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गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

मंगलेश डबराल

समकालीन हिन्दी साहित्य में मूर्धन्य कवि मंगलेश डबराल जी 9 दिसंबर, 2020 को कोविड संक्रमण व हृदयाघात से नहीं रहे।

हिंदी साहित्याकाश के दैदीप्यमान नक्षत्र श्री डबराल जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि
जन्म

16 मई, 1948 को टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड) में ।

पत्रकारिता

 श्री डबराल जी कई पत्रिकाओं जैसे - हिंदी पैट्रियट, प्रतिपक्ष, आसपास, पूर्वाग्रह (मध्यप्रदेश कला परिषद्, भोपाल से संपादित त्रैमासिक पत्रिका), अमृत प्रभात, जनसत्ता और सहारा समय आदि के कुशल संपादक भी रहे।
साहित्यिक विशेषताएं
1.कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन भी करते रहे। 
2.मंगलेश जी की कविताओं में सामंती बोध एवं पूँजीवादी छल-छद्म दोनों का प्रतिकार है। वे यह प्रतिकार किसी शोर-शराबे के साथ नहीं अपितु प्रतिपक्ष में एक सुन्दर स्वप्न रचकर करते थे। 
3.उनका सौंदर्यबोध सूक्ष्म है और भाषा पारदर्शी है।
काव्य संग्रह --
1. पहाड़ पर लालटेन (नक्सल आंदोलन से प्रेरित)
2. घर का रास्ता 
3. हम जो देखते हैं,
4. आवाज भी एक जगह है
5. नये युग में शत्रु (बाजारवाद के मायावी रूप की तीव्र आलोचना)

(फरवरी, 2020 प्रकाशित 'स्मृति एक दूसरा समय है' उनके जीवन का अंतिम संग्रह रहा।)
 गद्य संग्रह --
1. लेखक की रोटी
2. कवि का अकेलापन

 यात्रावृत्त --
1. एक बार आयोवा

 संस्मरण --
1. एक सड़क, एक जगह

मंगलेश डबराल जी असंदिग्ध तौर पर राजनीतिक कवि थे, बाज़ारवाद, पूंजीवाद और सांप्रदायिकता के विरुद्ध थे, लेकिन उनमें एक अजब-सी मानवीय ऊष्मा भी थी।

 सम्मान व पुरस्कार --
ओमप्रकाश स्मृति सम्मान (1982)
श्रीकान्त वर्मा पुरस्कार (1989)
साहित्य अकादमी पुरस्कार (2000) ['हम जो देखते हैं' के लिए]

"एकाएक आसमान में
एक तारा दिखाई देता है।
हम दोनों साथ-साथ
जा रहे हैं अंधेरे में
वह तारा और मैं।"
 ('रेल में' कविता से)

आज वो तारा एकाएक असीम आसमान के अँधेरे में विलीन हो गया। ईश्वर उन्हें अपने श्री-चरणों में स्थान दे व परिजनों को इस दु:ख की घड़ी में धैर्य प्रदान करे।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2020

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय
रघुवीर सहाय 
रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता का नागर चेहरा है।यह पेशे से पत्रकार होते हुए भी समकालीन हिंदी कविता के एक सशक्त कवि हैं इन्होंने लघु की महत्ता को स्वीकार करते हुए घर मोहल्ले के चारित्रिक विशेषताओं पर कविता अधिक आम जनता की चेतना में स्थाई स्थान बनाया है।
 परिचय
जन्म -9 दिसंबर, 1929
जन्म भूमि- लखनऊ, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -30 दिसंबर, 1990
मृत्यु स्थान -दिल्ली
पत्नी- विमलेश्वरी सहाय
कर्म-क्षेत्र -लेखक, कवि, पत्रकार, सम्पादक, अनुवादक
भाषा- हिन्दी, अंग्रेज़ी
विद्यालय- लखनऊ विश्वविद्यालय
शिक्षा -एम. ए. (अंग्रेज़ी साहित्य)
#काल- आधुनिक काल
#युग- प्रयोगवाद युग (दुसरा सप्तक-1951 के कवि)
#पुरस्कार-उपाधि -साहित्य अकादमी पुरस्कार,1984 (लोग भूल गए हैं)
#रचनाएं:-
#कविता संग्रह:-
दूसरा सप्तक
सीढ़ियों पर धूप में (प्रथम)
आत्महत्या के विरुद्ध,1967
लोग भूल गये हैं,1982
मेरा प्रतिनिधि
हँसो हँसो जल्दी हँसो (आपातकाल सें संबंधित कविताओं का संग्रह)
कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ, 1989
एक समय था
#कहानी संग्रह:-
रास्ता इधर से है,
जो आदमी हम बना रहे है 
#नाटक:-
बरनन वन (शेक्सपियर द्वारा रचित'मैकबेथ' नाटक का अनुवाद)
#निबंध संग्रह:-
दिल्ली मेरा परदेस
लिखने का कारण
ऊबे हुए सुखी
वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे
भँवर लहरें और तरंग
#पत्र_पत्रिका-
रघुवीर सहाय 'नवभारत टाइम्स', दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। 'दिनमान' पत्रिका के 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे। उन्होंने 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया।
#प्रसिद्ध_पंक्तियां:-
-" तोड़ो तोड़ो तोड़ो
ये पत्‍थर ये चट्टानें
ये झूठे बंधन टूटें
तो धरती का हम जानें
सुनते हैं मिट्टी में रस है जिससे उगती दूब है
अपने मन के मैदानों पर व्‍यापी कैसी ऊब है
आधे आधे गाने"
-" राष्ट्रगीत में भला कौन वह
भारत-भाग्य-विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है."
-" पतझर के बिखरे पत्तों पर चल आया मधुमास,
बहुत दूर से आया साजन दौड़ा-दौड़ा
थकी हुई छोटी-छोटी साँसों की कम्पित
पास चली आती हैं ध्वनियाँ
आती उड़कर गन्ध बोझ से थकती हुई सुवास"
-" निर्धन जनता का शोषण है
कह कर आप हँसे
लोकतंत्र का अंतिम क्षण है
कह कर आप हँसे
सबके सब हैं भ्रष्टाचारी
कह कर आप हँसे
चारों ओर बड़ी लाचारी
कह कर आप हँसे
कितने आप सुरक्षित होंगे
मैं सोचने लगा
सहसा मुझे अकेला पा कर
फिर से आप हँसे"
-" मनुष्य के कल्याण के लिए
पहले उसे इतना भूखा रखो कि वह औऱ कुछ
सोच न पाए
फिर उसे कहो कि तुम्हारी पहली ज़रूरत रोटी है
जिसके लिए वह गुलाम होना भी मंज़ूर करेगा"
-" बच्चा गोद में लिए
चलती बस में
चढ़ती स्त्री
और मुझमें कुछ दूर घिसटता जाता हुआ।"
निष्कर्ष

