5955758281021487 Hindi sahitya : जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कहानी गुंडा का सारांश, उद्देश्य, समस्याएं

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कहानी गुंडा का सारांश, उद्देश्य, समस्याएं

जयशंकर प्रसाद की कहानी — “गुंडा”

सारांश, उद्देश्य एवं समस्याएँ
परिचय :

जयशंकर प्रसाद (1889–1937) हिंदी के महान साहित्यकारों में अग्रणी हैं। उन्होंने कविता, नाटक, उपन्यास और कहानी सभी विधाओं में अमर रचनाएँ दीं। उनकी कहानियाँ भारतीय समाज की सच्चाइयों, मानवीय संवेदनाओं और नैतिक मूल्यों का गहन चित्रण करती हैं।
प्रसाद की प्रसिद्ध कहानियों में गुंडा, आकाशदीप, छोटा जादूगर, पुरस्कार, ग्राम, विराम आदि प्रमुख हैं। इनमें ‘गुंडा’ कहानी विशेष रूप से ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, मानवता और नैतिक आदर्शों की प्रस्तुति के कारण चर्चित है।


कहानी का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य :

कहानी का समय अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध (लगभग 1780 ई.) का है, जब काशी (वाराणसी) नवाबी शासन से निकलकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में आ गई थी। उस समय भारत में अंग्रेजी शासन अपने पैर पसार रहा था, और देश के राजा-नवाब अपनी सत्ता, निष्ठा और सम्मान खो रहे थे।
काशी के राजा चेतसिंह के पिता की मृत्यु के बाद नया शासन अंग्रेजों के नियंत्रण में चला गया। इसी अशांत राजनीतिक परिस्थिति में ‘गुंडा’ कहानी की पृष्ठभूमि तैयार होती है।
मुख्य पात्र :

1. बाबू नन्हकू सिंह – कहानी के नायक। वे जमींदार निरंजन सिंह के पुत्र हैं। वीर, निडर, ईमानदार, परोपकारी और स्वाभिमानी व्यक्ति हैं। समाज उन्हें ‘गुंडा’ कहता है, पर वास्तव में वे आदर्श मानव हैं।


2. राजमाता पन्ना – राजा चेतसिंह की माता, धर्मनिष्ठ और त्यागमयी नारी।


3. राजा चेतसिंह – काशी के युवा राजा, जो अंग्रेजों की नीति और अपनी माँ की भावनाओं के बीच उलझे रहते हैं।


4. दुलारी बाई – एक नर्तकी (नाचनेवाली), जिसे नन्हकू सिंह सच्चे हृदय से प्रेम करते हैं। वह भी नन्हकू के उच्च चरित्र से प्रभावित होकर उन्हें श्रद्धा करती है।


5. मलूकी, कुबरा मौलवी, कोतवाल चेतराम, बाबू मणिराम आदि अन्य पात्र हैं, जो कहानी के सामाजिक और राजनीतिक वातावरण को सजीव बनाते हैं।



कहानी का सारांश :

कहानी की शुरुआत काशी नगर के वर्णन से होती है। उस समय शहर में अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध असंतोष फैला हुआ था। जनता निर्धन और भयभीत थी। इसी समाज में एक व्यक्ति नन्हकू सिंह है, जो सबका सहारा, मददगार और न्यायप्रिय है। परंतु अंग्रेज अफसर और भ्रष्ट दरबारी उसे ‘गुंडा’ कहकर बदनाम करते हैं।

नन्हकू सिंह अपने जीवन में आदर्शों और सत्यनिष्ठा को सर्वोपरि मानते हैं। वे निर्धनों, पीड़ितों और अन्याय के शिकार लोगों की सहायता करते हैं। वे अपने विरोधियों पर भी शस्त्र नहीं उठाते जब तक कि वह अत्याचार न करें।

कहानी के केंद्र में नन्हकू सिंह का प्रेम प्रसंग है — वह दुलारी बाई नामक नर्तकी से प्रेम करते हैं। परंतु जब यह बात राजा बलवंत सिंह तक पहुँचती है, तो वह दुलारी को अपने महल में बुला लेते हैं और उसे अपनी रानी बनाने का निर्णय लेते हैं।
नन्हकू सिंह इस अन्याय को सह नहीं पाते। आत्मसम्मान और प्रेम के द्वंद्व में वे अपना सब कुछ छोड़कर काशी के “गुंडा” कहलाने लगते हैं।

वे लोगों की रक्षा, सच्चाई की रक्षा और स्त्री सम्मान की रक्षा के लिए स्वयं को बलिदान कर देते हैं।
राजमाता पन्ना, जो उन्हें पुत्र समान मानती हैं, अंततः अंग्रेजों से टकराव में आत्मबलिदान कर देती हैं।
नन्हकू सिंह उनके सम्मान की रक्षा करते हुए युद्ध में शहीद हो जाते हैं।

कहानी के अंत में उनका प्रेम अधूरा रह जाता है —
दुलारी उन्हें याद करते हुए कहती है –

