5955758281021487 Hindi sahitya : नवंबर 2020

शुक्रवार, 27 नवंबर 2020

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय/साहित्यिक परिचय
बीए /m.a. में कक्षाओं के लिए

महादेवी वर्मा (1907-1987) हिंदी साहित्य में आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध महान कवयित्री, छायावाद के चार स्तंभों में से एक, वेदना की देवी का जन्म
(26 मार्च, 1907, फ़र्रुख़ाबाद —11 सितम्बर, 1987, प्रयाग में हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई।
1916 में विवाह के कारण इनकी सब शिक्षा कुछ समय के लिए बाधित हुई ।
परंतु 1919 में इन्होंने पुन: प्रयाग में अपनी पढ़ाई आरंभ कर दी ।1933 में प्रयाग विश्वविद्यालय से ही संस्कृत विषय में में किया औरप्रयाग महिला विद्यापीठ की प्राचार्या नियुक्त हुई।
   वे लंबे अरसे तक प्रयाग महिला विद्यापीठ के कुलपति भी रही बचपन में अपनी सखी सुभद्रा कुमारी चौहान जो इनसे कुछ बड़ी थी उनसे प्रेरणा पाकर लेखन कार्य आरंभ किया और मृत्यु पर्यंत जारी रखा।
 हिंदी साहित्य के छायावाद के चार स्तंभों में से एक रूप में जानी जाती है उन्होंने अपनी कविताओं में दर्द और पीड़ा के कारण ही में आधुनिक मीरा भी कहा जाता है।

-आधुनिक साहित्य की मीरा
@रेखाचित्र
अतीत के चलचित्र (1941)
स्मृति की रेखाएँ (1943)
@संस्मरण
पथ के साथी (1956, अपने अग्रज समकालीन साहित्यकारों पर)
मेरी परिवार (1972, पशु-पक्षियों पर)
संस्मरण (1983)
@ललित निबंध
क्षणदा (1956)
चुने हुए भाषणों का संग्रह
संभाषण (1974)
@कहानियाँ
गिल्लू
@निबन्ध
विवेचनात्मक गद्य (1942)
श्रृंखला की कड़ियाँ (1942, भारतीय नारी की विषम परिस्थितियों पर)

साहित्यकार की आस्था और अन्य निबन्ध (1962, सं. गंगा प्रसाद पांडेय, महादेवी का काव्य-चिन्तन)
संकल्पिता (1969)
भारतीय संस्कृति के स्वर (1984)।
चिन्तन के क्षण
युद्ध और नारी
नारीत्व का अभिशाप
सन्धिनी
आधुनिक नारी
स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न
सामाज और व्यक्ति
संस्कृति का प्रश्न
हमारा देश और राष्ट्रभाषा
@महत्वपूर्ण पंक्तियां
सौन्दर्य परिचय -स्निग्ध खंड है और सत्य विस्मय भरा अखण्ड।
काव्य या कला का सत्य जीवन की परिधि में सौन्दर्य के माध्यम द्वारा व्यक्त अखण्ड सत्य है।
कवि का दर्शन दीवन के प्रति उसकी आस्था का दूसरा नाम है।
आस्था मानव के युगान्तर से प्राप्त दार्शनिक लक्ष्य पर केन्द्रित रागात्मक दृष्टि रही है।
छायावाद तो करुणा की छाया में सौन्दर्य के माध्यम से व्यक्त होने वाला भावात्मक सर्ववाद ही रहा है और उसी रूप में उसकी उपयागिता है।
*महादेवी ने स्वयं लिखा है, ”मां से पूजा और आरती के समय सुने सूर, तुलसी तथा मीरा आदि के गीत मुझे गीत रचना की प्रेरणा देते थे। 
मां से सुनी एक करुण कथा को मैंने प्रायः सौ छंदों में लिपिबद्ध किया था। पडौस की एक विधवा वधू के जीवन से प्रभावित होकर मैंने विधवा, अबला शीर्षकों से शब्द चित्र् लिखे थे जो उस समय की पत्र्किाओं में प्रकाशित भी हुए थे। व्यक्तिगत दुःख समष्टिगत गंभीर वेदना का रूप ग्रहण करने लगा। करुणा बाहुल होने के कारण बौद्ध साहित्य भी मुझे प्रिय रहा है।“
‘‘हिन्दी भाषा के साथ हमारी अस्मिता जुडी हुई है। हमारे देश की संस्कृति और हमारी राष्ट्रीय एकता की हिन्दी भाषा संवाहिका है।’’

कविता-संग्रह  

नीहार (1930)
रश्मि (1932)
नीरजा (1934)
सांध्यगीत (1935)
यामा (1940)
दीपशिखा (1942)
सप्तपर्णा (1960, अनूदित)
संधिनी (1965)
नीलाम्बरा (1983)
आत्मिका (1983)
दीपगीत (1983)
प्रथम आयाम (1984)
अग्निरेखा (1990)
पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
परिक्रमा
गीतपर्व

(निम्नलिखित संकलनों में महादेवी वर्मा की नयी कवितायें नहीं हैं, बल्कि पुराने संकलनों को ही नयी भूमिकाओं के साथ पुनर्मुद्रित किया गया है।)
यामा (1940)
हिमालय (1960)
दीपगीत (1983)
नीलाम्बरा (1983)
आत्मिका (1983)
गीतपर्व
परिक्रमा 
संधिनी
स्मारिका
पागल है क्या ? (1971, प्रकाशित 2005)
*महादेवी वर्मा की बाल कविताओं के दो संकलन छपे हैं—
ठाकुरजी भोले हैं
आज खरीदेंगे हम ज्वाला
बंगाल के अकाल के समय 1943 में इन्होंने एक काव्य संकलन प्रकाशित किया था और बंगाल से सम्बंधित “बंग भू शत वंदना” नामक कविता भी लिखी थी। इसी प्रकार चीन के आक्रमण के प्रतिवाद में हिमालय (1960) नामक काव्य संग्रह का संपादन किया था।