हत्या ,लूटपाट ,आगजनी ,राष्ट्रीय भ्रष्टाचार  इनकी कविताओं में उतरकर खोजी पत्रकारिता की सनसनीखेज रिपोर्ट नहीं रह जाती बल्कि आत्मान्वेषण का माध्यम बन जाती हैं।
 इनके पास जातीय है या व्यक्तिगत स्मृतिया नहीं के बराबर हैं। इसलिए इनके दोनों पांव वर्तमान पर ही खड़े हैं।
 उनकी कविता मार्मिक उल्लास और व्यंग्य बुझी खुरदरी मुस्कान से फटी पड़ी है। कविता को इन्होंने एक कहानीपन तथा नाटकीय वैभव प्रदान किया है ।इनकी प्रमुख साहित्यिक विशेषताएं रही हैं। समय की अवधारणा, वैचारिक आयाम, विरोध का स्वर, मोह भंग की अनुभूति ,यथार्थ चित्रण ,जनपक्ष धरता, नारी के प्रति उदार दृष्टिकोण अकेलेपन का संात्र, राष्ट्र की ।
भाषा शैली में आम बोलचाल की के सरल सहज और धाराप्रवाह खड़ी बोली का प्रयोग है ।सड़क, चौराहा ,दफ्तर अखबार ,संसद ,बस ,रेल और बाजार जैसी बेलौस भाषा में लिखा है ।यथासंभव अलंकारों का प्रयोग ।इनकी भाषा को भावात्मक, प्रतीकात्मक, आत्मकथात्मक ,वर्णनात्मक चित्रात्मक शैलियों का भी प्रयोग इसमें मिलता है।  भाषा का सहज गुण है ।दृश्य बिंब प्रिय  है ।इस प्रकार हिंदी साहित्य के महान कवियों में इनका नाम गिना जाता है।


मंगलवार, 1 दिसंबर 2020

नागार्जुन का साहित्यिक परिचय/जीवन परिचय

नागार्जुन का साहित्यिक परिचय
जीवन परिचय 
बीए फाइनल ईयर सेमेस्टर 5 
अन्य कक्षाओं के लिए जरूरी
नागार्जुनहिंदी के जनवादी कवियों में प्रमुख स्थान रखते हैं नागार्जुन का उपनाम है उनका पूरा नाम वैद्यनाथ मिश्र यात्री है।

मूल (वास्तविक) नाम-  वैद्यनाथ मिश्र
अन्य नाम - नागार्जुन, यात्री
नोट:- 1936 ईस्वी में श्रीलंका में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने एवं बौद्ध भिक्षु बन जाने पर इनका नाम नागार्जुन पड़ा | ये श्रीलंका में बौद्ध धर्म के 'विद्यालंकार परिवेण' में तीन वर्ष तक रहे थे|
जन्म- 30 जून, 1911
जन्म भूमि- मधुबनी ज़िला, बिहार
मृत्यु -5 नवंबर, 1998
मृत्यु स्थान- दरभंगा ज़िला, बिहार
 पिता- गोकुल मिश्र
पत्नी - अपराजिता देवी

