5955758281021487 Hindi sahitya : नागार्जुन का साहित्यिक परिचय , बाल में बांका कर सका और मनुष्य हूं ।कविताओं का सारांश

शनिवार, 30 अगस्त 2025

नागार्जुन का साहित्यिक परिचय , बाल में बांका कर सका और मनुष्य हूं ।कविताओं का सारांश

कवि नागार्जुन का जीवन परिचय एवं साहित्यिक योगदान, उनकी कविताओं ‘बाल न बाँका कर सके’ और ‘मनुष्य हूँ’ का सार-समीक्षा एवं प्रतिपाद्य

कवि नागार्जुन का जीवन परिचय

नागार्जुन हिंदी साहित्य के ऐसे कवि हैं, जिनका साहित्य जीवन और समाज के यथार्थ से गहरे स्तर पर जुड़ा हुआ है। उनका वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। वे 30 जून, 1911 को बिहार राज्य के दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में जन्मे थे। ग्रामीण परिवेश में जन्म लेने के कारण उनकी दृष्टि प्रारंभ से ही किसान और श्रमिक वर्ग की समस्याओं की ओर आकृष्ट हुई।

नागार्जुन ने संस्कृत, पाली, प्राकृत और बौद्ध दर्शन का गहन अध्ययन किया। उन्होंने आरंभिक शिक्षा गाँव में ही पाई, तत्पश्चात वाराणसी और कोलकाता में उच्च शिक्षा प्राप्त की। बौद्ध धर्म के प्रति उनकी विशेष रुचि रही और उन्होंने “नागार्जुन” नाम एक बौद्ध दार्शनिक से प्रेरणा लेकर धारण किया।

उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा। वे कभी अध्यापक बने, तो कभी भिक्षु बनकर बौद्ध साधना में लीन हुए। लंबे समय तक वे जन आंदोलनों और किसान संघर्षों से जुड़े रहे। स्वतंत्रता आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भाग लिया और कई बार जेल गए। उन्हें “जनकवि” के रूप में जाना जाता है क्योंकि उनकी कविताओं में जनता की वेदना, उसकी आवाज़ और उसकी जिजीविषा प्रतिध्वनित होती है।

साहित्यिक परिचय

नागार्जुन का साहित्य अत्यंत व्यापक और बहुआयामी है। वे केवल कवि ही नहीं, बल्कि उपन्यासकार, कथाकार, संस्मरणकार और पत्रकार भी थे। उन्होंने मैथिली, हिंदी और संस्कृत तीनों भाषाओं में लेखन किया।

उनकी कविता का मूल स्वर सामाजिक सरोकार और जनजीवन की यथार्थपरक अभिव्यक्ति है। उनकी कविताओं में किसान, मजदूर, स्त्रियाँ, बच्चे, शोषित और वंचित वर्ग प्रमुखता से आते हैं। वे कभी विद्रोही स्वर में अन्याय का प्रतिकार करते हैं, तो कभी करुणा और संवेदना से भरकर जनजीवन की पीड़ा को स्वर देते हैं।

मुख्य काव्य-संग्रह –

युगधारा

हज़ार-हज़ार बाँहों वाली

पत्रहीन नग्न गाछ

सच कितना सच

तल से उठती आवाज़

अरण्य

आग के और पास

मुख्य उपन्यास –

बलचनमा

रतिनाथ की चाची

नौकर की कमीज़

वरुण के बेटे

विशेषता – नागार्जुन ने भाषा को सरल, सहज और बोलचाल का रूप दिया। वे शास्त्रीय संस्कारों से संपन्न थे, परंतु उनकी कविताओं की भाषा आम जनता की जुबान थी। यही कारण है कि उन्हें “जनकवि नागार्जुन” कहा जाता है।


