(साहित्यिक एवं अकादमिक रूप में संशोधित संस्करण — लगभग 1500 शब्द)
भारत की विविध भाषाओं और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं में कोलकाता एक विलक्षण स्थान रखता है। प्रायः ‘पूर्व का ऑक्सफ़ोर्ड’ कहे जाने वाले इस नगर ने केवल बंगला साहित्य को ही नहीं, बल्कि हिंदी भाषा, हिंदी साहित्य और हिंदी सांस्कृतिक चेतना को भी अपने व्यापक हृदय में स्थान दिया है।
चूँकि कोलकाता व्यापार, उद्योग, शिक्षा और कला का प्राचीन केंद्र है, इसलिए यहाँ उत्तर भारतीय प्रवासी समुदाय बड़ी संख्या में निवास करता है। प्रवासी समाज ने हिंदी को यहाँ न केवल जीवित रखा बल्कि इसे सांस्कृतिक अभिव्यक्ति, साहित्यिक सृजन और राष्ट्रीय चेतना के माध्यम के रूप में विकसित किया।
कोलकाता दरअसल हिंदी क्षेत्र का विस्तार है—एक ऐसा उत्तर–पूर्वी सांस्कृतिक भूगोल जहाँ हिंदी भाषा अपनी जीवंतता और बहुभाषीय समन्वय के साथ फली-फूली। बंगला और हिंदी के संवाद से उत्पन्न यह साहित्यिक भूमि हिंदी के बहुल स्वरूप, अंतर्सांस्कृतिकता और सहअस्तित्व की अद्भुत मिसाल है।
1. कोलकाता की हिंदी संस्कृति : ऐतिहासिक विकास
19वीं शताब्दी के आरम्भ से ही कोलकाता में हिंदी का प्रवेश मजदूरों, व्यापारियों, शिक्षकों, साहित्यकारों और कर्मठ पत्रकारों के माध्यम से हुआ।
ब्रिटिश काल में यह नगर भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, भाषाई पुनर्जागरण और आधुनिक प्रेस-संस्कृति का प्रमुख केंद्र बना। इसी दौर में हिंदी—
सार्वजनिक भाषणों, सभाओं और आंदोलन की भाषा बनी,
हिंदी में पत्र-पत्रिकाओं की शुरुआत हुई,
और कोलकाता के मंचों पर हिंदी नाटक लोकप्रिय हुए।
यहाँ हिंदी ने केवल उत्तर भारतीय स्मृति को नहीं, बल्कि अपने स्वदेशी और राष्ट्रीय चरित्र को भी उजागर किया।
2. हिंदी क्षेत्र और कोलकाता : भाषाई भूगोल का विस्तार
सामान्यतः हिंदी क्षेत्र उत्तर भारत के मैदानी राज्यों को माना जाता है, किंतु भाषावैज्ञानिक दृष्टि से हिंदी की प्रभाव-सीमा उससे कहीं विस्तृत है।
कोलकाता इसका प्रमाण है—यहाँ बोली जाने वाली हिंदी में—
भोजपुरी, मगही, अवधी, मारवाड़ी, खड़ी बोली और बनारसी बोलियों,
बंगला तथा उर्दू के शब्दों,
और महानगरीय संस्कृति के मुहावरों
का सुंदर समन्वय मिलता है।
इसलिए कोलकाता हिंदी क्षेत्र का पूर्वी विस्तार है—जहाँ भाषा स्वयं को नए मुहावरों, ध्वनियों, अभिव्यक्तियों और शहरी प्रतीकों में नए ढंग से रूपायित करती है।
इस हिंदी को साहित्यकारों ने “महानगरीय हिंदी” तथा “पूर्वीय हिंदी-संस्कृति” के रूप में भी निरूपित किया है।
3. कोलकाता से जुड़े प्रमुख हिंदी साहित्यकार
कोलकाता का हिंदी साहित्य पर अनेक प्रमुख लेखकों का गहरा प्रभाव रहा है। यहाँ के साहित्यिक परिवेश ने कई लेखकों को नया दृष्टिकोण, गहरी संवेदना और आधुनिक परिवेश की व्याख्या प्रदान की।
(क) प्रभा खेतान
कोलकाता की प्रतिनिधि स्त्री-चेतना की स्वर-प्रतिष्ठा।