कर्म-क्षेत्र -कवि, लेखक, उपन्यासकार
युग- प्रगतिवादी युग

#रचनाएं:-
युगधारा 1953 
सतरंगे पंखों वाली 1959 
प्यासी पथराई आंखे 1962
तालाब की मछलियां 
तुमने कहा था 1980 
खिचड़ी विप्लव देखा हमने 1980 
हजार-हजार बाहों वाली 1981 
भस्मांकुर (खंडकाव्य) 
एसे भी हम क्या-ऐसी भी तुम क्या
पुरानी जूतियों का कोरस 1983 
रत्नगर्भ
काली माई 
रवींद्र के प्रति 
बादल को घिरते देखा है (कविता)
प्रेत का बयान 
आओ रानी हम ढोएं पालकी 
वे और तुम 
आकाल और उसके बाद 
सिंदूर तिलांकित भाल (कविता)
आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने 
मैं मिलिट्री का बूढ़ा घोड़ा 
तुम्हारी दंतुरित मुस्कान (कविता)
इस गुब्बारे की छाया में-1989
ओम मंत्र
भुल जाओ पुराने सपनें
#उपन्यास:-
'रतिनाथ की चाची' (1948 ई.)
'बलचनमा' (1952 ई.)
'नयी पौध' (1953 ई.)
'बाबा बटेसरनाथ' (1954 ई.)
'दुखमोचन' (1957 ई.)
'वरुण के बेटे' (1957 ई.)
उग्रतारा
कुंभीपाक
पारो
आसमान में चाँद तारे
#मैथिली रचनाएं:-
हीरक जयंती (उपन्यास)
पत्रहीन नग्न गाछ (कविता-संग्रह)
#बाल साहित्य
कथा मंजरी भाग-1
कथा मंजरी भाग-2
मर्यादा पुरुषोत्तम
विद्यापति की कहानियाँ
#व्यंग्य
अभिनंदन
#निबंध संग्रह
अन्न हीनम क्रियानाम
#बांग्ला रचनाएँ
मैं मिलिट्री का पुराना घोड़ा (हिन्दी अनुवाद)
#सम्मान और पुरस्कार
-नागार्जुन को साहित्य अकादमी पुरस्कार से, उनकी ऐतिहासिक मैथिली रचना 'पत्रहीन नग्न गाछ' के लिए 1969 में सम्मानित गया था। 
उन्हें साहित्य अकादमी ने 1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में भी नामांकित कर सम्मानित किया था।
#विशेष_तथ्य:-
-नागार्जुन मैथिली भाषा में 'यात्री' के नाम से कविता लिखते थे|
- किसी अंधविश्वास के कारण बचपन में इनका नाम 'ढ़क्कन' रखा गया था|
- लोग इन्हें प्यार से 'बाबा' भी कहते थे|
- उन्होंने इंदिरा गांधी की राजनीति को केंद्र बनाकर एवम् उन पर अनेक आरोप लगाकर कविताएं लिखी थी|
- यह व्यंग्य में माहिर है इसलिए इन्हें 'आधुनिक कबीर' भी कहा जाता है|
- इन्होंने प्रगतिवादी काव्यधारा को जन-जन के अभाव व आकांक्षाओं से जोड़कर उसे जन जागरण की कविता बना दिया था|
- इनके द्वारा 'दीपक' नामक पत्रिका का संपादन कार्य किया गया था
- यह जन्म से कवि, प्रकृति से घुमक्कड़ एवं विचारों से मूलतः मार्कसवादी माने जाते हैं|
- नागार्जुन ने अपनी भाषा में 'ठेठ ग्रामीण शैली के मुहावरो' का प्रयोग किया है|
- इनकी मृत्यु के बाद 'सोमदेव' तथा 'शोभाकांत' के संपादन में इनकी एक लंबी कविता 'भूमिजा' प्रकाशित हुई थी|
- इनका संपूर्ण कृतित्व 'नागार्जुन रचनावली' के 'सात' खंडों में प्रकाशित है|
- कवि आलोक धन्‍वा ने नागार्जुन की रचनाओं को संदर्भित करते हुए कहा कि उनकी कविताओं में आज़ादी की लड़ाई की अंतर्वस्‍तु शामिल है। नागार्जुन ने कविताओं के जरिए कई लड़ाईयाँ लडीं। वे एक कवि के रूप में ही महत्‍वपूर्ण नहीं है अपितु नए भारत के निर्माता के रूप में दिखाई देते हैं।
- "नागार्जुन जैसा प्रयोगधर्मा कवि कम ही देखने को मिलता है, चाहे वे प्रयोग लय के हों, छंद के हों, विषयवस्तु के हों। " - नामवर सिंह
#प्रसिद्ध_पंक्तियां:-
-"खिचड़ी विप्लव देखा हमने
भोगा हमने क्रांति विलास
अब भी खत्म नहीं होगा क्या
पूर्णक्रांति का भ्रांति विलास।"
-" काम नहीं है, दाम नहीं है
तरुणों को उठाने दो बंदूक
फिर करवा लेना आत्मसमर्पण"
-" पांच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाकी बच गए चार
चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश निकाला मिला एक को, बाकी बच गए तीन
तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गए दो
दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया एक गद्दी से, बाकी बच गया एक
एक पूत भारतमाता का, कंधे पर था झंडा
पुलिस पकड़ कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा !"
- "कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास कई दिनों तक काली कुत्तिया, सोई उसके पास ||"
-" बदला सत्य, अहिंसा बदली, लाठी-गोली डंडे है कानूनों की सड़ी लाश पर प्रजातंत्र के झंडे हैं|"
निष्कर्ष
नागार्जुन जी लोक जीवन से गहरा सरोकार रखते हैं यह अपने साहित्य में भ्रष्टाचार राजनीतिक स्वार्थ और समाज की पतन सिर्फ तिथियों के प्रति विशेष तौर पर सजग हैं जिन्होंने धरती जनता तथा श्रम के गीत गाए हैं इनकी रचनाओं में पूंजी वादियों के प्रति घृणा तथा श्रमिकों के प्रति सहानुभूति की भावना देखी जा सकती हैं। भाषा सरल सहज खड़ी बोली तत्सम शब्दों का ज्यादातर प्रयोग शब्द चयन सर्वथा सार्थक और भवानीपुर शैली का चयन अपने विषय को ध्यान में रखते हुए किया गया है उनके काव्य में वीर ,वात्सल्य ,हास्य अद्भुत रसों का खुलकर प्रयोग हुआ है।

धर्मवीर धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय और जीवन परिचय

धर्मवीर भारती का जीवन परिचय
धर्मवीर भारती का साहित्यिक परिचय
b.a. फाइनल ईयर सेमेस्टर 5
m.a. कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
अंधा युग की थी नाटक से लोकप्रिय धर्मवीर भारती स्वतंत्रता के बाद के साहित्यकारों में विशिष्ट स्थान रखते हैं।
 धर्मवीर भारती 