*कुछ प्रतिनिधि कविताएँ
अलि! मैं कण-कण को जान चली 
अलि अब सपने की बात 
अश्रु यह पानी नहीं है
कहां रहेगी चिड़िया 
किसी का दीप निष्ठुर हूँ 
कौन तुम मेरे हृदय में
क्या जलने की रीत 
क्या पूजन क्या अर्चन रे!
क्यों इन तारों को उलझाते? 
जब यह दीप थके 
जाग-जाग सुकेशिनी री! 
जाग तुझको दूर जाना
जाने किस जीवन की सुधि ले
जीवन विरह का जलजात
जो तुम आ जाते एक बार 
जो मुखरित कर जाती थीं
तम में बनकर दीप
तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!
तेरी सुधि बिन
दिया क्यों जीवन का वरदान
दीपक अब रजनी जाती रे 
दीप मेरे जल अकम्पित
धीरे-धीरे उतर क्षितिज से 
धूप सा तन दीप सी मैं
नीर भरी दुख की बदली
पूछता क्यों शेष कितनी रात? 
प्रिय चिरन्तन है 
बताता जा रे अभिमानी! 
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ 
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
मिटने का अधिकार 
मेरा सजल मुख देख लेते! 
मैं अनंत पथ में लिखती जो 
मैं नीर भरी दुख की बदली! 
मैं प्रिय पहचानी नहीं 
मैं बनी मधुमास आली! 
यह मंदिर का दीप 
रजतरश्मियों की छाया में धूमिल घन सा वह आता
रूपसि तेरा घन-केश-पाश 
लाए कौन संदेश नए घन
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की
वे मुस्कराते फूल नहीं 
व्यथा की रात
शून्य से टकरा कर सुकुमार
सजनि कौन तम में परिचित सा 
सजनि दीपक बार ले 
सब आँखों के आँसू उजले 
स्वप्न से किसने जगाया? 
हे चिर महान्!
@पुरस्कार और सम्मान:-
1934 ‘ नीरजा’ पर ‘सेक्सरिया पुरस्कार
1942 ‘ द्विवेदी पदक’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)
1943 ‘मंगला प्रसाद पुरस्कार’ (‘स्मृति की रेखाएँ’ के लिये)
1943 ‘ भारत भारती पुरस्कार’, (‘स्मृति की रेखाओं’ के लिये)
1944 ‘यामा’ कविता संग्रह के लिए
1952 उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत
1956 ‘पद्म भूषण’
1979 साहित्य अकादमी फैलोशिप (पहली महिला)
1982 काव्य संग्रह ‘यामा’ (1940) के लिये ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’
1988 ‘पद्म विभूषण’ (मरणोपरांत)
#विशेष:-
-सन् 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था। वे अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘चाँद’ मासिक की भी संपादक रहीं। हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने प्रयाग में ‘ रंगवाणी नाट्य संस्था’ की भी स्थापना की।
-इन्हे ' वेदना की कवयित्री' एवं 'आधुनिक युग की मीरां' नाम से भी पुकारा जाता है|
-ये प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रचार्य रही हैं|
- रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा- " छायावाद कहे जाने वाले कवियों मे महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही है|"
इनको छायावाद साहित्य की 'शक्ति (दुर्गा)' कहा जाता है
- महादेवी वर्मा ने हिंदी की बहुत सी वेदों में लिखा परंतु मोहलत अभी एक अभियंत्रिकी छायावाद के चार आधार आधार स्तंभों में से एक रूप में जानी जाती हैं उनका काव्य संवेदना भाव संगीत और चरित्र का अद्भुत संगम है इनका समस्त काव्य वेदना में है लेकिन इस वेदना को आध्यात्मिक वेदना बनाकर उन्होंने प्रस्तुत करने की चेष्टा की है उनकी वेदना पर बौद्ध दर्शन की चाबी पड़ी है इनकी प्रारंभिक 9 दिन की वेदना का स्वाभाविक अभिव्यक्ति हुई है इन्होंने शुद्ध साहित्यिक हिंदी खड़ी बोली का प्रयोग किया है आबादी कवियों में एकमात्र कवित्री ऐसी हैं जिनकी काव्य भूमि और शैली आरंभ से अंत तक एक ही रही है इनकी जमीन एक ही है। हिंदी साहित्य हमेशा इनका ऋणी रहेगा।

रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
b.a. सेकंड ईयर
सेमेस्टर 3
 रामधारी सिंह दिनकर 

उपनाम-  दिनकर
जन्म- 23 सितंबर, 1908
जन्म भूमि-  सिमरिया, मुंगेर, बिहार
मृत्यु- 24 अप्रैल, 1974
मृत्यु स्थान- चेन्नई, तमिलनाडु
अभिभावक - श्री रवि सिंह और श्रीमती मनरूप देवी
पत्नी-श्यामवती
संतान-  एक पुत्र
कर्म भूमि- पटना
कर्म-क्षेत्र - कवि, लेखक
प्रसिद्धि- द्वितीय राष्ट्रकवि
काल- आधुनिक काल (राष्ट्रीय चेतना प्रधान काव्य धारा के कवि)
#पुरस्कार-उपाधि- 
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1972
साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1959
पद्म भूषण-1959 (भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद द्वारा प्रदान)
#रचनाएं:-
रेणुका-1935
हुँकार- 1938
रसवंती-1940
द्वन्द्व गीत-1940
सामधेनी-1946
धूप और धुआँ- 1951 
आँसु-1951
नील-कुसुम-1954
कुरुक्षेत्र-1946 (महाकाव्य/प्रबंधकाव्य)
रश्मिरथी-1952 (प्रबंधकाव्य)
उर्वशी-1961 (खण्डकाव्य)
हाहाकार
यशोधरा-1946
परशुराम की प्रतिक्षा-1963
हारे को हरिनाम-1970
दिल्ली
सीपी और शंख
वट पीपल-1961
संस्कृति के चार अध्याय (गद्य काव्य)
मगध महिमा (काव्यात्मक एकांकी)
-व्यंग्य एवं लघु कविताओं का संग्रह - नाम के पत्ते।
-अनूदित और मुक्त कविताओं का संग्रह - मृत्ति तिलक।
-बाल-काव्य विषयक उनकी दो पुस्तिकाएँ प्रकाशित हुई हैं —‘मिर्च का मजा’ और ‘सूरज का ब्याह
#आलोचना-
काव्य की भूमिका-1957
पंत-प्रसाद-मैथलीशरण गुप्त-1958
शुद्ध कविता की खोज-1966

#निबंध-
मिट्टी की ओर-1946
अर्धनारीश्वर-1952
रेत के फूल-1954
हमारी सांस्कृतिक एकता-1954
उजली आग-1956
राष्ट्रभाषा और राष्ट्रीय साहित्य-1958
वेणुवन-1958
नैतिकता और विज्ञान-1959
साहित्यमुखी-1968
#संस्मरण एवं रेखाचित्र विधा- 
लोकदेव नेहरु-1965
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ- 1969
#यात्रा विधा-
देश-विदेश-1957
मेरी यात्राएँ- 1970

#डायरी विधा- 
दिनकर की डायरी-1978 

#विशेष_तथ्य:-
-दिनकर को 'द्वितीय राष्ट्रकवि' भी कहा जाता है|
- हिंदी साहित्य जगत में दिनकर को 'अनल कवि व अधैर्य का कवि' उपनाम से भी जाना जाता है|

- इनको 'उर्वशी' काव्य रचना के लिए 1972 ईस्वी में 'भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ था|
- 'संस्कृति के चार अध्याय' रचना के लिए इनको 1959 ईस्वी में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ था|
- इन्हें राष्ट्रीय जागरण तथा भारतीय संस्कृति का कवि माना जाता है|
-रेणुका की कविता " तांडव" में शंकर से प्रलय की याचना की।
-रेणुका की कविता "पुकार" में किसान की विवशता का चित्रण।
-वट पीपल इनका प्रमुख रेखाचित्र है।
"संस्कृति के चार अध्याय" की भूमिका पं० जवाहर लाल नेहरू ने लिखी थी।
- इनका 'कुरुक्षेत्र' महाकाव्य द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से प्रेरित होकर रचा गया था यह काव्य मूलतः महाभारत के भीष्म युधिष्ठिर संवाद पर आधारित है|
-बोस्टल जेल के शहीद को श्रद्धांजलि के रूप में लिखा कविता - बागी।
-सामधेनी की कविता 'हे मेरे स्वदेश' में हिन्दी मुस्लिम दंगों की भर्त्सना की।
-सामधेनी की कविता'अंतिम मनुष्य' में युद्ध प्रलय का चित्रण है।

