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मंगलवार, 11 नवंबर 2025

बच्चे काम पर जा रहे हैं ।कविता का प्रतिपाद्य, उद्देश्य

परिचय

राजेश जोशी (जन्म 1946) हिन्दी के समकालीन प्रमुख कवियों में से हैं। उन्होंने पत्रकारिता, शिक्षण और साहित्यिक लेखन—कविता, कहानी, नाटक, अनुवाद एवं लघु-पटकथाओं—में सक्रिय भूमिका निभाई है।  उनके काव्य-संग्रहों में एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी, दो पंक्तियों के बीच आदि प्रमुख हैं।  उन्हें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य-प्रदेश शासन द्वारा ‘शिखर सम्मान’ और साहित्य अकादमी पुरस्कार-सम्मानित कवि हैं। 

उनकी कविता “बच्चे काम पर जा रहे हैं” (यहाँ पाठ के रूप में) में बाल-श्रम की समस्या, बचपन की छीनती हुई स्थिति एवं सामाजिक उत्तरदायित्व की चुनौती मुखर होकर सामने आती है। यह कविता कक्षा-9 (पाठ्य-पुस्तक “क्षितिज”, भाग 1) में शामिल है। 

इस आलेख में हम पहले कवि एवं उसके सामाजिक-साहित्यिक संदर्भ का संक्षिप्त परिचय देंगे, फिर कविता के प्रमुख तत्व — विषय, भाषा-शिल्प, माध्यम, उद्देश्य, प्रतिपाद्य तथा मुख्य विशेषताएँ — पर विचार करेंगे।

कवि-संक्षिप्त परिचय

राजेश जोशी का जन्म मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ। शिक्षा के बाद उन्होंने पत्रकारिता एवं अध्यापन-कार्य किया।  उनकी कविताएँ सामाजिक संवेदनशीलता, मानवीयता और यथार्थ का दृष्टिकोण लिए होती हैं। 

उनका काव्य-विश्व जीवन की कठिनाइयों, विडम्बनाओं, संघर्षों में भी उम्मीद-की किरण तलाशता है। 
“बच्चे काम पर जा रहे हैं” जैसे पाठ में वह सीधे-सीधे सामाजिक समस्याओं को उजागर करते हैं, विशेषकर बाल-मजदूरी, बचपन की कमी, शिक्षा-वंचना आदि।


कविता “बच्चे काम पर जा रहे हैं” – विषय एवं प्रतिपाद्य

विषय

इस कविता का मूल विषय बाल-श्रम एवं बचपन की हानि है। कवि उस दृश्य को उद्घाटित करते हैं जहाँ छोटे-छोटे बच्चे सुबह-सुबह, कोहरे से ढँकी सड़क पर काम पर जा रहे हैं। इस दृश्य के माध्यम से कवि सिर्फ एक दृश्य वर्णन नहीं करते, बल्कि उस पर प्रश्न खड़े करते हैं: “काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?” 

यह दृश्य हमें बताता है कि बच्चों का स्थान जहाँ खेल-कूद, किताबों-खिलौनों, स्कूल-आँगनों में होना चाहिए — वहाँ वे मजदूरी-जीवन की ओर धकेले जा रहे हैं। कविता इस सामाजिक-आर्थिक स्थिति की ओर तीव्र संकेत करती है जहाँ बचपन-विकास, शिक्षा-अवकाश जैसी सामान्य बातें वंचित हो जाती हैं। सारतः यह कविता सामाजिक चेतना जगाने का कार्य करती है। 

प्रतिपाद्य

बचपन का हनन: बच्चों को जहाँ खेलने-कूदने, सीखने-समझने, खेलने-मिलने-मिलाने का अधिकार है, वहाँ उन्हें काम-पर जाने के लिए विवश करना बचपन की मूल प्रकृति का उल्लंघन है।

शिक्षा-वंचना: रंग-बिरंगी किताबें, स्कूल-मदरसों, आँगन-मैदानों का संबोधन कविता में हो रहा है — यह संकेत है कि शिक्षा-विकास के साधन भी अनदेखे रह जाते हैं। 

सामाजिक संवेदना की कमी: कवि यह कहता है कि यह “हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है” और इसे मात्र विवरण जैसा लिखने के बजाय सवाल की तरह उठाना चाहिए: “काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?” 