जन्म- 25 दिसंबर 1926
जन्म भूमि- इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु -4 सितंबर, 1997
मृत्यु स्थान- मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक - चिरंजीवलाल वर्मा, चंदादेवी
पति/पत्नी- कांता कोहली, पुष्पलता शर्मा (पुष्पा भारती)
संतान- परमीता, प्रज्ञा भारती (पुत्री), किन्शुक भारती (पुत्र)
कर्म भूमि- इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
कर्म-क्षेत्र - लेखक, कवि, नाटककार
काल- आधुनिक काल (प्रयोगवाद काल)
नोट- भारती दुसरा-सप्तक में शामिल कवि थे|
#रचनाएं:-
#कविता:-
ठंडा लोहा (1952)
सात गीत वर्ष (1959)
कनुप्रिया (1959)
सपना अभी भी (1993)
आद्यन्त (1999)
#पद्यनाटक :-
अंधायुग (1954)
#कहानी संग्रह:-
मुर्दों का गाँव (1946)
स्वर्ग और पृथ्वी (1949)
चाँद और टूटे हुए लोग (1955)
बंद गली का आख़िरी मकान (1969)
साँस की क़लम से (पुष्पा भारती द्वारा संपादित सम्पूर्ण कहानियाँ ) (2000)
#रेखाचित्र:-
कुछ चेहरे कुछ चिंतन (1997)
#संस्मरण:-
शब्दिता (1997)
#उपन्यास:-
गुनाहों का देवता(1949)
सूरज का सातवाँ घोडा (1952)
ग्यारह सपनों का देश (प्रारंभ और समापन) 1960
#निबंध:-
ठेले पर हिमालय (1958)
कहनी अनकहनी (1970)
पश्यंती (1969)
साहित्य विचार और स्मृति (2003)
#रिपोर्ताज:-
मुक्त क्षेत्रे : युद्ध क्षेत्रे (1973)
युद्ध यात्रा (1972)
#आलोचना:-
प्रगतिवाद: एक समीक्षा (1949)
मानव मूल्य और साहित्य (1960)
#एकांकी नाटक :-
नदी प्यासी थी (1954)
#अनुवाद :-
ऑस्कर वाइल्ड की कहानियाँ (1946)
देशांतर (21 देशों की आधुनिक कवितायें ) 1960
#यात्रा विवरण :-
यात्रा चक्र (1994)
#मृत्यु के बाद प्रकाशित रचनाएं:-
धर्मवीर भारती की साहित्य साधना (संपादन पुष्पा भारती) 2001
धर्मवीर भारती से साक्षात्कार (संपादन पुष्पा भारती) (1998)
अक्षर अक्षर यज्ञ (पत्र : संपादन पुष्पा भारती 1998)
#पत्र/पत्रिकाओं का संपादन :-
अभ्युदय
संगम
हिन्दी साहित्य कोष (कुछ अंश)
आलोचना
निकष
धर्मयुग

#सम्मान एवं पुरस्कार:-
डॉ. धर्मवीर भारती को मिले सम्मान एवं पुरस्कार :-
1967 संगीत नाटक अकादमी सदस्यता - दिल्ली
1984 हल्दीघाटी श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार - राजस्थान
1985 साहित्य अकादमी रत्न सदस्यता - दिल्ली
1986 संस्था सम्मान - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
1988 सर्वश्रेष्ठ नाटककार पुरस्कार - संगीत नाटक अकादमी, दिल्ली
1988 सर्वश्रेष्ठ लेखक सम्मान - महाराणा मेवाड़ फ़ाउंडेशन - राजस्थान
1989 गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार - केंद्रीय हिन्दी संस्थान - आगरा
1989 राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान - बिहार सरकार
1990 भारत भारती सम्मान - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान
1990 महाराष्ट्र गौरव - महाराष्ट्र सरकार
1991 साधना सम्मान - केडिया हिन्दी साहित्य न्यास - मध्यप्रदेश
1992 महाराष्ट्राच्या सुपुत्रांचे अभिनंदन - वसंतराव नाईक प्रतिष्ठान- महाराष्ट्र
1994 व्यास सम्मान - के. के. बिड़ला फ़ाउंडेशन - दिल्ली
1996 शासन सम्मान - उत्तर प्रदेश सरकार - लखनऊ
1997 उत्तर प्रदेश गौरव - अभियान संस्थान - बम्बई
#विशेष_तथ्य:-
- ये प्रारंभ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे|
- ये 1987 ईस्वी तक धर्मयुग पत्रिका के संपादक रहे|
- उनकी कविताओं के प्रमुख विषय रूपा शक्ति, उद्दाम कामवासना एवं सबच्छंद विलास है|
- कनुप्रिया रचना में राधा की परंपरागत चरित्र को नए रुप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है|
- साहित्यकारों की सहायतार्थ आप ने 1943 ईस्वी में 'परिमल' नामक संस्था की स्थापना की थी|
- आपने सिद्ध साहित्य पर शोध उपाधि प्राप्त की थी |
- आपके द्वारा रचित सूरज का सातवां घोड़ा रचना पर एक टीवी धारावाहिक सात कड़ियों में भी प्रसारित हुआ था|
धर्मवीर भारती चेतना के प्रतिनिधि कवि हैं यह जीवन की सच्ची अनुभूतियों के शहद शिल्पी हैं उनके काव्य में न तो किसी प्रकार का सैद्धांतिक दुराग्रह है नहीं शिल्पगत दुराव इनकी कविताओं में प्रयोगवाद तथा नई कविता के संदर्भ के बारे में महत्वपूर्ण उपलब्धि समझी जाती हैं। इनके काव्य की कुछ विशेषताएं निम्नलिखित हैं रूमानियत की भावना प्राकृतिक चित्रण अनाज था निराशा और पराजय की भावना आस्था और निर्माण का स्वर उनकी जो भाषा शैली है वह चित्रात्मक वर्णनात्मक तथा आत्मकथात्मक भी रही है प्रेम वासना निराशा नाश्ता के स्वरों के अतिरिक्त भारती के काव्य में आस्था विश्वास पर निर्माण की गूंज भी दिखाई दी है।
निष्कर्ष 
डॉ भारती का साहित्य कई मोड़ो से गुजर कर आज का एक विशिष्ट मुकाम हासिल कर चुका है अपनी कावर यात्रा के प्रारंभिक मोड पर डॉ भारती छायावादी गीतकार के रूप में अवतरित हुए परंतु अगले ही मोड़ पर उनके साहित्य में मांस लता प्रेम रूप यौवन और आनंद के दर्शन होते हैं डॉ भारती ने अपने ग्रंथ साथ गीत वर्ष में अपनी वास्तविक राह पाकर पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं इनकी रचनाओं में सिद्धू का रिवाज वैष्णव का महा भाव अस्तित्व वादियों का संवाद छायावाद का रोमांच संभ्रांत वर्ग का परिष्कृत रुचि पहनी पर्यवेक्षण शक्ति और अभी रामसन संश्लिष्ट शैली के दर्शन होते हैं उनके काव्य में प्रेमा अनुभूति से लेकर विद्रोहात्मक आत्मक स्वर तक सबकुछ उपलब्ध है।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय/साहित्यिक परिचय
बीए /m.a. में कक्षाओं के लिए