-कुरूक्षेत्र में मिथकीय पद्धति है
-परशुराम की प्रतीक्षा में भारती पर चीनी आक्रमण के बारे में प्रतिक्रिया है।
-दीपदान के अंग्रेजी पत्र 'orient West's में दिनकर की कलिंग विजय का अनुवाद किसी गया था।
-संस्कृति के चार अध्याय के प्राचीन खण्ड का जापानी भाषा में अनुवाद किसी गया था।
-1955 में दिनकर ने वारसा (पोलैंड) के अन्तर्राष्ट्रीय काव्य समारोह में भारतीय शिखर मंडल के नेता के रूप में भाग लिया।
- विद्यार्थी जीवन में आर्थिक तंगी होते हुए भी दिनकर ने मैट्रिक की परीक्षा में हिंदी विषय में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर 'भूदेव' सवर्ण पदक प्राप्त किया था|
-दिनकर भागलपुर वि.वि., बिहार के कुलपति भी रहे थे|(1964-65 में)
- दिनकर को भारतीय संसद में 'राज्यसभा' का सदस्य भी मनोनीत किया गया था| (1952 प्रथम संसद के सदस्या, 12 वर्षो तक रहे)
- 1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी की
#दिनकर के बारे में अन्य लेखकों के कथन:-

-"वे अहिन्दीभाषी जनता में भी बहुत लोकप्रिय थे क्योंकि उनका हिन्दी प्रेम दूसरों की अपनी मातृभाषा के प्रति श्रद्धा और प्रेम का विरोधी नहीं, बल्कि प्रेरक था।" -हज़ारी प्रसाद द्विवेदी
-"दिनकर जी ने श्रमसाध्य जीवन जिया। उनकी साहित्य साधना अपूर्व थी। कुछ समय पहले मुझे एक सज्जन ने कलकत्ता से पत्र लिखा कि दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलना कितना उपयुक्त है ? मैंने उन्हें उत्तर में लिखा था कि यदि चार ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें मिलते, तो उनका सम्मान होता- गद्य, पद्य, भाषणों और हिन्दी प्रचार के लिए।" -हरिवंशराय बच्चन
-"उनकी राष्ट्रीयता चेतना और व्यापकता सांस्कृतिक दृष्टि, उनकी वाणी का ओज और काव्यभाषा के तत्त्वों पर बल, उनका सात्त्विक मूल्यों का आग्रह उन्हें पारम्परिक रीति से जोड़े रखता है।" -अज्ञेय
-"हमारे क्रान्ति-युग का सम्पूर्ण प्रतिनिधित्व कविता में इस समय दिनकर कर रहा है। क्रान्तिवादी को जिन-जिन हृदय-मंथनों से गुजरना होता है, दिनकर की कविता उनकी सच्ची तस्वीर रखती है।" -रामवृक्ष बेनीपुरी
-"दिनकर जी सचमुच ही अपने समय के सूर्य की तरह तपे। मैंने स्वयं उस सूर्य का मध्याह्न भी देखा है और अस्ताचल भी। वे सौन्दर्य के उपासक और प्रेम के पुजारी भी थे। उन्होंने ‘संस्कृति के चार अध्याय’ नामक विशाल ग्रन्थ लिखा है, जिसे पं. जवाहर लाल नेहरू ने उसकी भूमिका लिखकर गौरवन्वित किया था। दिनकर बीसवीं शताब्दी के मध्य की एक तेजस्वी विभूति थे।" -नामवर सिंह
#दिनकर की प्रसिद्ध पंक्तियां-
-रोक युधिष्ठर को न यहाँ,
जाने दे उनको स्वर्ग धीर पर फिरा हमें गांडीव गदा, 
लौटा दे अर्जुन भीम वीर - (हिमालय से)
-क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,
उसको क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो - (कुरुक्षेत्र से)
-मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। - (रश्मिरथी से)
- धन है तन का मैल, पसीने का जैसे हो पानी, 
एक आन को ही जीते हैं इज्जत के अभिमान
निष्कर्ष साहित्य की गद्य और पद्य दोनों विधाओं में समान अधिकार रखने वाले रामधारी सिंह दिनकर आलू के आधुनिक हिंदी के राष्ट्रकव
 राष्ट्रीय चेतना का स्वर, छायावादी, प्रकृति वादी, प्रगतिवादी, मानवता का प्रतिपादन करने वाले, क्रांति के उद्घोषक, गांधीवादी अनिशाबाद का समर्थन करने वाले,सहज सरल साहित्य खड़ी बोली का प्रयोग करने वाले, ओज गुण की प्रधानता रखने वाले राष्ट्रकवि दिनकर जी का काव्य भाव और भाषा दोनों दृष्टि उसे उच्च कोटि का है।

सूरदास

सूरदास का जीवन परिचय
बीए कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
m.a.  कक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण
सूरदास
हिंदी की कृष्ण काव्य धारा और अष्टछाप में महात्मा सूरदास का प्रमुख स्थान है ।
इसी कारण गोस्वामी विट्ठलदास ने सूर्य को पुष्टिमार्ग का जहाज और लोक मानस ने सूर सूर तुलसी शशि कहकर उनकी अस्मिता को अंगीकृत किया है ।
प्राचीन संत भक्तों की भांति सूरदास का भी प्रमाणिक जीवन वृत्त प्राप्त नहीं होता । आधुनिक शोधों के आधार पर माना जाता है कि सूरदास का जन्म संवत् 1535 में वैशाख मास की शुक्ल पंचमी को दिल्ली के समीप हरियाणा राज्य में स्थित फरीदाबाद के सीही गांव में एक सारस्वत ब्राह्मण के परिवार में हुआ ।
अधिकांश विद्वानों ने सूर्य की मृत्यु संवत् 1640 में परसोली नामक गांव में स्वीकार की है।$ कृष्ण भक्ति काव्य धारा के कवि $
     
जन्मकाल- 1478 ई. (1535 वि.)
जन्मस्थान- सीही ग्राम ( नगेन्द्र के अनुसार)
- आधुनिक शौधों के अनुसार इनका जन्म स्थान मथुरा के निकट 'रुनकता' नामक ग्राम माना गया है|
मृत्युकाल- 1583 ई. (1640 वि.) पारसोली गाँव में
गुरु का नाम- वल्लभाचार्य
गुरु से भेंट- 1509-10 ई. में (पारसोली नामक गाँव में)
काव्य भाषा- ब्रज
#रचनाएँ:-
वैसे तो सूरदास की यानी कि तृतीय बताई जाती हैं लेकिन तीन ही रचनाएं प्रमाणिक मानी जाती है वह है-
1. सूरसागर
2. साहित्य लहरी
3. सूरसारावली

#सूरसागर:-
- यह सूरदास की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है|
- इसका मुख्य उपजीव्य (आधार स्रोत) श्रीमद् भागवतपुराण के दशम स्कंद का 46 वां व 47 वां अध्याय माना जाता है|
- भागवत पुराण की तरह इस का विभाजन भी 'बारह स्कंधो' में किया गया है|
-इसके दसवें स्कंद में सर्वाधिक पद रचे गए है|
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है-" सूरसागर किसी चली आती हुई गीती काव्य परंपरा का, चाहे वह मौखिक ही रही हो, पूर्ण विकास सा प्रतीत होता है|"
- नगेन्द्र ने इस रचना को 'अन्योक्ति' एवं 'उपालम्भ काव्य' कहकर पुकारा है|

#साहित्यलहरी:-
- यह इनका रीतिपरक यह माना जाता है|
- इसमें दृष्टकूट पदों में राधा कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है|
- अलंकार निरुपण दृष्टि से भी इस ग्रंथ का अत्यधिक महत्व माना जाता है|

