5955758281021487 Hindi sahitya : छायावादोत्तर कविता की परिभाषा स्वरूप विशेषताएं कवि और कविता

मंगलवार, 9 सितंबर 2025

छायावादोत्तर कविता की परिभाषा स्वरूप विशेषताएं कवि और कविता

छायावादोत्तर काव्य : परिभाषा, विशेषताएँ, कवि एवं कृतियाँ
1. भूमिका

हिंदी साहित्य के इतिहास में छायावाद (1918–1936) का काल सबसे भावुक, स्वप्निल और रोमांटिक प्रवृत्तियों से युक्त माना गया है। जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, महादेवी वर्मा और सुमित्रानंदन पंत इस धारा के मुख्य स्तंभ थे। किंतु समय के साथ जीवन की जटिल समस्याएँ, सामाजिक यथार्थ, राष्ट्रीय संघर्ष और बदलते जीवन-मूल्य कविता में प्रतिबिंबित होने लगे। इस प्रकार छायावाद की कोमल भावुकता और कल्पना के स्थान पर यथार्थवादी, प्रगतिवादी, प्रयोगवादी और नई कविता की धाराएँ आईं। इन्हीं सभी काव्य प्रवृत्तियों को संयुक्त रूप से छायावादोत्तर काव्य कहा जाता है।

2. परिभाषा

डॉ. नगेंद्र के अनुसार –
“छायावादोत्तर काल का काव्य वस्तुतः जीवन की वास्तविकताओं से मुठभेड़ करने वाला काव्य है। इसमें रोमानी कल्पनाओं के स्थान पर यथार्थ, संघर्ष और जीवन की कड़वी सच्चाइयों का चित्रण हुआ है।”

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के उत्तरवर्ती आलोचकों ने इसे इस प्रकार परिभाषित किया है –
“यह वह काव्य है जो छायावादी स्वप्निलता को पीछे छोड़कर सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक वास्तविकताओं को स्वर देता है।”

अर्थात, छायावादोत्तर काव्य हिंदी काव्य का वह काल है जिसमें यथार्थवाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता आदि धाराएँ विकसित हुईं और कवियों ने जीवन, समाज और राष्ट्र को केंद्र में रखकर सृजन किया।

3. प्रमुख विशेषताएँ

छायावादोत्तर काव्य की निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं –

1. यथार्थवाद का चित्रण –
कवियों ने सामाजिक विषमताओं, गरीबी, शोषण, भूख, बेरोजगारी, वर्ग-संघर्ष और आम आदमी की पीड़ा को प्रमुख विषय बनाया।

2. सामाजिक और राजनीतिक चेतना –
भारत की स्वतंत्रता संग्राम, साम्राज्यवाद-विरोध और लोकतांत्रिक चेतना का गहरा प्रभाव इस काव्यधारा पर पड़ा।

3. प्रगतिशीलता –
मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित होकर कई कवियों ने शोषित वर्ग की आवाज बुलंद की और वर्गहीन समाज की कल्पना की।

4. प्रयोगशीलता –
भाषा, शैली और बिंबों में नए-नए प्रयोग किए गए। छंदबद्धता की जगह मुक्तछंद और गद्यात्मक कविता को महत्व मिला।

5. नई कविता का उद्भव –
स्वतंत्रता के बाद के वातावरण में कवियों ने व्यक्ति के अकेलेपन, अस्तित्व-संकट और मानसिक द्वंद्व को कविता का केंद्र बनाया।

6. भाषा-शैली में विविधता –
कहीं खड़ी बोली का सहज प्रयोग है, कहीं उर्दू-फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग, तो कहीं बोलचाल की लोकभाषा का मिश्रण।

7. जीवनानुभव की प्रधानता –
कल्पना की उड़ान की अपेक्षा व्यक्तिगत और सामाजिक अनुभवों को स्वर दिया गया।

8. नवीन प्रतीक एवं बिंब –
आधुनिक जीवन की जटिलताओं को व्यक्त करने हेतु नये प्रतीक, मिथक और संकेतों का प्रयोग हुआ

4. प्रमुख प्रवृत्तियाँ एवं काव्यधाराएँ

छायावादोत्तर काव्य को मोटे तौर पर चार प्रवृत्तियों में विभाजित किया जा सकता है –

1. प्रगतिवाद – समाजवादी दृष्टि, यथार्थवाद, शोषित वर्ग की चिंता (कवि: नागार्जुन, त्रिलोचन, गजानन माधव मुक्तिबोध, रामधारी सिंह ‘दिनकर’)

2. प्रयोगवाद – भाषा और अभिव्यक्ति में नवीन प्रयोग (कवि: अज्ञेय, शमशेर बहादुर सिंह, गिरिजाकुमार माथुर)

3. नई कविता – स्वतंत्रता के बाद का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण, अस्तित्ववादी संकट (कवि: अज्ञेय, केदारनाथ सिंह, रघुवीर सहाय)

4. जनवादी कविता – आम जनता की पीड़ा, संघर्ष और जनांदोलन (कवि: नागार्जुन, शमशेर, धूमिल)

5. प्रमुख कवि एवं उनकी कविताएँ

अब हम छायावादोत्तर काव्य के कुछ प्रमुख कवियों और उनकी दो-दो कविताओं का संक्षिप्त विश्लेषण करेंगे।

(क) रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (1908–1974)