महादेवी वर्मा (1907-1987) हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध महान कवयित्री, छायावाद के चार स्तंभों में से एक, वेदना की देवी का जन्म
(26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद —11 सितम्बर, 1987, प्रयाग में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई।
1916 में विवाह के कारण इनकी सब शिक्षा कुछ समय के लिए बाधित हुई ।
परंतु 1919 में इन्होंने पुन: प्रयाग में अपनी पढ़ाई आरंभ कर दी ।1933 में प्रयाग विश्वविद्यालय से ही संस्कृत विषय में में किया औरप्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या नियुक्त हुई।
   वे लंबे अरसे तक प्रयाग महिला विद्यापीठ के कुलपति भी रही बचपन में अपनी सखी सुभद्रा कुमारी चौहान जो इनसे कुछ बड़ी थी उनसे प्रेरणा पाकर लेखन कार्य आरंभ किया और मृत्यु पर्यंत जारी रखा।
 हिंदी साहित्य के छायावाद के चार स्तंभों में से एक रूप में जानी जाती है उन्होंने अपनी कविताओं में दर्द और पीड़ा के कारण ही में आधुनिक मीरा भी कहा जाता है।

-आधुनिक साहित्य की मीरा
@रेखाचित्र
अतीत के चलचित्र (1941)
स्मृति की रेखाएँ (1943)
@संस्मरण
पथ के साथी (1956, अपने अग्रज समकालीन साहित्यकारों पर)
मेरी परिवार (1972, पशु-पक्षियों पर)
संस्मरण (1983)
@ललित निबंध
क्षणदा (1956)
चुने हुए भाषणों का संग्रह
संभाषण (1974)
@कहानियाँ
गिल्लू
@निबन्ध
विवेचनात्मक गद्य (1942)
श्रृंखला की कड़ियाँ (1942, भारतीय नारी की विषम परिस्थितियों पर)

साहित्यकार की आस्था और अन्य निबन्ध (1962, सं. गंगा प्रसाद पांडेय, महादेवी का काव्य-चिन्तन)
संकल्पिता (1969)
भारतीय संस्कृति के स्वर (1984)।
चिन्तन के क्षण
युद्ध और नारी
नारीत्व का अभिशाप
सन्धिनी
आधुनिक नारी
स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न
सामाज और व्यक्ति
संस्कृति का प्रश्न
हमारा देश और राष्ट्रभाषा
@महत्वपूर्ण पंक्तियां
सौन्दर्य परिचय -स्निग्ध खंड है और सत्य विस्मय भरा अखण्ड।
काव्य या कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।
कवि का दर्शन दीवन के प्रति उसकी आस्था का दूसरा नाम है।
आस्था मानव के युगान्तर से प्राप्त दार्शनिक लक्ष्य पर केन्द्रित रागात्मक दृष्टि रही है।
छायावाद तो करुणा की छाया में सौन्दर्य के माध्यम से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद ही रहा है और उसी रूप में उसकी उपयागिता है।
*महादेवी ने स्वयं लिखा है, ”मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। 
मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पडौस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र् लिखे थे जो उस समय की पत्र्किाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।“
‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’

कविता-संग्रह  

नीहार (1930)
रश्मि (1932)
नीरजा (1934)
सांध्यगीत (1935)
यामा (1940)
दीपशिखा (1942)
सप्तपर्णा (1960, अनूदित)
संधिनी (1965)
नीलाम्बरा (1983)
आत्मिका (1983)
दीपगीत (1983)
प्रथम आयाम (1984)
अग्निरेखा (1990)
पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
परिक्रमा
गीतपर्व

(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)
यामा (1940)
हिमालय (1960)
दीपगीत (1983)
नीलाम्बरा (1983)
आत्मिका (1983)
गीतपर्व
परिक्रमा 
संधिनी
स्मारिका
पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
*महादेवी वर्मा की बाल कविताओं के दो संकलन छपे हैं—
ठाकुरजी भोले हैं
आज खरीदेंगे हम ज्वाला
बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय (1960) नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था।