#सूरसारावली:-
- यह इनकी विवादित या अप्रमाणिक रचना मानी जाती है|
#विशेष_तथ्य:-
- सूरदास जी को ' खंजननयन, भावाधिपति, वात्सल्य रस सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज' आदि नामों से भी जाना जाता है|
- आचार्य रामचंद्र शुकल ने इनको-'वात्सल्य रस सम्राट' व 'जीवनोत्सव का कवि' कहा है|
-गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने इनकी मृत्यु पर ' पुष्टिमार्ग का जहाज' कहकर पुकारा था| इनकी मृत्यु पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था:-
" पुष्टिमार्ग को जहाज जात है सो जाको कछु लेना होय सो लेउ|"
- हिंदी साहित्य जगत में 'भ्रमरगीत' परंपरा का समावेश सूरदास द्वारा ही किया हुआ माना जाता है|
- कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह चंदबरदाई के वंशज कवि माने गए हैं|
- आचार्य शुक्ल ने कहा है- "सूरदास की भक्ति पद्धति का मेरुदंड पुष्टीमार्ग ही है|"
- सूरदास जी ने भक्ति पद्धति के 11 रूपों का वर्णन किया है|
- हिंदी साहित्य जगत में सूरदास जी सूर्य के समान, तुलसीदास जी चंद्रमा के समान, केशव दास जी तारे के समान तथा अन्य सभी कवि जुगनुओं (खद्योत) के समान यहां-वहां प्रकाश फैलाने वाले माने जाते हैं| यथा:-
"सूर सूर तुलसी ससि, उडूगन केशवदास|
और कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करत प्रकाश||"
- सूर के भाव चित्रण में वात्सल्य भाव को श्रेष्ठ कहा जाता है| आचार्य शुक्ल ने लिखा है:-
" सूर अपनी आंखों से वात्सल्य का कोना कोना छान आए हैं ।
निष्कर्ष-सूरदास बहुमुखी सृजनात्मक प्रतिभा के भक्त कवि थे उन्होंने राधा कृष्ण के बाल जीवन और युवा जीवन की लीलाओं का निरूपण नहीं किया है वरन उन्हें लीलाओं के वर्णन के बहाने से उन्होंने सिंगार सौंदर्य संस्कृति प्रकृति भक्ति वात्सल्य आदि का बड़ा मनोरम चित्र अंकन किया है।

संत कबीर से संबंधित संपूर्ण जानकारी

संत कबीर से संबंधित संपूर्ण जानकारी
बीए क्लासेज के लिए
m.a. क्लासेज के लिए
कबीर
एक समाज सुधारक
फक्कड़
क्रांतिकारी
भाषा के डिक्टेटर
निर्गुण भक्ति काव्य धारा के कवि 

- जन्मकाल 
1398 इसवी (ज्येष्ठ पूर्णिमा विक्रम संवत 1455, सोमवार)
नोट- जन्म काल के संबंध में निम्न पद प्रमाण है-
" चौदह सौ पचपन साल गये,चन्द्रवार इक ठाठ ठये|
जेठ सुदी बरसायत को, पूरणमासी तिथी प्रकट भये ||"
जन्मस्थान- काशी/वाराणसी
- एक किवदंती के अनुसार इनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था, जिसने लोक लज्जा के कारण इनको जन्म देकर काशी के 'लहरतारा' नमक तालाब के किनारे छोड़ दिया था| बाद में एक जुलाहा दंपत्ति 'नीरू व नीमा' के द्वारा इनका पालन पोषण किया गया|

मृत्युकाल- 1518 ई.(1575 वि.)- मगहर
"संवत पन्द्रह सौ पछत्तरां,कियो मगहर को गौन|
माघ सुदी एकादसी,रल्यो पौन से पौन ||"

 गुरु का नाम- स्वामी रामानंद ( मुसलमान अनुयायियों के अनुसार इनके गुरु 'शेख तकी' माने जाते हैं)

*
पिता का नाम- नीरू

माता का नाम-नीमा
पत्नी का नाम-लोई
 पुत्र व पुत्री का नाम- कमाल व कमाली
‪‎काव्य_भाषा‬:- सधुक्कड़ी


महत्वपूर्ण जानकारी- कबीर ने अपनी रचनाओं में राजस्थानी, पंजाबी, खड़ी बोली आदि पंचमेल भाषाओं का प्रयोग किया है, जिसे 'सधुक्कड़ी' भाषा कहा जाता है| कबीर की भाषा को यह नाम सर्वप्रथम आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा प्रदान किया गया था|
-डॉ. श्याम सुंदर दास ने कबीर की भाषा को पंचमेल खिचड़ी भाषा कहा है|

 नगेंद्र के अनुसार इनके द्वारा रचित 63 (प्रकाशित 43) रचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है|

कबीरदास जी को अक्षर ज्ञान नहीं था इस संबंध में उन्होंने स्वयं लिखा है:-
"मसि कागद छुयो नहीं, कलम गह्यौ नहिं हाथ |
चारिउ जुग को महातम, मुखहिं जनाई बात ||'
- अंत: यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने स्वयं किसी ग्रंथ को लिपिबद्ध नहीं किया।

‪#‎रचना‬ संकलन- कबीरदास जी द्वारा रचित मुख्य पदों का संकलन उनके परम शिष्य 'धर्मदास में 1464 ईस्वी' में 'बीजक' के नाम से किया था| इसके तीन भाग किए गए हैं-

1. साखी:- इस भाग में कबीर दास द्वारा रचित दोहों/साखियों को शामिल किया गया है| इस में सांप्रदायिक शिक्षा और सिद्धांत के उपदेश हैं| इसकी भाषा सधुक्कड़ी है इस का विभाजन 59 अंगों में किया गया है|
प्रथम अंग- गुरुदेव को अंग
अन्तिम अंग- अबिहड़ कौ अंग

2.सबद - इस भाग में कबीर द्वारा रचित पदों को शामिल किया गया है इसकी भाषा ब्रज या पूरी बोली है इस भाग में कबीर के माया संबंधी विचारों तथा गेय पदों को शामिल किया गया है|

3. रमैंणी- इस भाग में कबीर द्वारा रचित राम भक्ति संबंधी पदों/चौपाइयों को शामिल किया गया है इसकी भाषा भी ब्रज या पूर्वी बोली है इसमें रहस्यवाद में दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है|

