5955758281021487 Hindi sahitya : प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी बड़े घर की बेटी, उद्देश्य, समीक्षा चरित्र चित्रण, चित्रित समस्याएं

सोमवार, 24 नवंबर 2025

प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी बड़े घर की बेटी, उद्देश्य, समीक्षा चरित्र चित्रण, चित्रित समस्याएं

बड़े घर की बेटी” : कथानक, पात्र-परिचय, पात्र-योजना एवं उद्देश्य के आधार पर समग्र समीक्षा


मुंशी प्रेमचंद हिंदी कथा-साहित्य के वह लेखक हैं जिन्होंने भारतीय समाज, परिवार, नैतिक मूल्यों और मानवीय संवेदनाओं को अपनी कहानियों में अत्यंत यथार्थ और संवेदना के साथ प्रस्तुत किया। उनकी कहानी “बड़े घर की बेटी” इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल एक गृहस्थ परिवार की आंतरिक स्थितियों का परिचय कराती है, बल्कि स्त्री-मर्यादा, परिवार में सामंजस्य, त्याग, धैर्य और संस्कारों की शक्ति को भी सामने लाती है। यह कहानी संयुक्त परिवार प्रणाली की बारीकियों, पारिवारिक सम्बंधों, मानवीय अहंकार, और मध्यस्थता की उपयोगिता का जीवन्त चित्रण है। नीचे इस कहानी का कथानक, पात्र-परिचय, पात्र-योजना, थीम, उद्देश्य, भाषा-शैली, और समग्र समीक्षा एक संगठित रूप में प्रस्तुत है।


प्रस्तावना

“बड़े घर की बेटी” प्रेमचंद की उन कहानियों में से है जो भारतीय समाज की मूल इकाई—परिवार—के केंद्र में खड़ी है। कहानी का नायक कोई असाधारण व्यक्ति नहीं, न ही इसका संघर्ष कोई अनोखा या रोमांचकारी; इसके विपरीत कहानी साधारण घरेलू जीवन की उन परिस्थितियों को लेकर आगे बढ़ती है, जिनसे किसी भी परिवार में कभी भी सामना हो सकता है। इसी सहजता और जीवन-सत्य के कारण यह कहानी पाठकों के मन में गहरे उतर जाती है। कहानी यह दिखाती है कि आर्थिक स्थिति, अपेक्षाएँ, अधिकार-बोध, स्त्री-मर्यादा और पुरुष-अहंकार किस प्रकार परिवार की शांति को प्रभावित करते हैं। इसमें “बड़े घर की बेटी” आनंदी के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि परिवार की वास्तविक ऊँचाई धन-संपत्ति से नहीं, बल्कि संस्कार और आचरण से तय होती है।

कथानक (Plot / Storyline)

कहानी का कथानक अत्यंत सरल, स्वाभाविक और क्रमबद्ध है। बेनीमाधव सिंह गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही। उनके दो बेटे हैं—श्रीकंठ और लालबिहारी। बड़े बेटे श्रीकंठ का विवाह एक उच्च कुल की लड़की आनंदी से होता है। आनंदी जन्म से ही सम्पन्न, संस्कारी और मर्यादापूर्ण वातावरण में पली-बढ़ी है। विवाह के बाद जब वह बेनीमाधव के घर आती है तो घर का साधारण, लगभग तंगदस्त वातावरण देखकर भी किसी प्रकार की शिकायत नहीं करती, बल्कि उसी रूप में उसे स्वीकार करती है।

कहानी में संघर्ष की शुरुआत एक अत्यंत मामूली-सी रसोई की घटना से होती है। लालबिहारी दो चिड़ियों का मांस लाता है और आनंदी से उसे पकाने के लिए कहता है। आनंदी, अपने उच्च संस्कारों के कारण, अधिक मितव्ययी होकर नहीं बनाती बल्कि भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए पर्याप्त घी डाल देती है। शाम को श्रीकंठ को पता चलता है कि दाल में घी नहीं बचा क्योंकि घी मांस में लग गया। बस इसी छोटी-सी बात पर पति-पत्नी में विवाद हो जाता है। श्रीकंठ क्रोधित होकर घर छोड़ने की धमकी देता है। लालबिहारी और बड़े भाई के बीच भी गलतफहमियाँ बढ़ जाती हैं।

स्थिति बिगड़ते-बिगड़ते ऐसी हो जाती है कि परिवार टूटने की नौबत आ जाती है। इसी समय बेनीमाधव सिंह अपने अनुभव, धैर्य और मधुरता से मध्यस्थता कर सभी को एकजुट करते हैं। वे समझाते हैं कि परिवार प्रेम, सहयोग और समझदारी से चलता है, न कि क्रोध और अहंकार से। अंततः परिवार में पुनः शांति स्थापित होती है और आनंदी अपनी मर्यादा और संस्कारों का बड़प्पन सिद्ध करती है।


पात्र-परिचय (Character Sketch)

1. आनंदी (नायिका)

आनंदी इस कहानी की न केवल मुख्य पात्र है, बल्कि यह कहानी उसके व्यक्तित्व, मर्यादा, और गृहस्थी-समझ पर ही आधारित है।

