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बुधवार, 13 मई 2020

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध देवदारु का सार

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत निबंध देवदारू का सार
देवदारु निबंध का प्रतिपाद्य
देवदारु निबंध का उद्देश्य
देवदारु निबंध का सार
देवदारु निबंध आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कृत एक भावात्मक निबंध है।

**द्विवेदी जी के निबंध संग्रह कुटज में संकलित निबंध में लेखक ने   देवदारू वृक्ष की महिमा का परिचय दिया है ।

**देवदारू वृक्ष होते हुए भी पर्वतीय पर्यावरण संरक्षक है।

*** यह महादेव का प्रियतम है यही कारण है देवदारू वृक्ष कहा जाता है।
 **यह वृक्ष नाम और अस्तित्व से महाभारत से भी प्राचीन है ।

**ललित निबंधकार हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इस वृक्ष की प्रशंसा की है और संदेश देने का प्रयास किया है कि एक सिद्धांत वादी वृक्ष श्रम को समाज से जोड़कर किस प्रकार आम आदमी का पथ प्रदर्शक बन सकता है।

**देवदारू वृक्ष वास्तव में सुंदर है ।
**वह एक आकर्षक वृक्ष भी है ।
**वह धरती से रसाग्रहण करके आकाश को छू लेना चाहता है ।
**हवा के झोंके में जब मिलता है तो वह मस्त होकर झूम उठता है। उसके झूमने में एक अजीब तरह की अनुभूति है जो युग युगांतर की संचित अनुभूति सी प्रतीत होती है। युगों के परिवर्तन को उसने देखा है।

 वहां खूब फल-फूल सके इसलिए देवदारू पर्वतों के नीचे नहीं उतरता है।
 समझौते के रास्ते पर ही नहीं और ना ही उसने अपनी खानदानी चाल से झूमता हुआ ।वह ऐसा मुस्कुराता है मानो कह रहा हो कि मैं सब समझ सकता हूं ।
देवदारू समय के उतार-चढ़ाव का दुर्लभ है निर्मल साथी है ऐसा साथ ही मिलना दुर्लभ है।
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि यह भगवान शिव काा भी प्रिय वृक्ष हैै किि देवदारू वृक्ष कालिदास और महाभारत से भी पुराना है यह निरंतर आकाश कीी ओर उड़ता चला जाताा है। इसकीी शाखाएं इस मृत्यु लोगों कोो अभयदान देेेेेेने के लिए फैलती चलीी जाती है।

**ऐसा कहा जाता है कि शिव ने प्रसन्न होकर उधम नर्तन किया था ।उस समय उनके शिष्य तांडू मुनि ने उन्हें याद किया उन्होंने जिस नृत्य का प्रवर्तन किया उसी को तांडव नृत्य कहा गया ।
तांडव नृत्य कार तांडू मुनि द्वारा प्रवर्तित भाव नृत्य रस का अर्थ है, और भाव का भी अर्थ है परंतु तांडव ऐसा नाच है जिसमें कोई अभाव नहीं होता लेखक स्वीकार करता है कि तांडव एक प्रकार की समाधि है जिसमें ध्यान धारणा और समाधि तीनों का योग है।
 देवदारू भी क्लासिक तथा उल्लास का सूचक है उसे देवदारू कहना अधिक उचित है देव होकर भी पसंद है तथा तरु होकर भी उसका अर्थ है जिस प्रकार कविता में छंद और अलंकार होते हैं तथा उसका अर्थ होता है और दोनों के कारण ही कविता बनती है इसी प्रकार देव देवता भी और तरू भी।

**उसे देवताओं का कार्ड भी कहा गया है तो उसे पता चलता है कि उसमें मैं तो दया है ,ना माया और ना मोहन ऐसे लगता है कि देवतरू हमेशा सावधान और जागृत रहता है, देवताओं की आंखें हमेशा खुली रहती है कभी बंद नहीं होती।
देवदारु का चमत्कारिक महत्व भी है।

*** लेखक ने अपने गांव के एक महान भूत भगवान ओझा को देवदारू की लकड़ी से भूत भगाते भी देखा है। इसी वजह न लेकर को चमत्कारी कहानी भी सुनाई।
पंडित जी ने जूता उतारा और मुंह से गायत्री मंत्र का उच्चारण कर देवदारू की लकड़ी से भूत को भगा दिया देवदारू की भंय कर
 मार से पराजित होकर भूत ने माफी मांगी और उसकी गुलामी स्वीकार कर ली।
 देवदारू के माध्यम से लेखक हमें बताना चाह रहा है कि भूत का माथा ही नहीं होता ,मस्तिष्क कहां से होगा।।
** भूत प्रेत कोई चीज नहीं होती यह सिर्फ काल्पनिक ता होती है सिर्फ हमारे दिमाग की उपज होती है।

** लेखक समझाना चाहता है कि सब विवेक का प्रयोग करके कल्पनिक बातों से दूर रहना चाहिए।

*"**लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी का देवदारु निबंध के माध्यम से पाठक वर्ग को कुछ उपदेश या संदेश दिए हैं।

1 देवदारू कोई वृक्ष ही नहीं देव और तरु दोनों की विशेषताएं इसकी हैं।
2.देवदारू के माध्यम से लेखक संदेश देता है कि विभिन्न परिस्थितियों आएगी, हर परिस्थिति में समान बने रहना जरूरी है ।देवदारु की तरह अटल और स्थिर रहना ही जीवन का उद्देश्य है।

