5955758281021487 Hindi sahitya : अक्तूबर 2020

शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

अज्ञेय द्वारा रचित कविता नदी के द्वीप का प्रतिपाद्य

आज्ञा द्वारा रचित कविता
नदी के द्वीप का प्रतिपाद्य
नदी के द्वीप शीर्षक कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
नदी के द्वीप कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए
नदी के द्वीप कविता की भाषा शैली समझाइए।
नदी के द्वीप श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय की सुप्रसिद्ध प्रतीकात्मक कविता है इसमें कवि ने नदी की धारा द्वीप और भूखंडों के प्रतीकों के माध्यम से व्यक्ति समाज और जीवन प्रभा के पारंपरिक संबंधों को उजागर किया है।
द्वीपड्व्यक्ति का प्रतीक है।
नदी परंपरा और प्रवाह की।
भूखंड समाज का प्रतीक है।
परंपरा समाज और व्यक्ति को जोड़ने वाली खड़ी है।
जैसे द्वीप भूखंड का अभिन्न अंग है किंतु उसका अपना अस्तित्व भी है वैसे ही व्यक्ति समाज का एक अंग है किंतु उसका अपना अस्तित्व और सकता है उसके अपने गुण और विशेषताएं उसकी अलग पहचान करवाती हैं।
व्यक्ति परंपरा अथवा काल प्रवाह के कारण समाज का अंग होते हुए भी स्वतंत्र व्यक्तित्व का बना रहता है।
ड्रिप नदी से कुछ न कुछ ग्रहण करता रहता है फिर भी वह नदी नहीं बन पाता द्वीप नदी में मिलता नहीं है नदी में मिलने से द्वीप का अस्तित्व मिट जाएगा।
 इसी प्रकारव्यक्ति भी समाज और परंपरा के संस्कार प्राप्त करके अपने अस्तित्व को बनाता है परंतु उसमें मिलता नहीं है।
समाज का सदस्य होते हुए भी उसका अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व है।
आते हैं कभी यहां स्पष्ट करना चाहता है कि व्यक्ति समाज एवं परंपरा के संबंधों को दर्शाते हुए आदमी के स्वतंत्र अस्तित्व का प्रतिपाद्य यहां किया है।


सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय

सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय का परिचय
जीवन परिचय/साहित्यिक परिचय
b.a. तृतीय वर्ष /पांचवा सेमेस्टर
सीबीएलयू यूनिवर्सिटी भिवानी हरियाणा
जीवन व साहित्यिक परिचयअज्ञेयजी आधुनिक हिंदी के प्रमुख साहित्यकार थे उनका पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन था। अज्ञेय उनका उपनाम है।
अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 में गया जिला देवरिया बिहार में हुआ।
उनका बाकी बचपन लखनऊ ,श्रीनगर, जम्मू में बिता।
उन्होंने सन् 1929 में लाहौर के फॉर्म इन कॉलेज से बीएससी की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की।

सन 1930 में उन्होंने m.a. अंग्रेजी का अध्ययन प्रारंभ किया परंतु क्रांतिकारी दल में सक्रिय रूप से भाग लेने के कारण अभी बंदी बना लिए गए 4 वर्ष तक जेल में रहे।

सेना सेवा
सन 1943 में आज्ञा जी सेना में कैप्टन के पद पर नियुक्त होकर कोहिमा फ्रंट पर चली गई वहां 3 वर्ष पश्चात लोटे।
1955 से 60के मध्य उन्होंने विभिन्न देशों की यात्रा की।  

