1. प्रस्तावना
प्रेमचंद (1880–1936) को हिंदी कथा साहित्य का सम्राट कहा जाता है। उनके उपन्यास, कहानियाँ और निबंध समाज के यथार्थ और आदर्श का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत करते हैं। किंतु प्रेमचंद केवल साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक सशक्त पत्रकार और संपादक भी थे। उन्होंने पत्रकारिता को समाज-सुधार और राष्ट्रीय जागरण का प्रभावी माध्यम बनाया। उनकी पत्रकारिता में वही संवेदनशीलता, वैचारिकता और लोक-मंगल की चेतना दिखाई देती है जो उनके साहित्य की आत्मा है।
2. प्रेमचंद की पत्रकारिता का आरंभ
प्रेमचंद का जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा हुआ था। आरंभ में वे अध्यापक और फिर सरकारी मुलाजिम रहे, परंतु अंग्रेजी शासन की कठोरता और अपनी स्वाभिमानी प्रवृत्ति के कारण नौकरी छोड़कर पूरी तरह साहित्य और पत्रकारिता की ओर प्रवृत्त हुए।
1910 के आसपास उन्होंने साहित्यिक लेखन के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक विषयों पर लेख लिखने शुरू किए।
स्वाधीनता आंदोलन के दौर में उनके विचार अधिक प्रखर हुए और पत्रकारिता उनका महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गई।
3. प्रेमचंद और हंस
प्रेमचंद ने 1929 में ‘हंस’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन प्रारंभ किया। यह पत्रिका उनकी पत्रकारिता का सबसे महत्वपूर्ण आयाम है।
‘हंस’ में उन्होंने सामाजिक अन्याय, जातीय विषमता, किसानों और मजदूरों की समस्याओं, स्त्रियों की स्थिति, धार्मिक कुप्रथाओं तथा राष्ट्रीय स्वाधीनता जैसे मुद्दों पर खुलकर लिखा।
यह पत्रिका जन-जागरण का सशक्त माध्यम बनी और हिंदी समाज में प्रगतिशील चेतना का संचार किया।
‘हंस’ ने न केवल प्रेमचंद के विचारों को मंच दिया, बल्कि नए लेखकों को भी अवसर प्रदान किया।
4. प्रेमचंद और जागरण
1932 में प्रेमचंद ने ‘जागरण’ पत्र का संपादन संभाला।
इसका उद्देश्य ग्रामीण समाज को शिक्षित और जागरूक बनाना था।
‘जागरण’ में किसानों की समस्याएँ, ऋणग्रस्तता, जमींदारों के शोषण, ग्रामीण शिक्षा और स्वराज्य आंदोलन से संबंधित लेख प्रकाशित होते थे।
प्रेमचंद की पत्रकारिता का यह चरण उन्हें जनता के और भी निकट ले आया।
5. पत्रकारिता में प्रमुख विषय
प्रेमचंद की पत्रकारिता का दायरा अत्यंत व्यापक था। उनके लेखों में निम्नलिखित प्रमुख विषय मिलते हैं—
1. सामाजिक सुधार – जाति-भेद, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह और स्त्री शिक्षा जैसे मुद्दों पर उन्होंने जनता को जागरूक किया।
2. आर्थिक प्रश्न – किसानों और मजदूरों की समस्याएँ, सामंती शोषण और ऋण की जकड़न का गहन विश्लेषण किया।
3. राजनीतिक चेतना – उन्होंने स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन और स्वराज्य की आवश्यकता पर लेख लिखे।
4. राष्ट्रीय एकता – सांप्रदायिक सौहार्द, हिंदू-मुस्लिम एकता और मानवतावाद को बल दिया।
5. साहित्य और संस्कृति – उन्होंने साहित्य को समाज के निर्माण का साधन मानते हुए उसकी भूमिका पर भी विचार किया।
6. प्रेमचंद की पत्रकारिता की विशेषताएँ
1. जनपक्षधरता – उनकी पत्रकारिता सदैव आम जनता, विशेषकर किसानों और मजदूरों के पक्ष में खड़ी रही।
2. सरल भाषा – उन्होंने पत्रकारिता में ऐसी भाषा का प्रयोग किया जो सीधे जनमानस से जुड़ सके।
3. निडरता और स्पष्टता – अंग्रेजी शासन और सामाजिक बुराइयों पर वे निर्भीकतापूर्वक लिखते थे।
4. आदर्श और यथार्थ का समन्वय – पत्रकारिता में भी उन्होंने यथार्थवादी दृष्टि के साथ सुधार और आदर्श की राह दिखाई।
5. प्रगतिशील दृष्टिकोण – उनके लेख सामाजिक परिवर्तन, समानता और न्याय की ओर संकेत करते हैं।
7. प्रेमचंद की पत्रकारिता की चुनौतियाँ
प्रेमचंद की पत्रकारिता आसान नहीं थी।
अंग्रेज सरकार की सेंसरशिप और दमन के कारण कई बार उनके लेख विवादास्पद बने।
आर्थिक कठिनाइयों से ‘हंस’ और ‘जागरण’ जैसी पत्रिकाएँ बार-बार संकट में आईं।
फिर भी उन्होंने समझौता नहीं किया और पत्रकारिता को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी माना।
8. आलोचकों की दृष्टि
रामविलास शर्मा ने लिखा – “प्रेमचंद की पत्रकारिता उनके साहित्य की ही विस्तार है, जिसमें जनपक्षधरता और राष्ट्रीयता का अद्भुत समन्वय है।”
नामवर सिंह के अनुसार – “प्रेमचंद ने पत्रकारिता को लोक-चेतना का औजार बनाया और उसे साहित्य की तरह ही समाज-निर्माण का माध्यम समझा।”
9. पत्रकारिता और साहित्य का संबंध
प्रेमचंद की पत्रकारिता और साहित्य एक-दूसरे के पूरक हैं।
उनकी कहानियाँ और उपन्यास जहाँ समाज की सच्चाइयों को कलात्मक रूप में प्रस्तुत करते हैं, वहीं उनकी पत्रकारिता इन मुद्दों पर प्रत्यक्ष और स्पष्ट टिप्पणी करती है।
दोनों ही माध्यमों का उद्देश्य समाज-सुधार और राष्ट्रीय चेतना का प्रसार था।
10. उपसंहार
प्रेमचंद की पत्रकारिता हिंदी जगत के लिए एक अनमोल धरोहर है। उन्होंने पत्रकारिता को सत्ता की चापलूसी का माध्यम न बनाकर जन-जागरण और समाज-सुधार का हथियार बनाया। उनकी लेखनी ने शोषितों को आवाज दी, अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का संदेश दिया और स्वाधीनता आंदोलन को बल प्रदान किया।
इस प्रकार, प्रेमचंद केवल उपन्यास सम्राट नहीं, बल्कि एक जन-जागरणकारी पत्रकार भी थे। उनकी पत्रकारिता ने यह सिद्ध कर दिया कि कलम केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का शस्त्र भी है।