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बुधवार, 20 मई 2020

सीबीएसई बोर्ड की बची हुई परीक्षाएं होंगी जुलाई में

सीबीएसई बोर्ड की बची हुई परीक्षाएं होंगी जुलाई में
कोरोना कॉल मी पुराना महामारी को देखते हुए 10वीं 12वीं की परीक्षाओं को रोक दिया गया था।
अब परीक्षाएं 1 जुलाई से ली जाएंगी जीन की डेट शीट बोर्ड द्वारा जारी की गई है जो मैंने नीचे इमेज के माध्यम से दर्शाने का प्रयास किया है सभी बच्चे अपनी तैयारी को अंजाम दे आपके स्वर्णिम भविष्य की मंगल कामना करते हैं।यह डेट शीट सीबीएसई बोर्ड की ऑफिशियल साइट पर दीीी गई  सभीी बच्चों से अनुरोध हैैैै वह अपनी तैयारी करें सोशल डिस्टेंसिंग काााा ध्यान रखा जा सभीी कोक्ष्क्

मंगलवार, 19 मई 2020

प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए इतिहास की तैयारी हेतु पुस्तकें

इतिहास की तैयारी सेतु हिंदी मीडियम पुस्तकें


1.आधुनिक भारत का इतिहास - राजीव अहीर
2.भारतीय कला एवं संस्कृति -नितिन सिंघानिया
3.मध्यकालीन भारत राजनीति समाज व संस्कार- सतीश चंद्र
4.भारत का प्रथम प्राचीन इतिहास- रामशरण शर्मा
5.भारत गांधी के बाद- रामचंद्र गुहा
6.इंडियन हिस्ट्री पीडीएफ फेसबुक
7.हिस्ट्री नोट्स इन पीडीएफ इन हिंदी एग्जाम ट्रिक डॉट कॉम
8.जितेन क्लासेस नोट्स इन पीडीएफ
9 सरस्वती क्लासेज
10.भारत का राष्ट्रीय आंदोलन- िबपिन चंद्र
11.आईएएस कोचिंग सेंटर मुखर्जी नगर दिल्ली हिंदी नोट्स
12इ्गनू बुक्स
13.एनसीईआरटी बुक्स 6 इन ट्वेल्थ
14.घटना चक्र पिछले प्रश्न पत्र
15.जीएस प्वाइंटर
16.एनसीईआरट सामान्य ज्ञान विद्यापीठ पब्लिकेशन
17.सामान्य अध्ययन 1260 सेट 1992 से लेकर 2020        तक स्पीडी सामान्य अध्ययन
18.लुसेंट सामान्य ज्ञान
19.धनखड़ सामान्य ज्ञान
20. के .डी कैंपस इतिहास नोट्स इन हिंदी

सोमवार, 18 मई 2020

विद्यानिवास मिश्र द्वारा रचित मेरे राम का मुकुट भीग रहा निबंध का सार

मेरे राम का मुकुट भीग रहा शीर्षक निबंध का सार


मेरे राम का मुकुट भीग रहा डॉक्टर विद्यानिवास मिश्र सुप्रसिद्ध ललित निबंध है।

 इस निबंध के माध्यम से लेखक की संवेदना द्वारा लोकतंत्र वेदना का सजीव चित्रण हुआ है ।

लेखक ने लोकजीवन की अंतर वेदना को राम के राजतिलक के समय की घटना के माध्यम से सशक्त अभिव्यक्ति प्रदान की है।
***
*** राम का वनवास करुणा का प्रतीक है जिस व्यक्ति का राज अभिषेक हो रहा था विडंबना वर्ष उसे राज सिंहासन की अपेक्षा वनवास हो गया ।

***स्वतंत्र भारत की जनता को स्वतंत्रता के पश्चात राज सिंहासन पर होना चाहिए था किंतु राज सिंहासन पर कुछ ही जाने माने लोग बैठ गए और भारतीय जनता वनवास जैसा जीवन व्यतीत करने पर मजबूर हो गई ।

***भारत के विशेषकर अवध प्रदेश के आसपास के क्षेत्र के लोग लोक जीवन में राम की करुणामयी कहानी उनके मानस पटल पर आज भी अंकित है ।

***लेखक ने अपनी चिंता के कारणों पर प्रकाश डालते हुए एक संगीत कार्यक्रम की घटना का उल्लेख किया है अपने घर आई एक मेहमान लड़की जो संगीत कार्यक्रम में उनके बेटे साथ जाती है और देर रात तक लौटकर नहीं आती तो उनके मन में चिंता का होना स्वाभाविक है ।

****लेखक पहले तो शहरों की आज कल की असुरक्षित स्थिति का ध्यान रखते हुए इन दोनों को जाने नहीं देना चाहता था किंतु लड़के का मन रखने के लिए कह दिया कि एक डेढ़ घंटे सुनकर लौट आना रात्रि के 12:00 बजे तक उनके लौटने पर लेखक की पत्नी बहुत बेचैन हो उसी समय वर्षा का आरंभ होना लेखक और उसकी पत्नी के लिए चिंता का विषय बन गया उनकी लौट आएंगे इसी तरह शांत हो गई ।
दरवाजे में दरवाजे पर ही लगी रही लेखक के सामने उसका बचपन उन्हें जीवित हो उठा।

**** उसे अपनी दादी नानी की कही बातें रह-रह कर याद आने लगी उसके बाहर जाने पर या विदेश जाने पर दादी नानी व्याकुल होकर गीत गाती और लॉटरी पर कहती मेरे लाल को कैसा बनवास मिला था दादी नानी का गीत तो अच्छा लगता था ।परंतु मन का दर्द नहीं सोता था किंतु आज परीक्षा के प्रतीक्षा के क्षणों में उनकी बात मुझे यथार्थ महसूस हो रही है और दादी नानी की पीड़ा का भी अनुभव मुझे आज हो रहा है भावी पीढ़ी समझ नहीं पाती अपनी संतान के संभावित संकट की कल्पना मात्र से बेचैन होती है

***बार-बार मन को समझाने पर भी लेखक का मन नहीं समझता अपनी गली के वातावरण का ख्याल आते ही मन में दुश्चिंता पुन: सिर उठाने लगती है।

***मन ख्याल ो में डूबा हुआ था ।उसी समय उनका मन कौशल्या की ओर भारत की एक ऐसी कोई भी कौशल्या नहीं है। उस समय जैसी लाखों-करोड़ों को जिनका मन राम के वनवास के कारण दुखी नहीं है बल्कि कौशल्या के पुत्र राम की तरह अनेक रूप बनकर मन में घूम रहे हैं ।जिनका अपना कोई ठिकाना नहीं है किंतु समझने वाली बात यह है कि आज भी राम के सिर पर मुकुट बंधा बांधा जाता है ।


**सभी को उसके भीगने की चिंता रहती है आज भी काशी रामलीला के आरंभ होने से पूर्व निश्चित समय का मुहूर्त निकालकर राम के मुकुट की पूजा की जाती है किंतु आज लाखों करोड़ों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता जो अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए विवश हैं। 