संपादन कार्य

उन्होंने सैनिक और विशाल भारत पत्रिका में संपादन किया सन 1947 में उन्होंने प्रयोगवादी पत्रिका प्रतीक का संपादन किया जो कुछ समय के पश्चात बंद हो गई। नवभारत टाइम्स और दिनमान का भी संपादक है उन्होंने किया।
आकाशवाणी में कार्य
सन 1950 से 55 के मध्य उन्होंने आकाशवाणी में कार्य किया।
विदेश में कार्य
सन 1961 में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भारतीय साहित्य और संस्कृति के अध्यापक नियुक्त हुए।
सम्मान
अज्ञ े जी को आंगन के पार द्वार रचना पर साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।
कितनी नावों में कितनी बार 1969 पुस्तक पर उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।
मृत्यु
4 अप्रैल 1987 को प्रात हृदय गति रुक जाने के कारण अजय जी का देहांत हो गया।
प्रमुख रचनाएं
अजय जी बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे उन्होंने लगभग सभी विधाओं पर अपनी कलम चलाई उनकी रचनाएं निम्नलिखित हैं।

काव्य संग्रह
हरी घास पर क्षण भर 
भग्नदूत
चिंता 
बावरा अहेरी 
धनुष रोदे हुए 
अरे ओ करुणा प्रभामय
आंगन के पार द्वार 
पूर्वा 
सुनहरे शैवाल 
कितनी नावों में कितनी बार
 सागर मुद्रा
 पहले मैं सन्नाटा बुनता हूं 
महा वृक्ष के नीचे 
नदी की बात पर छाया 
क्योंकि मैं उसे जानता हूं।
 ऐसा कोई घर अपने देखा है 

नाटक-उत्तर प्रियदर्शी

कहानी संग्रह-विपथगा
परंपरा
 यह तेरे प्रतिरूप 
जयदोल
 कोटरी की बात 
शरणार्थी
 अमर वल्लरी

उपन्यास
शेखर एक जीवनी प्रथम एवं द्वितीय खंड
अपने अपने अजनबी
नदी के द्वीप
छाया में खनन
बीनू भगत अपूर्ण उपन्यास

यात्रा वृतांत

अरे यायावर रहेगा याद
एक बूंद सहसा उछली

निबंध
त्रिशंकु
सब रस
धार और किनारे
जोग लिखी
अद्यतन
ऑल वॉल

संस्मरण
स्मृति लेखा
स्मृति के गलियारों से

साक्षात्कार
अज्ञेय:अपने बारे में
अपरोक्ष

काव्यगत विशेषताएं
अज्ञेय जी मूर्ति प्रयोगवादी कवि थे।

उनका काव्य का भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समान रूप से समृद्ध है।
आरंभिक काव्य में छायावाद और रहस्यवाद का समन्वित रूप देखने को मिलता है।
उनके काव्य में पुरुषता था और ओजस्विता की भावना के दर्शन भी होते हैं।
उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना भी प्रकट हुई है
मानवतावादी भावना की अभिव्यक्ति वह व्यक्ति निश्चित उनके काव्य की प्रमुख विशेषता है।
अनेक स्थलों पर उन्होंने तीखे व्यंग्य भी किए हैं।
इनकी कविता में अनुभूति की गहनता का सागर दिखाई पड़ता है।
कुछ विशेषताएं इस प्रकार से हैं।
व्यक्तिनिष्ठता
क्षणानुभूति
जीवन को पूर्णता से जानने का आग्रह
व्यक्ति और सृष्टि का समन्वय
क्रांति की भावना
विभिन्न उपमानो का प्रयोग
जैसे मछली ,द्वीप ,नदी ,दीप इत्यादि


1.हम नदी के द्वीप हैं
हम धारा नहीं हैं
तेरे समर्पण है हमारा

2.यह दीप ,अकेला ,स्नेह भरा
है गर्व मदमता पर
इसको भी पंक्ति को दे दो।

3.सांप!
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूछूं-(उत्तर दोगे)
तब कैसे सीखा डसना
विष कहां से पाया?

