भारतीय संस्कृति के इतिहास में नहीं अपितु विश्व की संस्कृति के इतिहास में भीष्म पितामह जैसा महान चरित्रवान शायद ही कोई हो उनकी वीरता पराक्रम दृढ़ प्रतिज्ञा कर्म योगी की भावना से कोई व्यक्ति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता कुरुक्षेत्र कविता में रामधारी सिंह दिनकर जी ने भीष्म पितामह का चरित्र बौद्धिक एवं मनोवैज्ञानिक सांचे में डाला है उनके चरित्र की विशेषताओं का अध्ययन निम्नलिखित सिरको के आधार पर किया जा सकता है परम शक्तिशाली विश्व पितामह परम शक्तिशाली ब्रह्मचारी थे वह बल के आधार होते हुए भी परम वैरागी थे उन्होंने धर्म के लिए राज सिंहासन को त्याग और स्नेह के लिए प्राण विसर्जन कर दी विश्व भर में उनके समान कोई दूसरा पराक्रमी नहीं हुआ काल तथा मृत्यु भी उनके वश में ही थी उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था कर्म के उपासक कुरुक्षेत्र में भीष्म पितामह को कर्म का महान उपासक दिखाया गया है उनका मत है कि भाग्य के सहारे बैठकर कायर पुरुष की कार्य करते हैं व्यक्ति अपने सुखों को ब्रह्मा से लिखवा कर नहीं आया है अपितु उसने अपना सुख अपने कठोर कर्म से प्राप्त किया है यह प्रकृति भी मानव के लिए
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