***लेखक पुन अपनी विचारधारा में लौट आता है कि आज केवल देश में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में ऐसी कुशल यही राम का मुकुट ही क्यों लक्ष्मण का दुपट्टा और जागरण भेज रहा है सीता का सिंदूर भीग रहा है उसका अखंड सौभाग्य दिख रहा है यह नीति का खेल है।
 कि ऐश्वर्या और निर्वासन दोनों साथ साथ चलते हैं।
 राम के राजपाट को संभालने वाले बरस अयोध्या के समीप रहते हुए भी उनसे अधिक निर्वासित जीवन व्यतीत करते हैं।
 विभिन्न आशंका और बर्मा से भ्रमित हो उठता है उसे एेसे मंगल आकांक्षा के पीछे से जाती हुई ध्वनि वाला आसन का कुल आंखों से अमंगल सा प्रतीत होने लगता है ।
उसका सारा उत्साह फीका पड़ जाता है। तुलसीदास की कहीं पंक्तियां से याद आने लगती हैं ।

लगती अवध अब आया वह भारी मां तू कालरात्रि अंधियारी गोरे जंतु संपूर्ण नारी डर पर ही एक ही एक निहारी
 घमासान परिजन जन्म होता सहित मीत मनु जमदूत 
वाघ हैवी पेलीकुला सरित सरोवर देखी ना जाए


कैसी मंगलमय सुबह की कल्पना की थी और कैसी अंधकार में कालरात्रि आ गई ।अपने ही लोग भूत-प्रेत से प्रतीत होने लगे ।
ऐश्वर्या से अभिषेक हो रहा था किंतु निर्वासन हो गया उत्कर्ष की ओर उन्मुख सिस्टम का चेतन ने अपने ही घर से बाहर कर दिया गया।
 उत्कर्ष की मनुष्य की उर्दू उन्मुख चेतना की यह कीमत सनातन काल तक अदा की जा रही है।
 अब यदि कीमत अदा कर ही दी गई है तो उत्कर्ष कम से कम सुरक्षित हो रहे ।
यह चिंता भी स्वाभाविक है राम का और राम के मुकुट का गौरव शेष के अवतार लक्ष्मण का गौरव से संभव है। और इन दोनों के गौरव की सुरक्षा जग जननी आदिशक्ति के अखंड सौभाग्य सिंदूर से रक्षित हो सकेगा ।

राम का निर्वासन सीता का दौरा निर्वासन बन जाता है।
 राम तो 1 से आकर राजा बन जाते हैं किंतु सीता रानी होते हुए भी राम के द्वारा वन में निर्वासित कर दी जाती है राम के साथ लक्ष्मण हैं किंतु 

वह जंगल की सूखी लकड़ी बनती है जलाकर अंजोर करती है जुड़वा बच्चों का मुंह मारती है।
 दूध की भांति अपमान की ज्वाला से चित्र खुद पढ़ने के लिए उठता है किंतु बच्चों की प्यारी सूरत देखकर उस पर पानी के छींटे पड़ जाते हैं और शाम तक जाता है निर्वाचन में भी तो इसका सौभाग्य है सीता का बनवास राम को निर्वासन से भी अधिक देता है।
 राम को वन में रहकर इतनी पीड़ा नहीं हुई जितनी सीता को वनवास अयोध्या में एक बार फिर साबित हो जाता है निशानी रहती है सीता के माथे का सिंदूर दमक होता है।


 सीता का वर्चस्व और प्रखर हो उठता है लेखक को सोचते सोचते प्रभात की 4:00 बजे तभी दरवाजे पर हल्की सी दस्तक हुई चिरंजीव ऊपर की मंजिल पर नहीं चढ़ने मेहमान लड़की ने कहा दरवाजा खोलिए आंखों में इतनी का तड़क थी कि कुछ कहा नहीं जा सकता लेखक ने इतना ही कहा कि तुम्हें अंदाजा भी है कि तुम्हारे ना आने से दूसरों को कितनी चिंता हुई होगी?
 किसी ने भोजन व दूध को छुआ तक नहीं।
 लेखक को तसल्ली हुई कि लड़के लौट आए बारिश में भी कर नहीं संगीत में देखकर लेखक कुछ क्षणों में फिर अपनी अर्थ चेतना में लौट आया जहां खोया हुआ था उसे लगा कि राम लक्ष्मण सीता अभी भी वन में भीग रहे है
 वर्षा है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही वृक्ष जो छाया देते हैं।
 वर्षा में अधिक कष्ट जाए बन जाते हैं बादल मूसलाधार बरस रहे हैं और मेरे राम ना जाने कबसे भीग रही हैं कुछ जनों के पश्चात राम का भ्रम लेखक का भ्रम टूटता है अनुभव हुआ कि उसके मन और धीरे-धीरे आता है कि राम तुम्हारे कबसे हुए यहां कौन किसका होता है ?
लेखक भले ही विश्वास करें लेखक के मन का चोर की यह बात सच निकली ।मनचाही और अनचाही दोनों तरह की चीजों में कितना बटा हुआ है ।
दूसरे भले ही विश्वास करें किंतु उसके भीतर अतिथि नहीं होती कि मैं किसी का या कोई मेरा है।
 लेखक के मन में एक अन्य विचार भी उभरता है कि क्या बार-बार विचित्र से अनुमन कारण चिंता किसी के लिए होती है ?वह चिंता क्या पढ़ाई के लिए भी होती है ?वह क्या कुछ भी अपना नहीं है इस उम्र में ही क्या राम अपनाने के लिए हाथ नहीं बढ़ाते आए हैं ?क्या मैं कुछ होना और मैं कुछ बनना ही अपनाने की उनकी बड़ी हुई। होड नहीं है ।

लेखक की विचारधारा टूट जाता है। और वह सोचता है कि वह हृदय कहां से लाऊं जिसमें राम को अपना कह सकूं उसमें सीता का ख्याल भी आता है उसके दर्द को अनुभव कर सकूं 1 दिन की मेहमान लड़की के देर से घर पहुंचने का कारण इतनी चिंता हो जाती है उसमें सीता का ख्याल आ जाता है ।
वह राम के मुकुट ,सीता के सिंदूर गिरने की आशंका से जोड़ने जोड़ने आज का दरिद्र हर दिन उदासी को भी ऐसा अर्थ नहीं दे देता जिसे जिंदगी से कुछ उबर सके ।

तभी पूर्व दिशा से उजाला हो जाता है नगर के इस बियाबान में चक्की के साथ कुछ चढ़ती उतरती, गति से हल्की सी सिरहन पैदा कर जाती है।