‪#‎कबीर_के_काव्य_की_प्रमुख_विशेषताएं‬:-

* कण-कण में ईश्वर की व्याप्ति
* विरह की व्याकुलता-
" अंखिणियां झाँई पड़ी, पंथ निहारि-निहारि |
जीभणियां छाला पड्या, नाम पुकारि-पुकारि ||"
* मूर्ति पूजा का विरोध-
" पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूं पहार |
ताते यह चाकी भली, पीस खाय संसार ||"
* धार्मिक आडंबरों का विरोध
* अहिंसा का संदेश
* गुरु का महत्व
* नारी की निंदा-
" नारी की झांई परत, अंधा होत भुजंग|
कबीरा तिनकी कौन गति, नित नारी के संग||"
* अवतारवाद का खंडन
* माया की भर्त्सना
* निर्गुण ब्रह्म की उपासना
* रहस्यवाद
* पुस्तकीय ज्ञान का परिहास
" पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय|
एकै के आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय ||"
* ब्रह्म की सौंदर्य भावना
* बौद्धों के महायान का प्रभाव (क्षणिकवाद)
* सदाचार की शिक्षा
* ईश्वर के प्रति अनयन भाव
* रूपात्मक प्रतीकों का प्रयोग
‪#‎विशेष_तथ्य‬:-
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार- कबीर तथा अन्य निर्गुण पंथी संतों के द्वारा अंतः साधना में' रागात्मिका भक्ति' और 'ज्ञान' का योग तो हुआ पर 'कर्म' की दशा वही रही जो नाथ पंथियों के यहां थी|
- हजारी प्रसाद दिवेदी के अनुसार-" ऐसी थी कबीर सिर से पैर तक मस्त मौला, आदत से फक्कड़, स्वभाव से फक्खड., दिल से तर,दिमाग से दुरूस्त,भक्तो के लिए निरीह, भेषधारी के लिए प्रचंड|"
- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कबीर को 'वाणी का डिक्टेटर' (भाषा का तानाशाह) कह कर पुकारा|
-- कबीर सिकंदर लोदी के समकालीन माने जाते हैं|
- रामचंद्र शुक्ल ने इन की प्रशंसा में एक जगह लिखा है - प्रतिभा उन्मे बड़ी प्रखर थी|
- हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इनको भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की प्रतिमूर्ति माना है|
- गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित कबीर की साखियों को 'सलोकु या श्लोक' कहा गया है| इसमें 227 पद 17 राग 237 श्लोक संकलित हैं।
निष्कर्ष
कबीर दास जी कवि ना होकर एक समाज सुधारक क्रांतिकारी, निर्गुण भक्ति धारा के कवि, जाती पाती और रंगभेद ना करने वाले, तत्कालीन समाज वह आने वाले समाज के लिए यगुचेता के रूप में हमेशा हिंदी साहित्य में याद किए जाएंगे।

रविवार, 8 नवंबर 2020

संक्षेपण की परिभाषा प्रक्रिया के नियम और प्रमुख विशेषताएं

संक्षेपण की परिभाषा
संक्षेपण की प्रक्रिया के नियम
उस की प्रमुख विशेषताएं
उदाहरण
b.a. तृतीय वर्ष
पांचवा सेमेस्टर
प्रयोजनमूलक हिंदी में संक्षेपण प्रक्रिया का अत्यधिक महत्व है आज मानव जीवन की गति व दिनचर्या अत्यंत तीव्र होती जा रही है मानव अपनी जीवन के अत्यधिक व्यवस्थाओं के कारण हर कार्य को शीघ्रता से निपटाना चाहता है इसी कारण आज मानव को अपने भाव की अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए सीमित शब्दों के प्रयोग में सिद्धहस्त होने की जरूरत है इसीलिए मनुष्य के जीवन में संशोधन की आवश्यकता दिन प्रतिदिन अधिक अनुभव की जा रही है संक्षेपण की भाषा सूत्र आत्मक और अपने आप में पूर्ण होनी चाहिए।
इस प्रकार आज विभिन्न परीक्षाओं में भी अत्यंत सीमित शब्दों में उत्तर देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है आज पत्रकारिता में भी अत्यंत सीमित समय तथा स्थान में अधिक से अधिक विषय को प्रकाशित करने के लिए संक्षेपण का महत्व बढ़ता जा रहा है।
संक्षेपण की परिभाषा
संक्षेपण शब्द का सामान्य अर्थ है किसी कथन या लिखित भाव को संपूर्ण एवं सारे रूप में प्रस्तुत करना।
किसी विस्तृत विषय वस्तु या संदर्भ को कम से कम शब्दों में प्रस्तुत करना ही संक्षेपण कहलाता है संक्षेपण में कथ्य के अनावश्यक अप्रासंगिक और अन्य उपेक्षित हंस को छोड़ते हुए मूल बात को ध्यान में रखकर कम से कम शब्दों में मैं प्रस्तुतीकरण संक्षेपण कहलाता है।
परिभाषा
नरेश मिश्र के अनुसार
संक्षेपण वास्तव में कम से कम शब्दों में लिखी गई स्वत पूर्ण रचना होती है संक्षेपण में पाठ के सभी तत्वों का क्रम से संस्कृत रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

संक्षेपण और सार में अंतर
कुछ विद्वान सार और संक्षेपण को एक दूसरे का पर्यायवाची मानती हैं किंतु यह उचित नहीं है सार में पाठ के सभी तथ्यों की चर्चा अवश्य नहीं होती केवल केंद्रीय भाव ही संक्षिप्त रूप से प्रस्तुत किया जाता है जबकि संक्षेपण में सभी तथ्यों की प्रस्तुति मूल क्रम में कम से कम शब्दों में की जाती है सार तथा संक्षेपण दोनों में भाव प्रस्तुत करने के लिए सीमित शब्दों को अपनाने की प्रक्रिया होती है संक्षेपण में मूल पाठ का लगभग एक तिहाई भाग होना आवश्यक है जबकि शहर में ऐसा कोई नियम नहीं होता है।

संक्षेपण प्रक्रिया के नियम
संक्षेपण एक कला है इसमें भाव्या अभिव्यक्ति की शक्ति और निपुणता का विकास होता है भाषा पर सहज अधिकार हो जाता है व्यक्ति के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाती है कुछ बातों का ध्यान देना अति आवश्यक होता है जो इस प्रकार से हैं।
1. मूल पाठ को दो-तीन बार पढ़कर उसकी केंद्रीय भाव को समझ लेना चाहिए।
2. मूल बात को शुद्ध रूप में अभिव्यक्त की करना चाहिए उसकी व्याख्या नहीं करनी चाहिए।
3. मूल पाठ का सिर्फ एक तिहाई भाग ही होना चाहिए।
4. संक्षेपण लेखन के वाक्य छोटे-छोटे और सरल भाषा में होनी चाहिए।
5.संक्षेपण में कुछ भी अपनी तरफ से नहीं जोड़ना चाहिए।
6.संक्षेपण स्वयं में एक स्वतंत्र सुगठित और प्रभावपूर्ण अनुच्छेद होना चाहिए।
7.यथा स्थान पर विराम चिन्हों का अनुकूल प्रयोग करना चाहिए।
संक्षेपण की विशेषताएं
1. संक्षिप्तता
2. पूर्णता
3. क्रमबद्धता
4. स्पष्टता
5. मौलिकता
6. समाहार शक्ति
उदाहरण
अनुच्छेद
मेरा यह मतलब कदापि नहीं कि विदेशी भाषाएं सीखने ही नहीं चाहिए नहीं आ सकता। अनुकूलता ,अवसर और अवकाश होने पर हमें एक नहीं, अनेक भाषाएं सीख कर ज्ञानार्जन करना चाहिए ।द्वेष किसी भाषा से नहीं करना चाहिए ।ज्ञान कहीं भी मिलता हो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए ।परंतु अपनी भाषा और उसके साहित्य को प्रधानता देनी चाहिए ।क्योंकि अपना अपने देश का ,अपनी जाति का उपहार और कल्याण अपनी ही भाषा के साहित्य की उन्नति से हो सकता है। ज्ञान ,विज्ञान ,धर्म और राजनीति की भाषा सदैव लोक भाषा ही होनी चाहिए ।तो अपनी भाषा के साहित्य की सेवा और अभिवृद्धि करना सभी दृष्टिकोण से हमारा परम कर्तव्य है।

संक्षेपण
विदेशी भाषाओं का विरोध न करके आवश्यकता और सुविधा के अनुसार सभी भाषाओं से ज्ञान लेना चाहिए परंतु अपने राष्ट्र का उपकार और कल्याण अपनी भाषा के साहित्य से ही संभव है अतः यह हमारा परम धर्म है कि हम अपनी भाषा और उसके साहित्य की अभिवृद्धि करें।

