प्रस्तावना
बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक और इक्कीसवीं शताब्दी की शुरुआत में दुनिया ने जिस परिवर्तन को देखा, उसे हम भूमंडलीकरण (Globalization) कहते हैं। यह केवल आर्थिक अवधारणा न रहकर सांस्कृतिक, राजनीतिक और साहित्यिक स्तर तक फैली हुई प्रक्रिया है। भूमंडलीकरण ने मनुष्य की जीवनशैली, विचारधारा, भाषा और साहित्य को भी गहराई से प्रभावित किया है।
हिंदी साहित्य, जो समाज का दर्पण माना जाता है, इस वैश्विक परिघटना से अछूता नहीं रहा। आधुनिक हिंदी कथा-साहित्य, कविता, निबंध और उपन्यासों में भूमंडलीकरण की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
भूमंडलीकरण की संकल्पना
भूमंडलीकरण का अर्थ है – दुनिया को एक वैश्विक गाँव के रूप में देखना, जहाँ पूँजी, तकनीक, संस्कृति और विचारों का आदान-प्रदान निर्बाध रूप से हो।
यह आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और मुक्त व्यापार की नीतियों के साथ जुड़ा है।
साथ ही यह मीडिया, संचार क्रांति, उपभोक्तावाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी प्रोत्साहित करता है।
साहित्य में भूमंडलीकरण का अर्थ है – उन परिवर्तनों का चित्रण जो इस नई व्यवस्था के चलते समाज और व्यक्ति के जीवन में आए हैं।
1. हिंदी कहानियों में भूमंडलीकरण
हिंदी कहानी सदैव समाज की छोटी-छोटी घटनाओं और संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती रही है। भूमंडलीकरण ने कहानीकारों को नए विषय दिए—
आर्थिक असमानता और बेरोजगारी
निजीकरण और मजदूरों का शोषण
पारिवारिक संबंधों का विघटन
गाँव से शहर की ओर पलायन
मीडिया और उपभोक्तावाद का दबाव
उदाहरण:
उदय प्रकाश की कहानियाँ भूमंडलीकरण के यथार्थ को बेबाकी से सामने लाती हैं। उनकी कहानियों ‘मोहनदास’, ‘हीरामन’ या ‘तिरिछ’ में सामाजिक विसंगतियों और नई आर्थिक नीतियों से पैदा हुए संकटों का चित्रण मिलता है।
संजय खाती, अखिलेश, असग़र वजाहत, संजीव जैसे कहानीकारों ने भूमंडलीकरण के दौर में आम आदमी की पीड़ा और असमानता को मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है।
इस प्रकार हिंदी कहानी भूमंडलीकरण के बाद बदले समाज की सच्चाइयों को प्रामाणिक रूप से अभिव्यक्त करती है
2. हिंदी निबंधों में भूमंडलीकरण
हिंदी निबंध साहित्य में भूमंडलीकरण पर वैचारिक और आलोचनात्मक दृष्टि मिलती है। निबंधकारों ने इसके लाभ और हानि दोनों पर चर्चा की है।
लाभ यह कि दुनिया की नई जानकारियाँ और तकनीकी सुविधाएँ सभी तक पहुँच रही हैं।
हानि यह कि सांस्कृतिक पहचान और भाषाई विविधता खतरे में पड़ रही है।
रामचंद्र शुक्ल की आलोचनात्मक परंपरा से लेकर समकालीन निबंधकारों तक यह चिंता दिखाई देती है कि भूमंडलीकरण कहीं ‘संस्कृति के उपनिवेशवाद’ का नया रूप न बन जाए।
समकालीन निबंधों में भाषा-बाजार, साहित्य का विपणन, और हिंदी की स्थिति पर गंभीर बहस हुई है।
3. हिंदी उपन्यासों में भूमंडलीकरण
उपन्यास जीवन का व्यापक चित्र प्रस्तुत करता है, इसलिए भूमंडलीकरण का सबसे गहरा प्रभाव उपन्यासों में दिखाई देता है।
अशोक वाजपेयी, राही मासूम रज़ा, नीलाभ अश्क, संजीव आदि उपन्यासकारों ने बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को चित्रित किया।
‘मोहनदास’ (उदय प्रकाश) उपन्यास न केवल भूमंडलीकरण के बाद आम आदमी की पहचान संकट को सामने लाता है बल्कि यह भी दिखाता है कि नई व्यवस्था में न्याय प्राप्त करना कितना कठिन है।
मन्नू भंडारी और कृष्णा सोबती के उपन्यासों में भी उपभोक्तावाद, नारी की बदलती भूमिका और वैश्विक जीवनशैली का असर मिलता है।
भूमंडलीकरण ने उपन्यासकारों को यह सोचने के लिए मजबूर किया कि अब गाँव और शहर का अंतर मिट रहा है, लेकिन इसके साथ ही गरीबी, विस्थापन और हाशियाकरण जैसी समस्याएँ और गहराई से सामने आ रही हैं।
4. हिंदी कविताओं में भूमंडलीकरण
कविता मानवीय संवेदनाओं की सबसे तीव्र अभिव्यक्ति है। भूमंडलीकरण के बाद हिंदी कविता में—
बाजारवाद और उपभोक्तावाद की आलोचना
मानव संबंधों की कृत्रिमता
प्रकृति का दोहन और पर्यावरण संकट
नारी की नयी भूमिका
जैसे विषय प्रमुखता से आए।
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कुमार विकल, ज्ञानेंद्रपति, राजेश जोशी, आलोकधन्वा जैसे कवियों ने भूमंडलीकरण के दौर में बदलते जीवन का चित्रण किया।
राजेश जोशी की कविता “मार्केट जा रहा है कवि” भूमंडलीकरण और बाजार संस्कृति पर तीखा व्यंग्य करती है।
कई कविताओं में यह चिंता व्यक्त की गई है कि भूमंडलीकरण मनुष्य को उपभोक्ता मात्र बना रहा है, उसकी संवेदनशीलता को नष्ट कर रहा है।
भूमंडलीकरण और भाषा/हिंदी का संकट
भूमंडलीकरण के चलते अंग्रेज़ी और विदेशी भाषाओं का प्रभुत्व बढ़ा है। हिंदी के सामने यह चुनौती है कि वह अपने पाठक और सृजन-क्षेत्र को बनाए रखे।
इंटरनेट और डिजिटल युग में हिंदी ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है, लेकिन बाजार-आधारित भाषा-नीति अब भी हिंदी के लिए चुनौती बनी हुई है।
भूमंडलीकरण के सकारात्मक पक्ष
विश्व साहित्य से जुड़ने का अवसर
नई तकनीक के कारण हिंदी साहित्य का वैश्विक प्रसार
विषय-विस्तार और शैलियों की विविधता
प्रवासी भारतीयों द्वारा हिंदी लेखन में बढ़ोतरी
भूमंडलीकरण के नकारात्मक पक्ष
साहित्य का वस्तुकरण (Commodification)
बाजार की माँग के अनुसार लेखन का दबाव
लोकभाषाओं और बोलियों की उपेक्षा
संवेदनाओं और मानवीय मूल्यों का ह्रास
उपसंहार
भूमंडलीकरण ने हिंदी साहित्य को नई दृष्टि और नए विषय प्रदान किए हैं। कहानी, निबंध, उपन्यास और कविता—सभी विधाओं में इसका प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
किंतु यह प्रभाव द्वंद्वात्मक है—एक ओर अवसर और दूसरी ओर संकट। साहित्यकारों की जिम्मेदारी है कि वे इस वैश्विक युग में मानवीय मूल्यों, सांस्कृतिक अस्मिता और भाषाई विविधता को सुरक्षित रखें।
इस प्रकार हिंदी साहित्य भूमंडलीकरण के दौर में भी अपनी पहचान और प्रासंगिकता को बनाए रखने की क्षमता रखता है।
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