 मोरे राम के विजय मुकुटवा 

यह पंक्ति लेखक के जीवन में कुछ तरलता वश्य उत्पन्न कर जाती हैं। महीनों से उसने को आती है बस ना पाए यह दूसरी बात है किंतु बरसने के लिए भी प्रभाव का होना भी अति आवश्यक है ।
संख्या कोशिकाओं के कंठ में बसी हुई जो ₹1 है अपनी सृष्टि के संकट में उसके सतत उत्कर्ष के लिए आकुल उस कौशल्या की ओर उस मानवीय संवेदना की ओर ही कहीं रहा है।
 घास के नीचे दबी हुई किंतु आज उस घास को वन्य पशुओं के लिए राजकीय संरक्षित क्षेत्र बनाया जा रहा है ।
बहुत ही आकर्षक स्थली बनाई जा रही है।
 उस मार्ग पर तुलसी और उसके मानस के नाम पर दिखावा किया जाएगा किंतु बारिश में रामकिशोर मुड़े मुड़े होंगे यह पता लगाना बहुत कठिन है।

 प्रमुख बिंदु

1. लेखक ने उन्हें संख्या बेघर एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों का वर्णन किया है जिनको समाज भूल गया है।

2.लेखक की मन स्थिति का वर्णन हुआ है जो राम के बारे में सोचते सोचते सभी लोगों के बारे में सोचने लगता है।

3.सीता की मनोदशा का भी सुख संता पूर्ण चित्रण किया गया है ।सीता के कष्टों का वर्णन करके लेखनी सीता के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।

4.लेखक के मन की उदासी का परिचय दिया है ।

5.लेखक की संवेदना के माध्यम से लोग के अंतर व्यंजन में अंतर वेदना को व्यक्त किया है ।

6.राम के मुकुट के भीगने की जनता को छोड़कर अपने परिजनों की चिंता करने लगता है जो रात के समय संगीत कार्यक्रम को देखने के लिए बाहर गए हुए ।


7.सीता दो बार जंगल की के जीवन की पीड़ा को भूल चुकी है दूसरी बार का निर्वासन अत्यंत दयनीय है।

8. वहां सीता जंगली पशुओं के बीच जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो गई है ।


9. लेखक ने दो पीढियो विचारों में अंतर 
उनकी सोच में अंतर की समस्या को भी उजागर किया है ।

10.अप्रत्यक्ष रूप से आज के बेरोजगार युवकों की पीड़ा की कोई सीमा नजर नहीं आती।

11. अब भी व वर्षा में उनकी आशाएं निरंतर भीग रहा है चिंता करने वाले को शक्ति हैं उनके लिए कोई गीत नहीं गाया जाता ।

12.अप्रत्यक्ष रूप से आज के लाखों करोड़ों बेरोजगार राम इस लोक में दर-दर भटक रहे लेखकों के प्रति चिंता व्यक्त की।

रविवार, 17 मई 2020

b.a. तृतीय वर्ष वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरी इतिहास सेकंड वर्ल्ड वॉर प्रश्नोत्तरी

b.a. तृतीय वर्ष इतिहास वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तरी
सेकंड वर्ल्ड वॉर
For BA 3rd year Hist. Students (17/5/2020) Unit-3 Objective type questions to learn Ch.-12.  2nd World War

प्रश्न न.1. द्वितीय विश्व युद्ध का तत्कालीन कारण क्या था  ?
उत्तर:-  जर्मनी द्वारा डेंजिग एवं पोलिश गलियारे की मांग करना 
प्रश्न न. 2. द्वितीय विश्वयुद्ध के कोई चार कारण बताये 
उत्तर:-  1.दोषपूर्ण वर्साय संधि, 2.राष्ट्र संघ की असफलता 3.उग्र राष्ट्रवाद 4. नि:शस्त्रीकरण की असफलता 
प्रश्न न. 3.  जर्मनी ऱाष्ट्र संघ से कब अलग हुआ? 
उत्तर:-  1933 ई. में
प्रश्न न.4. रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी कब स्थापित हुई  ?
उत्तर:- 1937 ई. 
प्रश्न न. 5.  जर्मनी ने सोवियत संघ के साथ अनाक्रमण संधि कब की  ?
उत्तर:- 13 अगस्त,1939 ई. 
प्रश्न न. 6. द्वितीय विश्वयुद्ध कब व किस घटना से शुरू हुआ  ?
उत्तर:-   हिटलर(जर्मनी) द्वारा पोलैंड पर आक्रमण से 1, सितम्बर 1939 ई. को शुरू हुआ 
प्रश्न न. 7. द्वितीय विश्वयुद्ध कब से कब तक लड़ा गया 
उत्तर:-  1 सितम्बर 1939 से सितम्बर 1945 ई. 
प्रश्न न. 8. सयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध मे कब व किसकी ओर से शामिल हुआ 
उत्तर :-  8 दिसम्बर 1941 ई.को , ब्रिटेन, फ्रांस व रूस की ओर से 
प्रश्न न. 9 द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका के शामिल होने के तत्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:-      तत्कालिक कारण.. जापान द्वारा 7 दिसम्बर 1941 ई. को पर्ल हार्बर (प्रशान्त महासागर में) पर अचानक आक्रमण करना था, यहां पर अमेरिका का नौ-सैनिक अड्डा था 
प्रश्न न. 10.   त्रि-पक्षीय सन्धि कब व किन देशों के बीच हुई
उत्तर:-    27 सितम्बर 1940 ई., को जर्मनी, जापान व इटली के बीच हुई 
प्रश्न न. 11.   इतिहास में वाक्-युद्ध से क्या अभिप्राय है  ?
उत्तर:-   दूसरे विश्व युद्ध में पहले सात महीनो तक ब्रिटेन व फ्रांस की ओर से जर्मनी के खिलाफ कोई विशेष कार्यवाही नही की गयी, युद्घ की इस अवधि को इतिहास में ' वाक्-युद्ध '(Phoney War)  कहा जाता है 
प्रश्न न. 12.  जर्मनी ने नार्वे व डेनमार्क पर कब अधिकार करके उत्तरी यूरोप में महत्वपूर्ण वायु व नौसैनिक अड्डे प्राप्त कर लिए थे  ?
उत्तर:-    अप्रैल 1940 ई. 
प्रश्न न. 13.  जर्मनी ने नीदरलैण्ड, बेल्जियम, लक्समबर्ग व फ्रांस पर कब आक्रमण किया? 
उत्तर:-  10 मई, 1940 ई. को जर्मनी ने इन देशों पर आक्रमण किया, 28   मई तक फ्रांस को छोड़कर शेष तीन देशों पर जर्मनी का अधिकार हो गया ा
प्रश्न न. 14.  इटली दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की ओर से युद्ध में कब कूदा  ?
उत्तर:-  जर्मनी के फ्रांस विजय अभियान के दौरान 10 जून 1940 को इटली युद्ध में कूदा 
प्रश्न न. 15.  पूरे पश्चिम यूरोप को जीतने के बाद जर्मनी ने इंगलैंड को जीतने के लिए कौनशी योजना बनायी  ?
उत्तर:-  सी- लायन नामक योजना ( Sea-Lion) 
प्रश्न न. 16.  ' सी-लायन ' योजना के अभिप्राय है  ?
उत्तर:-  इसके अंतर्गत इंग्लिश चैनल पर अधिकार करने के लिए ब्रिटिश वायु सेना व नौसेना को निष्प्रभावी बनाना था, इंग्लिश चैनल पर अधिकार करके ही जर्मनी इंगलैंड तक पहुँच सकता था ा
प्रश्न न. 17.  जर्मनी की सी- लायन योजना का क्या परिणाम रहा  ?
उत्तर:-  यह योजना सफल नही हुई, सितम्बर, 1940 से मई, 1941 के बीच जर्मनी के 3000 वायुयान ब्रिटिश तोपों ने नष्ट कर दिये, जबकि ब्रिटेन के मात्र 900 वायुयान नष्ट हुए ा
प्रश्न न.  18. जर्मनी ने सोवियत संघ पर आक्रमण कब किया  ?
उत्तर :-   22 जून , 1941 ई.  
प्रश्न न. 19. सोवियत संघ. और ब्रिटेन के बीच पारस्परिक सहयोग का समझौता कब हुआ? 
उत्तर :-  13 जुलाई, 1941 ई 
प्रश्न न.  20.  सयुक्त राज्य अमेरिका ने दूसरे विश्व युद्घ में कब प्रवेश किया? 
उत्तर:-  संयुक्त राज्य अमेरिका 8 दिसम्बर, 1941 ई. को ब्रिटेन व रूस की ओर से युद्ध में शामिल हुआ ा
प्रश्न न. 21. संयुक्त राज्य अमेरिका का दूसरे विश्व युद्ध में शामिल होने का तत्कालीन कारण क्या था  ?
उत्तर:-  जापान द्वारा 7 दिसम्बर, 1941 ई. को पर्ल हार्बर पर अचानक आक्रमण करना था, प्रशान्त महासागर में पर्ल हार्बर  अमेरिकी नौसेना अड्डा था ा
प्रश्न न. 22. " विजय का शस्त्रागार " किसे और क्यों कहा जाता है  ?
उत्तर:-   अमेरिका का दूसरे विश्व युद्ध में जापान के विरुद्ध प्रवेश कपने के बाद, अमेरिका द्वारा 3 लाख विमान और 500 टैंकों सहित बहुत बडी़ मात्रा में हथियारो का निर्माण किया गया, इसलिए अमेरिका को " विजय का शस्त्रागार "कहा गया 
Continue.
BA 3rd year Hist. Unit-3 Objective type questions to learn Ch.-12.  World War -11

