5 जुलाई 2020।
गुरु रास्ता भी है
गुरु मंजिल भी
जिंदगी की बड़ी जरूरत भी
ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग भी
जीवन भविष्य से जुड़ने
का रास्ता भी
गुरु और गोविंद एक साथ खड़े हो तो किसे प्रणाम करना चाहिए गुरु को अथवा गोविंद को जवाब यही है कि गुरु के चरणों में ही झुकना उत्तम है इनकी कृपा से ही गुरु ही ईश्वर के दर्शन करा सकता है।
गुरु ही ब्रह्मा
गुरु ही विष्णु
गुरु ही भगवान है
गुरु ही शिक्षक
गुरु ही रक्षक है
गुरु ही शंकर है
गुरु ही ब्रह्मा
गुरु की महिमा अपार है खुश तो भूमि में गुरु का अर्थ अंधकार या मूल अज्ञान कथा ।
संत कबीर ने गुरु के बारे में कहा है कि
गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाय
अर्थात गुरु और गोविंद दोनों एक साथ खड़े होने पर किसके पैर में पहले स्पर्श करो गुरु के श्री चरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनकी कृपा प्रसाद से ही गोविंद के दर्शन होते हैं ।
संत तुलसीदास ने तो गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ माना है रामचरितमानस में वह लिखते हैं कि गुरु दिनों बहू ने दिल करे ना कोई जो बिरंचि संकर सम होई
अर्थात भले ही कोई ब्रह्मा शंकर के समान क्यों ना हो।
वह गुरु के बिना भवसागर पार नहीं कर सकता।
संत तुलसीदास तो शिक्षक को मनुष्य के रूप में भगवान ही मानते हैं।
वह रामचरित्र मानस में लिखते हैं कि
बंधन गुरु पद कंज कृपा सिंधु
नर मोह तम पुंज जासु
बच्चन रबि कर निकर
यानी गुरु मनुष्य रूप में नारायण ही है मैं उनके चरणों की वंदना करता हूं गुरु के वचनों से मूर्तियां कार का नाश हो जाता है।
संत कबीर ने तो अद्भुत अंदाज में कहा है कि
गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ ,गढ़ी गढ़ी काडे खोट
अंदर हाथ सहार देत
बाहर मारै चोट
महायोगी श्री अरविंद ने कहा है कि अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं।
वह संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं।
और अपने शर्म से उन्हें सीट जीतकर महाप्राण शक्तियां बनाते हैं जिस दिन उसी दिन से शुरू हो जाता है।
उसी दिन से शिष्य का पतन शुरू हो जाता है ।
सद्गुरु शिष्य की सभी प्रकार के कदम कदम पर से रक्षा करता है ।
इसलिए गुरु का सम्मान करना चाहिए ।
उनके दिए ज्ञान का अनुसरण करना चाहिए
गुरु की मर्यादा अर्थात सभी का हनन कभी ना करें ।
कहा भी गया है कि गुरु के समीप शिष्य का आसन हमेशा नीचे होना चाहिए ।
गुरु की बुराई या निंदा ना करें और ना ही उनकी नकल करें गुरु के न रहने पर भी शिष्य को गुरु का नाम आदर पूर्वक देना चाहिए ।
गुरु जहां कहीं भी मिले जिससे उनका सम्मान करें ।
अगर आज के संदर्भ में गुरु शिष्य के संबंध को देखें तो यह बेहद विडंबना की बात है ।
कि दोनों के बीच वैसे मर्यादित और स्नेह पूर्ण संबंध तो दूर की बात है।
शहद संबंध भी नहीं मिलते कारण चाहे जो भी हो।
हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि जब तक गुरु के प्रति श्रद्धा व निष्ठा नहीं होगी तब तक ज्ञान नहीं मिलेगा ।
श्री कृष्ण ने भगवत गीता में अर्जुन से कहा-सर्व धर्म आना परिचय नाम के नाम शरणं व्रज रहमत वासर भोपा पर वह अवश्य से मामी मां सूची अर्थात सभी साधनों को छोड़कर केवल नारायण स्वरूप गुरु की शरण में हो जाओ वे सभी पापों का नाश करवा देगा कहने का अभिप्राय है कि गुरु सद्गुरु होना चाहिए ।
इसकी पहचान आप पर विवेक ही आपको करवाएगा सही गुरु की शरण लेने से ही भवसागर पार किया जा सकता है ।धन्यवाद
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