निष्कर्ष-
अज्ञेयजी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनका व्यक्तित्व एक ऐसे विश्वास से परिपूर्ण है जो अपनी लघुता में भी नहीं खाता उनमें एक ऐसी पीड़ा है जिसकी गहराई को उन्होंने नाप रखा है वह गिरना अपमान तिरस्कार आदि के धुंधले अंधकार में हमेशा दया करने वाला चिर जागरूक दूसरों की सहायता करने वाला जिज्ञासु ज्ञानी श्रद्धा से परिपूर्ण है। उनके उपन्यास ,निबंध, संस्मरण हमेशा हिंदी साहित्य में अविस्मरणीय रहेंगे।




मंगलवार, 27 अक्तूबर 2020

सफलता के लिए पते की बात

सफलता पाने के लिए पते की बातें
सफलता के आधुनिक संदर्भ में मूल्य मंत्र
सफलता मिलने की कुछ कसोटिया है-
मानसिक शांति
आंतरिक आनंद
आर्थिक आत्मनिर्भरता
पारिवारिक खुशी
सामाजिक स्वीकृति
भविष्य की निश्चितता
आपके लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स किस प्रकार से हैं


1. अपने मन में जमीन अपने प्रति नकारात्मक बातों को मिटाकर अपने गुजारना व्यक्ति का अपने जीवन के प्रति पहला कर्तव्य है जब तक आत्मविश्वास और आप इच्छा की कमी है तब तक वह अपने को नहीं जान सकता।
2. सफलता के लिए सकारात्मक सोच जरूरी है क्योंकि ऐसी सोच मनुष्य को स्वाभिमानी स्वपन दृष्टा प्रतिबद्ध व्यवहारिक और रचनात्मक बनाती है सकारात्मक सोच के लिए चाहिए अच्छी स्मृतियां जानकारी मानसिक शांति आसपास की स्वच्छता अहम क्रोध और लालच से छुटकारा फोर्स लक्ष्य
3.युग के परिवर्तन को देखते हुए जो अपने कार्य के लिए दूसरों से कुछ अलग और नया रास्ता चुनते हैं और नवाचार अपनाते हैं वही आदर्श बनते हैं दिमाग की खिड़कियां खुली रखें लचीले बने ,मतांधता से बचे। चेहरे के हाव-भाव बातचीत अर्थात दूसरों के दिल तक अपनी बात पहुंचाने की संप्रेक्षण दक्षता पहनावे चार धाम और सोच ले नवीनता रखने वाले और दिलचस्प ढंग से काम करने वाले ज्यादा आगे बढ़ते हैं सफलता के लिए अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक श्रेष्ठ और प्रभावशाली बनाने की जरूरत होती है।
4.मन में आनंद और चेहरे पर प्रसन्नता से बड़ा होना सफलता की तरफ बढ़ते कदमों की पहचान है कष्टों और बाधाओं के बीच प्रश्न रहने से अधिक बाधक तत्व खुद चित्त हो जाएंगे अतः पर संचित रहना चाहिए इसके लिए मन को साधना पड़ता है कुछ वजह हो भी तो सदा दुखी रहना और सिर्फ अतीत का गुणगान करना आत्मा विनाश है वर्तमान के हर क्षण को आनंद और सहजता से जीना चाहिए।
5.अपनी उर्जा और समय का प्रबंधन सफलता की कुंजी है आज के काम को कल पर ना डालें क्योंकि हर नया साल नया दायित्व लेकर आता है आदमी की विफलताओं का मूल है आज के काम को कल पर टालना। इसलिए सफलता की आकांक्षा रखने वाले क निर्णयशील ौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौौ और कर्मठ होना चाहिए। उसने दूरदृष्टि होनी चाहिए।
6.अक्सर 2 आदमी मिलती है और कुछ ज्यादा देर तक साथ रहती है तो तीसरे की बुराई शुरू हो जाती है किसी की निंदा करके कोई अच्छा नहीं हो जाता निंदा सुनने वाला भी सावधान हो जाता है कि यह तो परोक्ष में उसकी भी निंदा करता होगा भले प्रत्यक्ष में चाटुकारिता कर रहा है तू कारिता और निंदा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं राग द्वेष से ऊपर उठकर ही व्यक्तित्व का विकास संभव है।
7.हर काम एक पूजा है कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता एक समय में एक ही काम मनोयोग से करना चाहिए क्योंकि मस्तिष्क एक ही जगह एक आग्रह रहकर अपनी क्षमता दिखा सकता है यह भी ध्यान रखें कि कोई काम शुरू करने से पहले कार्य योजना बना लेने से जोखिम नियंत्रित हो जाता है।
8. जो अनजान है और अपने को बड़ा जानकर समझता है उससे बचकर रहना चाहिए जो थोड़ा बहुत जानकार है पर आपकी जानकारियों के प्रति शंकालु है वह हमसफ़र हो सकता है जो जानकार है और निरंतर जिज्ञासा के साथ उसके मन में अब तक की अपनी जानकारी के प्रति आस्था हो उसमें ज्ञान पाने का प्रयत्न करना चाहिए सीखना कभी बंद ना करें चाहे जितना ऊपर पहुंच जाए कहा गया है कि ज्ञान ही अंततः शक्ति और सफलता में बदल जाता है जब कर्म में उतरता है।
9. हर बड़ी सफलता के पीछे कुछ विफलता ही होती हैं फलतान को ढकने के लिए खूबसूरत बहाने खोजने की जगह उनकी वजह खोजने चाहिए अपनी कमजोरियों को पहचाने बिना आगे बढ़ना संभव नहीं है ना यह सोचे कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं और ना ही अपना दुखड़ा गाते फिर भीतर के डर झिझक और तनाव से लड़े जरूरत है अपनी आंतरिक शक्तियों का उत्साह पूर्वक सदुपयोग और निरंतर संवर्धन करने की चिंता नहीं करने के विकल्प पलाश सेन और विकल्पों पर चिंतन करें मनुष्य को चिंताएं दूर करने के लिए चिंतनशील बने रहना पड़ेगा हर नई पीढ़ी को सफलता पाने के लिए पुरानी पीढ़ी से ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है।
10.कोई कदम उठाने से पहले सोच लें बुरे से बुरा क्या हो सकता है बच्चे की आशा करें और बुरे के लिए अपने मन को पहले से ही तैयार रखें हमेशा आशावादी बने रहना चाहिए मेरा सा अतीत में कैद रहती है जबकि आशा भविष्य में ले जाती है।
11.दूसरे की सफलताओं से ईर्ष्या नहीं करके उनसे सीखने की अपने फायदे हैं।
12.