प्रश्न न.1. द्वितीय विश्व युद्ध का तत्कालीन कारण क्या था  ?
उत्तर:-  जर्मनी द्वारा डेंजिग एवं पोलिश गलियारे की मांग करना 
प्रश्न न. 2. द्वितीय विश्वयुद्ध के कोई चार कारण बताये 
उत्तर:-  1.दोषपूर्ण वर्साय संधि, 2.राष्ट्र संघ की असफलता 3.उग्र राष्ट्रवाद 4. नि:शस्त्रीकरण की असफलता 
प्रश्न न. 3.  जर्मनी ऱाष्ट्र संघ से कब अलग हुआ? 
उत्तर:-  1933 ई. में
प्रश्न न.4. रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी कब स्थापित हुई  ?
उत्तर:- 1937 ई. 
प्रश्न न. 5.  जर्मनी ने सोवियत संघ के साथ अनाक्रमण संधि कब की  ?
उत्तर:- 13 अगस्त,1939 ई. 
प्रश्न न. 6. द्वितीय विश्वयुद्ध कब व किस घटना से शुरू हुआ  ?
उत्तर:-   हिटलर(जर्मनी) द्वारा पोलैंड पर आक्रमण से 1, सितम्बर 1939 ई. को शुरू हुआ 
प्रश्न न. 7. द्वितीय विश्वयुद्ध कब से कब तक लड़ा गया 
उत्तर:-  1 सितम्बर 1939 से सितम्बर 1945 ई. 
प्रश्न न. 8. सयुक्त राज्य अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध मे कब व किसकी ओर से शामिल हुआ 
उत्तर :-  8 दिसम्बर 1941 ई.को , ब्रिटेन, फ्रांस व रूस की ओर से 
प्रश्न न. 9 द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका के शामिल होने के तत्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर:-      तत्कालिक कारण.. जापान द्वारा 7 दिसम्बर 1941 ई. को पर्ल हार्बर (प्रशान्त महासागर में) पर अचानक आक्रमण करना था, यहां पर अमेरिका का नौ-सैनिक अड्डा था 
प्रश्न न. 10.   त्रि-पक्षीय सन्धि कब व किन देशों के बीच हुई
उत्तर:-    27 सितम्बर 1940 ई., को जर्मनी, जापान व इटली के बीच हुई 
प्रश्न न. 11.   इतिहास में वाक्-युद्ध से क्या अभिप्राय है  ?
उत्तर:-   दूसरे विश्व युद्ध में पहले सात महीनो तक ब्रिटेन व फ्रांस की ओर से जर्मनी के खिलाफ कोई विशेष कार्यवाही नही की गयी, युद्घ की इस अवधि को इतिहास में ' वाक्-युद्ध '(Phoney War)  कहा जाता है 
प्रश्न न. 12.  जर्मनी ने नार्वे व डेनमार्क पर कब अधिकार करके उत्तरी यूरोप में महत्वपूर्ण वायु व नौसैनिक अड्डे प्राप्त कर लिए थे  ?
उत्तर:-    अप्रैल 1940 ई. 
प्रश्न न. 13.  जर्मनी ने नीदरलैण्ड, बेल्जियम, लक्समबर्ग व फ्रांस पर कब आक्रमण किया? 
उत्तर:-  10 मई, 1940 ई. को जर्मनी ने इन देशों पर आक्रमण किया, 28   मई तक फ्रांस को छोड़कर शेष तीन देशों पर जर्मनी का अधिकार हो गया ा
प्रश्न न. 14.  इटली दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी की ओर से युद्ध में कब कूदा  ?
उत्तर:-  जर्मनी के फ्रांस विजय अभियान के दौरान 10 जून 1940 को इटली युद्ध में कूदा 
प्रश्न न. 15.  पूरे पश्चिम यूरोप को जीतने के बाद जर्मनी ने इंगलैंड को जीतने के लिए कौनशी योजना बनायी  ?
उत्तर:-  सी- लायन नामक योजना ( Sea-Lion) 
Continue....