शीर्षक अपनी भाषा का महत्व

काव्य गुण- अर्थ/ परिभाषा/ प्रकार व उदाहरण

b.a. प्रथम वर्ष
समेस्टर प्रथम
काव्य गुण किसे कहते हैं इसके विभिन्न भेदों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
काव्य गुण
काव्य की शोभा को संपादित करने वाले या काव्य की आत्मा रस का उत्कर्ष बनाने वाले तत्व काव्य के गुण कहलाते हैं।
परिभाषा
डॉ नगेंद्र के अनुसार
गुण काव्य के उत्कर्ष साधक तत्वों को कहते हैं जो मुख्य रूप से रसके और गुण रूप से शब्दार्थ के नित्य धर्म हैं।

लक्षण व स्वरूप

नंबर 1 * रस के साधक धर्म है।
नंबर दो * नित्य हैं।
नंबर तीन *गुण रस का उत्कर्ष करते हैं।
नंबर 4 गुण भावात्मक होते हैं।


गुणों की संख्या पर विवाद

*भरत मुनि व दंडी ने इनकी संख्या 10 मानी है।
*वामन ने इसकी संख्या 20 मानी है
*भोज ने इनकी संख्या 24 मानी है।
*आचार्य मम्मट ने इनकी संख्या तीन मानी है।
*डॉ नगेंद्र ने भी इनकी संख्या तीन मानी है।

सर्वमत
सर्वमत के अनुसार गुणों की संख्या 3 है।* के भेद तीन हैं।

नंबर 1 प्रसाद गुण
नंबर 2. माधुर्य गुण
नंबर 3.ओज गुण
प्रसाद गुण
जिस गुण के कारण काव्या का अर्थ तुरंत समझ में आ जाए और उसे पढ़ते ही मन में खुशी हो उसे ही प्रसाद गुण कहती हैं। यह गुण प्राय सभी रसों में प्रयुक्त होता है।
इस गुण के काव्य की शब्दावली सरल और सुबोध होती है।
उदाहरण
1.अंबर के आनंद से देखो
कितने तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहां मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई
2. ढंग है नया
लेकिन बात यह पुरानी है
घोड़ों पर रखकर या थैली में भर कर
या रोटी से ढक कर या फिल्मों में रंग कर वे जंजीरे केवल जंजीरे ही लाए हैं और भी वे कई बार आए हैं।

माधुर्य गुण
जिस रचना से अंतः करण में आनंद विभूत हो जाए। प्रेम ,श्रृंगार ,शांत
 एवं करुणा रसों में यह पाया जाता है।
 प्रकृति के सुंदर वर्णन में भी पाया जाता है ।
हृदय के अंदर प्रेम की मधुरता का पायी है।  जिसमें लंबे समास , ट व र वर्ण, संयुक्त अक्षरों का निषेध होता है।
उदाहरण
1.एक मेरी भव बाधा हरोै, राधा नागरि सोई
  जा तन की झाई परै श्याम हरित दुति होई
2.तेरी आंखों के जंगल में मैं इस प्रकार गुम हो जाता हूं
तुम रेल सी गुजरती हो मैं पुल साथ रहता हूं।

ओज गुण
जिस काव्य रचना के सरवन से चित्र में आवेग उत्पन्न हो क्या मन में उत्साह आए वहां ओज गुण होता है इस गुण में चित्त की वृत्ति होती है यह गुण वीर रूद्र भयानक तथा वीभत्स रस ओं के अनुकूल पाया जाता है इसमें लंबे समास कठोर वर्ण और संयुक्त वर्ण का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण
1. वीर तुम बढ़े चलो धीर तुम बढ़े चलो
2. होंगे कामयाब हम होंगे कामयाब एक दिन
3 आगे नदिया पड़ी अपार 
  घोड़ा कैसे उतरे पार 
   राणा ने सोचा इस बार 
     तब तक था चेतक उस पार
निष्कर्ष
काव्य में रस की वृद्धि करने वाले काव्य के सौंदर्य में वृद्धि करने वाले तत्वों को काव्य गुण कहते हैं।
सर्वमत अनुसार काव्य गुण तीन ही प्रकार के होते हैं जो हम ऊपर पढ़ चुके हैं।








शनिवार, 7 नवंबर 2020

प्रयोजनमूलक हिंदी की अवधारणा

प्रयोजनमूलक हिंदी की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए
प्रयोजनमूलक हिंदी की क्या आवश्यकता है




प्रयोजनमूलक हिंदी का महत्व
भाषा का एकमात्र प्रमुख कार्य मानव के भाव अथवा विचारों का संप्रेषण करना है ।
इस कार्य को संपन्न करने के लिए भाषा शब्द और अर्थ के जिस आवरण को धारण करती है ।
वह बहुआयामी और बहु प्रयोजन आत्मक है ।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रयोजनमूलक  भाषा को कहा जाता है जिसका प्रयोग विशेष प्रयोजन को समक्ष रखकर किया जाता है।

प्रयोजनमूलक हिंदी की परिभाषा

 हिंदी भाषा मूल्य तय एक सुनिश्चित ध्वनि समूह ,रूप ,संरचना के वाक्य विन्यास का सांचा लिए रहती है किंतु जैसे-जैसे आवश्यकतानुसार भाषा का विकास और प्रचार होता है वैसे वैसे उसके प्रकार्यात्मक प्रयोजनों के दायरे भी बढ़ने लगते हैं।

हिंदी भाषा में भी प्रयोजन का दायरा बदलते ही उसकी भाषिक इकाई का संदर्भ अर्थ और प्रकार यह एकदम भिन्न हो जाता है ।
उदाहरण के लिए रस शब्द का प्रयोग भी देख लीजिए वनस्पति शास्त्र के संदर्भ में इसका अर्थ नींबू का रस
 आम का रस
 गन्ने का रस
 होता है ।
किंतु काव्यशास्त्र के दायरे में आते ही उसका
 वीर रस 
श्रृंगार रस 
हास्य रस
 करुण रस 
इत्यादि हो जाता है ।
यही शब्द आयुर्वेद में किसी वस्तु का सार तत्व हो जाता है ।


हिंदी अथवा मानक भाषा के प्रयोजनमलक अनुप्रयोग में एक विशेष शब्द चयनऔर अर्थ पाया कि सूक्ष्म अंतर व्यक्त करने वाली रेखाओं के प्रति सरसता की उपेक्षा रहती है ।


प्रयोजनमूलक हिंदी के विविध रूपों क्षेत्रों और आयामों की संदर्भित सार्थकता की मूल दूरी की रचना प्रक्रिया है ।

यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि संरचना प्रक्रिया की तनिक सभ्यता किस प्रकार भाषिक प्रयोजन को भिन्न बना देती है जैसे 
तरणि -सूर्य 
तरणी -नौका 
शब्द समान होते हुए भी एकदम भिन्न।


 प्रयोजन क्षेत्र और संदर्भ के संवाहक स्पष्ट है कि प्रयोजनमूलक हिंदी और उसकी संरचना प्रक्रिया के संबंध से पता चलता है कि उसका प्रयोग किसी विशेष कार्य के लिए किया जाता है तथा प्रशासनिक स्तर पर विभिन्न कार्यालयों में विभिन्न प्रयोजनों के लिए होने वाला प्रयोग एक विशेष प्रकार के शब्द चयन व वाक्य विन्यास मांगता है जो पत्रकारिता प्रयोजन हेतु अपनाए गए भिन्न प्रकार के शब्दों के वाक्य विन्यास की अपेक्षा रखता है इस प्रकार के कार्य करने में हिंदी भाषा पूर्ण है।