3.देवदारु निबंध के माध्यम से आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी बताना चाहते हैं कि परिस्थितियों से समझौता ना करके उनमें समन्वय करने का भाव होना चाहिए।

4.मानव की जाति के आधार पर नहीं उसकी पहचान उसके गुणों के आधार पर होनी चाहिए ।उदाहरण स्वरूप इंदिरा गांधी अपनी राजनीति और कूटनीति के बल से जानी जाती हैं ,ना कि नेहरु की पुत्री के रूप में।


5. स्व विवेक का प्रयोग करने की प्रेरणा दी है।

6, हजारी प्रसाद द्विवेदी ने दी है और भूत-प्रेत जैसी भ्रांतियां  ना फैलाने के लिए कहा है कि भूत कुछ नहीं होते। लेखक का विचार है कि देवदारू मन की भ्रांति को दूर करने वाला वृक्ष है इसे देखकर मन में श्रद्धा उत्पन्न हो जाती है वह भूत भगा वन है, वह विपत्ति मिटा वन है और भ्रांति नाशावन है ।
देवदारु देवता के दुलारे और महादेव के प्यारे वृक्ष है।

7. लेखक ने बताया है कि देवदारु का जैसे अपना अस्तित्व है उसी प्रकार हर एक व्यक्ति का अपना अलग अस्तित्व है उसमें अलग गुण हैं।

 स्व को पहचानने की बात कही है तथा अहम को ठुकराने की बात भी उन्होंने कही है।

देवदारू की भाषा शैली

भले ही दिवेदी जी संस्कृत भाषा के विद्वान थे परंतु वे हिंदी के भी अच्छे ज्ञाता थे।

 उन्होंने देवदारू में तत्सम प्रधान 
शब्दावली का प्रयोग किया है।
भाषा को सहज और सरल बना दिया है।
 इस निबंध में उन्होंने विचारात्मक ,आलोचनात्मक तथा भावात्मक तीनों का सुंदर प्रयोग किया है।

मुख्य बिंदु
हजारी प्रसाद द्विवेदी
कुटज निबंध
ललित निबंधकार
कालिदास और महाभारत से भी प्राचीन
तांडव नृत्य
ध्यान धारणा और समाधि
अचल ,स्थिर

मंगलवार, 12 मई 2020

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद

राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
तुलसीदास
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद नामक यह कविता तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस में संकलित है ।
सीता स्वयंवर के अवसर पर धनुष भंग होने के कारण क्रोधित परशुराम और राम लक्ष्मण के बीच हुए संवाद ओं का वर्णन है ।
शिवजी का धनुष मिलता है तो वे क्रोध से भर उठते हैं और स्वयंवर स्थल पर पहुंचकर धनुष भंग करने वाले वाले को ललकार ने लगती हैं।
 परशुराम का क्रोध शांत करने के उद्दश्य से राम ने उनसे कहा कि शिवजी का धनुष तोड़ने वाला आपका ही कोई सेवक होगा यह सुनकर परशुराम ने कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा कार्य करें शिव धनुष तोड़ने वाले ने तो दुश्मन का कार्य किया है।
 जिसने भी इस धनुष को तोड़ा है वह इस सभा से अलग हो जाए नहीं तो सभी राजा मारे जाएंगे परशुराम का यह बड़बोला पर सुन लक्ष्मण निभाएंगे ।
पूर्ण ढंग से कहा बचपन में मैंने बहुत सारी दुनिया थोड़ी हैं तब तो किसी ने किया यह धनुष तो बहुत पुराना है यह तो छूते ही टूट गया इसमें तो श्रीराम का कोई दोष नहीं।

 यह सुनकर परशुराम का क्रोध और बालक समझकर मैं तेरा नहीं कर रहा हूं तू मुझे समझ रहा है मैं धरती पर आने वाला बाल ब्रह्मचारी और है इससे निराश किया है सहस्त्रबाहु की काट डाला है ।
अब तू यह सुन लक्ष्मण ने परशुराम को अपमानित करते हुए कहा आप मुझे कमजोर समझने की भूल ना करें हाथ नहीं उठा पा रहा हूं।वैसे भी हमारे कुल में देवता ईश्वर भक्त ब्राह्मण और गाय पर वीरता नहीं दिखाई जाती ।
स्वयं को अपमानित होता देखकर परशुराम ने विश्वामित्र से कहा मंदबुद्धि और सूर्य वंश कलंकी है बालक वध करने योग्य है यह देखकर विश्वामित्र ने उससे कहा ऋषि-मुनियों बच्चों के दोषों को की गणना नहीं करते हैं ।
यह सुनकर परशुराम ने कहा इस बालक को मैं केवल आपके सील के कारण छोड़ दे रहा हूं अन्यथा इस का वध कर मैं गुरु रण से मुक्त हो जाता लक्ष्मण भी कहां चुप रहने वाला था ।
उन्होंने परशुराम से कहा माता-पिता कारण आपने अच्छी तरह से चुका दिया गुरु ऋण से जिसके लिए आप बहुत चिंतित हैं इतने समय में तो ब्याज भी बहुत बढ़ गया हुआ आप गणना करने वाले वालों को बुला लीजिए ।
मै थैली खोलकर सारा ऋण चुका देता हूं।
 ऐसे कटु वचन सुनकर परशुराम ने लक्ष्मण को मारने के लिए अपना फर्ज था लिया जिससे सभा में हाहाकार मच गई ।
यह देखकर श्रीराम ने क्रोध की प्रज्वलित अग्नि शांत करने के लिए शीतल जल के समान शांत करने वाले वचन कहे जिससे परशुराम का क्रोध शांत हो गया।राम लक्ष्ममण परशुराम संवाद से संबंधित प्रश्नोत्तरी

सोमवार, 11 मई 2020

बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय

बालमुकुंद गुप्त का जीवन परिचय
बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय
बालमुकुंद गुप्त के निबंध साहित्य की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
जीवन परिचय- बालमुकुंद गुप्त द्विवेदी युगीन साहित्यकारों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं ।
वे भारतेंदु युग और दिवेदी युग को जोड़ने वाली कड़ी थे।
 वे अच्छे कवि, अनुवादक ,निबंधकार और कुशल संपादक थे ।
उनका जन्म 14 नवंबर 1865 में हरियाणा राज्य के रेवाड़ी जिले के गुड़ियानी गांव में लाला पूर्णमल के यहां हुआ ‌।
शिक्षा- गुप्त जी की आरंभिक शिक्षा गांव से आरंभ हुुई।

**छात्रावास में वे बड़े ही अध्ययन शील एवं सहनशीलता रहे। परंतु दादाजी तथा पिताजी के देहांत के बाद उनको अपनी शिक्षा अधूरी छोड़नी पड़ी ।
बाद में जब अध्ययन आरंभ किया तो 21 वर्ष की आयु में मिडिल परीक्षा पास कर सकें ।

गुप्तजी ने उर्दू भाषा और पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया।

कार्यक्षेत्र -गुप्तजी ने अखबार चुनार उर्दू अखबार के संपादक नियुक्त हो गए ।
साथ-साथ वे कोहिनूर तथा जमाना जैसे अखबारों के संपादकीय विभाग से जुड़े रहे ।
इसके बाद उनका रुझान हिंदी भाषा की ओर हुआ भारत प्रताप पत्र के साथ जुड़ने के बाद उनके हिंदी लेखन में काफी सुधार हुआ कालांतर में वे हिंदुस्तान ,हिंद बंगवासी व भारत मित्र के संपादक भी रहे।

मृत्यु -गुप्त जी की मृत्यु 18 सितंबर 1907
में 42 वर्ष की अल्पायु में ही हो गई लेकिन उनका नाम हिंदी साहित्य में हमेशा बना रहेगा।

प्रमुख रचनाएं -श्री बालमुकुंद गुप्त के जैस सिंधु -संधि बिंदु पर खड़े थे ।वहां इन्हें भारत का अतीत और वर्तमान परिदृश्य के समान साफ साफ दिखाई देता था और भारत का भविष्य अपने निर्णय की प्रतीक्षा में था इसलिए उनके विपुल साहित्य में भारत के स्वर्णिम भविष्य और संभावनाओं का ध्वनि -संकेत, शब्द शब्द में मुखरित हुआ हैै

*** शिव शंभू के चिट्ठे तथा चित्र सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंग्यात्मक ,सामाजिक और राजनीतिक निबंधों के संग्रह हैं ।
सन उन्नीस सौ पांच में बालमुकुंद गुप्त निबंधावली शीर्षक से उनके निबंधों का संग्रह भी प्रकाशित हुआ इसमें 50 निबंध संकलित है निबंधों के साथ उनके कुछ काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं।
साहित्यिक विशेषताएं -श्री बालमुकुंद गुप्त मूल्य संपादक से धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
 विदेश की पराधीनता के प्रति सदैव चिंतित रहते थे।
 उन्होंने अपने साहित्यिक निबंध ,संपादकीय लेखों और काव्या के विरुद्ध आवाज उठाई।

उनके निबंधों में कुछ विशेषताएं महत्वपूर्ण थी जो विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
राष्ट्रीय भावना -श्री बालमुकुंद गुप्त ने अल्प मात्रा में ही काव्य की रचना की है लेकिन उनका समूचा काव्य राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत है गुप्तजी भारत की पराधीनता को लेकर बहुत ही व्याकुल रहते थे ।
डॉ नगेंद्र ने उनके साहित्य के बारे में स्पष्ट लिखा है राष्ट्रीयता और हिंदी प्रेम उनके साहित्य का मुख्य विषय है ।
यदि गहराई से उनके साहित्य का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि राष्ट्रीयता उनके साहित्य का मुख्य स्वर है।
गांधीवादी विचारधारा -गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है ।
यद्यपि सिद्धांतों में विश्वास रखते हैं। फिर भी कहीं कहींींींींींींींीं उनके तेवर बड़े तेज तर्रार प्रतीत बड़े़ आशीर्वाद उन्होंने कहा है कि हमें विदेशी माल को नकार कर चरखा कातना चाहिए और लघु तथा कुटीर उद्योगोंं को प्रधानता देनी चाहिए ।
**लोक जागरण -द्विवेदी युगीन कभी होने के कारण  गुप्त जी के साहित्य मैं लोक जागरण का स्वर सुनाई देता है। उन्होंने देश की प्रथम तथा सामाजिक कुरीतियों था 
धर्मिक आडंबर ओं ‌‌का भी चित्रण किया है ।
गुप्तजी ने विदेशी वस्तुओं के त्याग और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर भी बल दिया है भले ही वे धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत थे लेकिन समाज सुधार की भावना भी उनमें प्रबल थी ।
उन्होंने अपने विभिन्न लेखों तथा कविताओं द्वारा इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं ।
व्यंग्य का प्रबल प्रयोग -गुप्तकालीन परिस्थितियां भारतेंदु युग इन परिस्थितियों से भी नहीं थी ।
वह लगभग भारतेंदु के समकालीन थे। वैसे तो उनको शिव शंभू के चिट्ठे से साहित्य ख्याति प्राप्त हुई ।लेकिन उनके व्यंग्य -लेख काफी तीखा और तेल मिला देने वाला है ।उन्होंने के गवर्नर भजन के माध्यम से अंग्रेजी साम्राज्य पर करारा व्यंग्य किए हैं।
 उस समय के हालात को देखते हुए यह कार्य सहज नहीं था।