सोमवार, 26 अक्तूबर 2020

लीलाधर जगूड़ी: जीवनी

लीलाधर जगूड़ी
लीलाधर जगूड़ी का जन्म 1 जून 1944 को टिहरी गढ़वाल में हुआ ।
उन्होंने हिंदी साहित्य में में किया।
उन्होंने सैनिक के रूप में देश की सेवा की।
वह सरकारी जूनियर हाई स्कूल में शिक्षक भी रहे।
उत्तरांचल सरकार के सलाहकार भी रहे।
साहित्य अकादमी सम्मान से विभूषित हुए।
सन 1960 के बाद की हिंदी कविता को एक नई पहचान देने वाले जमकुड़ी जी ने एक से एक उत्कृष्ट काव्य संग्रह की रचना की जिनक परिचय इस प्रकार से है
शंख मुखी शिखर पर
नाटक जारी है
इस यात्रा में
रात अब भी मौजूद है
बची हुई पृथ्वी
घबराए हुए शब्द
भय शक्ति देता है
हम भूखे आकाश में चांद
महाकाव्य के बिना
ईश्वर की अध्यक्षता में
खबर का मूंह विज्ञापन से ढका है।
लीलाधर जगूड़ी नई कविता और है कविता के दौर में उभरे समकालीन कवियों में चर्चित कवि हैं जगूड़ी जी की कविताएं नए विपक्ष की कविताएं हैं जो इस अवस्था में आज के भारतीय मनुष्य की करुणा का पुनर आविष्कार या उसकी तलाश में विचार के स्तर पर निर्भरता की हद से गुजरती हुई शिल्प की अद्विक को सजीव नाटक किया था सेव मरने वाले कवि हैं
 सन 1960 के बाद पूरे भारत का सामाजिक एवं राजनीतिक ढांचा बदल रहा था।
 नक्सलवादी विद्रोह ने हिंदी कविता पर पर्याप्त प्रभाव डाला था ।
युवा जनवादी कभी इस घटनाक्रम से प्रभावित होते हैं।
 और वह दिशाहीन युवा वर्ग की यथार्थ अभिव्यक्ति देते हैं ।
लीलाधर जगूड़ी उन कवियों में आते हैं जिन्होंने अनुभव और भाषा के बीच कविता को जीवित रखा है।