शनिवार, 16 मई 2020

अपना अपना भाग्य कहानी सार ( जैनेंद्र कुमार)

अपना अपना भाग्य कहानी
 लेखक जैनेंद्र कुमार

जैनेंद्र मनोवैज्ञानिक कहानी पर है। मनोवैज्ञानिक इस अर्थ में उनकी कहानी बाहय प्रवेश को अपना अपना भाग्य कहानी बाहर सड़क पर होने वाली सामान्य घटना को मनुष्य की आंतरिक मनुष्यता की कसौटी पर पर रखती है।
 कहानी विविध स्तरीय है।
 उनके कथानक को तीन हिस्सों में बांटा गया है ।
प्रथम दृश्य नैनीताल को सड़क पर सैलानियों के व्यवहार और उनकी प्रकृति के विश्लेषण पर केंद्रित है ।
दूसरा हिस्सा उस 10 वर्षीय बच्चे से जुड़ा है जिसने 10 वर्ष की कमाई आयु में जिंदगी की भयावह यथार्थ को करीब से देखा और पहचाना है ।
तीसरे अंश में एक तरह से लेखक ने हमारे मानवीय सरोकारों के सदम को अनावृत करने की चेष्टा की है ।

कहानी में नैनीताल के सुर में पर्वतीय प्रदेश का वर्णन परिवार की तरह आया है।
 लेकिन वह केवल वातावरण ही नहीं लेखक प्रकृति के उस पार सुंदर के बीच घूमते फिरते लोगों के मन की सुंदरता को व्यक्त करता है ।
वे दृश्य भारत की पराधीनता के यथार्थ को भी बेखुदी व्यक्त करते हैं ।
वहां चलने वाले 3 तरह के लोग हैं ।
कुछ लोग जो शासकीय दम से भरे अधिकार गर्व से चल रहे हैं।
 दूसरा वर्ग घोड़ों की भाषा में उन हिंदुस्तानियों का है जिन्होंने अपने सम्मान से समझौता कर लिया है ।

और अंग्रेज स्वामियों के सामने दुम हिला कर चल रही है इनके साथ साथ भारतीयों का एक ऐसा वर्ग भी है।
 जो अपनी चमड़ी के बावजूद को अंग्रेजों से ज्यादा अंग्रेज समझते हैं ।
अंग्रेजों को देखकर उनके अनुभव होते हैं ।
और अपने देशवासियों को नेटिव कहकर उन्हें वितृष्णा भरी निगाहों से देखते हैं ।
लेखक का ध्यान परिवेश के बीच उभरता ि दो संस्कृतियों के बीच की टकराहट पर भी गया है।
 अंग्रेज स्त्रियों के खुले पन और भारतीय स्त्रियों की सत्ता का भी सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं ।
सुंदरता की पहचान पहाड़ों और रोशनी से ज्यादा मनुष्य की मनुष्यता पर केंद्रित है ।
कहानी के अगले हिस्से में लेखक उसी की परीक्षा पड़ता है कड़कड़ाती सर्दी और टप टप टप चूहे के बीच लेखक के मित्र उनका ध्यान एक 10 वर्षीय बच्चे की तरफ खींचते हैं ।

बच्चे का उदास मलीन चेहरा और उनकी देह पर वैसी ठंड में गंदी से कमीज नंगे सीन नंगे पैर आगे बढ़ते लड़खड़ाते कदम उनके जीवन की विडंबना को साफ अभिव्यक्त कर रहे हैं ।
लेखक और उनके मित्र जिज्ञासा वश उससे उनके जीवन की कहानी सुनना चाहते हैं।
 जिस कहानी में और भाव और अपमान के सिवा कुछ भी नहीं था ।
वह इस कम उम्र में भूख और पिता की मार से लाचार होकर एक दूसरे लड़के के साथ घर से भाग आया था।
 वहां उसने साहब की मार खाकर अपने साथी को मारते देखा था स्वयं बहुत सा काम करते हुए भी ₹1 और जूते भोजन के बदले किसी तरह खुद को जिंदा रखने की कोशिश कर रहा था ।
की नौकरी से निकाल दिया गया और अब इस कोहरे और भ्रम में सड़क पर पड़े रहने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा है ।
उसकी कहानी सुनकर दोनों मित्र द्रवीभूत होते हैं।

 उसकी नौकरी लगाने के लिए रात 1:00 बजे भी अपने एक साथी के पास जाते हैं लेकिन कुछ नहीं होता अभाव में पैदा हुए गरीब और कुंभलाए चेहरों वाले  बच्चे अपने चरित्र पर भी शैतान होने का दाग लिए आते हैं ।
मुझे होटलों में रहने वाले किसी भी सड़क चलते बच्चे की मासूमियत पर विश्वास नहीं कर सकते ।
लेखक और उनके मित्र ने आश्वासन दिया कि वह अच्छा निकलेगा किसी काम किसी काम नहीं आती।
 कहानी का यह बिंदु चरमोत्कर्ष का है दोनों संवेदनशील मित्रों की दरिद्रता की सच्ची पर किसी शान होती है दोनों की जेब से जेब में दस दस के नोट है ।
और मन में उस लड़के के लिए कुछ करने का भावजी मैं उसे खाने के लिए कुछ पैसा देना चाहते हैं पर ₹10 उसके लिए ज्यादा है स्वार्थ की फिलॉस्फी परमार्थ की भावना से कहीं शक्तिशाली है ।
सब जानते समझते हुए भी वे उसे केवल आश्वासन के सहारे उस कड़कड़ाती सर्दी में मृत्यु का ग्रास बनने के लिए सड़क पर ही छोड़ कर आगे चल देते हैं ।
उन्होंने अगले दिन उस लड़के को अपने होटल बुलाया था पर सुबह मोटर पर बैठते हुए उस लड़के की मृत्यु की खबर जिससे अपना अपना भाग्य कर लेते हैं भाग्य समाज के अंतर्विरोध यह एक तरह की का नैतिक ढोंग है है कहानी का पूरा ढांचा इस नैतिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है ।
कहानी में यह गिने-चुने पात्रों का कोई चारित्रिक विकास नहीं है लेकिन ऐसी द्वंद पूर्ण सिटी के माध्यम से उन चरित्रों के अंतर और भाइयों के बीच जो अंतर है उसे पूरी गहराई और क्षमता के साथ अभिव्यक्त किया गया है ।
जैनेंद्र की इस कहानी में अनुभव की प्रकृति कहानी के शास्त्रीय ढांचे को चुनौती देती है ।
इस कहानी की भाषा गद्य में कविता का सुंदर उदाहरण है नैनीताल की संध्या धीरे धीरे उतर रही थी ।
यस सब सन्नाटा था। 
तल्लीताल की बिजली की रोशनी ।
दीप मलिका सी जगमग आ रही थी ।

प्राकृतिक दृश्यों के काव्यात्मक संयोजन के साथ नाटकीय संवादों की सृष्टि भी हुई है ।
लड़के के साथ पूरी बातचीत अत्यंत संस्कृत संवाद सूत्र में विकसित होती है ।
लाक्षणिक मुहावरे दारी से युक्त भाषा जैसे 
नैनीताल स्वर्ग के किसी काले गुलाम पशु के दुलार का वह बेटा ''अमूर्त को मूर्त करने का करने में सक्षम है ।
जैनेंद्र की कहानियों में गहरी विचारक विचारात्मकता से उत्पन्न आत्म विश्लेषण उनकी कथा शैली को एक भी नेता प्रदान करता है।
 इस प्रकार अपना अपना भाग्य जैनेंद्र की एक मनोविश्लेषणात्मक कहानी है ।
उम्मीद करती हूं कहानी का सार आपको अवश्य पसंद आएगा ।
धन्यवाद