 अनुवाद कार्य गुप्तजी ने अपने समय मेंेंेंें दूसरी भाषाओं के उत्तम कोटि के साहित्य को हिंदी में अनुवाद करने का कार्य किया ताकि हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सके।

** श्री बालमुकुंद गुप्त एक अच्छे अनुवादक थे।
 उन्होंने संस्कृत के रत्नावली नाटक और बांग्ला की बड़ेल भगिनी का सुंदर अनुवाद किया ।
इस प्रकार उन्हें उच्च स्तरीय रचनाओं का अनुवाद करके हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया है।


 समाज सुधार की भावना श्री बालमुकुंद गुप्त के साहित्य में समाज सुधार की भावना भी यथोचित स्थान मिला हैै
। उन्होंने अपने युग के समाज को जीवन को अत्यंत समीप देखा था। उसमें जो कमजोरियां ,अवगुण ,कुरीतियां स्वार्थी पन आदि व्याप्त्त्त्त था ।
उनको सावधान रहने की प्रेरणा दी ।
उन्होंने नारी सुधार पर भी खूब कार्य किया।
 उन्होंनेेे सामाजिक कुरीतियोंोंोंोंंो।
करारा व्यंग्य कसे ।
भाषा शैली
श्री बालमुकुंद गुप्त ने अपने साहित्य में सहज, सरल सामान्य बोलचाल की खड़ी बोली का प्रयोग किया।
 उनकी भाषा पर कुछ-कुछ ब्रज भाषा का भी प्रयोग है।
 इसका कारण है यह है कि भारतेंदु युग और दिवेदी युग को मिलाने वाली कड़ी के रूप में देखा जाता है।
फिर भी खड़ी बोली का सरल और सहज प्रयोग दिखाई पड़ता है ।
उनकी भाषा में उर्दू अंग्रेजी तद्भव शब्दों का अधिकाधिक मिश्रण भी दिखाई देता है।
 उनको अलंकारों से अधिक नहीं था ।
सफल निबंधकार और संपादक थे व्यंग्यात्मक शैली के लिए वे अपने समय में प्रख्यात साहित्यकार थे 
फिर भी उनका शब्द चयन सर्वथा उचित और भाव अभिव्यक्ति में समर्थ है एवं दो के समान कविता भी उनकी भाषा शैली की एक और विशेषता है।
शिव शंभू के चिट्ठे
शिव शंभू के चिट्ठे गुप्त जी का सुप्रसिद्ध निबंध संग्रह है इसमें कुल 11 निबंध संकलित है ।
इन सब में लार्ड कर्जन का जीवन तथा उनकी भारत के प्रति नकारात्मक सोच का उल्लेख है निबंध ओं का वर्णन इस प्रकार से है।
1. बनाम लार्ड कर्जन
2. श्रीमान का स्वागत
3. वेश राय का कर्तव्य
4. पीछे मत फैंकिए
5. आशा का अंत
6. एक दुर्दशा
7. विदाई संभाषण
8. बंग विच्छेद
9. आशीर्वाद 
10.लार्ड मिंटो का स्वागत
 11.माली साहब के नाम
निष्कर्ष
गुप्त जी के निबंधों में निबंधकार की संवेदनशीलता मनुष्य मात्र के प्रति उसकी आत्मीयता सहानुभूति और राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना का कहीं लोग नहीं होता ।
उनके द्वारा की गई निबंध कला को आगे चला कर खूब विकास हुआ ।
गुप्तजी के निबंध निबंध साहित्य की नमक का काम किया है। इसलिए निबंध साहित्य के विकास में बालमुकुंद गुप्त का श्रेष्ठ स्थान है ।निबंध कला के विकास के योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।


शुक्रवार, 8 मई 2020

रसखान से संबंधित प्रश्नों के उत्तर

रसखान से संबंधित प्रश्नों के उत्तर
रसखान का जन्म 1548 में हुआ माना जाता है।
 उनका मूल नाम सैयद इब्राहिम था।
 दिल्ली के आसपास के रहने वाले थे।
 कृष्ण भगत ने उन्हें ऐसा मुक्त कर दिया की गोस्वामी विट्ठलनाथ से दीक्षा ली और ब्रजभूमि में जब से सन1628 के लगभग उनकी मृत्यु हुई।