बाल न बाँका कर सके’ कविता का सारांश

यह कविता नागार्जुन की प्रसिद्ध रचना है जिसमें स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अंग्रेज़ी साम्राज्यवाद के विरुद्ध जनता की अदम्य आस्था और संकल्प की अभिव्यक्ति है। कवि कहता है कि अंग्रेजी शासन ने लाख अत्याचार किए, गोलियाँ चलाईं, जेलों में ठूँसा, परंतु जनता के संकल्प का बाल तक बाँका नहीं कर सके।

कविता में जनता की अपराजेय शक्ति का चित्रण है। कवि कहता है – जब जनता अन्याय के विरुद्ध उठ खड़ी होती है, तो सबसे बड़े साम्राज्य भी टिक नहीं सकते। स्वतंत्रता के संघर्ष में किसान, मजदूर, स्त्री, बच्चे सभी ने भाग लिया और असह्य यातनाएँ झेलीं, परंतु उन्होंने अपने संकल्प को नहीं छोड़ा।

यह कविता जनता की सामूहिक शक्ति और क्रांतिकारी चेतना का उद्घोष है।

‘बाल न बाँका कर सके’ का उद्देश्य / प्रतिपाद्य

1. अंग्रेज़ी शासन की क्रूरता और अत्याचारों को उजागर करना।

2. जनता की अडिग आस्था और संघर्षशीलता का चित्रण।

3. यह दिखाना कि जनशक्ति के सामने बड़े से बड़ा शोषक टिक नहीं सकता।

4. स्वतंत्रता आंदोलन की प्रेरक भावना को जन-जन तक पहुँचाना।

5. पाठकों में साहस, जिजीविषा और देशभक्ति का संचार करना।

मनुष्य हूँ’ कविता का सारांश

यह कविता नागार्जुन की मानवीय संवेदनाओं का उद्घोष है। कवि स्वयं को मनुष्य के रूप में प्रस्तुत करता है और कहता है कि “मैं सबसे पहले मनुष्य हूँ”। मनुष्य होने के कारण वह दूसरों के दुःख-दर्द से जुड़ता है, अन्याय का विरोध करता है और हर प्रकार के शोषण के खिलाफ खड़ा होता है।

कविता में मनुष्यत्व की सर्वोच्चता का संदेश है। कवि कहता है – मैं जाति, धर्म, संप्रदाय, वर्ण या वर्ग से ऊपर उठकर सोचता हूँ क्योंकि मूल पहचान ‘मनुष्य’ होना है। इस दृष्टि से यह कविता मानवतावाद की घोषणा है।


मनुष्य हूँ’ का उद्देश्य / प्रतिपाद्य

1. मनुष्यत्व को सभी पहचान से ऊपर रखना।

2. समाज में समानता, भाईचारे और प्रेम का संदेश देना।

3. जातिगत, धार्मिक और वर्गीय विभाजन के विरुद्ध चेतना फैलाना।

4. यह दिखाना कि मनुष्य होने के कारण हमें दूसरों के सुख-दुःख से जुड़ना चाहिए।

5. मानवता के मूल्य ही जीवन का सच्चा धर्म हैं।

निष्कर्ष

नागार्जुन हिंदी साहित्य के ऐसे कवि हैं जिन्होंने साहित्य को जन-संघर्ष और समाज की वास्तविकताओं से जोड़ा। उनका जीवन साधना और संघर्ष का अद्भुत संगम है। ‘बाल न बाँका कर सके’ कविता जनता की अपराजेय शक्ति का घोष है, जबकि ‘मनुष्य हूँ’ कविता मानवतावादी दृष्टिकोण की घोषणा। दोनों कविताएँ मिलकर यह सिद्ध करती हैं कि नागार्जुन केवल कवि ही नहीं, बल्कि जन-आंदोलनों के प्रवक्ता, समाज के चेतनाशील प्रहरी और मानवता के सच्चे साधक थे।

इस प्रकार, उनका साहित्य स्वतंत्रता आंदोलन की स्मृति को भी जीवित करता है और साथ ही आज भी सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय मूल्यों के लिए संघर्षरत लोगों को प्रेरित करता है।


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