शुक्रवार, 15 मई 2020

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध उत्साह का सार

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध उत्साह का सार
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के निबंध
रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय
**आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी के प्रमुख निबंधकार और आलोचक थे उनका जन्म सन 18 84 में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के अगौना नामक गांव में हुआ।
 इनके पिता का नाम श्री चंद्रावली शुक्ल उर्दू फारसी के विद्वानऔर मुसलमानी व अंग्रेजी सभ्यता के समर्थक थे ।

***किंतु उनकी माता गाना उस पवित्र और महान वंश की पुत्री थी जिसमें सदियों पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने जन्म लिया था।
 ***।शुक्ल जी को विरासत में ही महान साहित्यिकता प्राप्त हुई थी। शुक्ल जी की आरंभिक शिक्षा उर्दू फारसी में हुई।
 किंतु हिंदी के प्रति उन्हें सहज ही प्रेम था।
 नौवीं कक्षा में पढ़ते हुए एडिशन के एस्से ऑफ इमैजिनेशन कल्पना का आनंद शीर्षक से अनुवाद किया था। 

***अध्ययन समाप्त होने के पश्चात उन्होंने नायब तहसीलदार ई के लिए नामजद किया गया था। किंतु नौकरी में आत्मसम्मान की रक्षा कठिन हो जाती है। समझ कर उन्होंने त्यागपत्र दे दिया।
 हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में हिंदी विभाग के अध्यक्ष के रूप में वह सुशोभित हुए ।

***स्वभाव से गंभीर सामाजिक व्यवहार में आते उन्हें भीड़ भाड़ और अधिक लोगों से मिलना जुलना पसंद नहीं था ।
एकांत साधना प्रिय थे ।
हिंदू विश्वविद्यालय में अध्यापन करते समय उन्होंने विश्वविद्यालय की उत्तम कक्षाओं के लिए समर्थ प्रयास किए। सन 1941 में उनका देहांत हो गया। 
प्रमुख रचनाएं-

**आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ।
उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में रचना की जो निम्नलिखित हैं।
 काव्य में रहस्यवाद
 तुलसी ग्रंथावली
 कल्पना का आनंद अनुवाद।
 भ्रमरगीत सार 
जायसी ग्रंथावली
 आलोचना सूरदास 
अभिमन्यु वध
 रस मीमांसा
 बुद्ध चरित्र
 हिंदी साहित्य का इतिहास 
 चिंतामणि भाग 3 
साहित्यिक विशेषताएं 

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी प्राय: सभी निबंध विचारात्मक निबंध गंभीरता पाई जाती है।
 चिंतामणि के प्रथम भाग में मनोविकार एवं साहित्य सिद्धांत संबंधित निबंध लिखें।
 उनमें से कुछ निबंध इस प्रकार है
 करुणा
 श्रद्धा 
श्रद्धा और भक्ति 
ईर्ष्या 
कविता क्या है 
उत्साह 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कीर्तिमान स्थापित किए हैं ।

उन्होंने हिंदी समालोचना को शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक धरातल पर प्रतिष्ठित किया है।
 उनके काव्य संबंधी विचार भारतीय हैं और सैद्धांतिक उपयोग किया है।
 क्रोचे के वक्रोक्ति तक की तुलना करते हुए उन्होंने पाश्चात्य अभिव्यंजनावाद को वक्रोक्ति का विलायती उत्थान माना है ।
जायसी ,तुलसी ,सूर की काव्यगत विशेषताओं का उन्होंने सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
 रस मीमांसा में इन्होंने रस के शास्त्रीय विवेचन की मौलिक व्याख्या प्रस्तुत की है।
 भाषा शैली 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने निबंध साहित्य में प्रौढ़ एवं प्रांजल भाषा का प्रयोग किया है।
 शब्द चयन वाक्य रचना आदर्श विधान व्यंजना शक्ति आदि में इनकी भाषा निपुणता का बोध कराती है।
 चिंतन तथा भाषा के उत्कर्ष में उनके निबंध विरल है।
 शुक्ला जी की निबंध शैली उनके प्रखर व्यक्तित्व की परिचायक है
 उनके निबंधों में आवश्यकता अनुसार 
समास शैली 
व्यास शैली
निष्कर्ष 
आगमन शैली
 निगमन शैली आदि का प्रयोग मिलता है।
 लोकोक्तियां, मुहावरे अंग्रेजी ,अरबी ,फारसी, आंचलिक शब्दावली का भी प्रयोग मिलता है।
 निष्कर्ष 
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य की की अनुपम निधि है इनमें गंभीर विवेचन के साथ-साथ अन्वेषण चिंतन का भी मणिकांचन सहयोग मिलता है ।
स्पष्ट अनुभूति के साथ-साथ अभिव्यंजना का अपूर्व सा मिश्रण मिलता है ।
आचार्य शुक्ल जी के गंभीर व्यक्तित्व उनके निबंधों में विषय गंभीर  है।
 आचार्य शुक्ल जी के गंभीर व्यक्तित्व के अनुकूल ही उनके निबंधों के विषय भी अत्यंत गंभीर हैं ।
व्यवहारिक समीक्षा की नई पद्धति के साथ-साथ सैद्धांतिक तर्क वितर्क, पूर्ण संविधान की अनुपम योजना का चीर स्तरीय मिलता है ।
विचारात्मक निबंधों की अद्भुत कसावट, पूर्ण विचार संकला के साथ-साथ पाठकों की बुद्धि को उत्तेजित करने वाली ।
भाषा की पूर्णता शक्ति प्रदान करने की प्रमुखता भी मिलती है ।
यही कारण है कि शुक्ला जी के निबंध आज भी निबंध साहित्य में अपना श्रेष्ठ स्थान बनाए हुए हैं। उत्साह निबंध आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का हिंदी साहित्य आजीवन ऋणी रहेगा।
धन्यवाद।
उत्साह निबंध
उत्साह आचार्य शुक्ल प्रत्येक मनोवैज्ञानिक निबंध है ।

**इसमें लेखक ने उत्साह नामक भाव की सरल व्याख्या की है।
 मानव मन में उत्पन्न होने वाली साहसपूर्ण आनंद की उमंग को उत्साह की संज्ञा दी है ।
लेखक के अनुसार   दुःख को सहन करने के साथ-साथ आनंद पूर्वक निष्ठा भाव से मानव को उत्साही बनाती है।

 उत्साही वीर को प्राप्त होने वाले उत्साह की मात्रा के आधार पर उत्साह के दो भेद माने जाते हैं।
1. युद्धवीर
2. दया वीर और दानवीरता
 उत्साह 
उत्साह दया दान के प्रति उत्साह किंतु इन सभी प्रकार के उत्सव में कष्ट और हानि के साथ आनंद प्राप्त करने का प्रयत्न अपेक्षित है।