कंप्यूटर स्वरूप और महत्व

कंप्यूटर स्वरूप और महत्व
प्रयोजनमूलक हिंदी
b.a. द्वितीय वर्ष
सेमेस्टर तृतीय
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1.
कंप्यूटर क्या है?
कंप्यूटर एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक युक्तियां मशीन है जो दिए गए निर्देश अनुसार निर्देशन समूह के आधार पर सूचनाओं को संप्रेषित करती है  ।

2.कंप्यूटर को मुख्यतः कितने भागों में बांटा जाता है
‌‌ कंप्यूटर को मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है
 हार्डवेयर
 सॉफ्टवेयर

3.हार्डवेयर किसे कहते हैं?
 कंप्यूटर और कंप्यूटर से जुड़े हुए सभी यंत्रों व उपकरणों को हार्डवेयर कहते हैं उदाहरण के लिए मॉनिटर कीबोर्ड आदि।
4.सॉफ्टवेयर किसे कहते हैं
कंप्यूटर के संचालन के लिए जिन प्रोग्रामों की आवश्यकता होती है उन्हें सॉफ्टवेयर कहते हैं।
जैसे
एम एस एक्सेल
 एम एक्सल
सॉफ्टवेयर एमएस वर्ड

5.कंप्यूटर का जन्मदाता किसे माना जाता है
कंप्यूटर का जन्मदाता चार्ल्स बैबेज को माना जाता है।

6.कंप्यूटर भाषा मुख्यता कितने भागों में बांटी जाती है
 कंप्यूटर भाषा मुख्यतः दो भागों में बांटी जाती है।
 लो लेवल लैंग्वेज
हाई लेवल लैंग्वेज
7.एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के निर्माण में किस भाषा का प्रयोग किया जाता है
एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के निर्माण में हाई लेवल की भाषा का प्रयोग किया जाता है। 

8.हाई लेवल लैंग्वेज कौन-कौन सी होती हैं
हाई लेवल languages
BASIC
COBOL
FORTRAN
ALGOL
C
PASCAL

9.कंप्यूटर का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग कौन सा होता है
या
कंप्यूटर का दिमाग किसे कहा जाता है
सीपीयू

10.बेसिक की का पूरा नाम क्या है
Beginner's all purpose symbolic instructions code

11.
कंप्यूटर के कितने प्रकार होते हैं?
कंप्यूटर के मुख्यतः तीन प्रकार होते हैं
एनालॉग कंप्यूटर
डिजिटल कंप्यूटर
हाइब्रिड कंप्यूटर
12. डिजिटल कंप्यूटर किस सिद्धांत पर आधारित है?
डिजिटल कंप्यूटर गणना प्रणाली पर आधारित होता है।



पत्र व पत्र के प्रकार

b.a. तृतीय वर्ष 
पांचवा सेमेस्टर
पत्र लेखन
प्रयोजनमूलक हिंदी
महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी।

1.पत्र किसे कहते हैं?
पत्र एक माध्यम है जो किसी व्यक्ति को अपना संदेश किसी दूसरे व्यक्ति तक लिखित रूप में पहुंचाने का कार्य करता है।

2.पत्र के कितने प्रकार होते हैं?
पत्र के दो प्रकार होते हैं।
1. औपचारिक पत्र
2. अनौपचारिक पत्र

3.पत्र भेजने वाले को क्या कहा जाता है?
   प्रेषक

4.व्यवहारिक पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं व्यापारियों मंत्रियों या संपादकों आदि को लिखे जाते हैं उन्हें व्यवहारिक पत्र कहती हैं।

5.आवेदन पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र नौकरी प्राप्त करने के लिए लिखे जाते हैं उन्हें आवेदन पत्र कहती हैं।

6.निमंत्रण पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र विवाह शादी पार्टी जन्मदिवस आदि किसी आयुर्वेद आयोजन पर किसी को भुलाने के लिए लिखे जाते हैं उसे निमंत्रण पत्र कहती हैं।

7.कार्यालय पत्र किसे कहते हैं?
जो पत्र एक कार्यालय द्वारा किसी दूसरे कार्यालय को लिखे जाते हैं उन्हें कार्यालय पत्र या ऑफिशियल लेटर कह जाती हैं।

8.कार्यालय पत्र में सबसे ऊपर क्या लिखा जाता है?
कार्यालय पत्रों में सबसे ऊपर पत्र संख्या लिखने अनिवार्य होती है।

9.कार्यालय पत्रों में पत्र संख्या क्यों लिखी जाती है?
कार्यालय पत्र पत्र संख्या अनिवार्य रूप से लिखी जाती है ताकि यह ध्यान रहे कि कौन सा पत्र क्रमांक किस तिथि को किस विभाग को भेजा गया था।
10.परिपत्र किसे कहते हैं?
यदि कोई पत्र सभी संबंधित या अधीनस्थ कार्यालयों या राज्य को प्रेषित किया जाता है उसे परिपत्र कहती हैं जैसे केंद्र सरकार द्वारा राज्यों को भेजा गया पत्र जैसे शिक्षा महानिदेशालय पंचकूला द्वारा कॉलेज को भेजा गया पत्र परिपत्र कहलाता है।

11.नियुक्ति पत्र किसे कहते हैं?
जब किसी पत्र के माध्यम से किसी की नियुक्ति की सूचना दी जाती है उसे नियुक्ति पत्र कहा जाता है उसमें भी विज्ञापन संख्या पदों की संख्या तथा नौकरी तेज से संबंधित नियमों के बारे में लिखा जाता है उसमें डेट ऑफ जॉइनिंग आदि भी बताई जाती हैं।

12=अधिसूचना किसे कहते हैं?
भारतीय सूचना पत्रों में प्रकाशित होने वाले सरकारी नियम आदेश अधिकार या नियुक्तियों के विषय में विज्ञापित समाचार को अधिसूचना कहते हैं।

13.प्रेस विज्ञप्ति किसे कहते हैं?
प्रशासन द्वारा मिली महत्वपूर्ण सूचना या बाद सूचना को आम लोगों के बीच प्रसार प्रचार हेतु उसे समाचार पत्र में प्रकाशित करवाने को ही प्रेस विज्ञप्ति कहती हैं।

14.अनुस्मारक किसे कहते हैं? 