 सुजान रसखान और प्रेम वाटिका इनकी उपलब्ध कृतियां हैं ।
रसखान रत्नावली के नाम से इनकी रचनाओं का संग्रह मिलता है ।
प्रमुख कृष्ण भगत कवि रसखान की वृत्ति ने केवल कृष्ण के प्रति यह प्रकट हुई है।
 बल्कि कृष्ण भूमि के प्रति भी उनका आनंद न अनुराग व्यक्त हुआ है।
काव्य में कृष्ण के रूप माधुरी।
 ब्रज महिमा 
राधा कृष्ण की प्रेम लीला ओं का मनोहर वर्णन मिलता है।

 वे अपनी प्रेम की तन में था भव्य लता और आसक्ति के उल्लास के लिए जितने प्रसिद्ध हैं उतने ही अपनी भाषा की मार्मिक ता शब्द चयन शैली के लिए उनके यहां ब्रजभाषा का अत्यंत मनोरम और सरल व साहस प्रयोग मिलता है जिस में जरा भी शब्द आडंबर नहीं है।
सवैये

मानुष हौं तो वही रसखान बसों बृज गोकुल गांव के गवारन
जोै पशु होैं तो कहा बस मेरो चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।।
पाहन तो वही गिरि को जो क्यों हरि छत्र पुरंदर धारन
जोैं खग हौं तो बसेरो करौं मिली कालिंदी कूल कदंब की डारन

प्रथम सवैये के माध्यम से कवि रसखान बताना चाहते हैं कि अगर मेरा जन्म मनुष्य के रूप में हो तो गोकुल के गांव के वालों के बीच में हो अगर जय श्री कृष्ण आप मुझे पशु के रूप में जन्म देना चाहते हैं तो मैं नंदबाबा की गायों के बीच में गाय बनकर चलूं श्री कृष्ण अगर मेरा जन्म पत्थर के रूप में हो तो मैं उसे गिरी का पत्थर बनो जो श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठाई थी अर्थात गोवर्धन पर्वत का ही पत्थर बनो इसमें रसखान की अनन्य भक्ति झलकती है उन्होंने कहा है कि अगर मेरा जन्म रूप में हो तो मेरा बसेरा हमेशा कालिंदी यानी यमुना पुल पर ही हो यहां संकलित पहले समय में कृष्ण और कृष्ण भूमि के प्रति कवि का अनन्य समर्पण भाव व्यक्त हुआ है।
रसखान से संबंधित प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न रसखान की रचना के तथा उनकी एक एक प्रसिद्ध कविता का नाम लिखिए।
उत्तर रसखान की रचना सुजान ,रसखान, प्रेम वाटिका

प्रश्न नंबर दो- रसखान के आराध्य कौन हैं?
उत्तर- रसखान के आराध्य भगवान श्री कृष्ण हैं।

प्रश्न3.निम्न में से कौन रीतिकालीन कवि नहीं है
1 धनानंद
2 देव
3 मतिराम
4 रसखान

उत्तर-इनमें से रसखान जी रीतिकालीन कवि नहीं है इन्हें भक्तिकालीन कवि कहा जाता है भक्ति काल में भी कृष्ण कवि मुसलमान होते हुए भी इन्होंने हिंदी में कृष्ण काव्य धारा कृष्ण प्रेम को अपनाया।

प्रश्न -रसखान को रस की खान क्यों कहा जाता है?
रसखान की भक्ति श्री कृष्ण के प्रति अनन्य है उनकी भक्ति से जो भावपूर्ण रचनाएं निकली हैं उसमें एक अद्भुत रस उत्पन्न होता है इसीलिए उनको रस की खान यानी रसखान कहा जाता है।

प्रश्न -राजस्थानी ने अपनी किस रचना में स्वयं को शाही खानदान का कहा है?
उत्तर -रसखान ने अपनी रचना सुजान में अपने आपको शाही खानदान का कहा है।

प्रश्न- रसखान प्रत्येक रूप में ब्रज में ही क्यों रहना चाहते हैं?
रसखान जी श्री कृष्ण से अनन्य प्रेम करते हैं उनकी प्रेम में तन्मयता भाव भी हल्का और आसक्ति का उल्लास है ।

इसीलिए वे मनुष्य रूप में ब्रज के ग्वाले पशु रूप में नंद बाबा के गाने पानी पत्थर के रूप में वह गोवर्धन पर्वत का पत्थर तथा खा के रूप में वे यमुना के किनारे कालंदी कुंज की डाल पर रहना चाहते हैं क्योंकि वे हमेशा कृष्ण के के बाल लीलाओं का आनंद लेना चाहते हैं चक्र से संबंधित चीजों के साथ निवास करके अपने आपको उनकी भक्ति में लीन बनाना चाहते हैं।

प्रश्न*रसखान ने प्रेमानंद किसे कहा है?
उत्तर-सुजान को उन्होंने प्रेमी तथा कृष्ण भक्ति को भी अपने प्रेम अयनी कहा है।
रसखान जी की उपलब्धियां कौन-कौन सी हैं?
उत्तर रसखान
सुजान
प्रेम वाटिका
रसखान रचनावली
इनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
इसके अलावा इनके काव्य में कृष्ण की रूप माधुरी ब्रिज महिमा राधा कृष्ण की प्रेम लीला ओं का मनोहर वर्णन मिलता है।
इनकी भाषा शैली
भाषा की आसक्ति मैं मार्मिक था शब्द चयन व्यंजक सैलरी बहुत महत्वपूर्ण है ब्रजभाषा का अत्यंत सरल सहज और मनोरम प्रयोग किया है आडंबर से यह बिल्कुल दूर रहे हैं इनकी रचनाओं में रस की अजीब धारा, अद्भुत धारा है।

स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र देने के लिए स्कूल के प्रिंसिपल को प्रार्थना पत्र लिखिए

स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र देने के लिए स्कूल के प्रिंसिपल को प्रार्थना पत्र लिखिए।
school leaving certificate
S .L.C certificate
SLC लेने हेतु स्कूल के प्रधानाचार्य को प्रार्थना पत्र लिखिए।
सेवा में
प्रधानाचार्य जी
---------------विद्यालय
---------_--------नगर
विषय-स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र लेने हेतु प्रार्थना पत्र
श्रीमान जी
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके स्कूल में-------कक्षा का छात्र हूं। पिछले सप्ताह मेरे पिताजी का स्थानांतरण ---------से -----------हो गया है हमारा पूरा परिवार यहां से जा रहा है तथा मुझे भी उन्हीं के साथ है जाना पड़ेगा यहां मेरे रहने का कोई अन्य विकल्प नहीं है इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि आप मुझे विद्यालय छोड़ने का प्रमाण पत्र देने की कृपा करें ताकि मैं सही समय पर दूसरे विद्यालय में प्रवेश ले सकूं आपकी इस कृपा के मैं आपका सदा आभारी रहूंगा।
धन्यवाद
आपका आज्ञाकारी शिष्य
नाम-----------------
कक्षा---------------
अनुक्रमांक--------------
दिनांक---------

बुधवार, 6 मई 2020

नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए 25 मंत्र एग्जाम वॉरियर्स पुस्तक में से

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए 25 मंत्र एग्जाम वॉरियर्स पुस्तक में से
मंत्र नंबर एक परीक्षा एक उत्सव है उमंग और उल्लास से मनाए
मंत्र नंबर दो
परीक्षा आपकी अभी की तैयारी की है पूरे जीवन की नहीं मस्त रहें।
मंत्र नंबर 3
हंसते हुए जाइए मुस्कुराते हुए आइए।
मंत्र नंबर 4 
Warrior बनें, worrier नहीं।
मंत्र नंबर 5 
ज्ञान स्थाई है इसे ही लक्ष्य बनाइए।
मंत्र नंबर 6
प्रतिस्पर्धा नहीं अनु स्पर्धा
मंत्र नंबर 7 
समय आपका है सदुपयोग कीजिए।
मंत्र नंबर 8
वर्तमान ईश्वर का सर्वोत्तम उपहार है वर्तमान में जीये।
मंत्र नंबर 9
टेक्नोलॉजी से पढ़ाई रोचक और सरल इसे आजमाएं।
मंत्र नंबर 10
करना है बेहतर काम
 तो करे पर्याप्त आराम
मंत्र नंबर 11
अच्छी नींद सफलता का मंत्र।
मंत्र नंबर 12
जो खेले वह खिले।
मंत्र नंबर -13
स्वयं को जाने अपनी क्षमताओं पर गर्व कीजिए।
मंत्र नंबर 14
अभ्यास से बढ़ेगा आत्मविश्वास।
मंत्र नंबर 15
बातें छोटी असर बड़े परीक्षा के अनुशासन का पालन कीजिए।
मंत्र नंबर 16
आपकी परीक्षा आप के तरीके अपनी शैली अपनाएं।
मंत्र नंबर 17
प्रस्तुतीकरण महत्वपूर्ण है पारंगत बनिए।
मंत्र नंबर 18
अकल को हां नकल को ना।
मंत्र नंबर 19
उत्तर पुस्तिका आगे बढ़ चुकी है आप भी आगे बढ़े।
मंत्र नंबर 20
जीवन को जाने स्वयं को पहचाने।
मंत्र नंबर 21
अतुल भारत घूमिए है और जानिए।
मंत्र नंबर 22
एक यात्रा समाप्त दूसरी शुरू।
मंत्र नंबर 23
कुछ बनने के नहीं कुछ करने के सपने देखिए।
मंत्र नंबर 24
वह हैं इसलिए आप हैं कृतज्ञ रहें।
मंत्र नंबर 25 
योग तंदुरुस्त शरीर और तेज दिमाग की चाबी 
इसे अपनाए।

फीचर लेखन

फीचर

फीचर को अंग्रेजी शब्द फीचर के पर्याय के तौर पर फीचर कहा जाता है। हिन्दी में फीचर के लिये रुपक शब्द का प्रयोग किया जाता है लेकिन फीचर के लिये हिन्दी में प्रायः फीचर शब्द का ही प्रयोग होता है। फीचर का सामान्य अर्थ होता है – किसी प्रकरण संबंधी विषय पर प्रकाशित आलेख है। लेकिन यह लेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले विवेचनात्मक लेखों की तरह समीक्षात्मक लेख नही होता है।