 जगूड़ी की कविता मौजूदा अंधकार में लड़ी जा रही लड़ाई की कविता है ।
वे अंधकार को पहचानते हैं जिसने हमारे काल को छिपा दिया है।
 जगूड़ी की कविता में भाषा अलग से चमकती है।

 जगूड़ी की कविताओं में अनुभवों का और भाषा के बदलते रूप का नया दरवाजा खोला है।
 उन्होंने यह महसूस किया है कि प्रेम कविता से भी राजनीति की अभिव्यक्ति की जा सकती है।
 पेड़ हो चाहे, पहाड़ हो
 परिवार हूं चाहे समुंद्र
 हर कोई मुझे इस तरह से आता था की जिंदगी को एक ही हफ्ते में हल्की की तरह मचा दो ।
राजनीति और मानवीय प्रेम को चेक 19 हो गए थे ।

जब अपने समय का युवा पर याद आता है तो अक्सर इस यात्रा में शामिल हो जाता हूं ।
बीती हुई पीढ़ियों का युवा पर आती हुई  के युवाओं की दुनिया मुझे दोनों में यात्रा करना उत्साहवर्धक और आनंददायक लगता है ।
इस दृष्टि से देखता हूं तो इस यात्रा में की कविताएं अभी तक निरस्त हो पाई है ।
इनमें तरह तरह से जिंदगी में शामिल होने के बीच मौजूद हैं।जगूडी की कविताओं में पीढ़ियों के दो बंदों से उपजा परिवार का विखंडन कई बिंदुओं पर दिखाई देता है।

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2020

समकालीन हिंदी कविता का विकास

समकालीन हिंदी कविता का विकास
भूमिका
साहित्य में समाज कल्याण की भावना अंतर नहीं है साहित्य का सृजन अध्यात्मिक और कार्यात्मक रूपों में होता है स्वतंत्रता पूर्व हिंदी कविता का लेखन 
भारतेंदुवादी
 िद्ववेदी वादी
छायावादी और प्रगतिवादी धाराओं में हुआ सदन तक प्रयोगवादी और नई कविता की धाराएं विकसित हुई आजादी से पूर्व कविताओं का स्वर राष्ट्रीय स्वतंत्रता और सांस्कृतिक उत्थान था ।
स्वतंत्रता से पूर्व भारत की जनता के सुनहरी स्वप्न थे ।आजादी के बाद भारत का उज्जवल भविष्य होगा और रामराज्य जैसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होगा।
 सन 1947 में भारत आजाद हुआ लेकिन रामराज्य का स्वप्न साकार नहीं हुआ तथा उनकी स्थिति उत्पन्न हो गई ।