उनकी आत्मकथा “अन्या से अनन्या” में कोलकाता की सामाजिक संरचना, महिलाओं की चुनौतियाँ तथा आधुनिकता के द्वंद्व का अत्यंत मार्मिक चित्रण मिलता है।
उनकी रचनाएँ कोलकाता की हिंदी संस्कृति की धड़कन हैं।
(ख) डॉ. हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
कोलकाता विश्वविद्यालय से उनका घनिष्ठ संबंध रहा।
उनकी विद्यावान दृष्टि, आलोचनात्मक स्फुरणा और अध्यापन शैली ने कोलकाता में हिंदी को उच्च शैक्षणिक प्रतिष्ठा प्रदान की।
उनके व्याख्यानों ने हिंदी शोध परंपरा को नई दिशा दी।
(ग) रामकुमार वर्मा (नाटककार)
कोलकाता का हिंदी नाट्य–संस्कृति पर गहरा प्रभाव रहा, और वर्मा के नाटक यहाँ बार-बार मंचित किए गए।
उन्होंने बंगला रंगमंच से प्रेरणा लेकर हिंदी नाटक में शिल्पगत आधुनिकता जोड़ी।
(घ) अज्ञेय (स.ह.वि. वात्स्यायन)
कोलकाता की आधुनिक बौद्धिक गतिविधियों और कला-चिंतन ने अज्ञेय की लेखनी को महानगरीय दृष्टि प्रदान की।
कहानी, कविता और उपन्यास में शहरी संवेदना का जो नया रूप मिलता है, उसमें कोलकाता का महत्वपूर्ण योगदान है।
(ङ) राजकमल चौधरी
आधुनिक हिंदी साहित्य के सबसे विशिष्ट महानगरीय कथाकार।
उन्होंने कोलकाता की रात्रि-जीवन, बाज़ार, मजदूर बस्ती, गलियों और सामाजिक विषमता को अपने कथानकों का विषय बनाया।
अन्य महत्वपूर्ण साहित्यिक नाम
सुशील कुमार फुल्ल
संजय कुंदन
जगदीश गुप्त
केदारनाथ अग्रवाल (प्रवासी दौर)
कई समकालीन कवि, अनुवादक और पत्रकार
इन सभी का योगदान कोलकाता की हिंदी संस्कृति के निर्माण में महत्वपूर्ण है।
4. कोलकाता की प्रमुख हिंदी संस्थाएँ एवं उनका महत्व
कोलकाता की हिंदी साहित्यिक संस्थाएँ राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना, भाषाई एकता और साहित्यिक बहुलता का प्रतीक हैं। शहर के प्रत्येक सांस्कृतिक कोने में हिंदी की ध्वनि सुनाई पड़ती है।
(1) भारतीय भाषा परिषद
भारत की सबसे प्रतिष्ठित भाषायी संस्थाओं में से एक।
इस परिषद ने हिंदी सहित भारतीय भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन को नई धारा दी।
यहाँ के पुरस्कार और फेलोशिप राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हैं।
(2) कलकत्ता हिंदी अकादमी
राज्य सरकार द्वारा स्थापित यह संस्था—
हिंदी दिवस
वार्षिक साहित्य सम्मेलन
कविता, निबंध, नाटक प्रतियोगिताएँ
पुस्तकों के प्रकाशन
का संचालन करती है।
बंगाल में हिंदी के संस्थागत विकास में इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(3) राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता
भारत का सबसे बड़ा पुस्तकालय—
हिंदी के दुर्लभ ग्रंथ, पांडुलिपियाँ, प्राचीन पत्रिकाएँ, शोधकार्य और अभिलेख यहाँ सुरक्षित हैं।
हर हिंदी शोधार्थी के लिए यह ज्ञान का अमूल्य भंडार है।
(4) कोलकाता विश्वविद्यालय : हिंदी विभाग
पूर्वी भारत का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित हिंदी विभाग।
यहाँ—
एम.ए., एम.फिल., पीएच.डी.
