प्रिंट मीडिया
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
प्रस्तावना
वर्तमान युग सूचना एवं संचार का युग है। तकनीक ने मानवीय जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है — चाहे वह शिक्षा हो, राजनीति, समाज या साहित्य। आज का मनुष्य “मीडिया संस्कृति” से घिरा हुआ है। मीडिया ने व्यक्ति, समाज और साहित्य — तीनों को जोड़ने का कार्य किया है। पहले जहाँ सूचना का मुख्य माध्यम प्रिंट मीडिया (मुद्रित माध्यम) था, वहीं 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और 21वीं शताब्दी में सोशल मीडिया ने अपना अभूतपूर्व स्थान बना लिया है। हिंदी साहित्य भी इन तीनों माध्यमों के प्रभाव से अछूता नहीं रहा।
1. मीडिया का स्वरूप और विकास
मीडिया शब्द ‘मीडियम’ से बना है जिसका अर्थ होता है – माध्यम। यह वह उपकरण या संस्था है जिसके माध्यम से विचार, सूचना, भावनाएँ या संस्कार समाज तक पहुँचाए जाते हैं। संचार का यह माध्यम समय के साथ विकसित होता गया।
प्रिंट मीडिया (मुद्रित माध्यम) – पत्र, पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, पुस्तकें आदि इसके अंतर्गत आते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया – रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, इंटरनेट, पॉडकास्ट, वेब चैनल आदि।
सोशल मीडिया – फेसबुक, ट्विटर (अब X), इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सएप, ब्लॉग, वेबसाइट, टेलीग्राम आदि।
प्रिंट मीडिया ने 19वीं शताब्दी में हिंदी भाषा और साहित्य को जनसंपर्क का साधन बनाया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने दृश्य और श्रव्य माध्यमों के ज़रिए साहित्य के प्रसार को गति दी, जबकि सोशल मीडिया ने उसे जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया।
2. प्रिंट मीडिया और हिंदी साहित्य
(क) ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
हिंदी पत्रकारिता का आरंभ 30 मई 1826 को ‘उदंत मार्तंड’ से हुआ। यह केवल पत्रकारिता की शुरुआत नहीं थी, बल्कि हिंदी जनचेतना की आवाज़ थी। इसके बाद सुदर्शन, हर्षवर्धन, भारत मित्र, आर्यावर्त, सरस्वती, माधुरी, चांद, हंस जैसी पत्रिकाओं ने हिंदी भाषा और साहित्य को नयी दिशा दी।
(ख) प्रिंट मीडिया की भूमिका
प्रिंट मीडिया ने साहित्य को जनसामान्य तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। पत्र-पत्रिकाओं ने साहित्यकारों को एक मंच दिया, जिससे हिंदी साहित्य का नया युग आरंभ हुआ — जैसे भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग, छायावाद, प्रयोगवाद, नई कहानी और नई कविता की परंपरा।
मुख्य योगदान :
1. हिंदी भाषा के मानकीकरण और प्रसार में सहायक।
2. साहित्यिक विमर्शों के प्रसार का माध्यम।
3. लेखकों-पाठकों के बीच संवाद का सेतु।
4. समाज-सुधार और राष्ट्रीयता की भावना का प्रचारक।
5. नए लेखकों के लिए अभिव्यक्ति का मंच।
‘सरस्वती’ (1900) पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य को गंभीरता, तर्कशीलता और समाजबोध से जोड़ा। वहीं ‘हंस’ (1930) के माध्यम से प्रेमचंद ने सामाजिक यथार्थ और जनवादी चेतना को आगे बढ़ाया।
3. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और हिंदी साहित्य
(क) रेडियो और साहित्य
रेडियो ने 1930 के बाद से हिंदी साहित्य को घर-घर तक पहुँचाया। आकाशवाणी पर कवि सम्मेलन, नाटक, कहानियाँ, और साहित्यिक चर्चाएँ प्रसारित होने लगीं। ‘आकाशवाणी का कवि सम्मेलन’ एक लोकप्रिय कार्यक्रम बना जिसने साहित्य को मनोरंजन के साथ जोड़ा।
(ख) टेलीविजन और साहित्य
1960 के दशक में टेलीविजन के आगमन ने दृश्यात्मकता को जोड़ा। रामानंद सागर की ‘रामायण’, बी.आर. चोपड़ा की ‘महाभारत’, प्रेमचंद की ‘गोदान’, ‘निर्मला’ जैसी कहानियों के धारावाहिक रूपांतरणों ने साहित्य को दृश्यरूप दिया।
टेलीविजन की भूमिका :
1. साहित्य को जनसंचार से जोड़ना।
2. शैक्षिक एवं सांस्कृतिक चेतना का प्रसार।
3. नाटक, कविता और उपन्यास को लोकप्रिय रूप देना।
4. युवा पीढ़ी में हिंदी साहित्य के प्रति आकर्षण जगाना।
5. साहित्य के बहुआयामी स्वरूप का प्रदर्शन।
(ग) फिल्म और साहित्य
हिंदी सिनेमा ने साहित्य को दृश्य कथा का रूप दिया। प्रेमचंद, यशपाल, अमृता प्रीतम, फणीश्वरनाथ रेणु, हरिशंकर परसाई, निर्मल वर्मा, भगवतीचरण वर्मा आदि लेखकों की रचनाओं पर अनेक फिल्में बनीं।
4. सोशल मीडिया और हिंदी साहित्य
(क) नए युग का संचार माध्यम
21वीं सदी में सोशल मीडिया ने संचार की परिभाषा ही बदल दी। यह केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि वैचारिक क्रांति का मंच बन गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, ट्विटर, ब्लॉग और व्हाट्सएप पर प्रतिदिन लाखों लोग हिंदी में लिख रहे हैं।
(ख) सोशल मीडिया पर हिंदी की भूमिका
अब हिंदी भाषा डिजिटल दुनिया की शक्ति बन चुकी है। भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की बड़ी संख्या हिंदी माध्यम से जुड़ी है।
मुख्य प्रभाव :
1. लोकप्रियता और पहुँच: साहित्यिक रचनाएँ वायरल होकर लाखों लोगों तक पहुँचती हैं।
2. नई लेखन शैलियाँ: माइक्रो कविता, ब्लॉगिंग, डिजिटल कहानी, इंस्टा-कविता, ट्वीट-कविता जैसी विधाएँ उभरी हैं।
3. लोकभाषा का प्रयोग: सोशल मीडिया ने हिंदी के क्षेत्रीय रूपों को प्रतिष्ठा दी।
4. साहित्यिक समुदायों का निर्माण: जैसे – ‘हिंदी साहित्य मंच’, ‘कविता कोना’, ‘साहित्य जीवन’ आदि समूहों ने लेखकों और पाठकों को जोड़ा।
5. तत्काल संवाद की सुविधा: लेखक सीधे पाठकों से जुड़कर प्रतिक्रिया प्राप्त करता है।
(ग) डिजिटल युग के लेखक
आज के डिजिटल लेखक जैसे अनुजा चौहान, नीलोत्पल मृणाल, दिव्यप्रकाश दुबे, मनोज मुंतशिर, कवि कुमार विश्वास आदि सोशल मीडिया के माध्यम से व्यापक पाठकवर्ग से जुड़े हैं। उनकी भाषा सरल, भावनात्मक और संवादात्मक है।
5. मीडिया और हिंदी साहित्य का अंतर्संबंध
मीडिया और साहित्य का संबंध परस्पर पूरक है। मीडिया साहित्य को जन-जन तक पहुँचाता है, और साहित्य मीडिया को संवेदनशील दृष्टि प्रदान करता है।
मुख्य अंतर्संबंध :