*** बिना बेहोश में फोड़ा चिरना साहस तथा कठिन से कठिन प्रहार सहकर भी अपने स्थान से ना हटना धीरज कहलाएगा और इस साहस तथा धीरज को उत्साह तभी कहा जाएगा ।
जब कर्ता को इन कर्मों में आनंद की अनुभूति हो, उत्साह में धीरज और साहस दोनों का ही योग रहता है।

 परंतु इसकी मूल अनुभूति आनंद की ही रहती है ।

***दान वीरता में धन त्याग का संघर्ष करते हुए शहर से दान देने का साहस अपेक्षित होता है ।
**दानवीर तक यथार्थता इसी में है कि दानी को दान देने के कारण जीवन निर्वाह में कष्ट झेलना पड़े तो वह उसे भी स्वीकार कर ले।
 इसी प्रकार लेखक ने उत्साह के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं।
उद्धरण

1.सहारा के मरुस्थल की यात्रा 
2.अनुसंधान हेतु दुर्गम पर्वतों की चढ़ाई 
3.भयंकर जातियों के बीच प्रवेश

 आदि की गणना की है ।

***लेखक की धारणा है कि मानसिक कष्ट के साथ-साथ शारीरिक कष्ट भी सहन करना उत्साह माना जाएगा।

***** उत्साह का शुभ या अशुभ भाव होना इसके परिणाम के द्वारा जाना जाता है परिणाम शुरू होने से उसकी गिनती अच्छे भाव में तथा परिणाम अशुभ होने से उसको बुरा समझा जाता है।
 यह आवश्यक नहीं ,उत्साह केवल साहस पूर्ण कार्यों में ही हो ,अपितु किसी भी कार्य में आनंद पूर्ण तत्परता भी उत्साह कहलाएगा।।

** हम अपने मित्रों या बंधुओं के स्वागत में भाग कर खड़े हो जाते हैं तो उत्साही कहलाएंगे ।
उत्साही को कर्मवीर कहा जाता है या बुद्धि भी इसके लिए यह देखा जाना चाहिए कि उत्साह की अभिव्यक्ति बुद्धि व्यापार और अवसर पर होती है या बुद्धि द्वारा निश्चित उद्योग में तत्पर होने की दशा पर परंतु साधारण उत्साह की अभिव्यक्ति उद्योग की तत्परता पर ही होती है।

** इसलिए उत्साही को कर्मवीर कहना ज्यादा उपयुक्त होगा।
 कर्म करने की भावना ही उत्साह उत्पन्न करती है जिसमें साहस और आनंद का सामंजस्य रहता है ।

वीर रस के आलंबन का स्वरूप इतना स्पष्ट नहीं होता जितना की अन्य रसों का।
*** हनुमान द्वारा समुंदर पार लगने का कारण समुंदर नहीं अपितु समुंदर लाने का करम है।

 उषा की गणना एक अच्छे गुणों से होती है किसी कार्य को अच्छा या बुरा होना उसके करने के ढंग अथवा परिणाम में निहित होता है।
 लेकिन शुभ कार्यों में आत्मरक्षा पर रक्षा, देश रक्षा की गणना की है।
 उत्साह में कुछ योगदान बुद्धि का भी आवश्यक है ।
**बुद्धि और शरीर की तत्परता का संबंध में है  कर्मवीर में देखा जाता है।

*** आचार्य शुक्ल ने यह प्रश्न उठाया है कि उत्साह में ध्यान कर्म पर उसके फल पर या व्यक्ति या वस्तु पर रहता है।

 *** उत्तर देते हुए उन्होंने कहा है कि उत्साही मनुष्य का ध्यान पूर्ण रूप से कर्म परंपरा पर होता हुआ।
 उसकी समाप्ति होने की सीमा तक जाता है।

 देखना है जो श्रद्धा या दया से प्रेरित होकर साहस और आनंद के साथ जैसे दूस्साध्य एवं कठिन कार्य में प्रवृत्त होता है।
लेखक ने कर्म अनुष्ठान में प्राप्त होने वाले आनंद का वर्गीकरण किया है ।

कर्म भावना से उत्पन्न 
फल भावना से उत्पन्न 
और विषय अंतर से उत्पन्न 
इनमें से सच्चे कर्म वीरों का आनंद कर्म भावना से उत्पन्न होता है क्योंकि इसमें साहस का योग अपेक्षाकृत कम ना होकर बहुत अधिक होता है।

 उनकी दृष्टि में कर्म और फल में कोई विशेष अंतर नहीं होता है।

** सफल होने पर भी वे हतोत्साहित नहीं होते फल फल भावना का आनंद फल की प्राप्ति अथवा प्राप्ति के अनुसार कम या ज्यादा रहता है ।

कर्म भावना का उत्साह ही सच्चा उत्साह होता है जो प्राप्त होता है।

कर्म की अपेक्षा फल में अधिकार सकती होने पर मनुष्य के मन में यह विचार उत्पन्न होता है कि कर्म भी ना करना पड़े और फल भी अधिक मिले इस धारणा से कर्म करते हुए जो आनंद मिलना चाहिए वह नहीं मिल पाता ।उत्साही व्यक्ति को कर्म करते हुए भी यदि अंतिम फल की प्राप्ति ना हो तो वह एक रमणी व्यक्ति की अपेक्षा अनेक अवस्थाओं में अच्छा रहता है।
**
 **कर्म काल में उसे संतोष का आनंद तो मिलता ही है।
 इसके बाद फल की प्राप्ति पर उसे यह पछतावा नहीं रहता कि उसने प्रयत्न नहीं किया। साधारणतया देखा जाता है कि व्यक्ति में आनंद का कारण तो कुछ और होता है परंतु उससे व्यक्ति में एक ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है कि अन्य बहुत सी कर्म भी वह सहर्ष कर लेता है।
 निष्कर्ष 
सच्ची लगन एवं कर्तव्य, बुद्धि द्वारा कर्म करने वाला व्यक्ति आनंद पूर्ण साहस का प्रदर्शन करता है ।वास्तव में वही उत्साह है ।
उसकी परिभाषा के आधार पर युद्धवीर ,दानवीर कर्मवीर, बुद्धि वीर आदि उत्साही व्यक्ति के भेद किए जा सकते हैं ।
धन्यवाद

गुरुवार, 14 मई 2020

बालमुकुंद गुप्त आशा का अंत निबंध का सार


आशा का अंत निबंध
बालमुकुंद कृत आशा का अंत निबंध का सार

आशा का अंत निबंध का सारांश
***बाबू बालमुकुंद गुप्त द्विवेदी युगीन हिंदी निबंध उन्होंने भाषा ,व्याकरण, समाज ,राजनीति ,देश -दशा आदि विभिन्न विषयों को लेकर अपने निबंधों की रचना की निबंधों में भारतेंदु युगीन राष्ट्रीयता द्विवेदी युगीन भाषा शैली में बड़ी मस्ती भरी आत्मीयता ,निर्भीकता के साथ अभिव्यक्ति हुई है किंतु इनके श्रेष्ठ निबंध राजनीति सामाजिक जन जागरण एवं राष्ट्रीयता की भावना को लेकर लिखे गए हैं। 