किसी सरकारी विभाग के कार्यालय को पूर्व में भेजे किसी पत्र के संदर्भ में प्रतिउत्तर ने पानी पर उत्तर पाने के लिए जो समरण पत्र भेजा जाता है उसे अनुस्मारक कहते हैं।
15. औपचारिक व अनौपचारिक पत्रों में क्या अंतर है?
औपचारिक पत्र-
यह पत्र किसी सरकारी या गैर सरकारी अर्ध सरकारी संस्थाओं संपादकों मंत्रियों व्यापारियों आधी को लिखे जाती हैं इनमें औपचारिकताएं करनी आवश्यक होती हैं
अनौपचारिक पत्र
यह वह पत्र हैं जिनमें औपचारिकताओं की आवश्यकता नहीं होती यह अपने ही सगे संबंधियों को लेकर जाती हैं इनमें अपने दिल के तमाम भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान की जाती है पत्थर पड़ने वाला और लिखने वाला आधिकारिक रूप से आपस में भावों से परिचित होता है।

मीराबाई के पद

मीराबाई के पद व्याख्या सहित

b.a. प्रथम वर्ष 
सेमेस्टर प्रथम

आज मैं यहां मीराबाई के 4 पदों का वर्णन करूंगी।

किसी भी पद की व्याख्या करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानना अनिवार्य है।

सबसे पहले शब्दों के अर्थों में हमें ध्यान देना होता है।

इसके बाद प्रसंग लिखते हैं जो बताता है कि यह पद कहां से लिया गया है इसमें किस चीज का प्रतिपाद्य किया गया है।

इसके बाद व्याख्या की जाती है व्याख्या में पद का मूल भाव शामिल किया जाता है।

सरल शब्दों में व्याख्या होने के बाद विशेष लिखा जाता है विशेष में भी दो प्रकार होते हैं।
1.  कला पक्ष
2. भाव पक्ष
कला पक्ष में हम उसकी भाषा, उसमें कौन सा अलंकार है ?कौन सा रस है उसकी शैली कौन सी है ?किस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया गया है ?आदि 
8/7बिंदुओं के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं।
प्रमुख शब्दार्थ-
परस-स्पर्श
ज्वाला- अग्नि
सरण-आश्रय लेना
शुभग-सुंदर
प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्यपुस्तक मध्यकालीन काव्य कुंज से संकलित कृष्ण प्रेमिका मीराबाई के पद से लिया गया है। इस पद में मीराबाई प्रभु श्री कृष्ण के चरणों की वंदना करते हुए कहती है कि--
व्याख्या-हे मेरे मन तू श्री कृष्ण के चरणों का स्पर्श कर तू उसकी ही शरण का आश्रय ग्रहण कर प्रभु के चरण सुंदर कमल के समान कोमल हैं ।
यह संसार के सभी प्रकार के कष्टों को नष्ट करने वाले हैं चाहे वह दुख दैहिक ,दैविक या भौतिक ही क्यों ना हो।

 कवियत्री मीराबाई कहती है कि प्रभु के इन चरणों का स्पर्श करके प्रहलाद ने इंद्र की पदवी को ग्रहण कर लिया यही नहीं प्रभु श्री कृष्ण के इन चरणों को स्पर्श करके ध्रुव भगत को अटल बना दिया।
प्रभु श्री कृष्ण सभी शरणागत को आश्रय देतेहैं ।
प्रभु ने इन चरणों को संपूर्ण ब्रह्मांड को भेंट किया है संसार का कोई भी व्यक्ति इस संसार में आने के बाद प्रभु के चरणों का सहारा ले सकता है ।
यह चरण अपने नख शिख( सिर से लेकर पैरों तक) अत्यंत ही सो बनिए हैं। इन्हीं चरणों में कालिया नाग को ना कर गोपियों के सामने नचाया था ।
यह वही चरण है जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था और इंद्र के घरों को चूर चूर कर दिया था ।
अंत में मीराबाई कहती हैं कि मैं तो प्रभु श्री कृष्ण के चरणों की दासी हूं जो इस अगम संसार रूपी सागर को पार उतारने वाली नौका के समान है।
विशेष -
भाव पक्ष
1. कवियत्री मीराबाई ने श्री कृष्ण के चरणों की महिमा का गुणगान किया है
2. प्रहलाद और ध्रुव भगत दोनों का उदाहरण देकर समझाया है।
कला पक्ष
राजस्थानी मिश्रित ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है
तत्सम व तद्भव शब्दावली का प्रयोग हुआ है
प्रसाद वर्मा दुर्गुण सर्वत्र व्याप्त है
अनुप्रास रूपक और उदाहरण अलंकारों का प्रयोग हुआ है
शांत रस का परिपाक है
गीती शैली का प्रयोग है।
पद नंबर दो
आप सब को सूचित किया जाता है कि प्रसंग और विशेष मुख्यतः सभी में समान रहेगा।
व्याख्या-प्रस्तुत पद में मीराबाई अपने प्रभु श्री कृष्ण की वेशभूषा तथा उनके रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि बांके बिहारी श्री कृष्ण को मेरा प्रणाम है मेरा प्रणाम वह स्वीकार करें।
इनके सुंदर मस्तक पर मोर के पंखों का मुकुट विराजमान है तिलक सुशोभित हो रहा है ।कानों में कुंडल सुशोभित हो रहे है तथा सिर पर  घुंघराले बाल हैं। इनके मधुर होठों पर बांसुरी विराजमान है ।
जिस की मधुर ध्वनि ब्रज की सभी गोपियों को मोहित कर लेती हैं ।
यह गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले बंसी बजैया मोहन आपकी इसी छवि को देखकर मैं आपकी ओर आकर्षित हो गई हूं ।
गोवर्धन पर्वत को धारण करने के कारण ही श्री कृष्ण को गिरवर धारी भी कहा जाता है मेैं उन पर मोहित हो गई है यह मोह उनके प्रेम का कारण बना है।
पद नंबर 3
व्याख्या-मीराबाई कहती है कि नंद केे पुत्र  कृष्णा्ण्णा्/
श्री कृष्ण उनकी आंखों में बस गए हैं। उन भगवान श्री कृष्ण ने अपने सिर पर मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट धारण कर रखा है ।उनके कानों में मछली की आकृति के कुंडल सुशोभित हो रहे हैं तथा उनके मस्तक पर लाल रंग का तिलक  शोभा मान हो रहा है उनका रूप मन को मोहने वाला उनका शरीर सावला है आंखें बड़ी-बड़ी हैं।
 उनके अमृत रस से परिपूर्ण होठों पर मुरली विराजते हुए शोभायमान है ।
उनके हृदय पर वैजयंती माला की फुल सुशोभित हो रहे हैं ।
मीराबाई कहती है कि गोपाल ,कृष्ण ,कन्हैया भगत वत्सल हैं तथा संतों को सुख देने वाले हैं।
पद नंबर 4
व्याख्या-मीराा अपनी अपनीी सखियों संबोधित करतेेेेे हुए कहती हैं कि
यह सखी मेरी आंखों को कृष्ण की ओर देखने की आदत पड़ गई है ।श्री कृष्ण की छवि हमेशा मेरी आंखो में समाई रहती है।
 मीरा कहती है कि श्री कृष्ण की मधुर मूर्ति मेरे नैनों में बस गई हैं ।ऐसा लगता है कि मानो मेरे हृदय में उस मूर्ति की नोक इस प्रकार जड गई है कि वह किसी प्रकार से निकल नहीं सकती है।
एे सखी 
मैं न जाने कब की अपने महल में खड़ी हुई अपने प्रियतम का रास्ता र निहार रही हूं।
 उनकी प्रतीक्षा कर रही हूं मेरे प्राण तो सांवले श्री कृष्ण के में ही फंसे हुए हैं ।
वही मेरे जीवन के लिए जड़ी-बूटी के समान है ।
अंत में मीरा कहती है कि मैं गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले भगवान श्री कृष्ण के हाथों बिक चुकी हूं लेकिन लोग मेरे बारे में कहते हैं कि मैं बिगड़ गई हूं लोक लाज मैंने छोड़ दी है भाव यह है कि मैंने अपना सब कुछ प्रभु श्री कृष्ण के चरणों में न्योछावर कर दिया है लोग भले ही मुझे कहते रहे कि मैं भटक गई हूं।