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शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

सूरदास

सूरदास का जीवन परिचय
बीए कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
m.a.  कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
सूरदास
हिंदी की कृष्ण काव्य धारा और अष्टछाप में महात्मा सूरदास का प्रमुख स्थान है ।
इसी कारण गोस्वामी विट्ठलदास ने सूर्य को पुष्टिमार्ग का जहाज और लोक मानस ने सूर सूर तुलसी शशि कहकर उनकी अस्मिता को अंगीकृत किया है ।
प्राचीन संत भक्तों की भांति सूरदास का भी प्रमाणिक जीवन वृत्त प्राप्त नहीं होता । आधुनिक शोधों के आधार पर माना जाता है कि सूरदास का जन्म संवत् 1535 में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी को दिल्ली के समीप हरियाणा राज्य में स्थित फरीदाबाद के सीही गांव में एक सारस्वत ब्राह्मण के परिवार में हुआ ।
अधिकांश विद्वानों ने सूर्य की मृत्यु संवत् 1640 में परसोली नामक गांव में स्वीकार की है।$ कृष्ण भक्ति काव्य धारा के कवि $
     
जन्मकाल- 1478 ई. (1535 वि.)
जन्मस्थान- सीही ग्राम ( नगेन्द्र के अनुसार)
- आधुनिक शौधों के अनुसार इनका जन्म स्थान मथुरा के निकट 'रुनकता' नामक ग्राम माना गया है|
मृत्युकाल- 1583 ई. (1640 वि.) पारसोली गाँव में
गुरु का नाम- वल्लभाचार्य
गुरु से भेंट- 1509-10 ई. में (पारसोली नामक गाँव में)
काव्य भाषा- ब्रज
#रचनाएँ:-
वैसे तो सूरदास की यानी कि तृतीय बताई जाती हैं लेकिन तीन ही रचनाएं प्रमाणिक मानी जाती है वह है-
1. सूरसागर
2. साहित्य लहरी
3. सूरसारावली

#सूरसागर:-
- यह सूरदास की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है|
- इसका मुख्य उपजीव्य (आधार स्रोत) श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंद का 46 वां व 47 वां अध्याय माना जाता है|
- भागवत पुराण की तरह इस का विभाजन भी 'बारह स्कंधो' में किया गया है|
-इसके दसवें स्कंद में सर्वाधिक पद रचे गए है|
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-" सूरसागर किसी चली आती हुई गीती काव्य परंपरा का, चाहे वह मौखिक ही रही हो, पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है|"
- नगेन्द्र ने इस रचना को 'अन्योक्ति' एवं 'उपालम्भ काव्य' कहकर पुकारा है|

#साहित्यलहरी:-
- यह इनका रीतिपरक यह माना जाता है|
- इसमें दृष्टकूट पदों में राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है|
- अलंकार निरुपण दृष्टि से भी इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्व माना जाता है|

#सूरसारावली:-
- यह इनकी विवादित या अप्रमाणिक रचना मानी जाती है|
#विशेष_तथ्य:-
- सूरदास जी को ' खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज' आदि नामों से भी जाना जाता है|
- आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको-'वात्सल्य रस सम्राट' व 'जीवनोत्सव का कवि' कहा है|
-गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने इनकी मृत्यु पर ' पुष्टिमार्ग का जहाज' कहकर पुकारा था| इनकी मृत्यु पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था:-
" पुष्टिमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेना होय सो लेउ|"
- हिंदी साहित्य जगत में 'भ्रमरगीत' परंपरा का समावेश सूरदास द्वारा ही किया हुआ माना जाता है|
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह चंदबरदाई के वंशज कवि माने गए हैं|
- आचार्य शुक्ल ने कहा है- "सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टीमार्ग ही है|"
- सूरदास जी ने भक्ति पद्धति के 11 रूपों का वर्णन किया है|
- हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी सूर्य के समान, तुलसीदास जी चंद्रमा के समान, केशव दास जी तारे के समान तथा अन्य सभी कवि जुगनुओं (खद्योत) के समान यहां-वहां प्रकाश फैलाने वाले माने जाते हैं| यथा:-
"सूर सूर तुलसी ससि, उडूगन केशवदास|
और कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश||"
- सूर के भाव चित्रण में वात्सल्य भाव को श्रेष्ठ कहा जाता है| आचार्य शुक्ल ने लिखा है:-
" सूर अपनी आंखों से वात्सल्य का कोना कोना छान आए हैं ।
निष्कर्ष-सूरदास बहुमुखी सृजनात्मक प्रतिभा के भक्त कवि थे उन्होंने राधा कृष्ण के बाल जीवन और युवा जीवन की लीलाओं का निरूपण नहीं किया है वरन उन्हें लीलाओं के वर्णन के बहाने से उन्होंने सिंगार सौंदर्य संस्कृति प्रकृति भक्ति वात्सल्य आदि का बड़ा मनोरम चित्र अंकन किया है।

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