राजनीतिक उथल-पुथल 1965 के युद्ध में करारी हार सामाजिक ,आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समस्याएं खाद्यान्नों की कमी ,जनता और कवियों में विक्षोभ और असंतोष पनपने लगा।
 हिंदी कविता के चित्र में सहज कविता ,विचार कविता अकविता 
भूखी पीढ़ियों की कविता
 युयुत्सा वादी
 कविता
 नवगीत 
 आदि अनेक काव्य आंदोलन हुए सर्वाधिक प्रचलित समकालीन कविता सन 1960 के बाद की हिंदी कविता को साठोत्तरी कविता 
नई कविता 
समकालीन कविता
 सातवें ,आठवें दशक की कविता, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की कविता 
अनेक नाम दिए गए ।
 समकालीन कविता नाम सबसे ज्यादा उपयुक्त महसूस हुआ समकालीन साहित्यकारों को अपने युग की राजनीतिक सामाजिक ,धार्मिक ,आर्थिक ,सांस्कृतिक अनुभूतियों का प्रत्यक्ष बोध होता है ।क्योंकि वह उस समय में जीता है और वह अपने युग की अच्छी बुरी घटना परिस्थितियों से परिचित रहता है यही समकालीन ता का घोतक है ।
समकालीन हिंदी कविता में जीवन और जगत की विसंगतियां  बोलबाला था ।
कुरूपता अंतर यथार्थ चित्रण हुआ है ।
सन 1960 के बाद का समय जीवन मूल्यों की दृष्टि से पत्रों मुखी रहा है।
 अवमूल्यन के इस युग में कविताओं के स्वरों में भी बड़ा परिवर्तन हुआ है ।
जिसकी अभिव्यक्ति व्यंग्यात्मक और विद्रोह आत्मक रूप में हुई है ।
समकालीन हिंदी कविता में आदर्श की झलक यत्र तत्र दृष्टिगोचर होती है।
 इस कविता में घोर यथार्थ का चित्रण है
समकालीन हिंदी कविता भी सामाजिक यथार्थ की अभिव्यंजना है यह कविता सामाजिक चिंतन कृत रमता और प्रपंच को मुखरित करने के लिए मध्यवर्ग की तरह से जिंदगी तथा उसकी कुरूपता के यथार्थ का सूक्ष्मता से चित्रण करती है।
 सन 1960 के पश्चात सामाजिक संबंधों वाली कविता में व्यंग्य विक्षोभ विद्रोह का स्वर प्रबल रूप से दृष्टिगोचर होता है।
 समकालीन कविता में भारतीय संवेदना की ज्वलंत अनुभूति है ।
वास्तव में इस कविता ने व्यक्ति और समाज के शत्रु पर तनाव अंतर्विरोध और विरोध वासियों को संपूर्ण संवेदनशीलता के रूप में अभिव्यक्ति प्रदान की है समकालीन कविता अपने युग की निष्क्रियता निराशा उत्पीड़न के माध्यम से अपना मार्ग खोजने का प्रयत्न में तल्लीन है ।
आज के समाज के लोग मुखौटा धारी हो गई पाखंड धोखाधड़ी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई और अपनी पूर्ववर्ती सामाजिक सांस्कृतिक विरासत को भूलकर झूठी शान ओ शौकत में जीने लगी है समाज में लोग मिठाई और कपट जारी हो गए हैं ।
मुंह में राम-राम और बगल में छुरी वारी लोकोक्ति आज के सामाजिक जीवन के यथार्थ को प्रकट करती से दिखाई देती है।
समकालीन कवि दोगले चेहरे का उद्घाटन करते हैं ।
भ्रष्टाचार की पोल खोलते हैं सामाजिक और नैतिक पतन पर तीव्र प्रहार करते हैं मुल्लों के विघटन पर खेद प्रकट करते हैं तथा आदर्शों के पतन पर करुण क्रंदन करते हैं।
