प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य
प्रस्तावना
हिंदी कथा साहित्य का इतिहास भारतीय समाज, संस्कृति और समय की धड़कनों से गहराई से जुड़ा हुआ है। विशेषकर बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हिंदी कहानी और उपन्यास ने जिस यथार्थपरक, जनोन्मुख और समाजधर्मी स्वरूप को धारण किया, उसका सर्वाधिक श्रेय मुंशी प्रेमचंद और उनके युगीन रचनाकारों को जाता है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय ग्रामीण जीवन, शोषण, गरीबी, जातिगत विषमता, स्त्री की दयनीय दशा, किसान और मजदूर की व्यथा, सामाजिक विषमता और राजनीतिक चेतना को स्वर दिया। इसलिए 1918 से 1936 (प्रेमचंद के जीवनकाल तक) का कालखंड ‘प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य’ के नाम से विख्यात हुआ।
कथा साहित्य की पृष्ठभूमि
प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य को समझने के लिए उस समय की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों की ओर देखना आवश्यक है—
1. स्वतंत्रता संग्राम की चेतना : बीसवीं सदी के प्रारंभ में भारतीय समाज स्वतंत्रता आंदोलन की लहर में डूबा था। राष्ट्रीयता, त्याग और बलिदान की भावना उभर रही थी।
2. औपनिवेशिक शोषण : अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों से किसान और मजदूर वर्ग बदहाल थे। लगान, कर्ज, महाजन और जमींदारी शोषण से समाज त्रस्त था।
3. सामाजिक सुधार आंदोलन : स्त्री शिक्षा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, जातिवाद और अस्पृश्यता के विरुद्ध सुधारवादी विचार फैल रहे थे।
4. नवजागरण का प्रभाव : हिंदी साहित्य में यथार्थवादी दृष्टि, वैज्ञानिक चेतना और प्रगतिशील सोच का विकास हो रहा था।
इन परिस्थितियों ने कथा साहित्य को सामाजिक यथार्थ से जोड़ने का मार्ग प्रशस्त किया, और प्रेमचंद इसके प्रमुख शिल्पी बने।
प्रेमचंद युग की कथा परंपरा
प्रेमचंद से पूर्व हिंदी कथा साहित्य (विशेषतः उपन्यास और कहानी) रोमांटिक, कल्पनाश्रित और मनोरंजन प्रधान था। देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता या लाला श्रीनिवास दास की परीक्षा गुरु में सामाजिक यथार्थ की अपेक्षा रोमांच और शिक्षाप्रद प्रवृत्ति अधिक थी।
प्रेमचंद ने इस धारा को बदलते हुए कथा साहित्य को जीवन की जमीन से जोड़ा। उन्होंने साहित्य को ‘समाज का दर्पण’ माना और कथा साहित्य को आमजन की वेदना व संघर्ष का दस्तावेज़ बना दिया।
प्रेमचंद का कथा साहित्य
प्रेमचंद की कथा यात्रा को तीन रूपों में देखा जा सकता है—
(क) उपन्यास
प्रेमचंद के उपन्यास हिंदी साहित्य की धरोहर हैं। उनके उपन्यासों में किसानों की दुर्दशा, स्त्रियों का शोषण, दलित पीड़ा, मध्यवर्ग की विडंबना, राष्ट्रीयता और सामाजिक सुधार के स्वर स्पष्ट मिलते हैं।
सेवासदन (1919) : स्त्री-जीवन की त्रासदी और वेश्यावृत्ति की समस्या।
प्रेमाश्रम (1922) : किसान समस्या और वर्ग संघर्ष।
निर्मला (1927) : दहेज प्रथा और स्त्री शोषण।
गोदान (1936) : किसानों का महाकाव्य, जिसमें होरी और धनिया भारतीय ग्रामीण जीवन के प्रतीक बनते हैं।
रंगभूमि, कर्मभूमि, कायाकल्प, गबन आदि उपन्यासों में भी राष्ट्रीयता, शोषण और सामाजिक यथार्थ अंकित है।
(ख) कहानियाँ