आधुनिक साहित्य, भारतीय चिंतन, अनुवाद-अध्ययन
भाषाविज्ञान एवं आलोचना
पर उच्च स्तरीय शोध होता है।
(5) हिंदी भवन एवं रंगमंच
यह हिंदी नाट्य–संस्कृति का केंद्र है।
साहित्यिक गोष्ठियाँ, नाटक, कवि सम्मेलन यहाँ लगातार आयोजित होते रहते हैं।
कोलकाता का हिंदी रंगमंच देश में अपनी गंभीरता, परंपरा और आधुनिकता के मेल के लिए जाना जाता है।
(6) हिंदी पत्रकारिता के केंद्र
कोलकाता में हिंदी के अनेक अख़बार, जैसे—
आज,
प्रभात,
कलकत्ता समाचार
ने आधुनिक हिंदी पत्रकारिता को नई ऊँचाई दी।
5. कोलकाता की हिंदी संस्कृति की विशेषताएँ
(1) बहुभाषिक सहअस्तित्व
बंगला और हिंदी का ऐसा समन्वय कोलकाता में दिखाई देता है, जो भाषा-संवाद की अनोखी मिसाल है।
दोनों भाषाओं की साझा सांस्कृतिक स्मृतियाँ यहाँ की भाषा को अधिक व्यापक और मानवीय बनाती हैं
(2) प्रवासी संस्कृति की जीवंतता
बिहार, यूपी, झारखंड, राजस्थान से आए लोग अपनी भाषाई जड़ों को लेकर आए, जिसने कोलकाता की हिंदी को बहुभाषिक और बहुसांस्कृतिक बनाया।
(3) शैक्षणिक और साहित्यिक उन्नति
कोलकाता हिंदी का केवल सामाजिक केन्द्र नहीं, बल्कि शैक्षणिक धुरी भी है।
यहाँ के विश्वविद्यालय, परिषदें और पुस्तकालय हिंदी अध्ययन का महत्वपूर्ण आधार हैं।
(4) नाट्य–संस्कृति की विशिष्टता
हिंदी रंगमंच यहाँ की थियेटर परंपरा से प्रभावित होकर अतिरिक्त जीवंतता प्राप्त करता है।
यहाँ के मंचन, अभिनय और प्रस्तुति में साहित्यिकता तथा कलात्मकता दोनों का समन्वय मिलता है।
(5) कला, साहित्य, इतिहास और पत्रकारिता का संगम
कोलकाता हिंदी समाज की स्मृति में एक ऐसा शहर है जहाँ—
साहित्य
पत्रकारिता
संगीत
नाटक
आंदोलन
शिक्षा
सभी क्षेत्रों में हिंदी का निरंतर विस्तार हुआ।
6. समग्र मूल्यांकन
कोलकाता केवल बंगाल की राजधानी नहीं, बल्कि हिंदी के सांस्कृतिक भूगोल का भी अत्यंत महत्वपूर्ण केन्द्र है।
यहाँ का साहित्यिक-सांस्कृतिक वातावरण हिंदी को—
बौद्धिक गहराई
आधुनिकता का बोध
बहुभाषीय संवाद
और महानगरीय संवेदना
प्रदान करता है।
हिंदी क्षेत्र के पूर्वी विस्तार के रूप में कोलकाता एक ऐसा नगर है जहाँ भाषा केवल बोली नहीं जाती, बल्कि सृजन, संवाद, चिंतन और सांस्कृतिक चेतना के रूप में जीती भी जाती है।
इसीलिए कोलकाता हिंदी साहित्य की विराट परंपरा में अपना विशिष्ट और स्थायी स्थान बनाए हुए है।
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