1. सामाजिक चेतना का संचार – मीडिया ने साहित्य की सामाजिक भूमिका को नया विस्तार दिया।
2. भाषाई विकास – मीडिया ने हिंदी की अभिव्यक्तिपूर्ण शक्ति को सशक्त किया।
3. लोकप्रिय संस्कृति का प्रसार – मीडिया ने साहित्य को जन-संस्कृति से जोड़ा।
4. सृजनात्मकता का विस्तार – मीडिया ने नए लेखन माध्यमों को जन्म दिया।
5. समीक्षा और विमर्श का विस्तार – ऑनलाइन मंचों पर आलोचना, समीक्षा और विमर्श का नया संसार विकसित हुआ है।
6. मीडिया के प्रभाव में आने वाली चुनौतियाँ
मीडिया ने साहित्य को नई दिशा दी है, परंतु कुछ चुनौतियाँ भी सामने आई हैं—
1. गुणवत्ता का ह्रास – सोशल मीडिया पर लेखन की अधिकता ने साहित्य की गंभीरता को प्रभावित किया है।
2. भाषाई विकृति – अंग्रेज़ी शब्दों का अनियंत्रित प्रयोग हिंदी की शुद्धता को कम कर रहा है।
3. व्यावसायिकता और लोकप्रियता की दौड़ – कई बार साहित्यिक मूल्य से अधिक “लाइक्स” और “फॉलोअर्स” को महत्व दिया जाता है।
4. सूचना की अति और भ्रम – अनियंत्रित प्रसार से साहित्यिक सामग्री की प्रमाणिकता प्रभावित होती है।
5. कॉपीराइट समस्या – डिजिटल माध्यम पर रचनाओं की चोरी एक बड़ी चुनौती बन गई है।
7. सकारात्मक परिवर्तन
इन चुनौतियों के बावजूद मीडिया ने हिंदी साहित्य को अनेक अवसर प्रदान किए हैं —
युवा रचनाकारों को मंच मिला।
महिला लेखिकाओं की भागीदारी बढ़ी।
ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों की कहानियाँ सामने आईं।
हिंदी की पहुँच वैश्विक स्तर पर बढ़ी।
डिजिटल मंचों पर हिंदी के पाठ्यक्रम और व्याख्यानों की उपलब्धता
8. निष्कर्ष
मीडिया और साहित्य का रिश्ता अब अविभाज्य हो चुका है। जहाँ पहले साहित्य केवल पुस्तकों और पत्रिकाओं तक सीमित था, वहीं आज वह डिजिटल मंचों के माध्यम से वैश्विक पाठकवर्ग तक पहुँच रहा है। हिंदी साहित्य अब केवल “पाठ्य” नहीं बल्कि “जीवंत अनुभव” बन गया है।
प्रिंट मीडिया ने हिंदी को पहचान दी, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने उसका प्रसार किया और सोशल मीडिया ने उसे जन-जन के हृदय तक पहुँचा दिया। मीडिया ने साहित्य को गतिशील, लोकतांत्रिक और वैश्विक रूप प्रदान किया है।
अतः कहा जा सकता है कि—
> “मीडिया हिंदी साहित्य का आधुनिक वाहक है,
जिसने शब्दों को सीमा से निकालकर संसार तक पहुँचा दिया है।”
संदर्भ सूची
1. सिंह, नामवर. हिंदी साहित्य की प्रासंगिकता. राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली।
2. द्विवेदी, महावीर प्रसाद. हिंदी पत्रकारिता और समाज. वाणी प्रकाशन।
3. मिश्र, शिवकुमार. मीडिया और साहित्य. भारतीय पुस्तकालय, वाराणसी।
4. पांडेय, रामआसरे. हिंदी साहित्य और जनसंचार. लोकभारती प्रकाशन।
5. शर्मा, संजय. डिजिटल युग में हिंदी. राजकमल प्रकाशन।
6. भारद्वाज, सुधा. संचार क्रांति और हिंदी भाषा. हिंदी अकादमी, दिल्ली।
7. https://www.india.gov.in
8. https://www.pressinformationbureau.gov.in
9. सोशल मीडिया मंचों पर उपलब्ध समसामयिक लेख एवं चर्चाएँ।
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