5955758281021487 Hindi sahitya : काव्य गुण- अर्थ/ परिभाषा/ प्रकार व उदाहरण

रविवार, 8 नवंबर 2020

काव्य गुण- अर्थ/ परिभाषा/ प्रकार व उदाहरण

b.a. प्रथम वर्ष
समेस्टर प्रथम
काव्य गुण किसे कहते हैं इसके विभिन्न भेदों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
काव्य गुण
काव्य की शोभा को संपादित करने वाले या काव्य की आत्मा रस का उत्कर्ष बनाने वाले तत्व काव्य के गुण कहलाते हैं।
परिभाषा
डॉ नगेंद्र के अनुसार
गुण काव्य के उत्कर्ष साधक तत्वों को कहते हैं जो मुख्य रूप से रसके और गुण रूप से शब्दार्थ के नित्य धर्म हैं।

लक्षण व स्वरूप

नंबर 1 * रस के साधक धर्म है।
नंबर दो * नित्य हैं।
नंबर तीन *गुण रस का उत्कर्ष करते हैं।
नंबर 4 गुण भावात्मक होते हैं।


गुणों की संख्या पर विवाद

*भरत मुनि व दंडी ने इनकी संख्या 10 मानी है।
*वामन ने इसकी संख्या 20 मानी है
*भोज ने इनकी संख्या 24 मानी है।
*आचार्य मम्मट ने इनकी संख्या तीन मानी है।
*डॉ नगेंद्र ने भी इनकी संख्या तीन मानी है।

सर्वमत
सर्वमत के अनुसार गुणों की संख्या 3 है।* के भेद तीन हैं।

नंबर 1 प्रसाद गुण
नंबर 2. माधुर्य गुण
नंबर 3.ओज गुण
प्रसाद गुण
जिस गुण के कारण काव्या का अर्थ तुरंत समझ में आ जाए और उसे पढ़ते ही मन में खुशी हो उसे ही प्रसाद गुण कहती हैं। यह गुण प्राय सभी रसों में प्रयुक्त होता है।
इस गुण के काव्य की शब्दावली सरल और सुबोध होती है।
उदाहरण
1.अंबर के आनंद से देखो
कितने तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
2. ढंग है नया
लेकिन बात यह पुरानी है
घोड़ों पर रखकर या थैली में भर कर
या रोटी से ढक कर या फिल्मों में रंग कर वे जंजीरे केवल जंजीरे ही लाए हैं और भी वे कई बार आए हैं।

माधुर्य गुण
जिस रचना से अंतः करण में आनंद विभूत हो जाए। प्रेम ,श्रृंगार ,शांत
 एवं करुणा रसों में यह पाया जाता है।
 प्रकृति के सुंदर वर्णन में भी पाया जाता है ।
हृदय के अंदर प्रेम की मधुरता का पायी है।  जिसमें लंबे समास , ट व र वर्ण, संयुक्त अक्षरों का निषेध होता है।
उदाहरण
1.एक मेरी भव बाधा हरोै, राधा नागरि सोई
  जा तन की झाई परै श्याम हरित दुति होई
2.तेरी आंखों के जंगल में मैं इस प्रकार गुम हो जाता हूं
तुम रेल सी गुजरती हो मैं पुल साथ रहता हूं।

ओज गुण
जिस काव्य रचना के सरवन से चित्र में आवेग उत्पन्न हो क्या मन में उत्साह आए वहां ओज गुण होता है इस गुण में चित्त की वृत्ति होती है यह गुण वीर रूद्र भयानक तथा वीभत्स रस ओं के अनुकूल पाया जाता है इसमें लंबे समास कठोर वर्ण और संयुक्त वर्ण का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण
1. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
2. होंगे कामयाब हम होंगे कामयाब एक दिन
3 आगे नदिया पड़ी अपार 
  घोड़ा कैसे उतरे पार 
   राणा ने सोचा इस बार 
     तब तक था चेतक उस पार
निष्कर्ष
काव्य में रस की वृद्धि करने वाले काव्य के सौंदर्य में वृद्धि करने वाले तत्वों को काव्य गुण कहते हैं।
सर्वमत अनुसार काव्य गुण तीन ही प्रकार के होते हैं जो हम ऊपर पढ़ चुके हैं।








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