****"आशा का अंत इनका एक राजनीति व्यंग्य प्रधान निबंध है ।इस निबंध में गुप्तजी ने देशवासियों को अंग्रेजी कुट नीति एवं भारत दुर्दशा से परिचित करवाने हेतु शिव शंभू जैसे पात्र की कल्पना की है जो भांग झोक में आकर कटु से कटु सत्य को व्यक्त करने और सर्वोच्च शासक को खरी-खरी सुनाने से नहीं कतराते।

*** शिव शंभू लार्ड कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि रोगी रोग को, कैदी कैद को, ऋणी रख ,कंगाल दर्द को क्लेश क्लेश को आशा से झेलता है क्योंकि उसे लगता है 1 दिन उसका जीवन इन सभी क्लेश और से मुक्त हो जाएगा किंतु यदि उसकी आशा का ही अंत हो जाए तो उसके कष्टों का ठिकाना नहीं रहता।

***भारतीय जनता लॉर्ड कर्जन की की नीतियों से दुखी थी।
लॉर्ड कर्जन निरंकुश प्रवृत्ति का वाला इंसान था वह नहीं चाहता था कि भारतीय जनता किसी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाए उसने भारत में दूसरी बार वायसराय बनकर आते ही यहां कि मनुष्य पहले टेक ऑपरेशन की सलाह दी इतना ही नहीं अकाल पीड़ितों के प्रति सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करने की अपेक्षा उसने कड़ी मजदूरी लगा दी वह जनता की भलाई के नाम पर अंग्रेजी शासन का भला करता था अवसरवादी था जब भी अवसर मिलता था भारतीयों का वादी कहकर गाली गलौज करता था। धूर्त कहता था। वह भारतीय जनता की भावनाओं को जरा भी तवज्जो नहीं देता था।
*** सदा भारतीयों को नीचा दिखाने का प्रयास करता था उनकी इन्हीं नीतियों के कारण भारतीय जनता उसे दुखी थी।
भारतीयों की दशा

***बालमुकुंद गुप्त जी ने भारतीय जनता की ऐसा हादसा का यथार्थ चित्रण अंकित इस निबंध के माध्यम से किया है भारतीय जनता से देवकरण वार्ड में विश्वास रखती है लेकिन वह अपनी दीनता के लिए सभी शासक को जिम्मेदार नहीं ठहरा थी।
 प्रस्तुत निबंध में लेखक ने इस तथ्य को उजागर किया है कि आपके स्वदेशी यहां बड़ी-बड़ी इमारतों में रहते हैं ।जैसे रुचि हो वैसे पदार्थ सकते हैं भारत अपने लिए योग्य भूमि है किंतु इस देश के लाखो आदमी इस देश में पैदा होकर आवारा कुत्तों की बकबक करते हैं ।
उनके दो हाथ भूमि बैठने को नहीं पेट भर कर खाना खाने को नहीं लेता देते हैं एक दिन चुपचाप कहीं पडकर प्राण दे देते हैं ।
व्यंग्यकार का व्यंग्य और विरोध
लार्ड कर्जन जब दूसरी बार भारत में वायसराय बनकर आया तो उसका घमंड और अहंकार सातवें आसमान पर था वह अंग्रेजी जाति के सामने किसी को कुछ नहीं समझता था लेखक को लॉर्ड कर्जन द्वारा भारतीयों को नीचा वादियों और धूर्त झूठा और मक्कार कहना बहुत खटका लेखक ने इस बात की प्रतिक्रिया स्वरुप की इस निबंध की रचना की तथा इसके विरोध में कहा कि हम भारत देश के निवासी हैं सृष्टि करते हैं सत्य प्रिय हैं देश का ईश्वर सत्य ज्ञान अनंतम ब्रह्मा भला ऐसा देश और उसके निवासी मितावादी कैसे हो सकते हैं।
बालमुकुंद गुप्त की देशभक्ति
देश हित में व्यक्त विचार की देशभक्ति की भावना कहलाती है ।
अपने देश के गौरव और स्वतंत्रता की रक्षा अपने देश के शोषण करता हूं के प्रति घृणा और विरोध और उनके देश की उन्नति हेतु व्यक्ति विचार भी देश प्रेम कहलाता है
 इस दृष्टि से बालमुकुंद गुप्त द्वारा रचित आशा का अंत निबंध है देश प्रेम की भावना से परिपूर्ण है। इसलिए बंद कि जब रचना हुई तो भारत अंग्रेजों के आदमी लार कर्जन दूसरी बार वॉइस राय बन कर भारत लौटा था भारत वासियों को बहुत सारी उम्मीदें उनसे थी लेकिन उन्होंने अपने प्रथम भाषा में ही सभी भारतीयों की आशाओं का अंत कर दिया कोलकाता मुंसिपल कॉरपोरेशन के स्वाधीनता छीन ली अकाल पीड़ितों की उपेक्षा की महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेजों के लिए आरक्षित कर दिया और कहा कि रक्षा करने वाले भाषणों पर रोक लगा दी पत्र-पत्रिकाओं को रोक दिया गया उनकी स्वतंत्रता छीन ली गई। अंग्रेजों का भारतीय ोो को बुरा भला कहना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था निबंध के माध्यम से गुप्तजी ने स्पष्ट किया है कि जो शासक अपनी गरीब प्रजा के प्रति ध्यान नहीं देता उसके दुख दर्द के विषय में विचार नहीं करता ऐसे शासक को प्रजा को गालियां देने का भी अधिकार नहीं है।अंग्रेजों के शासन होते हुए भी उनके विपरीत बातें लिखना एक साहस पूर्ण व हिम्मत भरा कार्य है इस प्रकार उनकी देशभक्ति झलकती है।
आशा के अंत निबंध का उद्देश्य
प्रस्तुति निबंध में बालमुकुंद गुप्त जी ने लॉर्ड कर्जन द्वारा भारत वासियों पर लगाए झूठे आरोपों प्रतिबंधों तथा उनकी गलत नीतियों का कड़े शब्दों में खंडन किया है यही इस निबंध का प्रमुख उद्देश्य है दूसरी ओर लेखक ने यह प्रमाणित किया है कि किसी को झूठा कह देने से उसकी सत्यवादी का सीधे नहीं होती है लॉर्ड कर्जन ने अनेक ऐसी नीतियां बनाए जिससे भारत वासियों की स्वाधीनता छिन जाए अनेक पदों पर भारतीयों की नियुक्तियों की रोक लगा दी गई लेकिन के सभी आरोपों का उत्तर देते हुए कहा है कि जिस देश में ईश्वर सत्य ज्ञान ब्रह्मा अनंत हो भला उसे झूठा मक्कार वनियावादी कैसे कहा जा सकता है अंत में लिखा है कि भारतीय जनता लॉर्ड कर्जन को अपना शिकार करती है तो भला फिर वह यहां शासक बन सकता है।