 वे सत्य के पक्षधर हैं और धोखाधड़ी के घोर विरोधी हैं यह कविता जीवन और जगत के विशाल रूप में दिखती है जिसमें वह आतंक व धूटन के साथ साथ जीवन के सुंदर और आदर्शों का भी चित्रण मिलता है ।
समकालीन हिंदी कविता में अज्ञेय ,शमशेर बहादुर सिंह 
नागार्जुन 
केदारनाथ अग्रवाल 
भवानी प्रसाद मिश्र 
त्रिलोचन 
मुक्तिबोध 
गिरिजाकुमार माथुर
 भारत भूषण अग्रवाल 
नरेश मेहता 
रामदरश मिश्र 
धर्मवीर भारती 
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना 
कुंवर नारायण 
रघुवीर सहाय 
कीर्ति चौधरी 
राजमल चौधरी ।
दुष्यंत कुमार
 केदारनाथ सिंह 
कुमार विकल 
धूमिल
 कैलाश वाजपेई 
चंद्रकांत देवताले 
विनोद कुमार 
शुक्ल 
रामचंद्र शाह
 सौमित्र मोहन
 गंगा प्रसाद 
विमल प्रयाग 
विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
 वेणुगोपाल
 लीलाधर जगूड़ी
 बलदेव वंशी 
आलोक धन्वा
 मंगलेश डबराल 
ज्ञानेंद्रपति 
उदय प्रकाश
 असद जैदी
 अनामिका 
अर्चना वर्मा 
सविता सिंह 
निर्मला
  गगन गिल 
प्रेम रंजन 
अनिमेष
 नीलेश
 रघुवंशी आदि प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है समकालीन हिंदी कविता में गीत, लोकगीत ,गजल ,लंबी कविताएं भी लिखी गई है।
 मक्षभारत युग युगांतर में ग्राम प्रधान रहा है ।
आधुनिक काल में नगरीकरण के परिपेक्ष्य में ग्रामीण समाज का विघटन हो रहा है गांव उजड़ रहे हैं।
 और नगर महानगर हो रहे हैं ।
समकालीन कविताओं का विचार है कि ग्रामीण जीवन की आंचलिकता ।
लोक संस्कृति और पर्यावरण का संरक्षण हो इसीलिए वह महानगरीय प्रदूषण और संवेदनहीनता के प्रति भी चिंतित हैं संयुक्त परिवार अभी भी केवल ग्रामीण अंचलों में सुरक्षित है नगरीकरण और पाश्चात्य चमक-दमक वाली संस्कृति के कारण संयुक्त परिवारों का तेजी से विघटन हो रहा है ।
पारस्परिक भाईचारा सामाजिक सौहार्द स्वार्थपरता के कारण कम होता जा रहा है समकालीन कवि समाज को सचेत कर रहे हैं समकालीन कवि नारी विमर्श दलित विमर्श वनवासी विमर्श और बाल विमर्श के प्रति भी सजग हैं।
स्वतंत्रता से पूर्व भारतीय राजनीति आदर्श त्याग तपस्या और बलिदान पर आधारित थी स्वतंत्रता के पश्चात आदर्श यथार्थ में बदल गई त्याग तपस्या विलासिता में बदल गई बलिदान स्वार्थ में बदल गया समकालीन हिंदी कविता में कवियों ने राजनीति की कुरूपता पूरा प्राधिकरण का यथार्थ चित्रण किया है इस कविता में न्यायपालिका में सफलता कवियों ने सजीव चित्रण किया है न्याय में देरी का अर्थ नए का गला घोटना राजनीति में सत्ता और संपत्ति का गठबंधन हो गया है जो संपत्ति साली है वही शक्तिशाली हो जाते हैं जो बलवान हैं वे शक्तिशाली हो जाते हैं धन बल और भुजबल का खेल बढ़ रहा है यही राजनीति का उचित रूप है समकालीन कवियों ने अत्याचार अनाचार व्यभिचार अन्याय सांप्रदायिकता अनुशासनहीनता मूल्य हीनता राजनीति को अपनी कविता का वर्ण विषय मानकर अपने साहस और दायित्व बोध का परिचय दिया है ।