दिनकर जी प्रगतिवादी और राष्ट्रवादी चेतना के कवि थे। उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह और समाज परिवर्तन की पुकार गूंजती है।

1. कविता – ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’

यह पंक्तियाँ उनकी प्रसिद्ध रचना ‘हुंकार’ से हैं।

इसमें जनता की शक्ति, क्रांति और शोषण-विरोध की भावना व्यक्त हुई है।

दिनकर ने स्पष्ट कहा कि अब राजाओं-महाराजाओं का युग समाप्त हो चुका है, अब जनता की सत्ता स्थापित होगी।

2. कविता – ‘रश्मिरथी’ (कर्ण का संवाद)

‘रश्मिरथी’ महाकाव्य में कर्ण का संघर्ष, पीड़ा और गौरवगान मिलता है।

इसमें शोषित, वंचित और अपमानित व्यक्ति की व्यथा के साथ-साथ उसकी आत्मगौरव की चेतना झलकती है।

यह कविता सामाजिक विषमता और मानवीय गरिमा का अद्भुत उदाहरण है।
(ख) अज्ञेय (1911–1987)

प्रयोगवाद और नई कविता के प्रणेता अज्ञेय की कविताएँ आत्मान्वेषण, अस्तित्व की खोज और संवेदनशील प्रयोगों से भरी हैं।

1. कविता – ‘नदी के द्वीप’

इसमें जीवन की निरंतरता, बहाव और अस्तित्व की जटिलता का चित्रण है।

नदी जीवन का प्रतीक है और द्वीप व्यक्ति की सीमाओं का।

यहाँ अज्ञेय की गहन प्रतीकात्मक शैली झलकती है।

2. कविता – ‘हरी घास पर क्षणभर’

यह कविता क्षणभंगुरता और जीवन की अल्पता का बोध कराती है।

अज्ञेय यहाँ जीवन की नश्वरता और सुंदर क्षणों की महत्ता पर प्रकाश डालते हैं।

(ग) नागार्जुन (1911–1998)

जनवादी चेतना के कवि नागार्जुन सीधे-सीधे जनता की पीड़ा, संघर्ष और विद्रोह के स्वर को अपनी कविताओं में व्यक्त करते हैं।

1. कविता – ‘अकाल और उसके बाद’

इसमें अकालग्रस्त जनता की दयनीय स्थिति का यथार्थ चित्रण है।

भूख और गरीबी से जूझते किसानों के जीवन की मार्मिकता को कवि ने सशक्त शब्दों में व्यक्त किया है।

2. कविता – ‘मैं भी आदमी हूँ’

इसमें साधारण व्यक्ति के अस्तित्व, उसकी पीड़ा और संघर्ष को सामने रखा गया है।

कवि ने आम आदमी की गरिमा और उसकी उपेक्षा दोनों को उजागर किया।

(घ) गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ (1917–1964)

मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी कविता के सबसे जटिल और गहन कवि माने जाते हैं। वे अस्तित्ववाद, समाजवाद और आत्मसंघर्ष के कवि हैं।

1. कविता – ‘अंधेरे में’

यह लंबी कविता उनकी प्रतिनिधि कृति है।

इसमें आधुनिक समाज के अंधकार, व्यक्ति की असहायता और बौद्धिक वर्ग की द्वंद्वात्मक स्थिति का चित्रण है।

मुक्तिबोध ने गहरे प्रतीकों और बिंबों के माध्यम से सामाजिक विघटन को उभारा है।

2. कविता – ‘भूतों का देस’

इस कविता में भ्रष्ट राजनीति, शोषण और अन्याय पर तीखा व्यंग्य है।

कवि ने समाज की भयावह सच्चाइयों को उजागर किया।

(ङ) शमशेर बहादुर सिंह (1911–1993)

वे प्रयोगवादी और प्रगतिवादी प्रवृत्तियों के संगम कवि थे। उनकी भाषा में चित्रात्मकता और संवेदनशीलता प्रमुख है।

1. कविता – ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’

इसमें राजनीतिक विडंबना और सामाजिक विसंगतियों का प्रतीकात्मक चित्रण है।

कवि ने व्यंग्य और प्रतीक के माध्यम से व्यवस्था की सच्चाई सामने रखी।

2. कविता – ‘कुछ कविताएँ’ (प्रेम कविताएँ)

इन कविताओं में मानवीय संबंधों की नाजुक संवेदनाएँ और आधुनिक जीवन की उदासी झलकती है।

उनकी कविताओं में चित्रकार की सी दृष्टि और बिंब विधान मिलता है।


6. निष्कर्ष

छायावादोत्तर काव्य हिंदी साहित्य के विकास का अत्यंत महत्वपूर्ण चरण है। यह काव्य छायावाद की भावुक कल्पना से आगे बढ़कर यथार्थ, सामाजिक चेतना और जीवन संघर्ष का दस्तावेज बन गया। इसमें प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नई कविता और जनवादी कविता जैसी धाराएँ उभरीं। दिनकर, अज्ञेय, नागार्जुन, मुक्तिबोध और शमशेर बहादुर सिंह जैसे कवियों ने हिंदी काव्य को विश्वस्तरीय दृष्टि और गहन सामाजिक सरोकार दिए।
इस प्रकार छायावादोत्तर काव्य हिंदी साहित्य में न केवल नई संवेदनाओं का परिचायक है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन और मानवीय संघर्ष की जीवंत अभिव्यक्ति भी है।

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