प्रेमचंद हिंदी कहानी के पथ-प्रदर्शक माने जाते हैं।
प्रारंभिक कहानियों (जैसे सप्तसरोज, नवनीत) में नैतिकता और आदर्शवाद झलकता है।
बाद की कहानियों (जैसे पूस की रात, कफन, ठाकुर का कुआँ, ईदगाह, नशा, बड़े घर की बेटी) में ग्रामीण जीवन, शोषण और मानवता की गहरी संवेदना प्रकट होती है।
उन्होंने कहानी को केवल मनोरंजन से निकालकर समाज की समस्याओं का दर्पण बना दिया।
(ग) प्रेमचंद की कथा दृष्टि
1. यथार्थवादी चित्रण
2. किसानों, मजदूरों और शोषित वर्ग की पीड़ा
3. स्त्री चेतना और दहेज-प्रथा की आलोचना
4. राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता आंदोलन का प्रभाव
5. नैतिकता, मानवता और सामाजिक न्याय की खोज
अन्य रचनाकार और प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य
प्रेमचंद के समय में और भी कथा साहित्यकार सक्रिय थे, जिन्होंने यथार्थवादी दृष्टि से समाज को चित्रित किया—
जयशंकर प्रसाद : यद्यपि वे अधिकतर नाटककार और कवि रहे, किंतु उनकी कहानियों (आकाशदीप, इंद्रजाल) में मानवीय संवेदना स्पष्ट है।
उदयनारायण तिवारी, यशपाल : यशपाल ने बाद में प्रगतिवादी धारा को मजबूत किया।
प्रेमचंदोत्तर कथाकार : जैसे अज्ञेय, भगवतीचरण वर्मा आदि ने यथार्थ और प्रयोगशीलता दोनों को आगे बढ़ाया।
विशेषताएँ
प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं—
1. यथार्थवाद का उदय : किसानों, मजदूरों और स्त्रियों का यथार्थ चित्रण।
2. सामाजिक सरोकार : साहित्य समाज की समस्याओं से सीधा जुड़ा।
3. मानवता का स्वर : जाति, धर्म, वर्ग से ऊपर उठकर मनुष्य को केंद्र में रखा गया।
4. राष्ट्रीय चेतना : स्वतंत्रता संग्राम की गूंज साहित्य में स्पष्ट है।
5. भाषा की सरलता : खड़ी बोली हिंदी का सहज, संवादात्मक रूप।
6. चरित्र-चित्रण की सजीवता : पात्र जीवन्त और वास्तविक लगते हैं।
सीमाएँ
प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य की कुछ सीमाएँ भी रही—
कभी-कभी अत्यधिक आदर्शवाद।
स्त्री पात्रों के चित्रण में कहीं-कहीं दयनीयता की अधिकता।
साहित्य में मनोरंजन का पक्ष अपेक्षाकृत कम।
प्रभाव और महत्व
1. प्रेमचंद ने कथा साहित्य को भारतीय समाज की आत्मा से जोड़ा।
2. उन्होंने किसानों और मजदूरों को पहली बार साहित्य का नायक बनाया।
3. हिंदी कथा साहित्य को विश्व साहित्य में यथार्थवादी परंपरा से जोड़ा।
4. उनके प्रभाव से प्रगतिवादी और यथार्थवादी धारा का जन्म हुआ।
5. आज भी हिंदी कथा साहित्य की धारा प्रेमचंद की नींव पर टिकी है।
उपसंहार
प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य हिंदी साहित्य का वह अध्याय है जिसने साहित्य को जीवन का आईना बना दिया। प्रेमचंद और उनके समकालीन लेखकों ने यह सिद्ध कर दिया कि साहित्य का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शन भी है। आज जब हम प्रेमचंद की कहानियों या उपन्यासों को पढ़ते हैं तो लगता है मानो यह हमारे ही समय का जीवंत दस्तावेज हो। किसानों का शोषण, स्त्रियों की पीड़ा, जातिगत विषमता, आर्थिक संघर्ष—ये सब समस्याएँ आज भी समाज में मौजूद हैं। इस दृष्टि से प्रेमचंद युगीन कथा साहित्य न केवल ऐतिहासिक महत्त्व रखता है, बल्कि आज भी हमारी चेतना को झकझोरता है।
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