*कुछ प्रतिनिधि कविताएँ
अलि! मैं कण-कण को जान चली 
अलि अब सपने की बात 
अश्रु यह पानी नहीं है
कहां रहेगी चिड़िया 
किसी का दीप निष्ठुर हूँ 
कौन तुम मेरे हृदय में
क्या जलने की रीत 
क्या पूजन क्या अर्चन रे!
क्यों इन तारों को उलझाते? 
जब यह दीप थके 
जाग-जाग सुकेशिनी री! 
जाग तुझको दूर जाना
जाने किस जीवन की सुधि ले
जीवन विरह का जलजात
जो तुम आ जाते एक बार 
जो मुखरित कर जाती थीं
तम में बनकर दीप
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!
तेरी सुधि बिन
दिया क्यों जीवन का वरदान
दीपक अब रजनी जाती रे 
दीप मेरे जल अकम्पित
धीरे-धीरे उतर क्षितिज से 
धूप सा तन दीप सी मैं
नीर भरी दुख की बदली
पूछता क्यों शेष कितनी रात? 
प्रिय चिरन्तन है 
बताता जा रे अभिमानी! 
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
मिटने का अधिकार 
मेरा सजल मुख देख लेते! 
मैं अनंत पथ में लिखती जो 
मैं नीर भरी दुख की बदली! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं 
मैं बनी मधुमास आली! 
यह मंदिर का दीप 
रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता
रूपसि तेरा घन-केश-पाश 
लाए कौन संदेश नए घन
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की
वे मुस्कराते फूल नहीं 
व्यथा की रात
शून्य से टकरा कर सुकुमार
सजनि कौन तम में परिचित सा 
सजनि दीपक बार ले 
सब आँखों के आँसू उजले 
स्वप्न से किसने जगाया? 
हे चिर महान्!
@पुरस्कार और सम्मान:-
1934 ‘ नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार
1942 ‘ द्विवेदी पदक’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)
1943 ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)
1943 ‘ भारत भारती पुरस्कार’, (‘स्मृति की रेखाओं’ के लिये)
1944 ‘यामा’ कविता संग्रह के लिए
1952 उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत
1956 ‘पद्म भूषण’
1979 साहित्य अकादमी फैलोशिप (पहली महिला)
1982 काव्य संग्रह ‘यामा’ (1940) के लिये ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’
1988 ‘पद्म विभूषण’ (मरणोपरांत)
#विशेष:-
-सन् 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ मासिक की भी संपादक रहीं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘ रंगवाणी नाट्य संस्था’ की भी स्थापना की।
-इन्हे ' वेदना की कवयित्री' एवं 'आधुनिक युग की मीरां' नाम से भी पुकारा जाता है|
-ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रचार्य रही हैं|
- रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा- " छायावाद कहे जाने वाले कवियों मे महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही है|"
इनको छायावाद साहित्य की 'शक्ति (दुर्गा)' कहा जाता है
- महादेवी वर्मा ने हिंदी की बहुत सी वेदों में लिखा परंतु मोहलत अभी एक अभियंत्रिकी छायावाद के चार आधार आधार स्तंभों में से एक रूप में जानी जाती हैं उनका काव्य संवेदना भाव संगीत और चरित्र का अद्भुत संगम है इनका समस्त काव्य वेदना में है लेकिन इस वेदना को आध्यात्मिक वेदना बनाकर उन्होंने प्रस्तुत करने की चेष्टा की है उनकी वेदना पर बौद्ध दर्शन की चाबी पड़ी है इनकी प्रारंभिक 9 दिन की वेदना का स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है इन्होंने शुद्ध साहित्यिक हिंदी खड़ी बोली का प्रयोग किया है आबादी कवियों में एकमात्र कवित्री ऐसी हैं जिनकी काव्य भूमि और शैली आरंभ से अंत तक एक ही रही है इनकी जमीन एक ही है। हिंदी साहित्य हमेशा इनका ऋणी रहेगा।

रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
b.a. सेकंड ईयर
सेमेस्टर 3
 रामधारी सिंह दिनकर 

उपनाम-  दिनकर
जन्म- 23 सितंबर, 1908
जन्म भूमि-  सिमरिया, मुंगेर, बिहार
मृत्यु- 24 अप्रैल, 1974
मृत्यु स्थान- चेन्नई, तमिलनाडु
अभिभावक - श्री रवि सिंह और श्रीमती मनरूप देवी
पत्नी-श्यामवती
संतान-  एक पुत्र
कर्म भूमि- पटना
कर्म-क्षेत्र - कवि, लेखक
प्रसिद्धि- द्वितीय राष्ट्रकवि
काल- आधुनिक काल (राष्ट्रीय चेतना प्रधान काव्य धारा के कवि)
#पुरस्कार-उपाधि- 
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1972
साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1959
पद्म भूषण-1959 (भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा प्रदान)
#रचनाएं:-
रेणुका-1935
हुँकार- 1938
रसवंती-1940
द्वन्द्व गीत-1940
सामधेनी-1946
धूप और धुआँ- 1951 
आँसु-1951
नील-कुसुम-1954
कुरुक्षेत्र-1946 (महाकाव्य/प्रबंधकाव्य)
रश्मिरथी-1952 (प्रबंधकाव्य)
उर्वशी-1961 (खण्डकाव्य)
हाहाकार
यशोधरा-1946
परशुराम की प्रतिक्षा-1963
हारे को हरिनाम-1970
दिल्ली
सीपी और शंख
वट पीपल-1961
संस्कृति के चार अध्याय (गद्य काव्य)
मगध महिमा (काव्यात्मक एकांकी)
-व्यंग्य एवं लघु कविताओं का संग्रह - नाम के पत्ते।
-अनूदित और मुक्त कविताओं का संग्रह - मृत्ति तिलक।
-बाल-काव्य विषयक उनकी दो पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुई हैं —‘मिर्च का मजा’ और ‘सूरज का ब्याह
#आलोचना-
काव्य की भूमिका-1957
पंत-प्रसाद-मैथलीशरण गुप्त-1958
शुद्ध कविता की खोज-1966