मानव-अवमूल्यन: जहाँ बच्चों की गेंदें, किताबें, खिलौने सुरक्षित हैं फिर भी वे काम पर जा रहे हैं — यह विडम्बना कविता में बड़ी गहराई से उभरी है। 


मुख्य विशेषताएँ एवं भाषा-शिल्प

भाषा व शैली

कविता की शुरुआत छवि-प्रधान है: “कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं / सुबह-सुबह” — इस पंक्ति में दृश्य-बोध और अनुभवात्मक रूप मुखर है। 

बार-बार सवालिया रूप का उपयोग होता है (“क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें?”) — इससे पाठक को खड़ा किया जाता है और विचार-प्रेरणा मिलती है। 

विरोधाभास और विडम्बना-भाव का प्रयोग ("भयानक है लेकिन इससे भी ज़्यादा यह कि हैं सारी चीज़ें हस्बमामूल") — जहाँ सबकुछ सामान्य दिखता है, वहाँ भी बच्चों की स्थिति असामान्य है। 

सरल-बोली, प्रत्यक्ष भाषा है; मिश्रित रूप से प्रत्यक्ष प्रश्न, दृश्य-उपकरण और प्रतीकात्मकता का मेल है।


प्रतीक-उपकरण

कोहरा-से ढकी सड़क: अनिश्चितता, अस्पष्टता तथा ठंड-कालीन शुरुआत का प्रतीक।

सारी गेंदें, किताबें, खिलौने, मदरसे, आँगन-मैदान: बच्चों की उमंग-खेल-शिक्षा-विकास से जुड़े प्रतीक।

हज़ारों सड़कें, “बहुत छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं”: व्यापक समस्या का संकेत, संख्या-श्लेष।

प्रश्नचिह्नों का लगातार प्रयोग: समस्या को सामान्यकरण न कर प्रश्न के रूप में प्रस्तुत करना।


रचना-संरचना

कविता संक्षिप्त है, लेकिन सवाल-धार और दृश्य-प्रेरित। शुरुआत में दृश्य-स्थापना, मध्य में प्रश्न-श्रृंखला, अंत में समस्या-स्थिति का निष्कर्ष। यह एक चक्र की तरह प्रवाहित होती है जहाँ हम दृश्य देखते हैं, प्रश्न उठते हैं, अंत में समस्या के सामने खड़े होते हैं।

उद्देश्य एवं सामाजिक-प्रासंगिकता

उद्देश्य

सामाजिक जागृति: बच्चों द्वारा काम पर जाने की स्थिति को सामान्य नहीं मानने की प्रेरणा देना। कवि कहता है – इसे “विवरण की तरह” लिखना नहीं चाहिए, बल्कि “सवाल की तरह” पूछना चाहिए। 

मानवीय चेतना को जगाना: बच्चों को ‘मजदूर’ की तरह देखने की प्रवृत्ति को प्रश्नांकित करना।

बचपन-अधिकार, शिक्षा-और-खेल के अधिकार की महत्ता सामने लाना।

विनीत लेकिन प्रभावी भाषा में समस्या की गंभीरता प्रस्तुत करना।

सामाजिक-प्रासंगिकता

बाल-श्रम आज भी हमारे समाज की बड़ी विडम्बना है। उस समय, जब बच्चों को शिक्षा-खेल-विकास का अवसर मिलना चाहिए, वे काम की ओर धकेले जा रहे हैं। यह कविता इस अप्रत्याशित स्थिति की तीव्रता से पड़ताल करती है। पाठ-योजना में शामिल हो जाने से यह समस्या-प्रेरित चर्चा का माध्यम बन जाती है। 


मुख्य बिंदु / झलकियाँ

“कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं / सुबह-सुबह” – दृश्य की शुरुआत और ध्रुवीय अभिव्यक्ति। 

“हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह” – समस्या की तीव्र भाषा।

“भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना / लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह” – कवि की चेतना-पथ।

प्रश्न-श्रृंखला: गेंदें, किताबें, खिलौने, मदरसे, मैदान — इन माध्यमों से बच्चों की सामान्य स्थिति की ओर संकेत।

अंत-दृश्य: “बहुत छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं” — मासूमियत और यथार्थ का टकराव।

निष्कर्ष

कविता “बच्चे काम पर जा रहे हैं” भाव-भीन दृश्यों में न उलझती है और न कटु आलोचना करती है, बल्कि सरल-भाषा में एक सवाल खड़ा करती है: काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे? इस सवाल के माध्यम से कवि सामाजिक असमंजस, मानव-दायित्व और बचपन-विकास की अनिवार्यता को सामने लाते हैं।

राजेश जोशी की यह रचना हमें याद दिलाती है कि एक-तरफ जहाँ शिक्षा-खिलौने-आँगन मौजूद हैं, वहीं छोटे-बच्चों का काम पर जाना हमारी व्यवस्था-असमर्थता का सबसे चिंतनीय द्योतक है। कविता हमें सोचने, संवाद करने और सम्भव हो तो बदलने के लिए प्रेरित करती है।