उच्च कुल की बेटी होने पर भी अभिमान नहीं।

नए घर की आर्थिक स्थिति को स्वीकार कर लेती है।

मर्यादा, धैर्य, संयम और त्याग का सुंदर उदाहरण है।

विवाद के कारण बने प्रसंग में भी वह अपनी गरिमा बनाए रखती है।
प्रेमचंद आनंदी को “बड़े घर की बेटी” के माध्यम से यह दिखाते हैं कि बड़प्पन जन्म का नहीं, आचरण का गुण है।


2. श्रीकंठ (नायक)

पढ़ा-लिखा, नौकरीपेशा, पर स्वभाव से जल्दी क्रोधित होने वाला।

छोटी-सी बात भी उसे भावुक और तुनकमिजाज बना देती है।

उसके व्यवहार में पुरुष-अहंकार और तात्कालिक निर्णयों की प्रवृत्ति है।


3. लालबिहारी

देवर का स्वाभाविक, बेफिक्र और युवाओं जैसा मस्तमौला स्वभाव।

कभी-कभी बिना सोचे-विचारे काम कर देता है, जिससे अनजाने में विवाद बढ़ता है।

उसका चरित्र परिवार की आंतरिक संरचना को वास्तविकता से प्रस्तुत करता है।


4. बेनीमाधव सिंह (परिवार के मुखिया)

धैर्यवान, शांत स्वभाव के, अनुभवी और विवेकशील।

कहानी में वे मध्यस्थ और समाधानकर्ता की भूमिका निभाते हैं।
उनका चरित्र भारतीय पिता की आदर्श छवि के रूप में चित्रित है।

पात्र-योजना (Characterization Technique)

प्रेमचंद के पात्र अत्यंत जीवन्त और यथार्थवादी हैं।

हर पात्र सामाजिक यथार्थ की किसी न किसी परत को सामने लाता है।

आनंदी में स्त्री-धैर्य, मर्यादा और उच्च संस्कार हैं।

श्रीकंठ में मध्यवर्गीय संघर्ष, पुरुष-अहंकार और संवेदनशीलता का मिश्रण है।

लालबिहारी युवावस्था के उत्साह और असंयम का प्रतीक है।

बेनीमाधव परिवार के संतुलन और नैतिकता के प्रतिनिधि हैं।


प्रेमचंद की पात्र-योजना के कारण यह कहानी पाठक को सजीव प्रतीत होती है।


कहानी का उद्देश्य (Purpose / Uddeshya)

“बड़े घर की बेटी” कई सामाजिक, नैतिक और पारिवारिक उद्देश्यों को लेकर रची गई है:

1. संयुक्त परिवार में सामंजस्य का महत्व

कहानी यह सिखाती है कि छोटे-छोटे मतभेद भी यदि समय रहते सुलझाए न जाएँ, तो परिवार टूट सकता है।

2. स्त्री-धैर्य और मर्यादा का महत्व

आनंदी दिखाती है कि घर को संभालने में स्त्री की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।
उसका धैर्य परिवार को बचाता है।

3. क्रोध और अहंकार से नुकसान

परिवार क्रोध से नहीं, संवाद और समझदारी से चलता है।
श्रीकंठ का आक्रोश परिवार को संकट में डालता है, जबकि पिता का धैर्य स्थिति सुधार देता है।

4. संस्कार का श्रेष्ठ होना

कहानी बताती है कि बड़प्पन धन से नहीं, संस्कारों और व्यवहार से आता है।

5. नैतिक मूल्यों की आवश्यकता

त्याग, क्षमा, संयम, सहनशीलता—ये सब मूल्य परिवार को एकजुट रखते हैं।


थीम / कथ्य (Themes)

परिवार में एकता

स्त्रियों की भूमिका

आर्थिक स्थिति और मानसिकता

संस्कार बनाम अहंकार

संवाद की महत्ता

नैतिक और सामाजिक मूल्य

भाषा-शैली और परिवेश

प्रेमचंद की भाषा अत्यंत सरल, सहज और बोलचाल की है।
कहानी का परिवेश—गाँव का संयुक्त परिवार—यथार्थवादी रूप से चित्रित है।
संवाद छोटे-छोटे हैं, पर पात्रों की मनोवृत्ति साफ प्रकट करते हैं।

आलोचनात्मक मूल्यांकन

कहानी अत्यंत सफल है क्योंकि—

यह आम जीवन की घटनाओं पर आधारित है।

पात्र-योजना स्वाभाविक और मनोवैज्ञानिक है।

संदेश स्पष्ट व प्रभावी है।

भाषा सरल होते हुए भी प्रभावशाली है।

कुछ सीमाएँ भी हैं—

स्त्री-धैर्य को आदर्श बनाते हुए कहानी पारंपरिक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती है।

श्रीकंठ का अहंकार बहुत जल्दी चरम पर पहुँच जाता है, जो कुछ हद तक अतिरंजित लगता है।

फिर भी कथा का प्रभाव आज भी उतना ही प्रासंगिक है।

निष्कर्ष

“बड़े घर की बेटी” एक ऐसी कहानी है जो भारतीय परिवार, स्त्री-मर्यादा, संस्कार, धैर्य और पारिवारिक कर्तव्य की गहरी समझ प्रदान करती है। प्रेमचंद ने बहुत सहजता से दिखाया है कि परिवार की असली शक्ति समन्वय, प्रेम, त्याग और मर्यादा में है। आनंदी इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि “बड़े घर की बेटी” होना केवल वंश का सवाल नहीं, बल्कि उच्च चरित्र का परिचय है।
यह कहानी न केवल साहित्यिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक, नैतिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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