5955758281021487 Hindi sahitya : छंद किसे कहते हैं छंद के विभिन्न प्रकार

रविवार, 3 जनवरी 2021

छंद किसे कहते हैं छंद के विभिन्न प्रकार

छन्द :-
छंद शब्द का शाब्दिक अर्थ है- बन्धन। वर्णों-मात्राओं की विशेष क्रम व्यवस्था, गणना, लय, यति-गति आदि से सम्बन्धित विशिष्ट नियमों से बंधी हुई पद रचना छंद कहलाती है। 
छंद का वर्णन सर्वप्रथम ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद के पुरुषसूक्त के नवम् छन्द में ‘छन्द’ की उत्पत्ति ईश्वर से बताई गई है। लौकिक संस्कृत के छंदों का जन्मदाता वाल्मीकि को माना गया है। आचार्य पिंगल ने ‘छन्दसूत्र’ में छन्द का सुसम्बद्ध वर्णन किया है, अत: इसे छन्दशास्त्र का आदि ग्रन्थ माना जाता है। छन्दशास्त्र को ‘पिंगलशास्त्र’ भी कहा जाता है। हिन्दी साहित्य में छन्दशास्त्र की दृष्टि से प्रथम कृति ‘छन्दमाला’ है।

छंद के अंग या अवयव-
छंद के अंग निम्नलिखित प्रकार हैं-

1- चरण
छंद की प्रत्येक पंक्ति को पद या चरण कहते हैं. प्रत्येक छंद की सामान्यता चार पंक्तियां होती है. छंदों में प्राय: चार चरण होते हैं. प्रत्येक चरण अथवा पद में वर्गों अथवा मात्राओं की संख्या क्रमानुसार रहती है. पाद या चरण तीन प्रकार के होते हैं-

* सम चरण– 
जिस छंद के चारों चरण की मात्राएं या वर्णों का रूप समान हो, बे सम चरण कहलाते हैं. द्वितीय और चतुर्थ चरण को “सम चरण” कहते हैं. जैसे- इंद्रवज्रा, चौपाई आदि.

*अर्धसम चरण– 
जिस छंद के प्रथम और तृतीय तथा द्वितीय और चतुर्थ पद की मात्राओं या वर्णों की समानता हो, बे “अर्धसम चरण” कहलाते हैं. जैसे- दोहा सोरठा आदि.

*विषम चरण– 
जिन छंदों में 4 से ज्यादा चरण हो और उन में कोई समानता ना हो. बे “विषम चरण” कहलाते हैं. प्रथम और तृतीय चरण को विषम चरण कहते हैं जैसे- कुंडलिया और छप्पय आदि.

2. वर्ण-
वे चिन्ह जो मुख से निकलने वाली ध्वनि को सूचित करने के लिए निश्चित किए जाते हैं, “वर्ण” कहलाते हैं. वर्ण को अक्षर भी कहा जाता है.वह दो प्रकार के होते हैं- लघु एवं गुरु.

लघु या ह्रस्व– जिन्हें बोलने में कम समय लगता है उसे लघु या ह्रस्व वर्ण कहते हैं। मात्रा के अनुसार इसका चिन्ह (। ) होता है.

गुरु या दीर्घ– जिन्हें बोलने में लघु वर्ण से ज्यादा समय लगता है उन्हें गुरु या दीर्घ वर्ण कहते हैं। मात्रा के अनुसार इसका चिन्ह (S) होता है.

3- मात्रा
किसी ध्वनि या बाढ़ के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे ही मात्रा कहते हैं. लघु वर्ण के उच्चारण में जो समय लगता है उससे (l) मात्रा होती है एवं गुरु वर्ण में जो समय लगता है उससे (S) मात्रा होती है.

4- यति
साधारण भाषा में इसे विराम कहते हैं. छंदों को पढ़ते समय कई स्थानों पर विराम लेना पड़ता है. उन्हीं विराम स्थलों को “यति” कहते हैं.

5- गति
गति छंद का मुख्य अवयव है. छंद को पढ़ते समय एक प्रकार के प्रवाह की अनुभूति होती है, जिसे गति कहते हैं.

6- तुक
छंद के चरणों के अंत में जो अक्षरों की समानता पाई जाती है, उन्हें तुक कहते हैं यह दो प्रकार के होते हैं- तुकांत एवं अतुकांत।

7. गण-
गण का अर्थ है- समूह ।तीन वर्णों के एक समूह को गण माना जाता है। इसमे वर्णों की संख्या तीन ही होती है न अधिक न कम । गणों की संख्या 8 है-
यगण (।ऽऽ), मगण (ऽऽऽ)
तगण (ऽऽ।), रगण (ऽ।ऽ)
जगण (।ऽ।), भगण (ऽ।।)
नगण (।।।) और सगण (।।ऽ)
णों को आसानी से याद करने के लिए एक सूत्र बना लिया गया है- यमाताराजभानसलगा। सूत्र के पहले आठ वर्णों में आठ गणों के नाम हैं। अन्तिम दो वर्ण ‘ल’ और ‘ग’ लघु और गुरू मात्राओं के सूचक हैं। जिस गण की मात्राओं का स्वरूप जानना हो उसके आगे के दो अक्षरों को इस सूत्र से ले लें जैसे ‘मगण’ का स्वरूप जानने के लिए ‘मा’ तथा उसके आगे के दो अक्षर- ‘ता रा’ = मातारा (ऽऽऽ)।

* छंदों के प्रकार- 
छंद मुख्य रूप से 3 प्रकार के होते हैं-

* वर्णिक छंद- 
वर्णों की गणना पर आधारित “वर्णिक छंद” कहलाते हैं । वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु के क्रम पर ध्यान नहीं दिया जाता है. वर्णिक छंद दो प्रकार के होते हैं- साधारण एवं दंडक.

मात्रिक छंद- मात्रा की गणना पर आधारित छंद “मात्रिक छंद” कहलाते हैं. मात्रिक छंद के सभी चरणों में मात्राओं की संख्या समान रहती है. लेकिन लघु गुरु के क्रम पर ध्यान दिया नहीं जाता है. कुछ प्रमुख मात्रिक छंद इस प्रकार है जैसे- चौपाई, रोला, दोहा एवं सोरठा आदि मात्रिक छंद है.

मुक्तक छंद- वे छंद जो मात्राओं एवं वर्णों से पूर्णतया मुक्त होते हैं, मुक्तक छंद कहलाते हैं. मुक्तक छंद में मात्राओं एवं वर्णों का कोई प्रतिबंध नहीं होता है. रसखान एवं आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी रचनाओं में इसका भरपूर प्रयोग किया है।

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