#निबंध-
मिट्टी की ओर-1946
अर्धनारीश्वर-1952
रेत के फूल-1954
हमारी सांस्कृतिक एकता-1954
उजली आग-1956
राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहित्य-1958
वेणुवन-1958
नैतिकता और विज्ञान-1959
साहित्यमुखी-1968
#संस्मरण एवं रेखाचित्र विधा- 
लोकदेव नेहरु-1965
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ- 1969
#यात्रा विधा-
देश-विदेश-1957
मेरी यात्राएँ- 1970

#डायरी विधा- 
दिनकर की डायरी-1978 

#विशेष_तथ्य:-
-दिनकर को 'द्वितीय राष्ट्रकवि' भी कहा जाता है|
- हिंदी साहित्य जगत में दिनकर को 'अनल कवि व अधैर्य का कवि' उपनाम से भी जाना जाता है|

- इनको 'उर्वशी' काव्य रचना के लिए 1972 ईस्वी में 'भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ था|
- 'संस्कृति के चार अध्याय' रचना के लिए इनको 1959 ईस्वी में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ था|
- इन्हें राष्ट्रीय जागरण तथा भारतीय संस्कृति का कवि माना जाता है|
-रेणुका की कविता " तांडव" में शंकर से प्रलय की याचना की।
-रेणुका की कविता "पुकार" में किसान की विवशता का चित्रण।
-वट पीपल इनका प्रमुख रेखाचित्र है।
"संस्कृति के चार अध्याय" की भूमिका पं० जवाहर लाल नेहरू ने लिखी थी।
- इनका 'कुरुक्षेत्र' महाकाव्य द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से प्रेरित होकर रचा गया था यह काव्य मूलतः महाभारत के भीष्म युधिष्ठिर संवाद पर आधारित है|
-बोस्टल जेल के शहीद को श्रद्धांजलि के रूप में लिखा कविता - बागी।
-सामधेनी की कविता 'हे मेरे स्वदेश' में हिन्दी मुस्लिम दंगों की भर्त्सना की।
-सामधेनी की कविता'अंतिम मनुष्य' में युद्ध प्रलय का चित्रण है।

-कुरूक्षेत्र में मिथकीय पद्धति है
-परशुराम की प्रतीक्षा में भारती पर चीनी आक्रमण के बारे में प्रतिक्रिया है।
-दीपदान के अंग्रेजी पत्र 'orient West's में दिनकर की कलिंग विजय का अनुवाद किसी गया था।
-संस्कृति के चार अध्याय के प्राचीन खण्ड का जापानी भाषा में अनुवाद किसी गया था।
-1955 में दिनकर ने वारसा (पोलैंड) के अन्तर्राष्ट्रीय काव्य समारोह में भारतीय शिखर मंडल के नेता के रूप में भाग लिया।
- विद्यार्थी जीवन में आर्थिक तंगी होते हुए भी दिनकर ने मैट्रिक की परीक्षा में हिंदी विषय में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर 'भूदेव' सवर्ण पदक प्राप्त किया था|
-दिनकर भागलपुर वि.वि., बिहार के कुलपति भी रहे थे|(1964-65 में)
- दिनकर को भारतीय संसद में 'राज्यसभा' का सदस्य भी मनोनीत किया गया था| (1952 प्रथम संसद के सदस्या, 12 वर्षो तक रहे)
- 1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी की
#दिनकर के बारे में अन्य लेखकों के कथन:-

-"वे अहिन्दीभाषी जनता में भी बहुत लोकप्रिय थे क्योंकि उनका हिन्दी प्रेम दूसरों की अपनी मातृभाषा के प्रति श्रद्धा और प्रेम का विरोधी नहीं, बल्कि प्रेरक था।" -हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
-"दिनकर जी ने श्रमसाध्य जीवन जिया। उनकी साहित्य साधना अपूर्व थी। कुछ समय पहले मुझे एक सज्जन ने कलकत्ता से पत्र लिखा कि दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना कितना उपयुक्त है ? मैंने उन्हें उत्तर में लिखा था कि यदि चार ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें मिलते, तो उनका सम्मान होता- गद्य, पद्य, भाषणों और हिन्दी प्रचार के लिए।" -हरिवंशराय बच्चन
-"उनकी राष्ट्रीयता चेतना और व्यापकता सांस्कृतिक दृष्टि, उनकी वाणी का ओज और काव्यभाषा के तत्त्वों पर बल, उनका सात्त्विक मूल्यों का आग्रह उन्हें पारम्परिक रीति से जोड़े रखता है।" -अज्ञेय
-"हमारे क्रान्ति-युग का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व कविता में इस समय दिनकर कर रहा है। क्रान्तिवादी को जिन-जिन हृदय-मंथनों से गुजरना होता है, दिनकर की कविता उनकी सच्ची तस्वीर रखती है।" -रामवृक्ष बेनीपुरी
-"दिनकर जी सचमुच ही अपने समय के सूर्य की तरह तपे। मैंने स्वयं उस सूर्य का मध्याह्न भी देखा है और अस्ताचल भी। वे सौन्दर्य के उपासक और प्रेम के पुजारी भी थे। उन्होंने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ नामक विशाल ग्रन्थ लिखा है, जिसे पं. जवाहर लाल नेहरू ने उसकी भूमिका लिखकर गौरवन्वित किया था। दिनकर बीसवीं शताब्दी के मध्य की एक तेजस्वी विभूति थे।" -नामवर सिंह
#दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तियां-
-रोक युधिष्ठर को न यहाँ,
जाने दे उनको स्वर्ग धीर पर फिरा हमें गांडीव गदा, 
लौटा दे अर्जुन भीम वीर - (हिमालय से)
-क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो - (कुरुक्षेत्र से)
-मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। - (रश्मिरथी से)
- धन है तन का मैल, पसीने का जैसे हो पानी, 
एक आन को ही जीते हैं इज्जत के अभिमान
निष्कर्ष साहित्य की गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखने वाले रामधारी सिंह दिनकर आलू के आधुनिक हिंदी के राष्ट्रकव
 राष्ट्रीय चेतना का स्वर, छायावादी, प्रकृति वादी, प्रगतिवादी, मानवता का प्रतिपादन करने वाले, क्रांति के उद्घोषक, गांधीवादी अनिशाबाद का समर्थन करने वाले,सहज सरल साहित्य खड़ी बोली का प्रयोग करने वाले, ओज गुण की प्रधानता रखने वाले राष्ट्रकवि दिनकर जी का काव्य भाव और भाषा दोनों दृष्टि उसे उच्च कोटि का है।

