बिहार राष्ट्र परिषद, पटना : स्थापना, उद्देश्य, कार्यशैली, विभाग, महत्त्व एवं हिंदी प्रचार-प्रसार में योगदान
प्रस्तावना
भूमिका
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और हिंदी नवजागरण के दौर में अनेक संस्थाएँ अस्तित्व में आईं जिन्होंने भाषा, साहित्य और संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य किया। इन्हीं संस्थाओं में बिहार राष्ट्र परिषद, पटना एक उल्लेखनीय संस्था है। इस परिषद ने बिहार ही नहीं, बल्कि पूरे हिंदी क्षेत्र में भाषा जागरण, साहित्य सृजन और राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
स्थापना
बिहार राष्ट्र परिषद की स्थापना सन् 1929 ई. में पटना में हुई। उस समय अंग्रेज़ी शासन के दबाव में भारतीय भाषाओं का ह्रास हो रहा था और शिक्षा व्यवस्था में भी अंग्रेज़ी को प्रमुखता दी जा रही थी। ऐसे वातावरण में हिंदी प्रेमियों, साहित्यकारों और शिक्षाविदों ने मिलकर परिषद का गठन किया।
इस परिषद के गठन में डॉ. शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, बाबू राधिका प्रसाद, पं. राजकुमार शर्मा, जयप्रकाश नारायण आदि प्रमुख समाजसेवियों और साहित्यकारों का सहयोग रहा। इनका उद्देश्य केवल भाषा तक सीमित नहीं था, बल्कि राष्ट्रप्रेम और जनजागरण भी उसमें निहित था।
उद्देश्य
परिषद के मूल उद्देश्य इस प्रकार थे –
1. हिंदी भाषा को शिक्षा, साहित्य और जनजीवन की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करना।
2. हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करना।
3. साहित्य, पत्रकारिता और प्रकाशन के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का प्रसार।
4. लोकभाषाओं (भोजपुरी, मगही, मैथिली आदि) और हिंदी के बीच सेतु का निर्माण।
5. ग्रामीण जनता तक शिक्षा और भाषा को पहुँचाना।
6. भारतीय संस्कृति और परंपरा का सरंक्षण
कार्यशैली
बिहार राष्ट्र परिषद की कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक और जनोन्मुखी रही। इसकी गतिविधियाँ मुख्यतः निम्न प्रकार की थीं –
साहित्यिक सम्मेलन एवं गोष्ठियाँ : परिषद समय-समय पर बड़े साहित्यिक सम्मेलन आयोजित करती थी।
प्रकाशन कार्य : पुस्तकों, पत्रिकाओं और शोध ग्रंथों का प्रकाशन परिषद का प्रमुख कार्य रहा।
शिक्षा का प्रसार : ग्रामीण इलाकों में साक्षरता अभियान और हिंदी शिक्षण केंद्रों की स्थापना।
जनसंपर्क और आंदोलन : परिषद जनता को जोड़ने के लिए रैलियों, सभाओं और विचार-विनिमय का आयोजन करती थी।
विभिन्न विभाग
1. शिक्षा विभाग – विद्यालयों और महाविद्यालयों में हिंदी शिक्षण को बढ़ावा।
2. प्रकाशन विभाग – हिंदी साहित्य की पुस्तकों और पत्रिकाओं का प्रकाशन।
3. सांस्कृतिक विभाग – नाट्य मंचन, कवि सम्मेलन और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
4. अनुसंधान विभाग – हिंदी भाषा व साहित्य पर शोध को प्रोत्साहन।
5. प्रचार विभाग – हिंदी को गाँव-गाँव तक पहुँचाने का कार्य।
महत्त्व
बिहार राष्ट्र परिषद का हिंदी और राष्ट्रीय आंदोलन में विशेष महत्त्व रहा –
1. राष्ट्रीय एकता का माध्यम – परिषद ने हिंदी को राष्ट्र की संपर्क भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में योगदान दिया।
2. जनजागरण की धुरी – स्वतंत्रता आंदोलन के समय हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के जरिए जनता को संगठित किया गया।
3. भाषिक चेतना – क्षेत्रीय बोलियों और हिंदी के बीच पुल बनाकर एक व्यापक भाषिक चेतना का विकास किया।
4. साहित्यिक मंच – साहित्यकारों, कवियों और पत्रकारों के लिए यह संस्था प्रेरणास्रोत बनी।
5. शैक्षिक सुधार – बिहार के शिक्षा संस्थानों में हिंदी के प्रवेश और विकास में परिषद की सक्रिय भूमिका रही।
प्रमुख व्यक्तित्व एवं उनका योगदान
बिहार राष्ट्र परिषद से अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व जुड़े, जिन्होंने अपने-अपने ढंग से हिंदी प्रचार-प्रसार में योगदान दिया –
डॉ. शिवपूजन सहाय – साहित्यकार एवं पत्रकार के रूप में परिषद की गतिविधियों को दिशा दी।
रामवृक्ष बेनीपुरी – क्रांतिकारी विचारक और लेखक, जिन्होंने परिषद को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा।
जयप्रकाश नारायण – सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता, जिनकी प्रेरणा से परिषद ने समाज सुधार और राष्ट्रीय आंदोलन को बल दिया।
राधिका प्रसाद – परिषद की संगठनात्मक गतिविधियों को संचालित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अन्य हिंदी सेवक – अनेक शिक्षाविदों, साहित्यकारों और स्वतंत्रता सेनानियों ने परिषद से जुड़कर हिंदी को लोकप्रिय बनाया।
हिंदी प्रचार-प्रसार में योगदान
1. राष्ट्रभाषा आंदोलन : परिषद ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के आंदोलन में सक्रिय भाग लिया।
2. पत्र-पत्रिका प्रकाशन : हिंदी की कई पत्रिकाएँ प्रकाशित की गईं, जिनसे राष्ट्रीय चेतना फैली।
3. ग्रामीण जागरण : हिंदी को गाँव-गाँव पहुँचाकर साक्षरता और सामाजिक चेतना को प्रोत्साहन।
4. सांस्कृतिक कार्यक्रम : हिंदी नाटक, कवि सम्मेलन और लोकगीतों से भाषा के प्रति आकर्षण बढ़ा।
5. शैक्षिक प्रभाव : बिहार की शिक्षा नीति में हिंदी को प्रमुखता दिलाने में सहयोग।
6. भाषिक समन्वय : भोजपुरी, मैथिली, मगही आदि भाषाओं को हिंदी से जोड़कर एकता की भावना विकसित की।
निष्कर्ष
बिहार राष्ट्र परिषद, पटना हिंदी नवजागरण और राष्ट्र निर्माण की ऐतिहासिक संस्था रही है। इसने हिंदी भाषा को साहित्य, शिक्षा और समाज की धुरी बनाया तथा स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाषा के माध्यम से योगदान दिया। डॉ. शिवपूजन सहाय, बेनीपुरी और जयप्रकाश नारायण जैसे व्यक्तित्वों के सहयोग से यह संस्था न केवल बिहार बल्कि पूरे हिंदी जगत में स्मरणीय बन गई।
आज भी जब हिंदी विश्व स्तर पर पहचान बना रही है, तो बिहार राष्ट्र परिषद का योगदान प्रेरणा का स्रोत है। यह संस्था हिंदी के प्रचार-प्रसार और राष्ट्रीय एकता की सशक्त धरोहर है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें