हिंदी साहित्य में यदि किसान की दयनीय स्थिति और उसके जीवन संघर्ष का सबसे सजीव चित्रण किसी लेखक ने किया है तो वह हैं प्रेमचंद। उन्हें ग्रामीण जीवन का कथाकार कहा जाता है क्योंकि उनके साहित्य में गाँव, किसान, खेत, हल, बैल, कर्ज़, जमींदार, साहूकार और गरीबी से जूझते किसान की त्रासदी बार-बार सामने आती है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसान की दशा का यथार्थ चित्रण प्रेमचंद के उपन्यासों और कहानियों में मिलता है। इसीलिए उनके साहित्य को किसान विमर्श का साहित्य भी कहा जाता है।
प्रेमचंद के दौर में किसान शोषण, गरीबी, कर्ज़, अकाल और करों के बोझ तले दबा हुआ था। अंग्रेज़ी सत्ता, जमींदारी व्यवस्था और साहूकारी प्रथा ने उसे और भी निराश्रित बना दिया था। ऐसे कठिन समय में प्रेमचंद ने किसानों की दुर्दशा को साहित्य का केंद्रीय विषय बनाकर समाज और सत्ता को झकझोरने का कार्य किया।
किसान विमर्श का स्वरूप
प्रेमचंद साहित्य में किसान विमर्श का स्वरूप व्यापक है। इसमें केवल आर्थिक शोषण ही नहीं बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक और पारिवारिक स्तर पर किसान की पीड़ा व्यक्त की गई है।
किसान का जीवन गरीबी और कर्ज़ से ग्रस्त है।
जमींदार और साहूकार उसकी मेहनत का शोषण करते हैं।
प्राकृतिक आपदाएँ उसकी मेहनत पर पानी फेर देती हैं।
परिवार और समाज में उसे हीन दृष्टि से देखा जाता है।
फिर भी वह मेहनत, ईमानदारी और त्याग का प्रतीक है।
‘गोदान’ और किसान विमर्श
प्रेमचंद का अंतिम उपन्यास ‘गोदान’ (1936) किसान जीवन का महाकाव्य कहा जाता है। इसका नायक होरी भारतीय किसान का प्रतिनिधि चरित्र है।
होरी जीवनभर कर्ज़, कर और गरीबी से जूझता है।
वह बैल खरीदने के लिए भी साहूकारों का मोहताज है।
सामाजिक मान्यता पाने और धार्मिक कर्तव्य निभाने की उसकी लालसा उसे और कर्ज़ में डुबो देती है।
अंत में वह मर जाता है लेकिन गोदान का सपना अधूरा रह जाता है।
यह उपन्यास बताता है कि भारतीय किसान जीवन भर मेहनत करता है परंतु गरीबी और शोषण से मुक्त नहीं हो पाता।
कहानियों में किसान विमर्श
प्रेमचंद की कहानियों में भी किसान विमर्श अनेक रूपों में व्यक्त हुआ है।
1. ‘पूस की रात’ – इसमें हलकू नामक किसान ठंड से काँपते हुए खेत की रखवाली करता है। गरीबी इतनी है कि वह गर्म कपड़े भी नहीं खरीद सकता। अंततः अपनी जान बचाने के लिए वह खेत को छोड़ देता है। यह किसान की विवशता का हृदयविदारक चित्रण है।
2. ‘कफन’ – इसमें घीसू और माधव नामक पात्र किसान-श्रमिक वर्ग की दयनीय मानसिकता को उजागर करते हैं। बहू की मृत्यु पर भी वे कफन की जगह शराब पीकर दुख भुलाने का प्रयास करते हैं। यह कहानी गरीबी से उपजी असंवेदनशीलता और पलायनवाद को दिखाती है।
3. ‘ईदगाह’ – हामिद नामक बालक गरीब किसान परिवार से है। वह मेले में खिलौने या मिठाई नहीं खरीदता, बल्कि दादी के लिए चिमटा लाता है। यह कहानी किसान परिवार की गरीबी और त्याग का मार्मिक चित्रण है।
4. ‘सद्गति’ – इसमें एक चमार (दलित किसान) की मृत्यु और शव को घसीटने की घटना से किसान और श्रमिक वर्ग के साथ हो रहे जातिगत शोषण और अमानवीय व्यवहार को उजागर किया गया है।
किसान और जमींदारी विमर्श
प्रेमचंद ने किसानों और जमींदारों के बीच के संबंधों पर गहन प्रकाश डाला। जमींदार किसान की मेहनत का शोषण करते हैं। किसान मेहनत करता है, फसल उगाता है लेकिन उसका लाभ जमींदार और साहूकार उठा लेता है।
‘गोदान’ में जमींदार राय साहब और पूंजीपति वर्ग का चरित्र इसका उदाहरण है। वे किसानों की मेहनत का शोषण करते हैं और विलासिता का जीवन जीते हैं।
किसान और स्त्री विमर्श
प्रेमचंद ने किसान परिवार की स्त्रियों की स्थिति को भी गहराई से चित्रित किया।
धनिया (‘गोदान’) त्याग और संघर्ष की प्रतिमूर्ति है।
किसान स्त्रियाँ गरीबी और सामाजिक रूढ़ियों के बीच अपने परिवार को सँभालती हैं।
दहेज प्रथा, बाल विवाह और कुप्रथाओं से वे भी पीड़ित हैं।
किसान स्त्री विमर्श से यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण जीवन की स्त्री भी उतनी ही संघर्षशील है जितना किसान पुरुष।
किसान और आर्थिक विमर्श
प्रेमचंद ने दिखाया कि किसान हमेशा कर्ज़ और साहूकारी के चंगुल में फँसा रहता है। साहूकार ऊँचे ब्याज पर उसे कर्ज़ देते हैं और बदले में उसकी फसल, खेत और बैल तक हड़प लेते हैं।
‘गोदान’ में होरी का परिवार इसी आर्थिक शोषण का शिकार है।
किसान विमर्श की विशेषताएँ
1. यथार्थपरकता – प्रेमचंद ने किसान का चित्रण कल्पना से नहीं, बल्कि वास्तविक जीवन से किया।
2. मानवीयता – किसान पात्रों में त्याग, ईमानदारी और श्रमशीलता का गुण है।
3. संघर्षशीलता – किसान कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष करता है।
4. करुणा – उनकी कहानियाँ करुणा और सहानुभूति जगाती हैं।
5. सामाजिक-आर्थिक आलोचना – प्रेमचंद ने किसान विमर्श के माध्यम से व्यवस्था की आलोचना की।
समकालीन संदर्भ
आज भी किसान आत्महत्या कर रहे हैं, कर्ज़ से दबे हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए आंदोलन कर रहे हैं। प्रेमचंद के किसान विमर्श की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है।
निष्कर्ष
प्रेमचंद का साहित्य किसान विमर्श की दृष्टि से मील का पत्थर है। उन्होंने भारतीय किसान को केवल पात्र नहीं बनाया, बल्कि उसे भारतीय समाज और संस्कृति का आधार स्तंभ मानकर चित्रित किया।
‘गोदान’ किसान जीवन का महाकाव्य है।
‘पूस की रात’, ‘कफन’, ‘ईदगाह’, ‘सद्गति’ जैसी कहानियाँ किसान की त्रासदी, संघर्ष और विवशता का यथार्थ रूप प्रस्तुत करती हैं।
प्रेमचंद ने अपने साहित्य से यह संदेश दिया कि किसान भारतीय समाज की आत्मा है, उसकी समस्याएँ केवल उसकी नहीं, पूरे समाज की समस्याएँ हैं। इस दृष्टि से प्रेमचंद का किसान विमर्श न केवल साहित्यिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व का भी दस्तावेज़ है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें