा तब पीछे से वह इतना उद्विग्न हुआ कि उसने अपने प्रिय काजू भी नहीं खाए गर्मियों के दिनों में गिल्लू दोपहर के समय बाहर नहीं जाता था मैं ही वह अपने झूले में बैठता था अभी तू लेखिका के पास रखी सुराही पर लेटा रहता था सुखी गिलहरी की जीवन अवधि 2 वर्ष से अधिक नहीं होती है अतः 2 वर्ष के होते ही गिल्लू की अंतिम बेला भी निकट पहुंची थी एक दिन उसने कुछ नहीं खाया मैं बाहर गया रात को लिखेगा के पास आकर उसके हाथ से चिपक गया लेखिका ने उसके पंजों को ठंडा देखकर जलाया तथा उसे क्षमता देने का प्रयास किया परंतु अगले दिन सुबह की प्रथम किरण के साथ ही वह किसी और जीवन में जागने के लिए सो गया लेखिका नहीं उसे सोनजुही की लता के नीचे दिल की समाधि दी संवत है इसी कारण लेखिका को सोनजुही की लता अत्यंत प्रिय है।
गिल्लू संस्मरण के मुख्य बातें

1.लेखिका महादेवी वर्मा ने गिल्लू सोनजूही  बेल के अनन्य संबंध तथा दोनों के प्रति अपने आकर्षण को व्यक्त किया है।

2.महादेवी जी ने स्पष्ट किया है कि कौवा एक ऐसा पक्षी है जो मनुष्य को शुभ संदेश देता है और आपने कटु आवाज के कारण मनुष्य की अवमानना भी सहन करता है।

3.महादेवी वर्मा जी ने गिल्लू संस्करण में बताया है कि मनुष्य का किसी प्राणी के प्रति प्रेम उसे मनुष्य के प्रति समर्पित कर देता है।

4.गिल्लू गिलहरी की समझदारी पर तथा उसकी दैनिक दिनचर्या पर इस संस्मरण में प्रकाश डाला गया है।

5.लेखिका में जिलों की भोजन संबंधी आदतों का उल्लेख किया है और बताया है कि गिल्लू को काजू बहुत अच्छे लगते थे।
6. संस्मरण के अंत में गिल्लू के मरने के लिए पूर्व की पीड़ा दाई स्थिति का बड़ा मार्मिक चित्रण किया गया है।

7. लेखिका ने गिल्लू गिलहरी की अंतिम क्रिया का वर्णन किया है तथा सोनजुही की बेल के नीचे उसकी समाधि बनाना अद्भुत ,अपूर्व वर्णन है।

8.जहां  भाषा शैली की बात करें तो महादेवी वर्मा ने अपने संस्मरण ो में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का वर्णन किया है ।
9.उनकी भाषा भावा अनुकूल, पात्रा अनुकूल तथा धारापवाह है।
10. उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव शब्दों की अधिकता अवश्य नजर आती हैं वाक्य विन्यास कुछ जटिल है परंतु सहजऔर रोचक है ।

11.उनके संस्मरण में प्रसाद व माधुरी गुण की अधिकता है।
स्पर्श ,नाथ , दृश्य जैसे  बिंबों का प्रयोग करती हैं।
12. उनका यह संस्मरण भावात्मक है।

13.शब्द शक्ति की अगर बात करें तो इसमें अभिधा शब्द शक्ति का प्रयोग हुआ है ।

14.गिल्लू संस्मरण का वर्ण विषय एक प्राणी प्रेम से है ।

15.इसकी शैली वर्णनात्मक शैली है शब्द भंडार बहुत व्यापक है ।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गिल्लू संस्मरण की भाषा से सकते कार्यात्मक तथा धारापवाह है।


महादेवी वर्मा के संस्मरण में विषय जैसी विविधता दिखाई देती है जो अन्यत्र दुर्लभ है उन्होंने अपने संस्कारों में मानवीय पात्रों को ही नहीं मान वेतन प्राणियों को भी अभीष्ट अस्थान दिया है उन्होंने अपने संपर्क में आए दिन ही ऐसा ही व्यक्तियों के तरीके प्राय अपने जी परिवार के हर सदस्य चाहे वह सोना हिरनी हो नीलकंठ मोर हो गौरा गाय हो नीलू कुत्ता हो या गिल्लू गिलहरी हो हर प्राणी के जीवन का संसदात्मक उल्लेख किया है उनके संस्मरण संकेतों पर भी खरे उतरे हैं वास्तव में महादेवी जी ने संस्मरण साहित्य में अपूर्व योगदान दिया है उनके प्रवर्तक योगदान के लिए चिर ऋणी रहेंगे।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

विज्ञापन और सामाजिक दायित्व पर निबंध, विज्ञापन लेखन

विज्ञापन और सामाजिक दायित्व
विज्ञापन लेखन कला
विज्ञापन की भूमिका
विज्ञापन लाभ व हानियां
विज्ञापन कितने सही या गलत
प्रस्तावना विज्ञापन की भूमिका वहां आवश्यक हो रही है जहां बाजार है तथा प्रतिस्पर्धा है विज्ञापन सक्रिय प्रतियोगिता का प्रत्यक्ष प्रतीक है इसके फलस्वरूप एक ग्राहक संतुष्ट हो जाता है विज्ञापन अवश्य रूप से ग्राहकों को वस्तुओं के उत्पादन व उसकी कीमत के संबंध में सूचित करता है।
विज्ञापन का उद्देश्य
विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य समाज में नए-नए उत्पादों का प्रचार करना है। समाज विज्ञापन के मौखिक संकेतों पर जीवित रहता है जिसके अंतर्गत सदस्यों के व्यवहार सक्रियता आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है विज्ञापन करता को बढ़-चढ़कर विज्ञापन करने के साथ-साथ उत्पादन में शुद्धता गुणवत्ता व श्रेष्ठता आदि गुणों का विशेष रूप से समावेश करना चाहिए उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए विज्ञापन में अश्लीलता को बढ़ावा दिया जाता है महिलाओं का अधिक शोषण भी विज्ञापनों की दुनिया में होता है वर्णों से भी उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाते हैं लाभ व हानियां विज्ञापन की पहुंच गए प्रभाव चौंकाने वाले हैं क्योंकि यह कीड़े मकोड़े की तरह आज प्रत्येक घर हरे के हृदय में स्थान बना चुका है इस दौर में उत्पादों को बेचना इंटरनेट वेब माध्यमों के विज्ञापन द्वारा बहुत ही शुभ हो चुका है दिक्कत इस बात की है कि विज्ञान के युग में मौलिकता की जगह सिद्धांत सिद्धांत हीनता लेने जा रही हैं।

 इस प्रकार विज्ञापन आधुनिक जीवन का एक अवश्य अंग बन चुका है विज्ञापन को मानव सेवा के आधार पर सीमित रहना चाहिए उसे अपने जादुई शब्दों में कल्पना का दुरुपयोग ना करते हुए प्रबंध कौशल को विकसित करना चाहिए ताकि उपभोक्ता स्वयं को ठगा सा महसूस ना करें। वीवी का अर्थ होता है विशेष ज्ञा का अर्थ होता ज्ञापन है या नहीं जानकारी देना किसी के बारे में विशेष रूप से जानकारी देने वाला विज्ञापन को देखकर उनसे प्रभावित होकर लोग उस वस्तु को खरीदते हैं इससे उस वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि होती है और उत्पादन करता को लाभ होता है टीवी चैनल समाचार पत्र पत्रिकाएं बोर्ड आदि हर जगह विज्ञापन छाई रहती है विज्ञापन के द्वारा ग्राहक यह जान पाता है कि उस वस्तु में क्या गुण है।