फीचर समाचारों के प्रस्तुतिकरण की ही एक विधा है लेकिन समाचार की तुलना में फीचर में गहन अध्ययन, चित्रों, शोध और साक्षात्कार आदिके जरिए विषय की व्याख्या होती है। उसका विस्तृत प्रस्तुतिकरण होता है और यह सब कुछ इतने सहज और रोचक ढंग से होता है कि पाठक उसके बहाव में बंधता चला जाता है। पत्रकारिता और साहित्य के विद्वानों ने रूपक की अलग-अलग परिभाषाएं गढ़ी हैं। एक परिभाषा के अनुसार,

‘‘रोचक विषय का मनोरम और विशद प्रस्तुतिकरण ही फीचर है। इसमें दैनिक समाचार, सामयिक विषय और बहुसंख्यक पाठकों की रूचि वाले विषय की चर्चा होती है। इसका लक्ष्य मनोरंजन करना, सूचना देना और जानकारी को जन उपयोगी ढंग से प्रस्तुत करना है।’’

सामान्य शब्दों में कहें तो समाचार का काम तत्थ्य और विचार देकर खत्म हो जाता है। जबकि फीचर का काम इससे आगे का होता है। यह समाचार की पृष्ठभूमि का खुलासा करते हैं, विषय या घटना के जन्म और विकास का विवरण देते हैं। यह विषय अथवा घटना का पूरा खुलासा भी करते हैं और पाठक को कुछ सोचने के लिए भी विवश करते हैं। एक अच्छे फीचर की सार्थकता इसी बात में है कि वह अपने पाठकों के मन मष्तिष्क पर कितना प्रभाव डालती है। फीचर लेखक घटना या विषय के बारे में अपनी प्रतिक्रिया या विचार भी पाठक को बतलाता है और इस तरह पाठक की कल्पना शक्ति को और उसकी वैचारिक मनःस्थिति को भी प्रभावित करता है।

फीचर का महत्व इसी बात में है कि यह कब, क्यों, कैसे, कहां और कौन को स्पष्ट करने वाले समाचार यानी न्यूज से आगे जाकर तत्थ्य कल्पना और विचार की संतुलित प्रस्तुति के जरिए अपना एक विशेष प्रभाव छोड़ता है। फीचर का एक महत्व यह भी है कि यह पाठक के मन में किसी खबर को पढ़ने के बाद पैदा हुई जिज्ञासा को भी संतुष्ट करता है। आजकल समाचार पत्रों में फीचरों का उपयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। यूरोप में जारी जबर्दस्त सरदी और हिमपात पर भारतीय भाषाई अखबारों में विस्तृत समाचारों के लिए स्थानाभाव हो सकता है। लेकिन इसी विषय को महज एक छोटी सी जगह में एक सचित्र फीचर के जरिए प्रस्तुत कर अखबार अपने स्थानाभाव की समस्या से भी उबर सकते हैं और पाठक को बर्फ से जमे यूरोप के बारे में सम्पूर्ण जानकारी भी मिल जाती है। इसी तरह किसी स्थानीय दुर्घटना के समाचार के साथ-साथ अगर उस तरहकी अन्य घटनाओं का विवरण, रोकथाम के उपायों, प्रभावितों के अनुभव आदि एक सचित्र फीचर के रूप में प्रस्तुत कर दिया जाता है तो इससे पाठक को सम्पूर्ण जानकारी एक साथ मिल जाती है। फीचर के इस उपयोग ने आज फीचर के महत्वको अत्यधिक बढ़ा दिया है।

इस बढ़ते महत्व के कारण फीचर लेखन भी अब पत्रकारिता की एक महत्वपूर्ण विधा हो गई है। इसी के साथ फीचर लेखकों का महत्व भी बढ़ता जा रहा है। आज समाचार पत्रों में फीचर डेस्क का महत्व भी बढ़ गया है और उनकी उपयोगिता भी। समाचार पत्रों में अब फीचर के कारण बेहतर प्रस्तुतिकरण और तात्कालिकता पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है। कई बड़े अखबार समूहों में अब केन्द्रीयकृत फीचर लेखन व्यवस्था भी शुरू हो गई है जिसके तहत महत्वपूर्ण विषयों पर फीचर तैयार कर अखबार के सभी संस्करणों के लिए भेज दिए जाते हैं। इंटरनेट और सूचना तकनीक के चमत्कारों ने आज फीचर लेखन को आसान बना दिया है। लेकिन इन्हीं चमत्कारों के कारण आज फीचर लेखन के क्षेत्र में नई चुनौतियाँ भी खड़ी हो गई है। आज फीचर लेखक को इस चीज पर सर्वाधिक ध्यान देना पड़ता है कि उसके फीचर में सारे तत्थ्य एकदम सही हों, ताजे हों, समीचीन हों और वे पाठक की सारी जिज्ञासाओं का समाधान भी कर सकें।
फीचर समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव – जन्तु, तीज – त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृति – परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रो रह जाविषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया विशिष्ट आलेख होता है।

फीचर के प्रकार

·          व्यक्तिपरक फीचर

·          सूचनात्मक फीचर

·          विवरणात्मक फीचर

·          विश्लेषणात्मक फीचर

·          साक्षात्कार फीचर

·          इनडेप्थ फीचर

·          विज्ञापन फीचर

·          अन्य फीचर

फीचर की विशेषतायें

1 सत्यता-
किसी घटना की सत्यता या तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व होता है। एक अच्छे फीचर को किसी सत्यता या तथ्यता पर आधारित होना चाहिये।

