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मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

आधुनिक हिंदी कविता में राष्ट्रीयता

आधुनिक हिंदी कविता में राष्ट्रीयता

भूमिका :

राष्ट्रीयता का अर्थ केवल देशभक्ति तक सीमित नहीं है; यह एक ऐसी चेतना है जो व्यक्ति को अपने देश, संस्कृति, समाज, भाषा और परंपराओं से आत्मिक रूप से जोड़ती है।
हिंदी साहित्य में विशेषतः कविता के माध्यम से राष्ट्रीयता ने न केवल स्वतंत्रता की भावना जगाई, बल्कि भारतीय जनमानस को आत्मसम्मान और आत्मनिर्भरता का बोध कराया।
आधुनिक हिंदी कविता उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध से लेकर आज तक राष्ट्रीय चेतना की सबसे प्रखर वाहक रही है।


राष्ट्रीयता की अवधारणा :

‘राष्ट्रीयता’ का अर्थ है—

> “अपने देश के प्रति प्रेम, उसकी संस्कृति, गौरव और स्वतंत्र अस्तित्व की रक्षा की भावना।”


महात्मा गांधी के शब्दों में —

> “सच्चा राष्ट्रभक्त वही है जो देश को मानवता की दृष्टि से देखता है।”


इस भावना को कवियों ने न केवल राजनीतिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टि से भी व्यक्त किया।



राष्ट्रीयता की पृष्ठभूमि :

भारत में राष्ट्रीयता का उदय ब्रिटिश शासन के विरोध और स्वराज्य की आकांक्षा से हुआ।
अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों ने भारतीय समाज को जाग्रत किया।
साहित्यकारों ने लेखनी को हथियार बनाया।
कविता इस संघर्ष का सर्वाधिक प्रभावशाली माध्यम बनी क्योंकि कविता भावनाओं को सीधे हृदय तक पहुँचाती है।



आधुनिक हिंदी कविता का विकास और राष्ट्रीय चेतना :

आधुनिक हिंदी कविता को चार प्रमुख युगों में विभाजित किया जाता है —

1. भारतेन्दु युग (1868–1900) – राष्ट्रीय चेतना का प्रारंभिक स्वर

2. द्विवेदी युग (1900–1918) – देशभक्ति और जनजागरण का काल

3. छायावाद युग (1918–1938) – भावनात्मक और सांस्कृतिक राष्ट्रीयता का रूप


4. प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और समकालीन युग (1938–वर्तमान) – स्वतंत्रता, समाजवाद और जनचेतना का युग


अब हम इन सभी युगों में राष्ट्रीयता के विकास को क्रमवार देखते हैं—



1. भारतेन्दु युग में राष्ट्रीयता :

भारतेन्दु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक कहा जाता है।
उन्होंने देश की दयनीय आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दशा पर तीखा व्यंग्य किया और जनता को जाग्रत किया।

उनकी कविता “भारत-दुर्दशा” में राष्ट्रीय वेदना और स्वाभिमान का अद्भुत संगम है—

> “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय के शूल।”


यह पंक्तियाँ केवल भाषा प्रेम नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व की रक्षा का उद्घोष हैं।
भारतेन्दु युग की कविता में विदेशी शासन की आलोचना, देशप्रेम, भाषा गौरव और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की भावना मुखर रूप में दिखाई देती है।


2. द्विवेदी युग में राष्ट्रीयता :

महावीर प्रसाद द्विवेदी के नेतृत्व में हिंदी कविता का रुख नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना की ओर हुआ।
इस युग में कवियों ने जनता को शिक्षित करने, स्वदेशी आंदोलन को बल देने और स्वराज्य के लिए प्रेरित करने का कार्य किया।

मैथिलीशरण गुप्त इस युग के प्रमुख कवि हैं।
उनकी कविताएँ ‘भारत-भारती’, ‘पंचवटी’, ‘साकेत’ आदि में भारतमाता के प्रति समर्पण, त्याग और गौरव की भावना झलकती है—

> “हम कौन थे, क्या हो गए हैं, और क्या होंगे अभी,
आओ विचारें आज मिलकर ये समस्याएँ सभी।”

‘भारत-भारती’ कविता को राष्ट्रीय आंदोलन का काव्य कहा जाता है।
गुप्तजी ने भारतीय नारी, संस्कृति और समाज की पुनः प्रतिष्ठा के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना को मजबूत किया।

अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, बालकृष्ण भट्ट, माखनलाल चतुर्वेदी, नरेंद्र देव वाजपेयी आदि कवियों ने भी राष्ट्रीय भावना को गहराई से व्यक्त किया।

3. छायावाद युग में राष्ट्रीयता :

छायावादी कवि मुख्यतः भावुक और व्यक्तिगत अनुभवों के कवि माने जाते हैं, परंतु उनमें भी राष्ट्रीयता गहराई से विद्यमान है।
यह राष्ट्रीयता राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आत्मिक रूप में प्रकट हुई।

जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा – इन चारों कवियों ने स्वतंत्रता और स्वाभिमान की भावना को सूक्ष्म भावों के माध्यम से प्रकट किया।

जयशंकर प्रसाद की कविता “अरुण यह मधुमय देश हमारा” में मातृभूमि के प्रति श्रद्धा झलकती है—

> “अरुण यह मधुमय देश हमारा, जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को
मिलता एक सहारा।”


निराला की कविताओं में दासता के प्रति विद्रोह है—

> “जागो फिर एक बार, प्रभात हुई, जागो रे हिन्दू, जागो रे भारत!”


सुमित्रानंदन पंत ने ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’ में स्वतंत्र भारत की कल्पना को सौंदर्य और मानवता से जोड़ा।
महादेवी वर्मा की कविताओं में स्त्री के माध्यम से राष्ट्र की वेदना झलकती है।

इस युग की राष्ट्रीयता भावनात्मक और मानवीय राष्ट्रीयता है — जहाँ स्वतंत्रता केवल राजनीतिक नहीं, आत्मिक मुक्ति का प्रतीक है।


4. प्रगतिवादी युग में राष्ट्रीयता :

1936 में प्रगतिवाद आंदोलन की स्थापना के साथ कविता में जनता की पीड़ा और यथार्थ का चित्रण प्रारंभ हुआ।
अब राष्ट्रीयता केवल देशप्रेम नहीं, बल्कि शोषण और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष की भावना बन गई।

सुमित्रानंदन पंत की बाद की कविताओं, नागार्जुन, त्रिलोचन, दिनकर, अंचल, केदारनाथ अग्रवाल आदि की रचनाओं में यह स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को राष्ट्रीय कवि कहा गया है।
उनकी कविताएँ ‘हुंकार’, ‘रश्मिरथी’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’ आदि में राष्ट्र की गरिमा और शक्ति का उद्घोष है।

> “जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।”


दिनकर की कविताएँ देशभक्ति के साथ-साथ सामाजिक न्याय और वीरता की प्रेरणा देती हैं।

नागार्जुन ने किसान, मजदूर और निर्धन जनता की व्यथा के माध्यम से राष्ट्र की असली आत्मा को पहचाना—

> “भूख है, बेकारी है, देश आज भी भारी है।”


इस प्रकार प्रगतिवादी कविता ने राष्ट्रीयता को जनता की आवाज़ के रूप में प्रस्तुत किया।

5. प्रयोगवाद और समकालीन कविता में राष्ट्रीयता :

प्रयोगवादी कवि जैसे अज्ञेय, भुवनेश्वर, शमशेर बहादुर सिंह, रघुवीर सहाय आदि ने राष्ट्रीयता को व्यक्ति की स्वतंत्रता और चिंतन की स्वतंत्रता से जोड़ा।
अज्ञेय के लिए राष्ट्र केवल भूगोल नहीं, बल्कि एक मानसिक और नैतिक स्थिति है।

समकालीन कवि — धर्मवीर भारती, केदारनाथ सिंह, दुष्यंत कुमार, अशोक वाजपेयी, कुँवर नारायण आदि ने राष्ट्र की विडंबनाओं को आधुनिक दृष्टि से देखा।
दुष्यंत कुमार की पंक्तियाँ आज भी राष्ट्र की सच्चाई को उजागर करती हैं—

> “कहाँ तो तय था चरागाँ हर एक घर के लिए,
कहाँ चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।”


इन कविताओं में राष्ट्र की पीड़ा, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, असमानता और व्यवस्था-विरोध की भावना है।
यह रचनात्मक राष्ट्रीयता का आधुनिक रूप है।


राष्ट्रीयता के विभिन्न रूप :

1. राजनीतिक राष्ट्रीयता – विदेशी शासन से मुक्ति की प्रेरणा (गुप्त, दिनकर)।


2. सांस्कृतिक राष्ट्रीयता – भारतीय परंपरा, भाषा और संस्कृति की गौरव-भावना (प्रसाद, पंत)।


3. मानवीय राष्ट्रीयता – मनुष्य के भीतर छिपे राष्ट्र का बोध (महादेवी, अज्ञेय)।


4. जनवादी राष्ट्रीयता – समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचने वाली चेतना (नागार्जुन, त्रिलोचन, दुष्यंत)।


राष्ट्रीयता का संदेश :

आधुनिक हिंदी कविता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसने राष्ट्र को केवल सीमाओं तक नहीं बाँधा, बल्कि उसे मानवता, समानता और करुणा से जोड़ा।
कवियों ने यह बताया कि सच्चा राष्ट्र तभी जीवित रह सकता है जब उसके नागरिक स्वतंत्र, जागरूक और नैतिक हों।

निष्कर्ष :

आधुनिक हिंदी कविता का इतिहास दरअसल भारतीय राष्ट्रीय चेतना का इतिहास है।
इस कविता ने गुलाम भारत को स्वतंत्रता की प्रेरणा दी, स्वतंत्र भारत को आत्मबोध कराया, और आज के भारत को आत्ममंथन का अवसर दे रही है।

> “कविता ने राष्ट्र को केवल जगाया नहीं,
बल्कि उसे मनुष्य बनने की दिशा दी।”



इस प्रकार, आधुनिक हिंदी कविता में राष्ट्रीयता का भाव केवल स्वतंत्रता तक सीमित नहीं, बल्कि संस्कृति, समाज और मानवता की निरंतर यात्रा का प्रतीक है।


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