सूरदास

सूरदास का जीवन परिचय
बीए कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
m.a.  कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
सूरदास
हिंदी की कृष्ण काव्य धारा और अष्टछाप में महात्मा सूरदास का प्रमुख स्थान है ।
इसी कारण गोस्वामी विट्ठलदास ने सूर्य को पुष्टिमार्ग का जहाज और लोक मानस ने सूर सूर तुलसी शशि कहकर उनकी अस्मिता को अंगीकृत किया है ।
प्राचीन संत भक्तों की भांति सूरदास का भी प्रमाणिक जीवन वृत्त प्राप्त नहीं होता । आधुनिक शोधों के आधार पर माना जाता है कि सूरदास का जन्म संवत् 1535 में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी को दिल्ली के समीप हरियाणा राज्य में स्थित फरीदाबाद के सीही गांव में एक सारस्वत ब्राह्मण के परिवार में हुआ ।
अधिकांश विद्वानों ने सूर्य की मृत्यु संवत् 1640 में परसोली नामक गांव में स्वीकार की है।$ कृष्ण भक्ति काव्य धारा के कवि $
     
जन्मकाल- 1478 ई. (1535 वि.)
जन्मस्थान- सीही ग्राम ( नगेन्द्र के अनुसार)
- आधुनिक शौधों के अनुसार इनका जन्म स्थान मथुरा के निकट 'रुनकता' नामक ग्राम माना गया है|
मृत्युकाल- 1583 ई. (1640 वि.) पारसोली गाँव में
गुरु का नाम- वल्लभाचार्य
गुरु से भेंट- 1509-10 ई. में (पारसोली नामक गाँव में)
काव्य भाषा- ब्रज
#रचनाएँ:-
वैसे तो सूरदास की यानी कि तृतीय बताई जाती हैं लेकिन तीन ही रचनाएं प्रमाणिक मानी जाती है वह है-
1. सूरसागर
2. साहित्य लहरी
3. सूरसारावली

#सूरसागर:-
- यह सूरदास की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है|
- इसका मुख्य उपजीव्य (आधार स्रोत) श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंद का 46 वां व 47 वां अध्याय माना जाता है|
- भागवत पुराण की तरह इस का विभाजन भी 'बारह स्कंधो' में किया गया है|
-इसके दसवें स्कंद में सर्वाधिक पद रचे गए है|
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-" सूरसागर किसी चली आती हुई गीती काव्य परंपरा का, चाहे वह मौखिक ही रही हो, पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है|"
- नगेन्द्र ने इस रचना को 'अन्योक्ति' एवं 'उपालम्भ काव्य' कहकर पुकारा है|

#साहित्यलहरी:-
- यह इनका रीतिपरक यह माना जाता है|
- इसमें दृष्टकूट पदों में राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है|
- अलंकार निरुपण दृष्टि से भी इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्व माना जाता है|

#सूरसारावली:-
- यह इनकी विवादित या अप्रमाणिक रचना मानी जाती है|
#विशेष_तथ्य:-
- सूरदास जी को ' खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज' आदि नामों से भी जाना जाता है|
- आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको-'वात्सल्य रस सम्राट' व 'जीवनोत्सव का कवि' कहा है|
-गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने इनकी मृत्यु पर ' पुष्टिमार्ग का जहाज' कहकर पुकारा था| इनकी मृत्यु पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था:-
" पुष्टिमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेना होय सो लेउ|"
- हिंदी साहित्य जगत में 'भ्रमरगीत' परंपरा का समावेश सूरदास द्वारा ही किया हुआ माना जाता है|
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह चंदबरदाई के वंशज कवि माने गए हैं|
- आचार्य शुक्ल ने कहा है- "सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टीमार्ग ही है|"
- सूरदास जी ने भक्ति पद्धति के 11 रूपों का वर्णन किया है|
- हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी सूर्य के समान, तुलसीदास जी चंद्रमा के समान, केशव दास जी तारे के समान तथा अन्य सभी कवि जुगनुओं (खद्योत) के समान यहां-वहां प्रकाश फैलाने वाले माने जाते हैं| यथा:-
"सूर सूर तुलसी ससि, उडूगन केशवदास|
और कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश||"
- सूर के भाव चित्रण में वात्सल्य भाव को श्रेष्ठ कहा जाता है| आचार्य शुक्ल ने लिखा है:-
" सूर अपनी आंखों से वात्सल्य का कोना कोना छान आए हैं ।
निष्कर्ष-सूरदास बहुमुखी सृजनात्मक प्रतिभा के भक्त कवि थे उन्होंने राधा कृष्ण के बाल जीवन और युवा जीवन की लीलाओं का निरूपण नहीं किया है वरन उन्हें लीलाओं के वर्णन के बहाने से उन्होंने सिंगार सौंदर्य संस्कृति प्रकृति भक्ति वात्सल्य आदि का बड़ा मनोरम चित्र अंकन किया है।