2 निष्पक्षता- 

3 फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिये।

4 रोचकता
फीचर का विषय रोचक होना चाहिये या फीचर को किसी घटना के दिलचस्प पहलुओं पर आधारित होना चाहिये।

5 मनोरंजक-
फीचर को शुरु से लेकर अंत तक मनोरंजक शैली में लिखा जाना चाहिये।

6 ज्ञानवर्धक-        
फीचर को ज्ञानवर्धक, उत्तेजक और परिवर्तनसूचक होना चाहिये।

 7 फीचर को किसी विषय से संबंधित लेखक की निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति होनी चाहिये।

8 फीचर लेखक किसी घटना की सत्यता या तथ्यता को अपनी कल्पना का पुट देकर फीचर में तब्दील करता है।

9. फीचर को सीधा सपाट न होकर चित्रात्मक होना चाहिये।

10. फीचर कीभाषा सरल, सहज और स्पष्ट होने के साथ – साथ कलात्मक और बिंबात्मक होनी चाहिये।

फीचर लेखन की प्रक्रिया

·         विषय का चयन

·         सामग्री का संकलन

·         फीचर योजना

विषय का चयन

किसी भी फीचर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला है। इसलिये फीचर का विषय समयानुकूल, प्रासंगिक और समसामयिक होना चाहिये। अर्थात फीचर का विषय ऐसा होना चाहिये जो लोक रुचि का हो, लोक – मानव को छुए, पाठकों में जिज्ञासा जगाये और कोई नई जानकारी दे।

सामग्री का संकलन

फीचर का विषय तय करने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है विषय संबंधी सामग्री का संकलन। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में किसी विषय पर लिखा गया फीचर उबाऊ हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र – पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा फीचर लेखक को बहुत सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों में जाकर जुटानी पड़ सकती है।

फीचर योजना

फीचर से संबंधित पर्याप्त जानकारी जुटा लेने के बाद फीचर लेखक को फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध खाका बनाना चाहिये।

फीचर लेखन की संरचना

·         विषय प्रतिपादन या भूमिका

·         विषय वस्तु की व्याख्या

·         निष्कर्ष

विषय प्रतिपादन या भूमिका

फीचर लेखन की संरचना के इस भाग में फीचर के मुख्य भाग में व्याख्यायित करने वाले विषय का संक्षिप्त परिचय या सार दिया जाता है। इस संक्षिप्त परिचय या सार की कई प्रकार से शुरुआत की जा सकती है। किसी प्रसिद्ध कहावत या उक्ति के साथ, विषय के केन्द्रीय पहलू का चित्रात्मक वर्णन करके, घटना की नाटकीय प्रस्तुति करके, विषय से संबंधित कुछ रोचक सवाल पूछकर।  मिका का आरेभ किसी भी प्रकार से किया जाये इसकी शैली रोचक होनी चाहिये मुख्य विष्य का परिचय इस तरह देना चाहिये कि वह पूर्ण भी लगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ छूट जाये जिसे जानने के लिये पाठक पूरा फीचर पढ़ने को बाध्य हो जाये।

विषय वस्तु की व्याख्या

फीचर की भूमिका के बाद फीचर के विषय या मूल संवेदना की व्याख्या की जाती है। इस चरण में फीचर के मुख्य विषय के सभी पहलुओं को अलग – अलग व्याख्यायित किया जाना चाहिये। लेकिन सभी पहलुओं की प्रस्तुति में एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्रमबद्धता होनी चाहिये। फीचर को दिलचस्प बनाने के लिये फीचर में मार्मिकता, कलात्मकता, जिज्ञासा, विश्वसनीयता, उत्तेजना, नाटकीयता आदि का समावेश करना चाहिये।

फीचर संरचना से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू

शीर्षक

किसी रचना का यह एक जरुरी हिस्सा होता है और यह उसकी मूल संवेदना या उसके मूल विषय का बोध कराता है। फीचर का शीर्षक मनोरंजक और कलात्मक होना चाहिये जिससे वह पाठकों में रोचकता उत्पन्न कर सके।

छायाचित्र

छायाचित्र होने से फीचर की प्रस्तुति कलात्मक हो जाती है जिसका पाठक पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विषय से संबंधित छायाचित्र देने से विषय और भी मुखर हो उठता है। साथ ही छायाचित्र ऐसा होना चाहिये जो फीचर के विषय को मुखरित करे फीचर को कलात्मक और रोचक बनाये तथा पाठक के भीतर विषय की प्रस्तुति के प्रति विश्वसनीयता बनाये।

निष्कर्ष

फीचर संरचना के इस चरण में व्याख्यायित मुख्य विषय की समीक्षा की जाती है। इस भाग में फीचर लेखक अपने ऴिषय को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत कर पाठकों की समस्त जिज्ञासाओं को समाप्त करते हुये फीचर को समाप्त करता है। साथ ही वह कुछ सवालों को पाठकों के लिये अनुत्तरित भी छोड़ सकता है। और कुछ नये विचार सूत्र पाठकों से सामने रख सकता है जिससे पाठक उन पर विचार करने को बाध्य हो सके।