> “यह झूठ है, बाबू साहब जैसे धर्मात्मा तो कोई है ही नहीं। कितनी विद्याएं अपनी प्यारी-प्यारी बातों से दिलों को जीत लेती थीं, पर वे कभी मेरे कोठे पर पैर नहीं रखते थे।”


इस प्रकार ‘गुंडा’ शब्द यहाँ अपराधी नहीं, बल्कि वीरता, त्याग और स्वाभिमान का प्रतीक बन जाता है।


मुख्य उद्देश्य :

1. ‘गुंडा’ की परिभाषा को बदलना :
प्रसाद जी दिखाना चाहते हैं कि सच्चा ‘गुंडा’ वह नहीं जो हिंसा करता है, बल्कि वह है जो अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है। नन्हकू सिंह का ‘गुंडापन’ दरअसल उनके आत्मसम्मान और मानवीय मूल्य की रक्षा का प्रतीक है।


2. सामाजिक और नैतिक संदेश :
कहानी में मानवता, करुणा, निष्ठा, प्रेम और धर्म के मूल्य दिखाए गए हैं। प्रसाद जी का उद्देश्य समाज को यह सिखाना है कि अच्छाई को कभी अपमानित नहीं करना चाहिए।


3. स्त्री सम्मान और प्रेम का आदर्श :
नन्हकू सिंह के चरित्र में प्रेम शुद्ध और आध्यात्मिक रूप लेता है। वे दुलारी को पाना नहीं, बल्कि उसका सम्मान करना चाहते हैं।


4. देशभक्ति और स्वराज की चेतना :
कहानी में अंग्रेजी शासन के प्रति विरोध और भारतीय अस्मिता की रक्षा का भाव है। राजमाता पन्ना का बलिदान और नन्हकू सिंह का संघर्ष इसी भावना के प्रतीक हैं।


5. भारतीय संस्कृति का गौरव :
कथा में उपनिषद, बौद्ध धर्म, वेदांत आदि के संकेतों से भारतीय संस्कृति की महानता झलकती है।


कहानी की प्रमुख समस्याएँ :

1. सामाजिक मूल्य का पतन :
जो व्यक्ति समाज के लिए बलिदान देता है, वही ‘गुंडा’ कहलाता है। यह समाज की मूल्यहीनता का प्रतीक है।


2. शासन और जनता का टकराव :
अंग्रेजी शासन के अत्याचार और जनता की विवशता कहानी में स्पष्ट झलकती है।


3. प्रेम और धर्म का संघर्ष :
नन्हकू सिंह अपने प्रेम और कर्तव्य दोनों के बीच झूलते हैं। यह मानव जीवन की सार्वभौमिक समस्या है।


4. स्त्री की स्थिति :
दुलारी बाई एक तवायफ है, परंतु वह आत्मिक रूप से अत्यंत शुद्ध है। समाज का दोहरा दृष्टिकोण उसकी स्थिति को दुखद बना देता है।


5. सम्मान बनाम बदनामी की समस्या :
समाज व्यक्ति के कार्य नहीं, बल्कि उसकी छवि के आधार पर निर्णय करता है। नन्हकू सिंह की अच्छाई उनकी बदनामी के पीछे दब जाती है।


भाषा और शैली :

कहानी की भाषा संस्कृतनिष्ठ, परंतु अत्यंत सजीव और प्रभावशाली है। संवाद पात्रानुकूल हैं। प्रसाद जी की भाषा में काव्यात्मकता और गूढ़ दर्शन दोनों का सुंदर संयोजन है।
कहानी में ऐसे वाक्य अनेक हैं जो लेखक की गहराई दर्शाते हैं, जैसे—

> “वीरता जिसका धर्म था, अपनी बात पर मर मिटना, सिंह वृत्ति जीविका ग्रहण करना…”


संदेश :

‘गुंडा’ कहानी यह बताती है कि सच्चाई, प्रेम और मानवता कभी हार नहीं सकती।
सच्चा मनुष्य वही है जो अपमानित होकर भी अपने आदर्शों से समझौता नहीं करता।
प्रसाद जी का यह कथन कहानी के मर्म को स्पष्ट करता है—

> “जिस समाज में अच्छाई को सम्मान नहीं और बुराई को प्रतिष्ठा मिलती है, वह समाज अपने पतन का द्वार खोल देता है।”


निष्कर्ष :

जयशंकर प्रसाद की ‘गुंडा’ एक चरित्रप्रधान ऐतिहासिक-आदर्शवादी कहानी है, जो न केवल प्रेम की गहराई दिखाती है, बल्कि सामाजिक अन्याय और नैतिक पतन पर भी तीखा प्रहार करती है।
बाबू नन्हकू सिंह एक ऐसे पात्र हैं जो समाज द्वारा ‘गुंडा’ कहे जाने के बावजूद वास्तव में “मानवता के सच्चे प्रहरी” हैं।
उनका जीवन त्याग, प्रेम, सम्मान और देशभक्ति का प्रतीक है।

इस कहानी के माध्यम से जयशंकर प्रसाद ने यह संदेश दिया है कि —

> “सच्चा मनुष्य वही है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने धर्म, सत्य और प्रेम की रक्षा करे।”

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